साम्राज्यवाद किसी भी रूप में इस बहुलता वाली दुनिया में स्वीकार्य नहीं है पर जब ये साम्राज्यवाद सूचना के साथ जुड़ जाए तो स्थितियां काफी जटिल हो जाती हैं|सोशल मीडिया के आने से पहले दुनिया के पास ऐसा कोई पैमाना नहीं था जिससे घटनाओं के विभिन्न आयामों को व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझा जा सके क्योंकि जो बीत चुका था उसको रीयल टाईम में सहेजने की कोई तकनीक हमारे समक्ष नहीं थी पर सोशल मीडिया ने दुनिया को नए सिरे से ध्वनि चित्र और शब्दों के माध्यम से घटनाओं परिद्रश्यों को रीयल टाईम में सहेजने की सहूलियत दे दी |जिसका परिणाम यह हुआ कि आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई नेरेटिव गढ़ना उतना आसान नहीं है जितना आज से पन्द्रह साल पहले हुआ करता था |रूस युक्रेन युद्ध हर मायने में ग़लत है और इसका समर्थन कोई भी नहीं करेगा| लेकिन इस मामले में ख़ुद पश्चिमी देशों का रिकार्ड भी बहुत खराब रहा है | यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आक्रामक रुख़ की आलोचना निंदा के बीच पहली बार पश्चिमी मीडिया की नीति और निष्पक्षता पर भी सवाल उठ रहे हैं|हमले की कवरेज में पश्चिमी मीडिया के कथित पूर्वाग्रह की कलई अब धीरे धीरे खुल रही है पश्चिमी मीडिया रूस को विलेन बनाने की कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, जबकि अभी जारी संकट में अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों की भी भूमिका है |मुख्य धारा का पश्चिमी मीडिया कुछ महत्वपूर्ण अपवादों को छोड़कर घटनाओं को सही ऐतिहासिक संदर्भ में नहीं प्रस्तुत कर रहा है। उनके अनुसार रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक "ठग, तानाशाह और हत्यारे" हैं। इस संघर्ष को बाइबिल में वर्णित डेविड बनाम गोलियथ युद्ध के आधुनिक संस्करण के रूप में चित्रित किया जा रहा है। जिसमें एक असहाय छोटे देश को एक शिकारी पड़ोसी द्वारा कुचला जा रहा है।
इन सारी घटनाओं के बीच इस तथ्य को अक्सर भुला दिया गया है कि पश्चिमी नेताओं द्वारा रूस के पूर्व राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव को सुरक्षा गारंटी का आश्वासन दिया गया था कि उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन या नाटो, कम्युनिस्ट ब्लॉक से लड़ने के लिए एक ट्रांस-अटलांटिक सैन्य गठबंधन का विस्तार नहीं करेगा और पूर्वी ब्लॉक के देशों को सदस्यों के रूप में ग्रहण नहीं करेगा। नाटो यूरोप में साम्यवाद के विस्तार से लड़ने के लिए एक गठबंधन था। कम्युनिस्टों की हार और पूर्व सोवियत संघ के टूटने से अब यूरोप के लिए कोई खतरा नहीं था। हालाँकि, शीत युद्ध के समय की मानसिकता पूरे यूरोप में बनी रही। न तो राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और न ही उनके उत्तराधिकारी या यूरोपीय नेता इसके लिए तैयार थे।
पोलैंड, हंगरी और रोमानिया जैसे सभी पूर्व कम्युनिस्ट देशों में नाटो के तेजी से विस्तार के समाचार को बहुमत से पश्चिमी मीडिया के द्वारा छोड़ दिया गया। अमेरिका और ब्रिटिश अखबारों और चैनलों के वर्चस्व वाले अंतरराष्ट्रीय प्रेस ने कमोबेश जो बाइडेन के प्रशासन की शीत युद्ध वाली मानसिकता को इस युद्ध में भी आगे बढाया गया है। पश्चिमी मीडिया हमेशा चीन विरोधी से ज्यादा रूस विरोधी रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हमेशा आलोचना की जाती है, लेकिन कभी भी उस लहजे में नहीं जैसी व्लादिमीर पुतिन के लिए की जा रही है । दूसरा दुखद तथ्य यह है कि जमीन पर मौजूद कुछ पत्रकार अपनी स्वाभाविक नस्लवादी मानसिकता को छुपा नहीं पाए हैं। सीमा पार से अन्य यूरोपीय देशों में भागने के लिए मजबूर यूक्रेनी नागरिकों के लिए सहानुभूति उमड़ रही है। तथ्य यह है कि यूक्रेनी शरणार्थी साथी कोकेशियान हैं|अमेरिका का एक प्रमुख चैनल सीबीएस न्यूज जिसे फॉक्स न्यूज की तरह दक्षिणपंथी विचारधारा का नहीं माना जाता है। यहाँ वरिष्ठ विदेशी संवाददाता चार्ली डी अगाटा ने ट्वीट किया, "अब रूसियों के आगे बढ़ने के साथ, हजारों लोगों शहर से भागने की कोशिश में है। लोग छिपे हुए हैं," उन्होंने आगे कहा, "लेकिन यह पूरे सम्मान के साथ इराक या अफगानिस्तान नहीं है, जहां दशकों से संघर्ष चल रहा है। यह एक अपेक्षाकृत सभ्य, अपेक्षाकृत यूरोपीय शहर है जहां आप उम्मीद नहीं करेंगे कि यह होने जा रहा है।"अगर सोशल मीडिया का जमाना न होता तो उनकी यह टिप्पणी इतनी सुर्खियाँ न बटोरती जैसे ही उन्होंने ट्विट किया बहुत से लोग तथ्यों के साथ उन्हें आईना दिखाने लगे |
वो चाहे ईराक पर हमला हो या सीरिया पर अमेरिकी नाटो बमबारी या फिर लीबिया में हमला पश्चिमी मीडिया अपने देशों की सरकारों के निर्णयों को जायज ठहराने में ऐसे नेरेटिव गढ़ता है कि ये देश स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व के पैरोकार लगते हैं जबकि इनके देशों की सरकारों के कर्मों से लाखों बेगुनाह भी मारे जाते हैं | एस्सेल समूह के स्वामित्व एवं ज़ी मीडिया नेटवर्क के चैनलों का हिस्सा विओन चैनल ने रूसी विदेश मंत्री के बयान को अपने यूट्यूब चैनल पर दिखाया तो यूट्यूब ने विओन के यूट्यूब चैनल को ब्लोक कर दिया गया |
यह सोशल मीडिया का कमाल है कि अब पश्चिमी मीडिया के दोहरे चरित्र को उजागर करने वाली सारी बातें लोगों के बीच पहुँच रही हैं और शायद यही कारण है कि अब लोगों के सामने काउंटर नेरेटिव सामने आ रहा है |2003 में अमेरिका के ईराक पर हमले के समय सोशल मीडिया नहीं था इसलिए पश्चिमी मीडिया ने जैसा बताया वो मान लिया गया था |
युक्रेन में भारी तबाही हो रही है लेकिन उसके प्रति दया करुणा के वो भाव सारी दुनिया में देखने को नहीं मिल रहे हैं कारण सीधा है रूस का पक्ष चैनलों से पूरी तरह से गायब है और पश्चिमी मीडिया के दोहरे चरित्र के कारण अब लोगों का उन पर यकीन नहीं होता है |इनके समानता स्वतंत्रता और बन्धुत्व के मानक अलग अलग देशों के लिए अलग हैं और अब दुनिया के यह बात भी समझ में आने लगी है |
दैनिक जागरण में 31/03/2022 को प्रकाशित