Wednesday, March 21, 2018

उपभोक्तावाद की और बढ़ती अर्थव्यवस्था

आधुनिक अर्थव्यवस्था की सबसे क्रांतिकारी  अवधारणा ने मानवों को उपभोक्ता में तब्दील कर दिया.उपभोक्तावाद की जड़ें औद्योगिक क्रांति में निहित हैं उसके पूर्व इंसान परस्पर सहयोग से इस धरती पर अपने दिन काट रहा था.जिसमें सभी कृषक थे कोई छोटा तो कोई बड़ा.जिसमें सभी लोग अपनी सामर्थ्य से योगदान देते थे.जो भूमिहीन थे उनके पास भी पेट पालने का एक मात्र साधन कृषि से जुड़े ही कार्य होते थे पर औद्योगिक क्रांति ने इंसानों को उपभोक्ता में तब्दील कर दिया और इसके वाजिब कारण थे.अर्थव्यवस्था कृषि से उद्योगों की तरफ उन्मुख हो गयी और इस दुनिया में जीने के लिए कृषि से जुड़े कार्य करने की अनिवार्यता जाती रही और इसी के साथ एक ऐसे समाज का निर्माण प्रारम्भ हुआ. जहाँ जीवन को सुखमय और विलासी बनाने पर जोर दिया जाने लगा क्योंकि मशीनी क्रांति से चीजें कम समय में बहुतायत में बनने लग गयीं और उन को खपाने के लिए लोगों को खर्च करने के लिए प्रेरित किया जाने लग गया.जिससे विज्ञापन और उससे जुडी स्कीमों की शुरुआत पश्चिमी देशों में शुरू हुई .भारत भी इन बदलावों से अछूता नहीं रहा और बदलाव की इस बयार को तेजी तब मिली जब 1991 में देश की अर्थव्यवस्था को उदार बनाया गया जिससे हमारे बाजार दुनिया के सारे देशों के लिए खुल गए.इस परिवर्तन ने समाज पर बहुआयामी असर डाला.पहले जहाँ लोग “सहेजे और बचाओ” की नीति पर चलते थे क्योंकि चीजों की कमी थी और वे महंगी भी थीं अब “इस्तेमाल करो और फेंको” का ज़माना आ गया.हमारे जैसी पीढी के लोग एक रिफील और निब वाले पेन की कीमत जानते होंगे .नब्बे के दशक से पहले पेन इतनी तेजी से नहीं बदले जाते थे पर आज शायद ही कोई होगा जो पेन की रिफील बदलता होगा.पेन की रिफील खत्म तो पेन का भी काम खत्म,तुरंत नया ले लो.जब चीजें ज्यादा हो और पूंजीपतियों  का सारा जोर अपने मुनाफे को अधिकतम करने पर हो तो उपभोक्ता कहीं न कहीं शिकार होगा ही क्योंकि वो संगठित नहीं है उसके हितों की सुरक्षा के लिए पूरे विश्व में उपभोक्ता अधिकारों के प्रति मांग और जागरूकता दोनों बढ़ी है पर यह सब इतना आसान नहीं रहा. आज से करीब  पैंतीस साल पहले 1983 में उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाने की शुरूआत कंज्यूमर्स इंटरनेशनल नाम की संस्था ने की थी. इसके पीछे उद्देश्य था कि दुनिया भर के सभी उपभोक्ता यह जानें कि बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए उनके क्या अधिकार हैं. साथ ही सभी देशों की सरकारें उपभोक्ताओं के अधिकारों का ख्याल रखें और उनको यह एहसास कराएँ कि अपने अधिकारों की लड़ाई में वे अकेले नहीं हैं बल्कि उनको सरकार का पर्याप्त विधिक समर्थन हासिल है .उपभोक्ता अधिकारों के बारे में पहल इससे कहीं पहले ही हो चुकी थी जब उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारंभ अमेरिका में रल्प नाडेर द्वारा शुरू किया गया था.नाडेर के आन्दोलन के कारण  अमेरिकी कांग्रेस में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी द्वारा उपभोक्ता संरक्षण पर पेश विधेयक को अनुमोदित किया था. अमेरिकी कांग्रेस में पारित विधेयक में चार विशेष प्रावधान थे.जिनमें शामिल थे  उपभोक्ता सुरक्षा का अधिकार, उपभोक्ता को सूचना प्राप्त करने का अधिकार. उपभोक्ता को चुनाव करने का अधिकार एवं  उपभोक्ता को सुनवाई का अधिकार
 भारत में सन् 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम विधेयक पारित हुआ और समय समय पर इसमें संशोधन होते रहे पर पिछले एक दशक में भारतीय उपभोक्ता बाजार मे बहुत परिवर्तन आया है हालाँकि सजे हुए परंपरागत बाजार अभी इतिहास की चीज नहीं हुए हैं, शायद होंगे भी नहीं, पर ऑनलाइन शॉपिंग ने उनको कड़ी टक्कर देनी शुरू कर दी है. परंपरागत दुकानों की तरह ही ऑनलाइन खुदरा व्यापारियों के पास हर सामान उपलब्ध हैं. किताबों से शुरू हुआ यह सिलसिला फर्नीचर, कपड़ों, बीज, किराने के सामान से लेकर फल, सौंदर्य प्रसाधन तक पहुंच गया है. यह लिस्ट हर दिन बढ़ती जा रही है. इस खरीदारी की दुनिया में घुसना इतना आसान है कि आप अपने बेडरूम से लेकर दफ्तर या गाड़ी से, कहीं से भी यह काम कर सकते हैं. इस साल के अंत तक 2018 में भारत का ई-कॉमर्स बाजार 2.4 लाख करोड़ से बढ़कर 3.2 लाख करोड़ हो जाएगा.जितना तेजी से यह बाजार बढ़ रहा है उतना ही तेजी से उपभोक्ता अधिकारों का हनन ऑर्डर कुछ किया जाता  है और आ जाता है कुछ और बेचारा उपभोक्ता इन ऑन लाइन कम्पनियों के काल सेंटर पर फोन और ई मेल करके परेशान होता है वैसे भी ऑनलाईन कम्पनियों के चेहरे नहीं होते हैं सिर्फ फोन नंबर और ई मेल आई डी होती है.
वैसे भी देश में उपभोक्ता अधिकारों की लड़ाई आसान नहीं होती और फैसला आने में सामान्य मुकदमों की तरह बहुत वक्त लगता है.इन स्थतियों को देखते हुए सरकार ने संसद के शीत सत्र में उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018 लोकसभा में पेश किया है और यह नया विधेयक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का स्थान लेगा. इस विधेयक में एक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अथॉरिटी गठित करने का प्रावधान है ताकि उपभोक्ता संरक्षण के लिए संवैधानिक निकाय की कमी को पूरा किया जा सके. यह अथॉरिटी उत्पादों को वापस लेने के लिए दबाव डालने, खरीदी गई वस्तुओं की कीमतों की वापसी और उत्पाद को लौटाने जैसे प्रावधानों लागू करेगा। यह बरगलाने वाले विज्ञापनों पर भी लगाम लगाएगा.
      अथॉरिटी को दस लाख रुपए तक का जुर्माना लगाने का अधिकार होगा और इसके बाद क़ानून का दूसरे बार उल्लंघन होने पर उसको हर ऐसे उल्लंघन के लिए पचास  लाख रुपए तक का जुर्माना लगाने  का अधिकार होगा.उपभोक्ता इन फोरम पर अपनी शिकायात ऑनलाइन कर सकतेहैंऔर सुनवाई वीडिओ कांफ्रेंसिंग के द्वारा भी हो सकेगी.ऑनलाईन उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण के लिए सरकार का यह नया कानून उम्मीद जरुर जगाता है पर इसकी असली परीक्षा व्यवहार के धरातल पर अभी होनी बाकी है क्योंकि समस्या वादों के निपटारे में अत्यधिक समय लगने और वाजिब मुवाअजा न मिलने की है.
आई नेक्स्ट में 21/03/18 को प्रकाशित 

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