Wednesday, March 29, 2023

नई तकनीक के दौर में भ्रामक खबरों के खतरे


 पिछले साल के अंतिम महीनों में चैट जी पी टी के आने के बाद आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस बहुत चर्चा में है कुछ साल पहलेपत्रकारिता में आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस के आगमन  ने  पत्रकारिता उद्योग में काफी उम्मीदें बढ़ाई थी कि इससे  समाचारों का वितरण  एक नयी पीढी में पहुंचेगा और पत्रकारिता जगत में  क्रांतिकारी उलटफेर होगा। उम्मीद तो यह भी जताई जा रही थी कि आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस से फेक न्यूज  और मिस इन्फोर्मेशन  के प्रसार को रोकने का एक प्रभावी तरीका भी मिल जाएगा पर व्यवहार में इसके उलट ही हो रहा है एक तरफ प्रौद्योगिकी ने आर्थिक और सामाजिक विकास किया है तो दूसरी फेक न्यज  में काफी  वृद्धि हुई हैलोकतांत्रिक राजनीति के लिए अड़चन  पैदा करने में और चारित्रिक हत्या करने में  इंटरनेट एक शक्तिशाली औजार के रूप में उभरा है|अपने सरलतम रूप मेंएआई को इस तरह से समझा जा सकता है कि उन चीजों को करने के लिए कंप्यूटर का उपयोग किया जाता  है जिनके लिए मानव बुद्धि की आवश्यकता होती है।ए आई  बाजार पर कब्जा करने के लिए इन दिनों माइक्रोसॉफ्ट के चैटजीपीटी और गूगल के बार्ड के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा इसका एक उदाहरण है |

फेक न्यूज की समस्या को डीप फेक ने और ज्यादा गंभीर बना दिया है |असल में डीप फेक में आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस एवं आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल के जरिए किसी वीडियो क्लिप  या फोटो पर किसी और व्यक्ति का चेहरा लगाने का चलन तेजी से बढ़ा हैइसके जरिए कृत्रिम तरीके से ऐसे क्लिप या फोटो विकसित कर लिए जा रहे हैं जो देखने में बिल्कुल वास्तविक लगते हैं|‘डीपफेकएक बिल्कुल अलग  तरह  की समस्या  है इसमें वीडियो सही होता है पर तकनीक से चेहरेवातावरण या असली औडियो बदल दिया जाता है और देखने वाले को इसका बिलकुल पता नहीं लगता कि वह डीप फेक वीडियो देख रहा है |एक बार ऐसे वीडियो जब किसी सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर आ जाते हैं तो उनकी प्रसार गति बहुत तेज हो जाती है|इंटरनेट पर ऐसे करोडो डीप फेक वीडियो मौजूद हैंदेश में जहाँ डिजीटल साक्षरता बहुत कम है वहां डीप फेक वीडियो समस्या को गंभीर करते है |हालाँकि  ऐसे वीडियो को पकड़ना आसान भी हो सकता है क्योंकि ऐसे वीडियो इंटरनेट पर मौजूद असली वीडियो से ही बनाये जा सकते हैं पर इस काम को करने के लिए जिस धैर्य की जरुरत होती हैवह भारतीयों के पास वहाट्स एप मेसेज को फॉरवर्ड करने में नहीं दिखती |ऐसे में जब फेक न्यूज वीडियो के रूप में मिलेगी तो लोग उसे तुरंत आगे बढ़ने में नहीं हिचकते |

लेकिन ए आई  मॉडल की अगली पीढ़ीजिसे जनरेटिव ए आई  कहा जाता है |समस्या को एक अगले स्तर पर ले जाती है | Dall-e, ChatGPT, मेटा का मेक-ए-वीडियो जैसी साईट्स से आप ऐसी फोटो, वीडियो बनवा सकते हैं| जो पूरी तरह काल्पनिक है जैसे पिछले दिनों वायरल हुई तस्वीर जिसमें बराक ओबामा और एंजेला मार्केल की समुद्र के किनारे छुट्टिया बिताते हुए दिख रहे है असल में ए आई द्वारा निर्मित की गयी हैं|इन साईट्स को  वीडियो या फोटो को रूपांतरित करने के लिए किसी अन्य  स्रोत की आवश्यकता नहीं होती है। इसके बजायवे संकेतों के आधार पर एक छविपाठ या वीडियो उत्पन्न कर सकते हैं। ये अभी भी विकास के प्रारंभिक चरण में हैंलेकिन इससे भविष्य में नुकसान की बड़ी सम्भावना दिखती है क्योंकि हमारे पास साक्ष्य के रूप में उपयोग करने के लिए कोई मूल सामग्री नहीं होगी ही नहीं|

ट्विटर और फेसबुक सहित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पिछले दिनों साझा किए गए दो सिंथेटिक वीडियो  और एक हिंदी अखबार की रिपोर्ट का डिजिटल रूप से बदला हुआ स्क्रीनशॉट, वीडियो बनाने में एआई टूल्स के खतरनाक परिणामों को उजागर करता है|

ए सी नेल्सन की हालिया इंडिया इंटरनेट रिपोर्ट 2023' शीर्षक वाली रिपोर्ट के आंकड़े चौंकाते हैं ग्रामीण भारत में 425 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता थेजो शहरी भारत की तुलना में चौआलीस प्रतिशत  अधिक थाजिसमें 295 मिलियन लोग नियमित रूप से इंटरनेट का उपयोग करते थे। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि लगभग आधा ग्रामीण भारत इंटरनेट तीस प्रतिशत  की मजबूत वृद्धि के साथइंटरनेट पर है और जिसके  भविष्य में और बढ़ने की सम्भावना है|

 सामान्यतः: सोशल मीडिया एक तरह के ईको चैंबर का निर्माण करते हैं जिनमें एक जैसी रुचियों और प्रव्रत्तियों वाले लोग आपस में जुड़ते हैं |ऐसे में डीप फेक वीडियो के प्रसार को रोकने के लिए बुनियादी शिक्षा में मीडिया साक्षरता और आलोचनात्मक सोच पाठ्यक्रम को शामिल करने की आवश्यकता है ताकि जागरूकता को बढ़ावा दिया जा सके| जिससे  लोगों को फेक न्यूज  से बचाने में मदद करने के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण का निर्माण किया जा सके। डीपफेक और फेक न्यूज  से सतर्क रहने के लिए हमें आज और आने वाले कल के जटिल डिजिटल परिदृश्य वाले भविष्य  के लिएसभी उम्र के लोगों को तैयार करने में पूरे भारत में एक बहु-आयामीक्रॉस-सेक्टर दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

 अमर उजाला में 29/03/2023  को प्रकाशित  

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