यूँ तो सावन सिर्फ साल का एक महीना है लेकिन इसका जिक्र आते ही जो तस्वीर हमारे जेहन में उभरती है. वो है बरसात,हरियाली और झूले. जब इतनी सारी चीजें एक साथ हों तो हो गया न मामला पूरा फ़िल्मी.तो फिल्मों का सावन से गहरा रिश्ता रहा है. या यूँ कहें बगैर बारिश के हमारी हिंदी फिल्में कुछ अधूरी सी लगती हैं.अगर बारिश है तो गाने भी होंगे. तो क्यों न इन गानों के बहाने ही सही जाते हुए सावन को याद किया जाए. सबसे पहले 1949 में सावन शीर्षक से पहली फिल्म बनी उसके बाद सावन आया रे , सावन भादों , `सावन की घटा´, `आया सावन झूम के´, `सावन को आने दो´ और `प्यासा सावन´ नाम से फिल्में बनीं.अब सावन का महीना है तो पवन तो शोर करेगा ही .शोर नहीं बाबा सोर जी हाँ ये गाना आज भी हमारे तन मन को मोर सा नचा देता है .सावन का महीना पवन करे सोर (मिलन).जब पवन शोर करेगा तो बादल , बिजली और बरसात आ ही जायेंगे. ये सारे सावन राजा के दरबारी हैं. तभी तो सावन को राजा का खिताब दिया गया है “ओ सावन राजा कहाँ से आये तुम” (दिल तो पागल है) .कहते हैं आग और पानी का भी रिश्ता होता है. चौंकिए मत इस रिश्ते को हमारे गीतकारों ने बड़ी खूबसूरती से गीतों में ढाला है. "दिल में आग लगाये सावन का महीना " (अलग -अलग ) या फिर "अब के सजन सावन में आग लगेगी बदन में " (चुपके -चुपके ) एक फिल्म में “रिम झिम गिरे सावन, सुलग सुलग जाए मन” (दहक) एक खूबसूरत सा गीत और है जो सावन की रूमानियत का जिक्र करता है "तुझे गीतों में ढालूँगा सावन को आने दो"(सावन को आने दो).
अब अगर सावन की बारिश का मज़ा घर में बैठ के लिया तो ये सावन के साथ अन्याय होगा. "सावन बरसे तरसे दिल क्यों न निकले घर से दिल "(दहक). वैसे भी सावन बेशकीमती है और इसकी कीमत का अंदाजा करता ये गाना, “तेरी दो टकिया की नौकरी रे मेरा लाखों का सावन जाए” (रोटी कपडा और मकान ). वैसे भी सावन के महीने में इंसान तो क्या बादल भी दीवाना हो जाता है. "दीवाना हुआ बादल सावन की घटा छाई" (कश्मीर की कली ) जब ऐसा सुहाना मौसम हो तो किसी की याद आ ही जायेगी. "सावन के झूले पड़े तुम चले आओ "(जुर्माना ). यहाँ एक रोचक बात है कि सावन और झूलों का गहरा सम्बन्ध है घरों में झूले सावन के महीने ही में लगाये जाते हैं .बात तो सावन की चल रही है लेकिन इसे जिन्दगी से जोड़ दिया जाए तो सावन के दर्शन को समझना आसान हो जाएगा और जिन्दगी जीना भी. पहला सबक जो आएगा वो जाएगा भी. सावन भी चला जाएगा लेकिन फिर आने के लिए तो सफलता और असफलता जिंदगी के हिस्से हैं कोई भी चीज शाश्वत नहीं हैं. तो जिन्दगी अपने हिसाब चलेगी लेकिन अपने मन के आँगन में सूखा मत पड़ने दीजियेगा अपनी खुशियों आशाओं उमंगों के सावन को साल भर बरसने दीजियेगा .
प्रभात खबर में 20/08/2021 को प्रकाशित
1 comment:
सार्थक आलेख ।
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