Tuesday, November 5, 2019

डिजीटल विज्ञापनों ने बदली मार्केट स्ट्रेटजी

नया मीडिया अपना कारोबार व इश्तिहार भी बढ़ा रहा है।इंटरनेट ने उम्र का एक चक्र पूरा कर लिया है। इसकी खूबियों और इसकी उपयोगिता की चर्चा तो बहुत हो लीअब इसके दूसरे पहलुओं पर भी ध्यान जाने लगा है।इंटरनेट शुरुवात में किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह एक ऐसा आविष्कार बनेगा जिससे मानव सभ्यता का चेहरा हमेशा के लिए बदल जाएगा आग और पहिया के बाद इंटरनेट ही वह क्रांतिकारी कारक जिससे मानव सभ्यता के विकास को चमत्कारिक गति मिली.इंटरनेट के विस्तार के साथ ही इसका व्यवसायिक पक्ष भी विकसित होना शुरू हो गया.प्रारंभ में इसका विस्तार विकसित देशों के पक्ष में ज्यादा पर जैसे जैसे तकनीक विकास होता गया इंटरनेट ने विकासशील देशों की और रुख करना शुरू किया और नयी नयी सेवाएँ इससे जुडती चली गयीं  . भारत के डिजिटल विज्ञापन बाजार के 2020 तक 25,500 करोड़ रुपए को पार करने के लिए 33.5 फीसदी की एक समग्र वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढऩे की उम्मीद है। कुल विज्ञापन राजस्व में इंटरनेट का हिस्सा 2013 में आठ प्रतिशत से बढ़ कर 2018 में 16 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। ऑनलाइन विज्ञापनजो 2013 में 2,900 करोड़ रुपए थाआने वाले पांच सालों में तीन गुना बढ़ोतरी के साथ 10,000 करोड़ रुपए तक जा सकता है. ऑनलाइन विज्ञापन की इस बढ़त में भारत में स्मार्ट फोन की बढ़ती संख्या का बड़ा योगदान है। लेकिन विज्ञापनों का यह बढ़ता बाजार अपने साथ समस्याएं भी ला रहा है. भारत जैसे देश में यह समस्या ज्यादा गंभीर इसलिए हो जाती हैक्योंकि यहां इंटरनेट का विस्तार बहुत तेजी से हो रहा हैमगर नेट जागरूकता की खासी कमी है। भारत में इंटरनेट के ज्यादातर प्रयोगकर्ताओं के लिए यह एक नई चीज है और वे कुछ चालाक विज्ञापनदाताओं की चाल का शिकार भी बन जाते हैं.भारत में विज्ञापनों का नियमन करने वाले संगठन भारतीय विज्ञापन मानक परिषदयानी एएससीआई ने भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ शिकायत करने के लिए बाकायदा एक व्यवस्था बना रखी है. लेकिन इंटरनेट अन्य विज्ञापन माध्यमों जैसा नहीं है। इंटरनेट के विज्ञापनों पर नजर रखना कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण काम हैक्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि भ्रामक विज्ञापन का शिकार बनने वाला भारत के किसी शहर में होजबकि विज्ञापनदाता सात समंुदर पार किसी दूसरे देश में। प्रिंट माध्यम के लिए तो इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी जैसी संस्था हैजो विज्ञापन एजेंसी को मान्यता देती है और किसी शिकायत पर वह मान्यता खत्म भी कर सकती है।वी आर सोशल की डिजिटल सोशल ऐंड मोबाइल  रिपोर्ट के मुताबिकभारत में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं के आंकड़े काफी कुछ कहते हैं। इसके अनुसारएक भारतीय औसतन पांच घंटे चार मिनट कंप्यूटर या टैबलेट पर इंटरनेट का इस्तेमाल करता है। इंटरनेट पर एक घंटा 58 मिनटसोशल मीडिया पर दो घंटे 31 मिनट के अलावा इनके मोबाइल इंटरनेट के इस्तेमाल की औसत दैनिक अवधि है दो घंटे 24मिनट। इस बीच टेलीकॉम कंपनी एरिक्सन ने अपने एक शोध के नतीजे प्रकाशित किए हैंजो काफी दिलचस्प हैं। इससे पता चलता है कि स्मार्टफोन पर समय बिताने में भारतीय पूरी दुनिया में सबसे आगे हैं.एक औसत भारतीय स्मार्टफोन प्रयोगकर्ता रोजाना तीन घंटा 18 मिनट इसका इस्तेमाल करता है। इस समय का एक तिहाई हिस्सा विभिन्न तरह के एप के इस्तेमाल में बीतता है। एप इस्तेमाल में बिताया जाने वाला समय पिछले दो साल की तुलना में 63फीसदी बढ़ा है. स्मार्टफोन का प्रयोग सिर्फ चैटिंग एप या सोशल नेटवर्किंग के इस्तेमाल तक सीमित नहीं हैलोग ऑनलाइन शॉपिंग से लेकर तरह-तरह के व्यावसायिक कार्यों को स्मार्टफोन से निपटा रहे हैं.निकट भविष्य में रेडियोटीवी और समाचार-पत्रों की विज्ञापनों से होने वाली आय में कमी होगीक्योंकि ये माध्यम एकतरफा हैं. मोबाइल के मुकाबले इन माध्यमों पर विज्ञापनों का रिटर्न ऑफ इन्वेस्टमेंट (आरओआई) कम है। मोबाइल आपको जानता हैउसे पता है कि आप क्या देखना चाहते हैं और क्या नहीं देखना चाहते हैं.मोबाइल फोन के इस्तेमाल से जुड़ा एक दिलचस्प आंकड़ा यह भी है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या में कोई खास अंतर नहीं है. मोबाइल के जरिये अब बेहद कम खर्च पर देश के निचले तबके तक पहुंचा जा सकता है। इसमें बड़ी भूमिका फ्री मोबाइल ऐप निभा रही हैंजिनके साथ विज्ञापन भी आते हैं.इस बात ने विज्ञापनदाताओं का भी ध्यान बहुत तेजी से अपनी ओर आकर्षित किया है. इस समय भारत में दिए जाने वाले कुल मोबाइल विज्ञापनों का लगभग 60प्रतिशत टेक्स्ट के रूप में होता है. आधुनिक होते मोबाइल फोन के साथ अब वीडियो और अन्य उन्नत प्रकार के विज्ञापन भी चलन में आने लगे हैं. मोबाइल फोन एक अत्यंत ही व्यक्तिगत माध्यम है और इसीलिए इसके माध्यम से इसको उपयोग करने वाले के बारे में सटीक जानकारी एकत्रित की जा सकती है.
                                  इंटरनेट के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है.दूसरा पहलू डाटा के उपभोग से जुड़ा है. इंटरनेट पर जब भी कोई काम किया जाता हैतो कुछ डाटा खर्च होता हैजिसका शुल्क इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियां वसूलती हैंपर किसी-किसी  वेबसाइट पर जाते ही उपभोक्ता से बगैर पूछे अचानक कोई वीडियो चलने लगता हैतो काम भी बाधित होता है और उपभोक्ता का कुछ अतिरिक्त डाटा भी खर्च होता हैजिसके पैसे तो उससे वसूल लिए जाते हैंपर उस विज्ञापन को देखने या सुनाने के लिए उससे अनुमति नहीं ली जाती है. यू-ट्यूब के वीडियो में शुरुआती कुछ सेकंड आपको मजबूरी में देखने पड़ते हैंजिसमें आपका अतिरिक्त डाटा खर्च होगा. निजता का मामला भी इसी से जुड़ा मुद्दा है। हम क्या करते हैं इंटरनेट परक्या खोजते हैंइन सबकी जानकारी के हिसाब से हमें विज्ञापन दिखाए जाते हैं. अमेरिका की चर्चित संस्था नेटवर्क एडवर्टाइजिंग इनिशिएटिव (एनआईए) ने ऐसे मामलों के लिए भी संहिता बनाकर कंपनियों को निर्देश दिया है कि वे उपभोक्ताओं को ऐसे विज्ञापनों को न देखने का विकल्प भी उपलब्ध कराएं. निजता की रक्षा के लिए भी यह जरूरी है. भारत में इंटरनेट का बाजार अभी आकार ले रहा हैइसलिए सतर्कता बरतने का यह सबसे सही समय है.
आई नेक्स्ट /दैनिक जागरण में 05/11/2019 में प्रकाशित 

No comments:

पसंद आया हो तो