इसमें कोई शक नहीं कि मानव सभ्यता के इतिहास को बदलने में सबसे बड़ा योगदान आग और पहिये के आविष्कार ने दिया। लेकिन यह भी सच है कि इंटरनेट की अवधारणा ने इस सभ्यता का नक्शा हमेशा के लिए बदल दिया। यह समय का एक चक्र पूरा हो जाने जैसा है। इंसान ने संचार के लिए सबसे पहले चित्रों का सहारा लिया था, जिनके साक्ष्य आदिकालीन गुफाओं में देखे जा सकते हैं। फिर भाषा और लिपि का विकास हुआ और सभ्यता लगातार आगे बढ़ती रही। संवाद के लिए भाषा पर ज्यादा निर्भरता रही। पर इंटरनेट के आगमन और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बढ़ते चलन ने संचार के उस युग को दुबारा जीवित कर दिया जो सभ्यता की शुरु आत में हमारा साथी था। संवाद के लिए तस्वीरें और स्माइली का प्रयोग अब ज्यादा बढ़ रहा है। स्माइली ऐसे चिह्न हैं जिनसे भाव प्रेषित किए जाते हैं। मोबाइल इंटरनेट इस्तेमाल करने वाली कुल आबादी का पचहत्तर प्रतिशत हिस्सा बीस से उन्तीस वर्ष के युवा वर्ग से आता है। इसमें खास बात यह है कि यह युवा वर्ग सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सबसे ज्यादा सक्रिय है। जल्दी ही वह वक्त इतिहास हो जाने वाला है जब आपको कोई एसएमएस मिलेगा कि क्या हो रहा है और आप लिखकर जवाब देंगे। अब समय दृश्य संचार का है। आप तुरंत एक तस्वीर खींचेंगे या वीडियो बनाएंगे और पूछने वाले को भेज देंगे या एक स्माइली भेज देंगे। यानी आपको कुछ कहने या लिखने की जरूरत नहीं, कहने का काम अब तस्वीरें करेंगी। फोटो या छायाचित्र बहुत पहले से संचार का माध्यम रहे हैं, पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स और इंटरनेट के साथ ने इन्हें इंस्टेंट कम्युनिकेशन मोड (त्वरित संचार माध्यम) में बदल दिया है। अब महज शब्द नहीं, भाव और परिवेश भी बोल रहे हैं। वह भी तस्वीरों और स्माइली के सहारे। इस संचार को समझने के लिए न तो किसी भाषा विशेष को जानने की अनिवार्यता है और न ही वर्तनी और व्याकरण की बंदिशें। तस्वीरें पूरी दुनिया की एक सार्वभौमिक भाषा बनकर उभर रही हैं।
दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला व्यक्ति तस्वीरों और वीडियो के माध्यम से अपनी बात दूसरों तक पहुंचा पा रहा है। एसी नील्सन के नियंतण्र मीडिया खपत सूचकांक से पता चलता है कि एशिया (जापान को छोड़कर) और ब्रिक देशों में इंटरनेट मोबाइल फोन पर टीवी व वीडियो देखने की आदत पश्चिमी देशों व यूरोप के मुकाबले तेजी से बढ़ रही है। मोबाइल पर लिखित एसएमएस संदेशों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। वायरलेस उद्योग की अंतरराष्ट्रीय संस्था सीटीआईए की रिपोर्ट के अनुसार साल 2012 में 2.19 ट्रिलियन एसएमएस संदेशों का आदान-प्रदान पूरी दुनिया में हुआ, जो 2011 की तुलना में भेजे गए संदेशों की संख्या से पांच प्रतिशत कम रहा। वहीं मल्टीमीडिया मेसेज (एमएमएस) जिसमें फोटो और वीडियो शामिल हैं, की संख्या साल 2012 में 41 प्रतिशत बढ़कर 74.5 बिलियन हो गई। एक साधारण तस्वीर से संचार, शब्दों और चिह्नों के मुकाबले कहीं आसान है। उन्नत होती तकनीक और बढ़ते स्मार्टफोन के प्रचलन ने फोटोग्राफी को अतीत की स्मृतियों को सहेजने की कला से आगे बढ़ाकर एक त्वरित संचार माध्यम में तब्दील कर दिया है। फोन पर इंटरनेट और नएनए एप्स लगातार संचार के तरीकों को बदल रहे हैं। स्नैप चैट एक ऐसा ही मोबाइल एप्लीकेशन है जो प्रयोगकर्ता को वीडियो और फोटो भेजने की सुविधा प्रदान करता है। इसमें फोटो-वीडियो देखे जाने के बाद अपने आप हमेशा के लिए नष्ट हो जाता है। स्नैप चैट के प्रयोगकर्ता प्रतिदिन 200 मिलियन चित्रों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। फेसबुक पर लोग प्रतिदिन 300 मिलियन चित्रों का आदान-प्रदान कर रहे हैं और साल भर में यह आंकड़ा 100 बिलियन का है। चित्रों का आदान-प्रदान करने वाले लोगों में एक बड़ी संख्या स्मार्टफोन प्रयोगकर्ताओं की है जो स्मार्टफोन द्वारा सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल करते हैं और यह चीज संचार के क्षेत्र में बड़ा बदलाव ला रही है। तथ्य यह भी है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बढ़ते इस्तेमाल में संचार के पारंपरिक तरीके, जिसका आधार भाषा हुआ करती थी, वह कुछ निश्चित चिह्नों/प्रतीकों में बदल रही है। इसे हम इमोजीस या फिर इमोटिकॉन के रूप में जानते हैं जो चेहरे की अभिव्यक्ति जाहिर करते हैं। 1982 में अमेरिकी कंप्यूटर विज्ञानी स्कॉट फॉलमैन ने इसका आविष्कार किया था। स्कॉट फॉलमैन ने जब इसका आविष्कार किया था, तब उन्होंने नहीं सोचा था कि एक दिन ये चित्र प्रतीक मानव संचार में इतनी बड़ी भूमिका निभाएंगे। व्हाट्सएप के अलावा सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक में भी इनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल संचार के लिए हो रहा है। सिर्फ एप्पल के आईफोन में ही दो करोड़ बार इमोजी डाउनलोड किए गए हैं। बहुत से स्मार्टफोनों में सात सौ बीस से ज्यादा स्माइली आइकन मौजूद हैं। स्मार्टफोन या फिर चैट एप में पारंपरिक स्माइली वाले चेहरे से लेकर दैत्य रूपी या फिर चुलबुले चेहरे वाले आइकन मौजूद हैं। मोबाइल अब एक आवश्यक आवश्यकता बन कर हमेशा हमारे साथ रहता है। देश में जहां 116.1 करोड़ मोबाइल यूजर्स मौजूद हैं. वहीं लैंडलाइन उपभोक्ताओं की संख्या 2.17 करोड़ है. देश में टेलीफोन घनत्व की बात करें तो प्रति 100 की आबादी पर 90.11 टेलीफोन यूजर्स हैं. इनमें 88.46 मोबाइल और 1.65 लैंड लाइन यूजर्स हैं. सबसे ज्यादा टेलीफोन वाला राज्य दिल्ली है. जहां घनत्व 174.8 है. हालांकि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि तकनीकी उन्नति के रथ पर सवार तस्वीरें आने वाले वक्त में मानव संचार की दुनिया बदल देंगी, पर तस्वीर पूरी रंगीन हो ऐसा भी नहीं है। छायाचित्र संचार के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण तकनीक है। भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों में डिजीटल डिवाइड बढ़ रहा है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दस वर्ष में ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 0.4 प्रतिशत परिवारों को ही घर में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध थी। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत की ग्रामीण जनसंख्या का दो प्रतिशत ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहा है। यह आंकड़ा इस हिसाब से बहुत कम है क्योंकि इस वक्त ग्रामीण इलाकों के कुल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से अट्ठारह प्रतिशत को इसके इस्तेमाल के लिए दस किलोमीटर से ज्यादा का सफर करना पड़ता है। तकनीक के इस डिजीटल युग में हम अब भी रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत समस्याओं के उन्मूलन में बेहतर प्रदशर्न नहीं कर पा रहे हैं। लिहाजा, तस्वीर उतनी चमकीली भी नहीं है। इसके अतिरिक्त तस्वीरों और स्माइली पर बढ़ती निर्भरता संचार के लिए दुनिया भर की भाषाओं के लिए खतरा भी हो सकती है। इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।
दैनिक जागरण /आई नेक्स्ट में 26/11/2019 को प्रकाशित लेख
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