भारत में खाद्य और भोज्य पदार्थ उपभोक्ताओं तक उच्च गुणवत्ता के साथ पहुंचे और उनके अधिकारों का हनन न हो, इसके लिए साल 2006 में फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड्स एेक्ट पास किया गया, जो खाद्य पदार्थों से जुड़ा हुआ था।इस एेक्ट में यूरोपीय संघ के विनियमन के साथ कई तरह की समानताएं हैं, जो खाद्य पदार्थों के पोषण और स्वास्थ्य दावों से जुड़ी हुई हैं। इस कानून का सीधा उद्देश्य उपभोक्ताओं को खाद्य पदार्थों के बारे में प्रामाणिक जानकारी देना है, जिससे वे खाद्य पसंदों के बारे में पर्याप्त रूप से सूचित रहें। जिसका तात्पर्य यह है कि जिन खाद्य पदार्थों का वे सेवन कर रहे हैं। उनके गुण-दोषों से वे भली-भांति परिचित हों।
भारत खान-पान के मामले में काफी विविधता वाला देश है, पर भोजन में ऐसी बहुत-सी चीजें इस्तेमाल होती हैं, जिनमें काफी चिकित्सकीय गुण होते हैं पर ये चिकित्सकीय गुण काफी भ्रांतियों के भी शिकार होते हैं और इनकी प्रामाणिकता स्थापित नहीं हैं। ऐसा माना जाता है कि केसर अस्थमा, अपच, बदन दर्द, बुखार, शुष्क त्वचा रोग और गर्भावस्था में लाभकारी होता है, वहीं घी याद्दाश्त बढ़ाने से लेकर अपच दूर करने में सहायक होता है। नींबू का अचार शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
ऐसे सारे दावों के पीछे कोई स्थापित या प्रामाणिक तथ्य नहीं है, बल्कि खानों के बारे में वह गहरी प्रतिबद्धता है, जो यह मानती है कि इन खाद्य पदार्थों में ऐसे औषधीय गुण होते हैं, जो समस्त भौगोलिक क्षेत्रों में सभी आयु, लिंग के व्यक्तियों में समान रूप से फायदा पहुंचाते हैं। भोज्य पदार्थों के औषधीय गुणों के बारे में यह पूर्ववृति इस तरह के खाद्य पदार्थों के व्यवसाय के लिए ऐसे विज्ञापन विकल्प देते हैं, जिनमें अकल्पनीय दावे किए जाते हैं और उपभोक्ता उनको अपना कर जहां एक और ठगी का शिकार होता है, वहीं अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी कर बैठता है।यद्यपि भारत में ऐसे खाद्य पदार्थों की बिक्री को प्रोत्साहन पारंपरिक मान्यताओं के आधार पर मिलता है, पर इन सामग्रियों में उपस्थित पोषण और स्वास्थ्य गुण स्वास्थ्य नियामकों के लिए एक चुनौती बन जाते हैं। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एेक्ट उन्हीं खाद्य सामग्रियों को अपने दायरे में लेता है, जिनके स्वास्थ्य और पोषण के बारे में दावे का वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध हो। भारत और दुनिया के अन्य देशों में बहुत से उपभोक्ता स्वास्थ्य और पोषण के लिए अपने पारंपरिक विश्वासों के आधार पर आयुर्वेद द्वारा निर्धारित खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं। इसी कड़ी में पारंपरिक औषधियों को बढ़ावा देने और वैकल्पिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए साल 2014 में आयुष मंत्रालय की स्थापना की गई, क्योंकि देश में आयुर्वेद की बहुत गहरी जड़ें हैं, पर इसी का हवाला देकर बहुत-सी कंपनियां दैनिक उपभोग की बहुत-सी वस्तुएं आयुर्वेद के नाम पर बेच रही हैं।
आयुर्वेद का बढ़ता व्यावसायिक इस्तेमाल ऐसे भ्रामक विज्ञापनों के जन्म का कारक बन रहा है, जो बगैर किसी वैज्ञानिक आधार के मधुमेह, कैंसर जैसी बीमारियों के दूर करने से लेकर बाल उगाने जैसा दावा करते हुए कई सारे ऐसे दैनिक उपभोग के उत्पाद बेच रहे हैं, जो अगर आयुर्वेद की श्रेणी में न आते, तो वे फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथॉरिटी के अंतर्गत आते और यह उनके द्वारा किए जा रहे दावों की जांच पड़ताल कर सकती थी। उपभोक्ता को ठगने से बचाने के लिए सरकार को इस दिशा में सोचने की तुरंत जरूरत है।
अमर उजाला में 09/05/18 को प्रकाशित
1 comment:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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