Wednesday, May 20, 2020

अजब -गजब गीत

कभी कभी कोई गानासुबह सुबह आप सुन ले तो वो आपके जहन पर पूरा दिन हावी रहता है. लेकिन उन गीतों का क्या,जिनके बोलों का कोई सीधा अर्थ नहीं निकलता फिर भी वो हमारी जबान पर चढ़ जाते हैं अगर ऐसा नहीं है तो गीतों से होने वाले संचार का कोई मतलब नहीं रहेगा. वाकई ये गानों की दुनिया एकदम निराली है. क्या आपने कभी सुना है कि किसी शब्द का कोई अर्थ न हो फिर भी गानों में उनका इस्तेमाल होता है. मै कोई पहेली नहीं बुझा रहा हूँ आपने कई ऐसे गाने सुने होंगे जिनके कुछ बोलों का कोई मतलब नहीं होता है लेकिन गानों के लिये बोल जरुरी होते हैं किशोर कुमार की आवाज़ में ये गाना याद करिए ईना मीना डीका ,डाई डम नीका किसी शब्द का मतलब समझ में आया ?फिर भी ऐसे गाने जब भी बजते हैं हमारे कदम थिरकने लगते हैं. अब इस तरह के गानों से कम से कम ये तो सबक मिलता है कि इस जिन्दगी में कोई चीज़ बेकार नहीं बस इस्तेमाल करने का तरीका आना चाहि. वैसे भी क्रियेटिविटी का पहला रूल है हर विचार अच्छा होता है और ये हमारे गीतकारों की क्रियेटिविटी ही है कि वो गानों के साथ लगातार प्रयोग करते आये हैं.कभी धुन को शब्दों में ढाल देते हैं और कभी ऐसे शब्दों को गीत में डाल देते हैं कि हम गुनगुना उठते हैं. अई ईया सुकू सुकू (फिल्म:जंगली ) फिल्म कमीने का ढेन टणेन धुन को शब्द बनाने का बेहतरीन प्रयास है. फ़िल्मी गानों के ग्लोबल होने का कारण शायद गीतकारों की प्रयोगधर्मिता ही है.” इस तरह के गानों के शब्दों का अर्थ भले ही न हो लेकिन ये सन्देश देने में तो सफल रहते ही हैं डांस की मस्ती को "रम्भा हो हो हो"(अरमान ) जैसे गीतों से बेहतर नहीं समझा जा सकता है .राम लखन फिल्म का गाना नायक की अलमस्ती को कुछ ऐसे ही शब्दों में बयां कर रहा है "रम प् पम प् पम ए जी ओ जी करता हूँ जो मैं वो तुम भी करो जी” असल में इस तरह के शब्दों का काम गानों की बोली में भावना को डालना होता है. हम हवा को देख नहीं सकते सिर्फ महसूस कर सकते हैं .गीतकार जब भावनाओं को नए तरीके से महसूस कराना चाहता है तो वह इस तरह के शब्दों का सहारा लेता है लेकिन यह काम बगैर संगीतकार के सहयोग  के नहीं हो सकता है .जिन्दगी में भी अगर मेहनत सही दिशा में की जाए तभी सफल होती है और हर काम खुद नहीं करने की कोशिश करनी चाहिए. जिन्दगी में कितना कुछ है जो हम महसूस कर सकते हैं लेकिन व्यक्त नहीं कर सकते और इन भावनाओं  को व्यक्त  करने के लिए जब इन अजब गज़ब से शब्दों का सहारा लेकर कोई गीत रच दिया जाता है तो ये अर्थहीन शब्द भी अर्थवान हो जाते हैं . छई छपा छई छपाक के छई पानीयों पर छींटे उडाती हुई लडकी (हु तु तुपानी के साथ खेल का इससे सुन्दर बयान क्या हो सकता है .गानों में इस तरह के प्रयोग की शुरुवात जंगली फिल्म से हुई .आप भी अभी तक याहू को नहीं भूले होंगे और ये सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है .जिन्दगी भी तो कभी एक सी नहीं रहती ,गाने भी हमारी जिन्दगी के साथ बदलते रहे .आज की इस लगातार सिकुड़ती दुनिया में जहाँ व्हाट्स एप संदेश  भाषा के नए व्याकरण को बना रहा है .ऐसे में अगर गाने शब्दों की पारंपरिक दुनिया से निकल कर भावनाओं की दुनिया में पहुँच रहे हैं तो क्यों न गानों की इस बदलती दुनिया का जश्न मनाया जाए क्योंकि ये अजब गज़ब गाने अब हमारी जिन्दगी का हिस्सा हैं.

प्रभात खबर में 20/05/2020 को प्रकाशित लेख 

3 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3708 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।

धन्यवाद

दिलबागसिंह विर्क

सुशील कुमार जोशी said...

फिर भी पुराने गीत आज के गीतों के ऊपर अभी भी भारी हैं। सुन्दर आलेख।

Anuradha chauhan said...

बेहतरीन प्रस्तुति

पसंद आया हो तो