फेक न्यूज की समस्या को डीप फेक ने और ज्यादा गंभीर बना दिया है |असल में डीप फेक में
आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस एवं आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल के जरिए किसी वीडियो क्लिप
या फोटो पर किसी और व्यक्ति का चेहरा लगाने का चलन तेजी से बढ़ा है| इसके जरिए कृत्रिम
तरीके से ऐसे क्लिप या फोटो विकसित कर लिए जा रहे हैं जो देखने में बिल्कुल
वास्तविक लगते हैं|‘डीपफेक' एक बिल्कुल अलग तरह की समस्या है इसमें वीडियो सही होता है पर
तकनीक से चेहरे, वातावरण या असली औडियो बदल दिया जाता है और देखने वाले को इसका बिलकुल पता
नहीं लगता कि वह डीप फेक वीडियो देख रहा है |एक बार ऐसे वीडियो जब किसी सोशल मीडिया
प्लेटफोर्म पर आ जाते हैं तो उनकी प्रसार गति बहुत तेज हो जाती है|इंटरनेट पर ऐसे
करोडो डीप फेक वीडियो मौजूद हैं| देश में जहाँ डिजीटल साक्षरता बहुत कम
है वहां डीप फेक वीडियो समस्या को गंभीर करते है |हालाँकि ऐसे वीडियो को
पकड़ना आसान भी हो सकता है क्योंकि ऐसे वीडियो इंटरनेट पर मौजूद असली वीडियो से ही
बनाये जा सकते हैं पर इस काम को करने के लिए जिस धैर्य की जरुरत होती है| वह भारतीयों के पास
वहाट्स एप मेसेज को फॉरवर्ड करने में नहीं दिखती |ऐसे में जब फेक न्यूज वीडियो के रूप
में मिलेगी तो लोग उसे तुरंत आगे बढ़ने में नहीं हिचकते |
लेकिन ए आई मॉडल की अगली पीढ़ी, जिसे जनरेटिव ए आई कहा जाता है |समस्या को एक अगले स्तर पर ले जाती है | Dall-e, ChatGPT, मेटा का मेक-ए-वीडियो जैसी साईट्स से आप ऐसी फोटो, वीडियो
बनवा सकते हैं| जो पूरी तरह काल्पनिक है जैसे पिछले दिनों
वायरल हुई तस्वीर जिसमें बराक ओबामा और एंजेला मार्केल की समुद्र के किनारे
छुट्टिया बिताते हुए दिख रहे है असल में ए आई द्वारा निर्मित की गयी हैं|इन साईट्स को
वीडियो या फोटो को रूपांतरित करने के लिए किसी अन्य स्रोत की आवश्यकता नहीं होती है। इसके बजाय, वे संकेतों के आधार
पर एक छवि, पाठ या वीडियो उत्पन्न कर सकते हैं। ये अभी भी विकास के प्रारंभिक चरण में
हैं, लेकिन इससे भविष्य में नुकसान की बड़ी सम्भावना दिखती है , क्योंकि हमारे पास
साक्ष्य के रूप में उपयोग करने के लिए कोई मूल सामग्री नहीं होगी ही नहीं|
ट्विटर और फेसबुक सहित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पिछले दिनों साझा किए गए
दो सिंथेटिक वीडियो और एक हिंदी अखबार की रिपोर्ट
का डिजिटल रूप से बदला हुआ स्क्रीनशॉट, वीडियो बनाने में एआई
टूल्स के खतरनाक परिणामों को उजागर करता है|
ए सी नेल्सन की हालिया इंडिया इंटरनेट रिपोर्ट 2023' शीर्षक वाली रिपोर्ट
के आंकड़े चौंकाते हैं ग्रामीण भारत में 425 मिलियन से अधिक
इंटरनेट उपयोगकर्ता थे, जो शहरी भारत की तुलना में चौआलीस
प्रतिशत अधिक था, जिसमें 295 मिलियन लोग नियमित
रूप से इंटरनेट का उपयोग करते थे। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि लगभग
आधा ग्रामीण भारत इंटरनेट तीस प्रतिशत की मजबूत वृद्धि
के साथ, इंटरनेट पर है और जिसके भविष्य में और
बढ़ने की सम्भावना है|
सामान्यतः: सोशल मीडिया एक तरह के ईको चैंबर का निर्माण करते हैं जिनमें एक
जैसी रुचियों और प्रव्रत्तियों वाले लोग आपस में जुड़ते हैं |ऐसे
में डीप फेक वीडियो के प्रसार को रोकने के लिए बुनियादी शिक्षा में मीडिया
साक्षरता और आलोचनात्मक सोच पाठ्यक्रम को शामिल करने की आवश्यकता है ताकि जागरूकता
को बढ़ावा दिया जा सके| जिससे लोगों को फेक न्यूज
से बचाने में मदद करने के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण का निर्माण किया जा सके।
डीपफेक और फेक न्यूज से सतर्क रहने के लिए हमें आज और
आने वाले कल के जटिल डिजिटल परिदृश्य वाले भविष्य के
लिए, सभी उम्र के लोगों को तैयार करने में पूरे भारत में एक बहु-आयामी, क्रॉस-सेक्टर
दृष्टिकोण की आवश्यकता है।