Tuesday, September 17, 2024

सुलझाने की बजाय उलझा रही तकनीक

 

आज के डिजिटल युग में तकनीक ने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया है। इंटरनेट,ऐप्स और एआई जैसी तकनीकों ने न केवल हमारे कामकाज को अधिक सुविधाजनक और तेज बना दिया हैबल्कि संवाद के तरीके को भी आमूल-चूल रूप से बदल दिया है। जहाँ एक ओर यह तकनीक संचार को त्वरित और सुलभ बना रही हैवहीं दूसरी ओर इसका प्रभाव मानवीयता पर भी पड़ा है। संचार में मानवीय भावनाएँआवाज़ की गर्माहटऔर चेहरों के भाव धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं। 
जो समस्याओं को सुलझाने के बजाय और बिगाड़ रही है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स हों या हमारे जीवन को आसान बनाने वाली ऑनलाइन कंपनियाँ ये हमारे जीवन का आज अहम हिस्सा बन गई है। चाहे अमेजन जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफार्म सामान मंगाना हो या ऊबर,ओला जैसी कैब सर्विस से कहीं जानाइन एप बेस्ड कंपनियों ने हमारे रोजाना के कामों को सरल और सुविधाजनक बना दिया है। मगर इसका एक और पहलू भी हैइन तकनीकों और ऑनलाइन सेवाओं के फायदे के साथ कुछ चुनौतियाँ और समस्याएं भी जुड़ी हुई हैं। इन प्लेटफार्म्स पर हमारे पास सीधे और व्यक्तिगत संपर्क की कमी होती हैजिससे हमारी समस्याओं का समाधान मुश्किल हो जाता है। सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म फेसबुकजिसने भारत में 32 करोड़ यूज़र्स का आंकड़ा पार कर लिया हैउपयोगकर्ताओं की समस्याओं के समाधान के लिए केवल हेल्पसपोर्ट और रिपोर्ट जैसी सुविधाएं प्रदान करता है जो कि एक प्री डिसायडेड एक तरफा तंत्र के अलावा कुछ भी नहीं है। 
यह स्थिति दर्शाती है कि कैसे तकनीकी सुविधाएँ हमारे समस्या समाधान की प्रक्रिया को जटिल बना सकती हैं और मानवीय संबंधों को एक तंत्र में बदल सकती हैं। उदाहरण के लिएयदि आप अमेज़न या फ्लिपकार्ट से कोई उत्पाद खरीदते हैं और वह ख़राब निकलता हैतो आपको अकसर चैटबॉट से ही मदद मिलती है। इसके बादवास्तविक कस्टमर सर्विस प्रतिनिधि से संपर्क करने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। इसी तरहअगर फूड डिलीवरी ऐप पर आपके ऑर्डर में खराब या गलत भोजन आता हैतो आपको स्वचालित सपोर्ट और लंबे इंतजार का सामना करना पड़ता है। इन प्लेटफार्म पर स्वचालित सहायता और सीमित विकल्पों के कारणकई बार समस्या मिनटों में सुलझने की बजाय घंटों तक उलझी रहती है। यह स्थिति ग्राहक को इतना निराश कर देती है कि उन्हें अंततः सोशल मीडिया पर अपने मुद्दे उठाने पड़ते हैं। हाल ही में CCW Digital और कस्टमर मैनेजमेंट सर्विस द्वारा किए गए अध्ययन में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है रिपोर्ट में बताया गया है कि 55% उपभोक्ताओं का अनुभव चैट-बेस्ड सपोर्ट में बदतर हुआ हैजो यह दर्शाता है कि स्वचालित सहायता तंत्र अकसर मानवीय समाधान की कमी को पूरी नहीं कर पाती। तकनीक ने ग्राहक सेवा के क्षेत्र में एक बुनियादी परिवर्तन लाया है। ग्लोबल स्ट्रेटजिक बिज रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 तक विश्व भर का कॉल सेंटर का बाजार 332 बिलियन डॉलर का थाजिसमें भारत की हिस्सेदारी करीब दस  प्रतिशत हैवहीं नैसकॉम के मुताबिक भारत में 5 करोड़ लोग इन बीपीओ और कॉल सेंटरों से रोजगार प्राप्त करते हैं।
 मगर ग्राहक सेवा क्षेत्र में तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल से इन नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है। बड़ी कंपनियों ने ग्राहक सेवा में वेटिंग टाइम को कम करने के लिए लाइव चैट का विकल्प दिया। जिसमें ग्राहकों को अपनी समस्याएं लिख कर देने के लिए प्रेरित किया जाने लगा। और धीरे-धीरे मौखिक संचार को कम कर कंपनियों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चैटबॉट्स को तरजीह देनी शुरू कर दीइससे कंपनियों को ग्राहक सेवा में खर्च कम पड़ रहा है। इस कटौती की शुरुआत कॉल सेंटर एग्जीक्यूटिव की संख्या घटाने से शुरू कर दी गई है।
वहीं विशेषज्ञ ये मानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रभाव से अधिकांश कॉल सेंटर्स का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। जेनेरेटिव एआई के व्यापक इस्तेमाल से एक साल के भीतर पारंपरिक कॉल सेंटर की प्रक्रियाओं में तेजी से बदलाव आएगा और एआई ग्राहकों की समस्याओं का अनुमान लगाकर उनका समाधान करेगी। कैंपेन एशिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक मई 2023 में इंडियन एयरलाइन्स के चैटबॉट 'महाराजाने 93 प्रतिशत ग्राहक सवालों का समाधान बिना कॉल सेंटर एजेंट्स के पास भेजे किया है। कंपनी का कहना है कि ग्राहकों की समस्या से जुड़े करीब 5 लाख कॉल हर महीने आते हैं जिसमें एआई ने काफी कटौती कर दी है।कंपनियों की लागत कम करने के लिए ये आसान तरीका है ताकि लोगों की कॉल सेंटर्स पर निर्भरता कम की जा सकेमगर इसके लिए कई प्रकार के बुरे हथकंडे भी अपनाये जाते हैं जैसे कि ज्यादातर समस्याओं के लिए FAQ और आईवीआरएस का उपयोग करना।
 कई ऐप्स कॉल हेल्पलाइन की लिंक तक पहुँचने की प्रक्रिया को इतना जटिल बना देते हैं कि ग्राहकों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। न्यू वाइस मीडिया द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसारखराब ग्राहक सेवा के कारण हर साल करीब 75 बिलियन डॉलर के व्यापार की हानि होती है। जिनमें कॉल सेंटर्स और खराब सहायता तंत्र भी एक  अहम कारण होते है।हालांकिकंपनियों की लागत में कटौती के दीर्घकालिक प्रभाव चिंताजनक है। तकनीक के अंधाधुंध प्रयोग से मानवीय संवाद का स्थान एक निर्जीव तंत्र ने ले लिया हैजहाँ अब समस्याओं का समाधान मशीनों और बिना मौखिक संवाद से बातचीत द्वारा किया जाता है वहीं यह सिर्फ व्यापार और ग्राहक सेवा तक ही सीमित नहीं हैबल्कि इसका असर हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों पर भी पड़ रहा है। तकनीक जब हमारे संचार के हर पहलू को नियंत्रित करती है तो हम अपनी मानवीय संवेदनाओं से दूर होते जाते हैं। अंत में हमें इस बात पर विचार करना होगा कि तकनीक हमारे जीवन को जितना आसान बना रही हैउतना ही हमें मानवीय मूल्यों से दूर कर रही है। यह एक महत्वपूर्ण समय है जब हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तकनीक हमें उलझाने के बजाय हमारे जीवन को सुगम बनाए।
अमर उजाला में 17/09/2024 को प्रकाशित 

Tuesday, September 10, 2024

जीवन की यात्रा

 

बचपन,जवानी ,और बुढ़ापा जीवन के ये तीन हिस्से माने गए हैं ,बचपन में बेफिक्री जवानी में करियर और बुढ़ापा मतलब जिन्दगी की शाम पर जीवन में एक वक्त ऐसा आता है जब बचपने जैसी बेफिक्री रहती है जवानी में करियर जैसा कुछ  बनाने की चिंता और ही अभी जिन्दगी की शाम हुई होती है यानि बुढ़ापा .शायद यही है अधेड़ावस्था जब जिन्दगी में एक ठहराव होता है पर यही उम्र का वो मुकाम है जब मौत सबसे ज्यादा डराती हैउम्र के इस  पड़ाव पर जो कभी हमारे बड़े थे धीरे धीरे सब जा रहे हैं और हम बड़े होते जा रहे हैं. मुझे इतना बड़प्पन नहीं चाहिए कि हमारे ऊपर कोई हो ही  .मौत किसे नहीं डराती पर जिंदगी में एक वक्त ऐसा आता है. जब मौत के वाकये से आप रोज दो चार होने लगते हैं , मुझे अच्छी तरह याद है बचपन के दिन जब मैंने होश संभाला ही था. कितने खुशनुमा थे बस थोड़ा बहुत इतना ही पता था कि कोई मर जाता है पर उसके बाद कैसा लगता है उसके अपनों को ,कितना खालीपन आता है. जीवन में इस तरह के तो कोई सवाल जेहन में आते थे और ही कभी ये सोचा कि एक दिन हमको और हमसे  जुड़े लोगों को मर जाना है  हमेशा के लिएमम्मी पापा का साथ दादी –बाबा  का सानिध्य,लगता था जिन्दगी हमेशा ऐसी ही रहेगी. हम सोचते थे कि जल्दी से बड़े हो जाएँ सबके साथ कितना मजा आएगा पर बड़ा होने की कितनी बड़ी कीमत हम सबको चुकानी पड़ेगी इसका रत्ती भर अंदाज़ा नहीं था . मौत से पहली बार वास्ता पड़ा 1989 में. बाबा जी का देहांत हुआ हालांकि वह ज्यादातर वक्त हम लोगों के साथ ही रहा करते थे पर अपनी मौत के वक्त गाँव चले गये थे. उनकी मौत की खबर आयी,गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं.  पहली बार किसी के जाने के खालीपन को महसूस किया शायद यह मेरे बड़े होने की शुरुआत थी .  जल्दी ही हम सब अपनी जिन्दगी में रम गए. तीन साल बाद फिर गर्मी की छुट्टियों में दादी की मौत देखी वह भी अपनी आँखों के सामने .उस दिन  जब मैं सुबह की सैर के लिए निकल रहा था दादी अपने कमरे में आराम से सो रही थी ,मुझे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि अगली सुबह वह अपने बिस्तर पर नहीं बर्फ की सिल्लियों पर लेटी होंगी . जिन्दगी बहुत क्रूर होती है .दादी जल्दी ही यादों का हिस्सा बन गयीं .हम भी आगे बढ़ चले .जिन्दगी खुल रही थी ,भविष्य ,करियर ,परिवार के कई पड़ाव पार करते हुए जिन्दगी को समझते हुए बीच के कुछ साल फिर ऐसे आये जब हम भूल गए कि मौत सबकी होनी है.

बाबा की मौत के बाद से किसी अपने के जाने से उपजा खालीपन लगातार बढ़ता रहा. बचपन के दिन बीते,  हम जवान से अधेड़ हो गए और माता –पिता जी बूढ़े जिन्दगी थिरने लग गयी. अब नया ज्यादा कुछ नहीं जुड़ना है. अब जो है उसी को सहेजना है पर वक्त तो कम है आस –पास से अचानक मौत की ख़बरें मिलने बढ़ गईं हैं. पड़ोस के शर्मा जी हों या चाचा- मामा जिनके साथ हम खेले कूदे बड़े हुई धीरे –धीरे सब जा रहे हैं. सच कहूँ तो उम्र के इस पड़ाव पर अब मौत ज्यादा डराती है.

प्रभात खबर में 10/09/2024 को प्रकाशित 

 

 

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