क्या आपको याद है आखिरी बार आपने कोई किताब पूरी कब पढ़ी थी, या अपने किसी मित्र के लिए पत्र कब लिखा था, आप में से कई लोगों के लिए यह अंतराल हफ्ते, महीने और कुछ के लिए साल भी हो सकता है। आज के डिजिटल युग में हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर तकनीक ने खासा प्रभाव डाला है, इस बदलती दुनिया में हम चारों तरफ स्मार्टफोन, टैबलैट, कम्यूटर जैसे तमाम इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से घिर गये हैं।चैटिंग एप्स पर कुछ लिखने की बजाय वायस नोट्स भेजे रहे हैं |वीडियो काल की बाढ़ आई हुई है | इस बदलते दौर में विजुअल मीडिया यानि वीडियो का बोलबाला है, ओटीटी पर बिंज वॉचिंग(किसी लम्बे वीडियो को बगैर रुके पूरा देखना ) से लेकर सोशल मीडिया साइट्स पर अनगिनत रील स्क्रॉल करने तक, विजुअल मीडिया हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा हो चला है। विजुअल कंटेट की ओर इस बढ़ते झुकाव ने शोधकर्ताओं को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हम पढने के दौर से आगे निकल जाने वाले हैं |हाल ही में मार्केटिंग फर्म इन-मोबी की मोबाइल मार्केटिंग हैंडबुक-2024 की ताजा रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें कहा गया है कि एक औसत भारतीय 4 घंटे से अधिक समय रोजाना स्मार्टफोन पर बिताता है, जो वैश्विक औसत से लगभग एक घंटे ज्यादा है |यह आंकड़ा दिखाता है कि हम अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा डिजिटल स्क्रीन के सामने बिता रहे हैं। इस बढ़ते स्क्रीन टाइम और वीडियो कंटेंट के बढ़ते उपभोग से हमारे दिमाग पर संज्ञानात्मात्क प्रभाव पड़ा है। इससे ना केवल हमारे दिमागी कौशल बल्कि हमारी पढ़ने और लिखने की आदतें बदलने के साथ साथ ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता भी कम हो रही है |
स्मार्ट फोन
और स्ट्रीमिंग साइट्स जैसे प्लेटफार्म्स से हमारी किसी चीज को गौर से
समझने की अवधि कम हो गई है। माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन के एक अध्ययन के
अनुसार लोग आम तौर पर आठ सैकेंड के बाद एकाग्रता खो देते हैं, जो मस्तिष्क पर तेजी से डिजिटल होती जीवनशैली के प्रभावों को उजागर करता है।
इस शोध में कहा गया मनुष्यों की ध्यान अवधि एक गोल्ड फिश से भी कम हो गई है।
अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ ग्लोरिया मार्क का कहना है
कि शॉर्ट वीडियोज एप ने ध्यान अवधि में होने वाली गिरावट में अहम भूमिका निभाई है, वहीं लंबे समय तक वीडियो देखने और स्क्रीन टाइम बढ़ने से हमारी एकाग्रता और
स्मृति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उनके शोध के अनुसार 2004 में, स्क्रीन पर औसत
ध्यान अवधि औसतन ढाई मिनट थी 2012 में यह 75 सेकंड हो गयी और फिर पिछले पांच, छह वर्षों में, यह औसत लगभग 47 सेकंड का हो चुका है|
जिसके कारण लोगों की रुचि पढ़ने से ज्यादा देखने और सुनने की ओर बढ़ रही
है|यह बदलाव सामाजिक, तकनीकी और मनोवैज्ञानिक कारणों से हो रहा है। रॉयटर्स की डिजिटल रिपोर्ट के
मुताबिक इकहत्तर प्रतिशत भारतीय ऑनलाइन समाचार देखना पसंद करते हैं, वहीं केवल उनतीस प्रतिशत लोग ही अखबार पढ़ते हैं। लोगों के पास समय कम
होने के कारण वे लंबे लेखों और किताबों को पढ़ने के बजाय वीडियो और ऑ़डियो क्लिप
के माध्यम से जानकारी प्राप्त करना पसंद कर रहे हैं |
इसने हमारे पढ़ने के तरीकों पर भी खासा प्रभाव डाला है, युवा पाठक ई-बुक्स और ऑडियोबुक को प्रकाशित किताबों की तुलना में अधिक
पसंद कर रहे हैं। इसका एक कारण है कि ई-बुक और ऑडियोबुक, प्रिंटेड किताबों की तुलना में कम खर्चीले होते हैं और उन्हे आसानी से कहीं भी
पढ़ा और सुना जा सकता है। कोविड महामारी के बाद भारत में भी ई-बुक्स और ऑडियोबुक
का बाजार तेजी से बढ़ रहा है, वहीं पारंपरिक
किताबों के प्रति लोगों का रुझान कम होता नजर आ रहा है। सिरकाना बुकस्कैन की एक
रिपोर्ट में सामने आया कि साल 2023 में 2022 के मुकाबले प्रिंट किताबों की बिक्री
में 2.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, वहीं इसके विपरीत शोध वेबसाइट स्टेस्टिका के मुताबिक भारत में ऑडियोबुक का
बाजार हर साल 10.51 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि लोगों का
रुझान अब किताबों के इतर ऑडियोबुक्स की ओर बढ़ रहा है।
स्टेस्टिका की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में स्मार्टफोन यूजर्स की संख्या 100
करोड़ के पार पहुँच गई है, जिनमें 90 प्रतिशत
यूजर्स वीडियो कंटेंट देखते हैं। हालांकि वीडियो कटेंट मनोरंजक होते हैं और
दर्शकों को आकर्षित करते हैं और पढ़ने की तुलना में अधिक मनोरंजक अनुभव
प्रदान करते हैं। वहीं इस तकनीकी दुनिया में शैक्षिक पढ़ाई के तरीके भी बदलते जा
रहे हैं, किताबों और लेखों
की जगह अब वीडियो लेक्चेर्स और डिजिटल मीडिया ने ले ली है। जहाँ एक ओर विजुअल और
ऑडियो से जानकारी को समझना और सीखना आसान हो जाता है वहीं इससे छात्रों की पढ़ाई
की आदतों पर प्रभाव पड़ सकता है। भारत की दिग्गज ऑनलाइन लर्निंग कंपनी अनएकेडमी के
मुताबिक उनके पास 5 करोड़ से अधिक एक्टिव लर्नस पढ़ाई करते हैं। वहीं यूट्यूब जैसे
स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म्स पर पढ़ने वालों की संख्या इससे कहीं अधिक है।
जाहिर है वीडियो और
ऑडियो कंटेंट मनोरंजक होते हैं
और लोगों को आकर्षित करते हैं। वे कहानियों को रोचक दृश्यों, संगीत और ध्वनि प्रभावों के साथ प्रस्तुत करते हैं, जो पढ़ने की तुलना में अधिक मनोरंजक अनुभव प्रदान करते हैं।यह सच है कि लोग
आजकल पढ़ने की बजाय देखना-सुनना ज़्यादा पसंद करते हैं। आंकड़े भी इस बात का
समर्थन करते हैं कि लोग वीडियो, फिल्में, टीवी शो और ऑडियोबुक पर अधिक समय बिता रहे हैं। लेकिन अगर ऐसा चलता रहा तो
हमारी लिखने और पढ़ने की आदत धीरे धीरे महज शैक्षाणिक कामों और लिखने पढ़ने से
जुड़े अन्य पेशों तक ही सीमित हो जाएगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पढ़ने के भी अनेक लाभ हैं।पढ़ना लोगों की कल्पना
शक्ति को परिष्कृत करता है जिससे सृजनात्मकता बढ़ती है तर्कशीलता का विकास होता है |इसलिए पढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में हम मशीनों के गुलाम भर न बने रह जाए क्योंकि साहित्य संगीत और
कला की धुरी पढ़ना है और इससे विहीन मनुष्य पशु के समान होता है
अमर उजाला में 09/07/2024 को प्रकाशित
No comments:
Post a Comment