कोरोना काल में जब जीवन थमा हुआ है एक वेबसाइट के एक लेख पर नज़र पडी .
लेख था.नोबेल पुरूस्कार विजेता फ़्रांसीसी लेखक जॉन मेरी गुस्ताव लाक्लेज़ियो के ऊपर.लाक्लेज़ियो यात्रा लेखक हैं. लेख आगे चलकर दूसरी दिशा में मुड़ जाता है लेकिन मेरा मन मुड़ गया दूसरी ओर मेरे जेहन में अपने बचपन में सुनी गयी वो सारी कहानिया घूमने लगी जो मैंने रजाई में अपने पिताजी के आगोश में दुबक कर या कभी- कभी अलाव के गिर्द बैठकर सूनी थी.कभी सिंदबाद दा सेलर, तो कभी गुलिवर ट्रेवल्स का कोई घटनाक्रम, कभी हातिमताई कुछ न समझ आये तो ऐसे राजकुमार की कहानी जो रानी की तलाश में जंगल- जंगल घूम रहा है .
गर्मियां की शुरुआत हो चुकी है ठीक दिन होते तो सब यात्राओं में या तो निकल गए होते या निकलने की योजना बना रहे होते. यात्रा हो या सफर हमारे जीवन का कितना अहम् हिस्सा है.भले ही बचपने की ज्यादातर कहानियां सफ़र से जुडी हुई रहती थीं. आज के बच्चे कहानी सुनने की बजाय कार्टून देख कर सोते हों पर ज्यादातर कार्टून उन्हें यात्रा पर ले जाते हैं. यात्राओं के बारे में सोचते हुए राहुल राहुल सांकृत्यायन याद न आयें ऐसा हो सकता है क्या ? ट्रैवेलॉग पढ़ते वक्त हमेशा ऐसा लगता है था कि घुमक्कड़ी के बाद इतना शानदार कैसे लिख लेते हैं लोग .लेकिन अब समझ में आने लगा है कि जब हम यात्राओं को जीना शुरू कर देते हैं तो यात्रा वृतांत अपने आप जी उठते हैं .कहते है किसी पल को जी भर कर जी लेने के बाद ही डूब कर लिखा जा सकता है मैंने भी आज सफ़र को जीने की कोशिश की .
यात्राएँ हमारे चिंतन को विस्तार देती हैं आप ने वो गाना जरूर सुना होगा " जिन्दगी एक सफर है सुहाना यहाँ कल क्या हो किसने जाना" यूँ तो देखा जाए तो जिन्दगी का सफ़र है तो सुहाना लेकिन इसके साथ जुडी हुई है अनिश्चितता और ऐसा ही होता है जब हम किसी सफ़र पर निकलते हैं .ट्रेन कब लेट हो जाए. बस कब ख़राब हो जाए वगैरह वगैरह मुश्किलें तों हैं. पर क्या मुश्किलों की वजह से हम सफ़र पर निकलना छोड़ देते हैं भाई काम तो करना ही पड़ेगा हर सफ़र हमें नया अनुभव देता है जिस तरह हमारे जीवन का कोई दिन एक जैसा नहीं होता वैसे ही दुनिया का कोई इंसान ये दावा नहीं कर सकता कि उसका रोज का सफ़र एक जैसा होता है. अब सफ़र पर निकले हैं तो किसी न किसी साथी की जरुरत पड़ेगी. जरुरी नहीं आप साथी के साथ ही सफ़र करें साथी सफ़र में भी बन जाते हैं. लेकिन साथी के चयन मे सावधान रहें. गलत साथी आपके सफ़र को पीडादायक बना सकते हैं और वैसा ही जिन्दगी के सफ़र में गलत साथी आपके लिए समस्याएं ला सकते हैं .
आगे से जब भी किसी सफ़र पर निकालिएगा तो ये मत भूलियेगा कि ये जिन्दगी का सफ़र है और हर सफ़र की शुरुवात अकेले ही होती है, लेकिन अंत अकेले नहीं होता साथ में कारवां होता है अपनों का अपने अपनों का. यात्राएँ चाहे जीवन की हों या किसी दूर देश की या फिर घर से दफ्तर के बीच की ही क्यों न हो .ऐसी ही यात्राओं से कोई लाक्लेज़ियो नोबेल पुरूस्कार ले जाते हैं ओर कोई अपनी मंजिल पर पहुंचकर मुस्कुरा उठता है.
प्रभात खबर में 21/05/2021 को प्रकाशित
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