Thursday, March 31, 2022

बेनकाब होता पश्चिमी मीडिया

 

साम्राज्यवाद  किसी भी रूप में इस बहुलता वाली दुनिया में स्वीकार्य नहीं है पर जब ये साम्राज्यवाद  सूचना के साथ जुड़ जाए तो स्थितियां काफी जटिल हो जाती हैं|सोशल  मीडिया  के आने से पहले दुनिया के  पास ऐसा कोई पैमाना नहीं था जिससे घटनाओं के विभिन्न आयामों को व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझा जा सके क्योंकि जो बीत चुका था उसको रीयल टाईम में सहेजने   की कोई तकनीक हमारे समक्ष नहीं थी पर सोशल मीडिया ने दुनिया को नए सिरे से  ध्वनि चित्र और शब्दों के माध्यम से घटनाओं परिद्रश्यों को रीयल टाईम में सहेजने की सहूलियत दे दी |जिसका परिणाम यह हुआ कि आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई नेरेटिव गढ़ना उतना आसान नहीं है जितना आज से पन्द्रह  साल  पहले हुआ करता था |रूस युक्रेन  युद्ध हर मायने में  ग़लत है और इसका समर्थन कोई भी नहीं करेगालेकिन  इस मामले में ख़ुद पश्चिमी देशों का रिकार्ड भी बहुत खराब रहा है यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आक्रामक रुख़ की आलोचना निंदा  के बीच पहली बार पश्चिमी मीडिया  की नीति और निष्पक्षता पर भी सवाल उठ रहे हैं|हमले की कवरेज में पश्चिमी मीडिया के कथित पूर्वाग्रह की कलई अब धीरे धीरे खुल रही है  पश्चिमी मीडिया  रूस को विलेन बनाने की कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैंजबकि अभी जारी संकट में अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों की भी भूमिका है |मुख्य धारा का पश्चिमी मीडिया कुछ महत्वपूर्ण अपवादों को छोड़कर घटनाओं को सही ऐतिहासिक संदर्भ में नहीं प्रस्तुत कर  रहा है। उनके अनुसार  रूस के राष्ट्रपति  व्लादिमीर पुतिन एक "ठगतानाशाह और हत्यारे" हैं। इस संघर्ष को बाइबिल में वर्णित डेविड बनाम गोलियथ  युद्ध के आधुनिक संस्करण के रूप में चित्रित किया जा रहा है। जिसमें एक असहाय छोटे देश को एक शिकारी पड़ोसी द्वारा कुचला जा रहा है।

इन सारी घटनाओं के बीच इस तथ्य को अक्सर भुला दिया गया  है कि पश्चिमी नेताओं द्वारा रूस के पूर्व राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव को सुरक्षा गारंटी का आश्वासन दिया गया था कि उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन या नाटोकम्युनिस्ट ब्लॉक से लड़ने के लिए एक ट्रांस-अटलांटिक सैन्य गठबंधन का  विस्तार नहीं करेगा और पूर्वी ब्लॉक के देशों को  सदस्यों के रूप में ग्रहण नहीं करेगा। नाटो यूरोप में साम्यवाद के विस्तार से लड़ने के लिए एक गठबंधन था। कम्युनिस्टों की हार और पूर्व सोवियत संघ के टूटने से अब यूरोप के लिए कोई खतरा नहीं था। हालाँकिशीत युद्ध के समय की मानसिकता पूरे यूरोप में बनी रही। न तो राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और न ही उनके उत्तराधिकारी या यूरोपीय नेता इसके लिए तैयार थे।

पोलैंडहंगरी और रोमानिया जैसे सभी पूर्व कम्युनिस्ट देशों में नाटो के तेजी से विस्तार  के समाचार को बहुमत से पश्चिमी मीडिया के द्वारा छोड़ दिया गया। अमेरिका और ब्रिटिश अखबारों और चैनलों के वर्चस्व वाले अंतरराष्ट्रीय प्रेस ने कमोबेश जो बाइडेन के प्रशासन की शीत युद्ध वाली  मानसिकता को इस युद्ध में भी आगे बढाया गया  है। पश्चिमी मीडिया हमेशा चीन विरोधी से ज्यादा रूस विरोधी रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हमेशा आलोचना की जाती हैलेकिन कभी भी उस लहजे  में नहीं जैसी  व्लादिमीर पुतिन के लिए की जा रही है । दूसरा दुखद तथ्य यह है कि जमीन पर मौजूद कुछ पत्रकार अपनी स्वाभाविक नस्लवादी मानसिकता को छुपा  नहीं पाए हैं। सीमा पार से अन्य यूरोपीय देशों में भागने के लिए मजबूर यूक्रेनी नागरिकों के लिए सहानुभूति उमड़ रही है। तथ्य यह है कि यूक्रेनी शरणार्थी साथी कोकेशियान हैं|अमेरिका का एक प्रमुख चैनल  सीबीएस न्यूज जिसे  फॉक्स न्यूज की तरह दक्षिणपंथी विचारधारा का नहीं माना जाता है। यहाँ वरिष्ठ विदेशी संवाददाता चार्ली डी अगाटा ने ट्वीट किया, "अब रूसियों  के आगे बढ़ने के साथहजारों लोगों शहर से भागने की कोशिश में है। लोग छिपे हुए हैं," उन्होंने आगे कहा, "लेकिन यह पूरे सम्मान के साथ इराक या अफगानिस्तान नहीं हैजहां दशकों से संघर्ष चल रहा है। यह एक अपेक्षाकृत सभ्यअपेक्षाकृत यूरोपीय शहर है जहां आप उम्मीद नहीं करेंगे कि यह होने जा रहा है।"अगर सोशल मीडिया का जमाना न होता तो उनकी यह टिप्पणी इतनी सुर्खियाँ  न बटोरती जैसे ही उन्होंने ट्विट किया बहुत से लोग तथ्यों के साथ उन्हें आईना दिखाने लगे |

वो चाहे ईराक पर हमला हो या सीरिया पर अमेरिकी नाटो बमबारी या फिर लीबिया में हमला पश्चिमी मीडिया अपने देशों की सरकारों के निर्णयों को जायज ठहराने में ऐसे नेरेटिव गढ़ता है कि ये देश स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व के पैरोकार लगते हैं जबकि इनके देशों की सरकारों के कर्मों से लाखों बेगुनाह भी मारे जाते हैं एस्सेल समूह के स्वामित्व एवं ज़ी मीडिया नेटवर्क के चैनलों का हिस्सा विओन चैनल ने रूसी विदेश मंत्री के बयान को अपने यूट्यूब चैनल पर दिखाया तो यूट्यूब ने विओन के यूट्यूब चैनल को ब्लोक कर दिया गया |

यह सोशल मीडिया का कमाल है कि अब पश्चिमी मीडिया के दोहरे चरित्र को उजागर करने वाली सारी बातें लोगों के बीच पहुँच रही हैं और शायद यही कारण है कि अब लोगों के सामने काउंटर नेरेटिव  सामने आ रहा है |2003 में अमेरिका के ईराक पर हमले के समय सोशल मीडिया नहीं था इसलिए पश्चिमी मीडिया ने जैसा बताया वो मान लिया गया था |

युक्रेन में भारी तबाही हो रही है लेकिन उसके प्रति दया करुणा के वो भाव सारी दुनिया में देखने को नहीं मिल रहे हैं कारण सीधा है रूस का पक्ष चैनलों से पूरी तरह से गायब है और पश्चिमी मीडिया के दोहरे चरित्र के कारण अब लोगों का उन पर यकीन नहीं होता है |इनके  समानता स्वतंत्रता  और बन्धुत्व के मानक अलग अलग देशों के लिए अलग हैं और अब दुनिया के यह बात भी समझ में आने लगी है |

 दैनिक जागरण में 31/03/2022 को प्रकाशित 

Thursday, March 10, 2022

गुस्से की सही वजह हो

 


खुश रहो न यार , छोडो न यार सब चलता है , गुस्साने से क्या होगा . ये कुछ ऐसी सीख हैं जो जिंदगी के किसी न किसी मोड पर आपको जरुर मिली होगी .चलिए थोड़ी देर ये मानकर देखते हैं कि ये सब बातें सही हैं मतलब गुस्साने से कोई फायदा नहीं होता . ज्यादा गुस्सा शरीर के लिए नुकसानदायक होता है . गुस्सा क्या है? गुस्सा एक साइकोलोजिकल स्टेट ऑफ माईंड, जब हम अपने आस पास की चीजों और व्यवहार से संतुष्ट नहीं होते हैं तब गुस्सा आता है. अब जरा मेडिकल साइंस की बात कर ली जाए. गुस्सा आना आपके नोर्मल होने की निशानी है पर ज्यादा गुस्सा आना ठीक नहीं है, लेकिन अगर आपको गुस्सा आता ही नहीं है. तो ये गुस्सा आने से ज्यादा खतरनाक है. गुस्सा दबाना शरीर और दिमाग पर बुरा इफेक्ट डालता है. जिससे नींद कम हो जाती है.  गुस्से को दबाने का शरीर और मन, दोनों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। नींद नहीं आती, थकान होती है, एकाग्रता कम होती है और इन सबका परिणाम अवसाद, चिंता और अनिद्रा के रूप में सामने आ सकता है. जिनसे कई गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं पर गुस्से के कई कुछ सकारात्मक पहलू  भी है .बात न तो नयी और न ही अनोखी. हाँ बस जरा सा नजरिया बदला है .इस दुनिया में बहुत कुछ बुरा है पर जो कुछ अच्छा है या हो रहा है वो कुछ लोगों के गुस्से के कारण ही है . जो स्टेटस-को मेंटेन नहीं रखना चाहते हैं जो गलत बात के आगे झुकना नहीं चाहते हैं. आइये देखते हैं गुस्सा किस तरह दुनिया और समाज को बदल रहा है अब जरा उन दिनों को याद करिये जब आपके घर में टीवी नहीं था और आपको पड़ोसी के घर टीवी देखने जाना पड़ता था. तब कैसा लगता था  बहुत गुस्सा आता था न लेकिन आपके गुस्से ने घर वालों को एहसास कराया कि घर में टी वी की जरुरत है .आइये थोडा पीछे चलते हैं बात महात्मा गाँधी की साऊथ अफ्रीका में उन्हें इसलिए ट्रेन से उतार दिया जाता है कि वो एक हिन्दुसतानी हैं. उन्हें भी गुस्सा आया था पर इस गुस्से को व्यक्त करने का तरीका उनका थोडा अलग रहा अहिंसा  का इस्तेमाल करके उन्होंने देश को आज़ाद कराने की कोशिश की .जिसमें वो कामयाब भी रहे .अक्सर गुस्से का सम्बन्ध संतुष्टि के स्तर से जुड़ा होता है. अब अगर आप संतुष्ट हो गए तो जो चीजें हमें मिली हैं. हम उन्हें वैसे ही स्वीकार कर लेंगे फिर न विकास की कोई गुंजाईश होगी और न बदलाव की. पर इसका मतलब ये मत निकालिए कि हमें बेवजह गुस्सा करने का हक मिल गया है कई बार गुस्सा हमारी सोच के गलत होने के कारण भी आता है. जिस चीज को आप पसंद नहीं करते अगर आप वही दूसरों के साथ कर रहे हैं तो इसका मतलब आपकी सोच सही नहीं है. ऐसे में आप के द्वारा यूँ ही लोगों पर सिस्टम पर गुस्सा करना गलत है. इसलिए गुस्सा  करते वक्त अपने दिमाग को खुला रखिये अगर आपका दिमाग कह रहा है कि आप सही हैं तो बिलकुल आपको गुस्सा करने का हक है. ऐसे में अपने गुस्से को निकालिए पर हाँ सभ्यता से गुस्से में आपको कुछ भी करने या बोलने का हक नहीं मिल जाता. आपके बॉस ने आपको डाटा आप बॉस का कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो ऑटो वाले पर अपना गुस्सा निकाल दिया. ये सही तरीका नहीं है. अपने एंगर का मैनजमेंट सही तरीके से अगर आप कर पायेंगे तो आपको लगेगा कि दुनिया को बेहतर बनाने में आपका योगदान दूसरों से कहीं ज्यादा होगा .क्या कहेंगे आप इस गुस्से के किस्से पर ..............

प्रभात खबर में 10/03/2022 को प्रकाशित 

Monday, March 7, 2022

सामरिक हथियार बनी सूचनाएं


 युक्रेन और रूस में युद्ध जारी है और सारी दुनिया की निगाहें इन दो देशों की तरफ हैं पर युद्ध सिर्फ रूस और युक्रेन के बीच में नहीं चल रहा है एक और युद्ध भी है जो चल रहा है साइबर मैदान में जिसे हम सूचना युद्ध के नाम से जानते हैं|जहाँ इंटरनेट और मीडिया कम्पनियों के सहारे छवि निर्माण की होड़ मची है |एक तरफ है अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के देश जो ये मानते है कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन सारी दुनिया के लिए खतरा हैं |वही दूसरी तरफ रूस के राष्ट्रपति पुतिन सारी दुनिया को यह समझाने में लगे हैं कि रूस का गौरव   सर्वोपरि है | तथ्य यह भी है कि युद्ध अपने आप में खुद समस्या है और इससे किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता लेकिन जनमत निर्माण सिर्फ कुछ ओपीनियन लीडर्स के भरोसे इंटरनेट के दौर में नहीं छोड़ा जा सकता |पहले यह समझते है कि रूस ने यूक्रेन पर हमला क्यों किया साल 2014 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था. उस वक़्त रूस समर्थित विद्रोहियों ने देश के पूर्वी हिस्से में एक अच्छे खासे इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया थाउस वक़्त से लेकर आज तक इन विद्रोहियों की यूक्रेन की सेना से भिड़ंत लगातार जारी हैदोनों देशों के बीच टकराव टालने के लिए मिन्स्क का शांति समझौता भी हुआलेकिन उसके बाद भी टकराव ख़त्म नहीं हुआ|पुतिन का मानना  है कि इसी वजह से वो सेना को यूक्रेन में हमला करने  को मजबूर हैदूसरी  संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने रूस द्वारा यूक्रेन के अलगाववादी राज्यों में 'शांति कायमकरने के उद्देश्य से सेना भेजने के तर्क को सिरे से खारिज किया है|

फरवरी के आख़िरी हफ्ते में ट्विटर ने बताया कि रूस में इसकी वेबसाइट को प्रतिबंधित किया जा रहा है। ट्विटर ने ट्वीट कर बताया, 'हम इस बात से अवगत हैं कि रूस में कुछ लोगों के ट्विटर अकाउंट को बंद किया जा रहा है ओर हम सर्विस को सबकी पहुंच के दायरे में रखने व इसे सुरक्षित रखने के लिए काम कर रहे हैं। इससे पहले फेसबुक ने रूस की स्थानीय मीडिया पर यूक्रेन में इसके सैन्य कार्रवाई पर विज्ञापन चलाने को लेकर रोक लगाई थी।  इसके जवाब में रूस ने फेसबुक के इस्तेमाल पर पाबंदीलगा दी । दरअसल यूक्रेन में रूसी सैन्य कार्रवाई के बाद फेसबुक ने रूस समर्थित मीडिया संस्थानों के विभिन्न अकाउंट पर रोक लगा दी थी। रूस की सरकारी संचार एजेंसी 'रोसकोमनादजोरने फेसबुक पर ‘रूसी नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता’ के उल्लंघन का आरोप लगाया।वहीं गूगल ने रशिया टुडे और स्पुतनिक के यूट्यूब चैनल को ब्लॉक कर दिया है। इससे पहले मेटा(फेसबुक ) ने भी पूरे यूरोपीय संघ में रूसी राज्य मीडिया आउटलेट आरटी और स्पुतनिक को ब्लॉक किया है।इस सारे घटनाक्रम में कुछ मुद्दे विचारणीय है जब कोई दो देश युद्ध कर रहे हैं तो सूचनाओं में इंटरनेट का एल्गोरिदम महत्वपूर्ण  हो जाता है|2018 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में फर्जी जनमत निर्माण में कई सोशल मीडिया कम्पनियों की भूमिका पर सवाल उठे थे |किसी युद्ध में हम जब किसी देश के बारे में राय बनाते हैं |उसमें मीडिया की बड़ी भूमिका होती खासकर इंटरनेट की |ज़रा याद कीजिये |2003 में अमेरिकी नेत्रत्व में गठबंधन देशों की सेनाओं ने ईराक पर कुछ इसी तरह से हमला किया था जैसा आज रूस ने यूक्रेन में किया हैऐसा ही तर्क अमेरिकी सेना ने ईराक हमले के वक्त दिया था |इराक में जन तबाही करने वाले हथियारों के ज़खीरे को लेकर जो भी फैसले लिए गए और इन्हें जिस तरह से पेश किया उसे किसी भी तरह से तर्कसंगत और न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है|बाद के घटनाक्रम ने इस तथ्य को सिद्ध ही किया कि ईराक पर हमला एक गठबंधन देशों की भूल थी |तब सोशल मीडिया का जन्म नहीं हुआ था और सूचना का मुक्त प्रवाह पश्चिमी चश्मे से ही देखा जाता था और सद्दाम हुसैन का पक्ष दुनिया के सामने वही आया जो पश्चिमी मीडिया ने दिखाया|इंटरनेट ने खेल भले ही पलट दिया हो लेकिन यहाँ फिर एल्गोरिद्म महत्वपूर्ण हो उठता है | अमेरिका का इतिहास बताता है कि वो ऐसी नीतियां बनाता है जो उसके व्यवसायिक हितों की पूर्ति करे और ऐसी संस्थाओं का संरक्षण करता है जो उसके हित लाभ के साधन में मदद करे |तस्वीर का एक रुख विकिलीक्स से जुड़ा है|बात भले छोटी हो पर इसके निहितार्थ बड़े हैंविकिलीक्स का जन्म ही इंटरनेट की ताकत और विस्तार के कारण हुआ और इस पर सबसे बड़ी चोट अमेरिका ही ने पहुंचाई |विकिलीक्स के द्वारा जारी किये गए सैकड़ों गोपनीय कूटनीतिक संदेशो से सारी दुनिया अमेरिका के दोहरे रवैये को जान गयी वहीं इस खुलासे से वेब पत्रकारिता को नया आयाम मिला आमतौर पर समाचार पोर्टल टीवी और अखबार की सामग्री से ख़बरें बनाते थे पर मानव सभ्यता के इतिहास में पहली बार वेब से आयी सामग्री टीवी और अख़बारों की ख़बरों का आधार बनीरूस यूक्रेन युद्ध  को रोकने की दिशा में अमेरिकाजर्मनीब्रिटेन समेत तमाम देश  रूस और उसके सहयोगियों पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे हैं और उसी के साथ जनमत बनाने का खेल भी चल रहा है | कूटनीति में कोई भी फैसले दो दूनी चार नहीं होते और कोई भी पक्ष पूरी तरह से दोषी या निर्दोष नहीं होता है |यह साल 2003 नहीं जब दुनिया के कुछ ताकतवर राष्ट्र एक अनाम रिपोर्ट पर एक देश को युद्ध में झोंक देते हैं |

पश्चिमी मीडिया के इस नजरिये का शिकार भारत भी रहा है |साल 2012 में असम में हुई समस्या और भारत के कई शहरो से उत्तर पूर्व के निवासियों का पलायन हुआ | सरकार ने इसके लिए इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर फ़ैली अफवाहों और भडकाऊ तस्वीरों को दोषी माना और कार्यवाही करते हुए 245 वेबसाइट-वेब पन्नों को ब्लॉक कर दिया गया|आश्चर्यजनक रूप से तेजी दिखाते हुए सरकार के इस  फैसले के बाद अमरीकी विदेश मंत्रालय की तत्कालीन प्रवक्ता विक्टोरिया नूलैंड ने बयान दिया  कि अमरीका इंटरनेट की आजादी के पक्ष में हैभारत  सरकार से निवेदन किया कि वो मूलभूत अधिकारोंकानून और मानवाधिकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जारी रखे|

भारत को मानवाधिकार और इंटरनेट की आजादी का पाठ पढाने वाले इस बयान को जरा इन आंकड़ों के संदर्भ में पढ़ें तो एक बार फिर अमेरिका का व्यवसायिक नजरिया स्पष्ट हो जाएगा | सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था विकास केंद्रित हुई है|  आर्थिक विकास की गति को बढ़ाने में इन्टरनेट की भूमिका में  अमेरिका के व्यवसायिक हित सम्मिलित हैं ,इंटरनेट के अस्तित्व में आने से इस पर हमेशा अमेरिकी सरकारकंपनियोंऔर प्रयोगकर्ताओं  का अधिपत्य  रहा है लेकिन अब इसमें तेजी से बदलाव आ रहा है जिसका केंद्र भारत और ब्राजील जैसे देश शामिल हैंजहाँ इंटरनेट तेजी से फल फूल रहा है जिसमे बड़ी भूमिका फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवकिंग साईट्स निभा रही है |सोशल नेटवर्किंग साईट्स के प्रभाव का आंकलन करते वक्त हम इसके व्यवसायिक पक्ष को  दरकिनार नहीं कर सकते |जो अमेरिका की अर्थव्यवस्था में अपना अहम योगदान दे रही हैं क्योंकि सभी बड़ी सफल सोशल नेटवर्किंग साईट्स का उद्गम अमेरिका ही है फेसबुक का मतलब महज सोशल नेटवर्किंग नहीं है बल्कि  ये विज्ञापन ,मीडिया और नए रोजगार के निर्माण से भी सम्बन्धित है | फेसबुक को अन्य देशों की क्षेत्रीय सोशल नेटवर्किंग साइट जैसे दक्षिण कोरिया में सिवर्ल्डजापान की मिक्सीरूस में वोकांते से कड़ी टक्कर  मिल रही सूचना क्रांति ने लोगों के  मूलभूत अधिकारों,और मानवाधिकारों को एक बड़े बाजार में तब्दील कर दिया है|यह भी सूचना क्रांति का एक पक्ष है |

 दैनिक जागरण में 07/03/2022 को प्रकाशित 

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