Wednesday, April 17, 2019

पर्यावरण पर भारी पड़ते चुनाव

पूरा देश  इस समय चुनावी उत्सव में सराबोर है लोग बढ़ चढ़ कर इसमें हिस्सा ले रहे हैं |तमाम  राजनैतिक पार्टियाँ अपनी उपलब्धियों एवं वायदों का प्रचार प्रसार कर रही हैं जाहिर है सोशल मीडिया के आने से प्रचार के लिए पारम्परिक माध्यमों के अलावा एक नया विकल्प मिला है पर फिर भी चुनाव प्रचार  का  अभी भी मुख्य माध्यम   बैनर होर्डिंग  ही हैं |वो चाहे किसी पार्टी की रैली हो या किसी उम्मीदवार का अपने पक्ष में माहौल बनाना वो बैनर होर्डिंग  का ही सहारा लेता है |बदलते वक्त के साथ बैनर होर्डिंग  भी बदले हैं पर इनके बदलाओं पर लोगों ने ज्यादा गौर नहीं किया |किया भी क्यों जाए साफ़ पर्यावरण कभी भी भारत की चिंता में नहीं रहा |पिछले एक दशक में बैनर होर्डिंग का स्थान कपड़ों और पेंट की जगह फ्लेक्स ने ले लिया है जो पीवीसी (पोलीविनाईल क्लोराईड ) प्लास्टिक से बने होते हैं और यह  एक बड़ी स्वास्थ्य और पर्यावरणीय समस्या है|कुछ ही हफ्तों में लोकसभा चुनाव सम्पन्न होने हैं| ऐसे में ये समस्या बढना लाज़मी है|तथ्य यह भी है कि चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से प्रचार के दौरान प्लास्टिक और पौलीथीन का इस्तेमाल करने से बचने की हिदायत दी है पर आयोग का ये सुझाव आदर्श  चुनाव आचार संहिता के अंतर्गत नही आता है|शायद इसीलिये सभी राजनैतिक पार्टियों के कार्यालय इन बैनर और होर्डिंग से भरे हुए हैं |
मूडी की एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी कंपनी आई सी आर ए (ICRA )के मुताबिक भारत में सालाना नब्बे  प्रतिशत आउटडोर विज्ञापन पीवीसी  पर प्रिंट होते हैं जिनकी खपत 18000 टन मासिक है  जो साल भर में216,000 टन हो जाता है |इसमें वो सभी छोटे बड़े विज्ञापन शामिल हैं वो चाहे किसी नए फोन का लांच होना हो या कोई मोटरबाईक या फिर नए फ़्लैट का सपना दिखाते लुभावने विज्ञापन | पीवीसी (पोलीविनाईल क्लोराईड ) दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा प्लास्टिक पोलीमर है जिसका इस्तेमाल बैनर होर्डिंग  में होता है अपने नॉन बायो डीग्रिडेबल प्रकृति के कारण इनको खत्म करने के लिए या तो इन्हें जलाना पड़ता है या लैंडफिल में डाल दिया जाता है |एक प्रतिशत से भी कम पीवीसी को रिसाइकिल किया जाता है| जलता हुआ पीवीसी बहुत सी जहरीली गैस छोड़ता है जो हवा से भारी होता है जो ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर देता है जिससे कैंसर होने की संभावना होती है और उसकी राख जमीन और पानी को भी प्रदूषित कर देती है |सुचना के अधिकार से से 2018 में मिली जानकारी के अनुसार अप्रैल 2017 और मार्च 2018 के बीच भाजपा ने अकेले आउटडोर प्रचार पर 147.10 करोड़ रुपये (21 मिलियन डॉलरखर्च किए |जाहिर है इसमें से एक बड़ा हिस्सा  बैनर और होर्डिंग्स पर खर्च  किया गया होगा |एक अनुमान के अनुसार इन दो या तीन महीनों में (चुनाव प्रक्रिया के दौरान)प्लास्टिक की खपत इतनी होती है जितनी दो या तीन गैर-चुनावी वर्षों में होती है|ये एक कैंसरकारी तत्व  है जिसके कारण  देशभर में राज्य सरकारें इसके उपयोग में कटौती करने के लिए प्रेरित हो  रही हैं. द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआईके अनुसार, केंद्र सरकार ने भी एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के लिए 2022 का लक्ष्य रखा हैजिसका 13.4 मिलियन टन प्रति वर्ष देश में निर्मित किया जाता है| प्रचार विज्ञापनों के लिए कपड़े और पुनर्नवीनीकरण कागज जैसे विकल्प ज्यादा पर्यावरण मैत्री  हो सकते हैं |पीवीसी के लिए पचास साल की तुलना में सूती कपड़े को सड़ने में केवल पांच से छह महीने का समय लगता है |इन सब चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के हित में चुनाव के दौरान अभियान सामग्री (पोस्टरबैनरआदिके रूप में एकल-उपयोग प्लास्टिक का उपयोग नहीं करने के लिए पर्याप्त कदम उठाने की सलाह दी थी |लेकिन क्या महज सलाह देने से ही राजनीतिक दल कार्रवाई करेंगे?यह एक बड़ा प्रश्न है अगर यह प्रतिबंध आदर्श आचार संहिता का हिस्सा बन जाता हैतो इसे (प्लास्टिकसीमित करने का एक निश्चित तरीका जरुर बन सकता है | इस बीच केरल उच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को दक्षिणी राज्य में पीवीसी-आधारित प्रचार सामग्री से बचने का निर्देश दिया है |तस्वीर का दूसरा हिस्सा यह भी है कि देश में लोग न तो पर्यावरण की कीमत समझते हैं और न ही इंसानी जान की|इको-फ्रेंडली उत्पाद विनाइल फ्लेक्स बोर्डों की तुलना में अधिक महंगे हैं और लोग इसी बात पर पीवीसी(पोलीविनाईल क्लोराईड ) प्लास्टिक से बने बैनर होर्डिंग के इस्तेमाल करते रहते हैं |यह चुनाव, चुनाव प्रचार में व्यवहार परिवर्तन और नई  प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए शानदार अवसर हो सकते हैं पर फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है |
अमर उजाला में 17/04/2019 में प्रकाशित 


1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (18-04-2019) को "कवच की समीक्षा" (चर्चा अंक-3309) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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