डेढ़ महीने के घरेलू
काम काज करते हुए मुझे किचन और घर की काफी चीजों को करीब से देखने का मौका मिला |ये सब काम मुझे
कितना सिखा सकते हैं ये इस जन्म में लॉक डाउन जैसे अप्रत्याशित वक्त के कारण ही
सम्भव हो पाया |जीवन में आगे जाना ही सब कुछ नहीं है कभी कभी आप पीछे लौटते हुए भी आगे जा
सकते हैं |झाड़ू और पोंछा यूँ तो घर की साफ़ सफाई की क्रियाएं हैं पर अपनी प्रकृति में
दोनों अलग हैं |पोंछा लगाते हुए आप पीछे आते हैं और कमरा साफ़ हो जाता है यानि हार के जीतने
वाले को बाजीगर वाली बात| झाड़ू लगाते वक्त आप आगे जाते हैं और कमरा साफ़ |झाड़ू जहाँ आपको जब
जीवन समान्य हो तो तरक्की कैसे करें ये सिखाती है वहीं पोंछा असमान्य स्थितियों
में भी आप कैसे विजेता हो सकते हैं |बगैर रगड़े कोई बर्तन न चमकता है अगर
सफलता की कामना है तो पहले असफल हो | घर में रहते हुए और एक महीने से ज्यादा
का वक्त हो गया ।इन डेढ़ महीनों में जिंदगी को कई बार मुड़ मुड़ के देखा ।दिनचर्या
एकदम बदल गयी जिसमें नियम से पूरे घर का झाड़ू पोंछा और बर्तन धोना शामिल है ।कभी
कभी खाना भी बनाता हूँ।बर्तन देर रात में धोता हूँ जब पूरा घर नींद के आगोश में
होता है और मैं विविधभारती पर बजते गानों के बीच जिंदगी के पन्ने पलटता हूँ और
सोचता हूँ इस प्रगति और विकास के खेल में हमें मिला क्या ? बचपन में मम्मी की
मदद के लिए बर्तन धोता था क्योंकि कोई नौकरानी रखी नहीं जा सकती थी और परिवार बड़ा था ।झाड़ू पोंछा
लगाना तो खेल था गाने बजा कर नाच नाच कर सफाई ।तब लेकिन विकास का रोग नहीं लगा था
एक तौलिया में सारे घर का काम चल जाता था चार भाई और माता पिता ।खाली समय में चावल
से तिनके निकालने का खेल ।इन सब के बीच मैं बढ़ रहा था और मेहनत से पढ़ भी रहा था कि
इससे तरक्की होगी ।
आज तीन लोगों के परिवार में तीन तौलिया और नहाने के सबके अलग अलग साबुन है ।घर के हर काम के लिए मेड और न जाने क्या क्या जिनकी पता नहीं हमें जरूरत भी है या नही ।शॉपिंग करना शौक है और इन सबकी कीमत पर्यावरण ने चुकाई है ।बात अब समझ में आ रही है ।
आज मजबूरी में ही सही सभी ने इस जीवन को स्वीकार कर लिया है ।पसन्द का साबुन न मिल रहा है तो जो है उसी में काम चलाओ। दो जोड़ी कपड़े में काम चल रहा है ।ग्लोबलाइजेशन के फायदे पर निबंध लिखते लिखते अब उसके नुकसान पर बात करने का दौर आ गया है ।रात में बर्तन धोते धोते अक्सर यही सोचता हूँ जब मम्मी कहती थी बेटा पढ़ लिख कर बड़े आदमी बन जाओ फिर ये सब नहीं करना पड़ेगा जब हमें वापस लौटना ही था तो इतनी दूर क्यों निकल गए ।क्या यही विकास और प्रगति का चक्कर है ।खैर जाने दीजिए इतना लंबा कौन पढ़े ।चलते चलते बचपन में बर्तन धोने के अनुभव के मुकाबले आजकल बर्तन धोना कहीं ज्यादा आसान है पर राख और ईंट के टुकड़े का न मिलना आज के अनुभव को उतना मजेदार नहीं बनाता । बहरहाल आज के लिए इतना ही हम कुछ नया ज्ञान लेने के लिए निकलते हैं |
आज तीन लोगों के परिवार में तीन तौलिया और नहाने के सबके अलग अलग साबुन है ।घर के हर काम के लिए मेड और न जाने क्या क्या जिनकी पता नहीं हमें जरूरत भी है या नही ।शॉपिंग करना शौक है और इन सबकी कीमत पर्यावरण ने चुकाई है ।बात अब समझ में आ रही है ।
आज मजबूरी में ही सही सभी ने इस जीवन को स्वीकार कर लिया है ।पसन्द का साबुन न मिल रहा है तो जो है उसी में काम चलाओ। दो जोड़ी कपड़े में काम चल रहा है ।ग्लोबलाइजेशन के फायदे पर निबंध लिखते लिखते अब उसके नुकसान पर बात करने का दौर आ गया है ।रात में बर्तन धोते धोते अक्सर यही सोचता हूँ जब मम्मी कहती थी बेटा पढ़ लिख कर बड़े आदमी बन जाओ फिर ये सब नहीं करना पड़ेगा जब हमें वापस लौटना ही था तो इतनी दूर क्यों निकल गए ।क्या यही विकास और प्रगति का चक्कर है ।खैर जाने दीजिए इतना लंबा कौन पढ़े ।चलते चलते बचपन में बर्तन धोने के अनुभव के मुकाबले आजकल बर्तन धोना कहीं ज्यादा आसान है पर राख और ईंट के टुकड़े का न मिलना आज के अनुभव को उतना मजेदार नहीं बनाता । बहरहाल आज के लिए इतना ही हम कुछ नया ज्ञान लेने के लिए निकलते हैं |