बचपने में सुनी एक कहावत भूख लगे तो खाना खाओ और डर लगे तो गाना गाओ अब ये कहाँ तक सही है. ये तो पता नहीं पर खाने और गाने का भी कोई सम्बन्ध हो सकता है भला. आइये जरा आज इस पर नज़र डालते हैं कि फ़िल्मी गाने इस सम्बन्ध को कैसे देखते हैं . तो भला इतना महत्वपूर्ण हिस्सा गानों से कैसे छूटा रह सकता था. वैसे वक्त के साथ साथ हमारे गाने और खाने के तरीके बदले हैं . वैसे भी स्वस्थ खाओ तन मन जगाओ की बात कोई नयी नहीं है. इसी लिए ये गाना कहता है दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ (संत ज्ञानेश्वर ). खाने में कुछ भी मिले मन से खाइए और अगर खिलाने वाला कोई अपना साथी हो तो क्या कहने "रुखी सूखी रोटी तेरे हांथों की खा के आया मज़ा बड़ा" (नायक ). वैसे भी खाने से पहले अगर नाश्ते की बात कर ली जाए तो कैसा रहेगा. डॉक्टर भी कहते हैं खाली पेट नहीं रहना चाहिए तो चने के बारे में क्या ख्याल है चना जोर गरम बाबू मैं लाया मजेदार (क्रांति ) .खाना अगर अपनी मेहनत का मिले तो उसका क्या कहना क्योंकि "खून पसीने की जो मिलेगी तो खायेंगे नहीं तो यारों हम भूखे ही सो जायेंगे" (खून पसीना ). नमक अगर खाने में न हो तो खाना बेस्वाद होता है. वैसे ही जिन्दगी में अगर उतार चढाव न हो तो ऐसी जिन्दगी का क्या मतलब. पर अति किसी चीज़ की अच्छी नहीं होती तो क्यों न थोडा सी मिर्च खा ली जाए "उफ़ ये मिर्ची है ये मिर्ची "(बीवी न. वन )पर कभी ऐसा भी होता है कि हम घर पर नहीं होते हैं या किसी काम से बाहर का खाना खाना पड़ता है. जिसे हम स्ट्रीट फ़ूड कहते हैं "मैं तो रस्ते से जा रहा था मैं तो भेल पूड़ी खा रहा था(कुली न. वन ) ". खाइए जरूर खाइए रोज रोज एक सा खाना भी मज़ा नहीं देता है तो इसका भी लुत्फ़ उठाइए, पर स्वास्थ्य और सफाई की कीमत पर नहीं अगर खाना साफ़ सुथरा है तो किसी को भी मिर्ची लगे. आप परवाह मत कीजिये . खाना तभी आपके लिए बेहतर होगा जब उसमे पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्व होंगे. इसके जरुरी है कि खाने में फल और कुछ जरुरी चीजों की सही मात्रा हो. फल में तो गीतकारों का सबसे प्रिय फल है “अंगूर”. ये गाना जिन्दगी और खाने के फलसफे को कितनी खूबसूरती से बयां कर रहा है "ये जीना है अंगूर का दाना कुछ पक्का है कुछ कच्चा है. ध्यान दीजियेगा अधपका खाना आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं है. खाना कुछ भी खाएं पर ठीक से पका कर खाएं . हिन्दुस्तानी खाना बिना मिठाई के पूरा नहीं होता तो कुछ मीठा हो जाये ये अलग बात है कि इस बदलते वक्त में मीठे के प्रकार बदले है पर उनकी मिठास नहीं बदली है मिठाईयों की जगह चोकलेट और आईस क्रीम ने ले ली है तभी तो “चोकलेट आइस क्रीम लाइम जूस और टोफियाँ पहले जैसे मेरे शौक अब हैं कहाँ” (हम आपके हैं कौन ).जी हाँ शौक तो बदलते रहते हैं वो चाहे गाने के हों या खाने के पर चलते चलते खाने के बाद अगर पान की बात न की जाए तो लगता है खाना पूरा नहीं हुआ तो “खायके पान बनारस वाला खुल जाए बंद अक्ल का ताला “(डान)
गर्मी के इस मौसम में डिफ्रेन्ट स्वाद के खानों का तड़का लगाते रहिये और जीते रहिये
प्रभात खबर में 29/06/2022 को प्रकाशित
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