इंटरनेट के जमाने में देश में बदलाव की प्रक्रिया की धुरी बन रहे हैं स्मार्ट फोन.भारत में ऑनलाइन शॉपिंग को बढ़ावा देने में इंटरनेट आधारित स्मार्टफोन की बड़ी भूमिका है,खरीद प्रक्रिया का यह बदलाव सबसे ज्यादा स्मार्टफोन की खरीद को प्रभावित कर रहा है.इंटरनेट एक विचार के तौर पर सूचनाओं को साझा करने के सिलसिले के साथ शुरू हुआ था चैटिंग और ई मेल से यह हमारे जीवन में जगह बनाता गया फिर ऑनलाईन शॉपिंग ने खेल के सारे मानक बदल दिए पर भारत में इस सूचना क्रांति के अगुवा बने स्मार्टफोन जिन्होंने मोबाईल एप और ई वालेट के जरिये पर्स में पैसे रखने के चलन को खत्म करना शुरू कर दिया . आईटी क्षेत्र की एक अग्रणी कंपनी सिस्को ने अनुमान लागाया है कि सन २०१९ तक भारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या लगभग ६५ करोड़ हो जाएगी जो जाहिर तौर पर इस ई लेन देन की प्रक्रिया को और गति देगी .इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोशिएशन ऑफ इंडिया व केपीएमजी की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का ई-कॉमर्स का बाजार 12.6 बिलियन डॉलर का है और 2020 तक यह देश की जीडीपी में चार प्रतिशत का योगदान देगा.
नक़द से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है,सरकार के लिए नोट छापना एक खर्चीला काम है . मूडीज की रिपोर्ट के अनुसार साल 2011से 2105 तक ई भुगतान ने देश की अर्थव्यवस्था में 6.08 बिलियन डॉलर का इजाफा किया है.मैकिन्सी ने अपनी एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि डिजीटल लेन देन के बढ़ने से साल 2025 तक देश की अर्थव्यवस्था में 11.8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होगी .आंकड़े आने वाले कल की सुनहरी उम्मीद भले ही जगाते हैं पर ये मामला मानवीय व्यवहार से भी जुड़ा है जिसके बदलने में वक्त लगेगा . भारतीय परिस्थितियों में मौद्रिक लेन देन विश्वास से जुड़ा मामला भी है जब हम जिसे पैसा दे रहे हैं वो हमारे सामने होता है जिससे एक तरह का भरोसा जगता है . डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए सरकार कारोबारियों को कैशबैक देने पर विचार कर रही है. इसके साथ ही सरकार ग्राहकों को अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर छूट भी दे सकती है. केंद्र सरकार का राजस्व विभाग एक ऐसे प्रस्ताव पर काम कर रहा है, जिसमें डिजिटल माध्यम से पेमेंट करने वालों को अधिकतम खुदरा मूल्य पर छूट देने की बात भी हो सकती है. डिजिटल माध्यम से किसी उत्पाद या सेवा के लिए भुगतान सरकार के भीम एप या निजी कंपनियों के मोबाइल वॉलेट (पेटीएम, फोन पे, मोबिक्विक आदि ) की मदद ली जा रही है. निजी मोबाइल वॉलेट कंपनियां पहले ही डिजिटल ट्रांजेक्शन करने वाले ग्राहकों को कैशबैक की सुविधा दे रही हैं.
लेकिन सिर्फ स्मार्ट फोन प्रयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ने से लोग डिजीटल लेन-देन की तरफ ज्यादा बढ़ेंगे ऐसा अभी सम्भव नहीं दिखता है. डिजीटल लेन-देन की अपनी समस्याएँ हैं और समस्याएं हैं . इंटरनेट एंड मोबाईल एसोशिएसन की रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2016 से दिसंबर2017 तक के साल में शहरी भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 9.66 प्रतिशत बढ़कर अनुमानित 29.5 करोड़ हो गई. वहीं ग्रामीण भारत में इसी दौरान यह संख्या 14.11 प्रतिशत से बढ़कर अनुमानित 18.6 करोड़ हो गई.ऑनलाइन उपभोक्ता अधिकार जैसे मुद्दों पर न तो कोई जागरूकता है न ही कोई ठोस सार्थक कानून . ई वालेट प्रयोग और ऑन लाइन खरीददारी उपयोगिता के तौर पर बहुत लाभदायक है पर किन्ही कारणों से आपको खरीदा सामान वापस करना पड़ा या खराब उत्पाद मिल गया और उपभोक्ता अपना पैसा वापस चाहता है तो अनुभव यह बताता है कि उसे पाने में तीन से दस दिन तक का समय लगता है और इस अवधि में उस धन पर डिजीटल प्रयोगकर्ता को कोई ब्याज नहीं मिलता और यह एक लम्बी थकाऊ प्रक्रिया है जिसमें अपने पैसे की वापसी के लिए बैंक और ओनलाईन शॉपिंग कम्पनी के कस्टमर केयर पर बार –बार फोन करना पड़ता है .कई बार कम्पनियां पैसा नगद न वापस कर अपनी खरीद बढ़ाने के लिए गिफ्ट कूपन जैसी योजनायें जबरदस्ती उपभोक्ताओं के माथे मढ देती हैं और ऐसी परिस्थितियों में उत्पन्न हुई समस्या के समयबद्ध निपटारे की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है .जेब में पैसा होना एक तरह का आत्मविश्वास देता है . क्या वह आत्म विश्वास जेब में पड़ा मोबाईल ई वालेट या डेबिट /क्रेडिट कार्ड दे पायेगा? आज भी देश के हर शहरों तक के कुछ मोहल्लों और गलियों में इंटरनेट और मोबाइल फोन की निर्बाध सेवा नहीं है। इसलिए जरूरी यह भी है कि डिजिटल गेटवे की व्यवस्था को भी समानांतर तरीके से सुलभ और मजबूत किया जाए। जब तक इंटरनेट की अबाध सेवा नहीं होगी, डिजिटल गेटवे की सहज सहूलियतें नहीं दी जाएंगी, डिजिटल भुगतान को कामयाबी के साथ लागू नहीं किया जा सकेगा. आर्थिक समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग के एक सर्वे के अनुसार जर्मनी और ऑस्ट्रिया जैसे देशों में बड़े भुगतान तक के लिए नोट का चलन ज्यादा है. अमेरिका में अभी भी छियालीस प्रतिशत भुगतान नकद में होता है. अमेरिका और यूरोप के जिन देशों में ब्लूमबर्ग ने सर्वे किया, उन देशों में ई-वालेट, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड और बिटकाइन जैसी सहूलियतें भी पहले से मौजूद हैं। इसके बावजूद नार्वे को छोड़कर, बाकी जगहों पर नोट का ही ज्यादा इस्तेमाल चलन में है। डिजिटल भुगतान को लेकर लोगों की ललक तभी बढ़ पाएगी, जब भुगतान के लिए उन्हें शुल्क न देना पड़े इसलिए मुफ्त भुगतान सेवा वाले डिजिटल गेटवे अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराने होंगे. दूसरी समस्या जैसे –जैसे ई लेन-देन बढ़ रहा है उसी अनुपात में साइबर अपराध की संख्या में इजाफा हो रहा है . जागरूकता में कमी के कारण आमतौर पर जब उपभोक्ता ऑनलाईन धोखाधड़ी का शिकार होता है तो उसे समझ ही नहीं आता वो क्या करे. ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब जितनी जल्दी मिलेगा लोग उतनी तेजी से इलेक्ट्रौनिक ट्रांसेक्शन की तरफ बढ़ेंगे .देश की बड़ी आबादी अशिक्षित और निर्धन है वो आने वाले वक्त में कितनी बड़ी मात्रा में डिजीटल लेन देन करेगी यह उस व्यवस्था पर निर्भर करेगा जहाँ लोग पैसा खर्च करते उसी निश्चिंतता और भरोसे को पा सकें जो उन्हें कागजी मुद्रा के लेन देन करते वक्त प्राप्त होती है .
आई नेक्स्ट दैनिक जागरण में 29/05/18 को प्रकाशित