अमेरिका में सरकार ने देश की सबसे बड़ी ईंधन पाइपलाइन पर पिछले सप्ताह के अंत में हुए एक साइबर हमले के बाद देश में आपातकाल का एलान कर दिया गया |कोलोनियल पाइपलाइन पर हुए इस हमले से अमेरिका के ईस्ट कोस्ट के राज्यों में डीज़ल, गैस और जेट ईंधन पर संकट पैदा हो गया क्योंकि इस पाईप लाइन से प्रतिदिन 25 लाख बैरल तेल जाता है जो कि इन जगहों की पैंतालीस प्रतिशत तेल आपूर्ति करता है | इस बात की पुष्टि हो गई है कि ये रैन्समवेयर हमला डार्कसाइड नाम के एक साइबर अपराधी गिरोह ने किया था | डार्कसाइट साइबर अपराध की दुनिया में बहुत चर्चित नाम नहीं है मगर इस घटना से पता चलता है कि रैन्समवेयर जैसे हमले केवल किसी पेशे या दफ़्तर को ही नहीं, किसी देश के महतवपूर्ण औद्योगिक ढाँचे के लिए भी ख़तरा बन सकते हैं| लंदन की साइबर सिक्योरिटी कंपनी डिजिटल शैडोज़ के अनुसार डार्कसाइड एक व्यसायिक कंपनी की तरह काम करता है. जो चोरी और हैकिंग के लिए सॉफ़्टवेयर बनाता है| उसके बाद इस अपराध में शामिल होनेवाले सहयोगियों को प्रशिक्षण देता है, और सिखाता है कि हमला कैसे किया जाए|भले ही यह हमला अमेरिका पर हुआ पर इस तेजी से डिजीटल होती दुनिया में भारत भी इस खतरे से अछूता नहीं है क्योंकि देश में जितनी डिजीटली करण का काम हो रहा है उतनी तेजी से साइबर सुरक्षा पर ध्यान न दिया जा रहा है |बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब चीन के हैकर्स (इंटरनेट को भेदने वाले ) ने भारत में वैक्सीन निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) और भारत बायोटेक पर साइबर अटैक करने की कोशिश की थी| अक्तूबर 2020 में मुंबई एक बड़े हिस्से की पावर ग्रिड फेल हो गई थी और मुम्बई में अंधेरा छा गया। अमेरिका की मैसाचुसेट्स स्थित साइबर सिक्योरिटी कंपनी रिकॉर्डेड फ्यूचर ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि चाइनीज सरकार समर्थित हैकर्स के एक ग्रुप ने मैलवेयर के जरिए मुंबई में पावर ग्रिड को निशाना बनाया था। ।हालंकि केन्द्रीय सरकार ने इस तरह के साइबर हमले को नहीं माना था |
अमेरिकी कंपनी आईबीएम (IBM) की साइबर हमलों की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2020 में भारत एक तरफ कोरोना महामारी से लड़ रहा था, तो उसे दूसरी तरफ साइबर हमलों से पूरे एशिया-प्रशांत इलाके में भारत को जापान के बाद सबसे ज्यादा साइबर हमले झेलने पड़े| महतवपूर्ण है कि सबसे ज्यादा साइबर हमले बैंकिंग और बीमा क्षेत्र से जुडी हुई कंपनियों पर हुए| 2020 में एशिया में हुए कुल साइबर हमलों में से सात प्रतिशत भारतीय कंपनियों पर हुए | साइबर हमले कई तरह से हो सकते है जैसे वेबसाइट डिफेंसिंग इसमें किसी सरकारी वेबसाइट को हैक कर उसकी द्रश्य दिखावट को बदल दिया जाता है।जिससे यह पता चलता है कि अमुक वेबसाईट साइबर हमले का शिकार हुई है |दूसरा तरीका है फिशिंग या स्पीयर फिशिंग अटैक जिसमे हैकर ईमेल या मैसेज के जरिए लिंक भेजता है , जिस पर क्लिक करते ही कंप्यूटर या वेबसाईट का सारा डाटा लीक हो जाता है।इसके अलावा बैकडोर अटैक भी एक तरीका है जिसमें कम्प्यूटर में एक मालवेयर भेजा जाता है, जिससे उपभोक्ता की सारी सूचनाएं मिल सके।
देश को साइबर हमलों से बचाने के लिए भारत में दो सस्थाएं हैं। एक है सी ई आर टी जिसे कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना साल 2004 में हुई थी। दूसरी संस्था का नाम नेशनल क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर है | जो रक्षा ,दूरसंचार,परिवहन ,बैंकिंग आदि क्षेत्रों की साइबर सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है |
ये 2014 से भारत में काम कर रही है। भारत में अभी तक साइबर हमलों के लिए अलग से कोई कानून नहीं है। साइबर हमलों के मामले में फिलहाल आईटी एक्ट के तहत ही कार्रवाई होती है जिसमें वेबसाइट ब्लॉक तक करने तक के प्रावधान हैं लेकिन न तो प्रावधान प्रभावी हैं और न ही पर्याप्त । केंद्रीय शिक्षा, संचार तथा इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार देश में जनवरी से मार्च, 2020 के बीच देश में 1,13,334, अप्रैल से जून के बीच 2,30,223 और जुलाई से अगस्त से बीच 3,53,381 साइबर हमले हुए हैं।वहीं साल 2017-18 में साइबर अटैक से निपटने के लिए 86.48 करोड़ दिए गए जिनमें से 78.62 करोड़ रुपये खर्च किए गए। साल 2018-19 में 141.33 करोड़ रुपये जारी किये गए हुए, जबकि खर्च 137.38 करोड़ रुपये ही हुए। साल 2019-20 में साइबर फंड के नाम पर 135.75 करोड़ रुपये दिए गए हैं जिनमें से मात्र 122.04 करोड़ रुपये ही खर्च हुए हैं।कंप्यूटर की दुनिया ऐसी है जिसमें अनेक प्रॉक्सी सर्वर होते हैं और दुनिया भर में फैले इंटरनेट के जाल पर दुनिया की कोई सरकार हमेशा नजर नहीं रख सकती ऐसे में जागरूकता के साथ बचाव की रणनीति ही देश को इन साइबर हमलों से बचा सकती है |
अमर उजाला में 15/05/2021 को प्रकाशित
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