पहले जहाँ यात्राएं आत्ममंथन और समाज-विश्लेषण का जरिया होती थीं, वहीं अब यह फॉलोवर्स और व्यूज बटोरने का मात्र जरिया बनती जा रही हैं। इस व्लॉगिंग के जादू ने परंपरागत यात्रा वृत्तांत लेखन को किनारे कर दिया है। ऑप्टिनमॉन्स्टर की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेट पर करीब 600 मिलियन से अधिक ब्लॉग्स हैं जिनमें यात्रा एक लोकप्रिय विषय है। वहीं फ्यूचर डेटा स्टैट्स 2024 के मुताबिक ट्रैवल व्लॉग्स का दुनिया भर का वैश्विक बाजार साल 2025 में 4.5 अरब डॉलर तक पहुँच गया है जो कि 2032 तक 9 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है। हालांकि बढ़ते व्लॉग्स का यात्रा—वृतांत लेखन पर सीधा असर पड़ा है। वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक जहाँ साल 2006 में अमेरिका में 1.9 करोड़ यात्रा से जुड़ी किताबें बिकती थी वहीं अगले दशक यह आंकड़ा आधा हो गया। भारतीय पब्लिशिंग इंडस्ट्री में भी यात्रा-वृतांत अब कम बिकने वाले खंडो में गिना जाने लगा है। हिंदी साहित्य में जो यात्रा लेखन कभी धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, और नवनीत जैसी पत्रिकाओं का स्थायी स्तंभ होता था, वह अब सीमित हो गया है।
पिछले एक दशक में भारत ने इंटरनेट के क्षेत्र में एक क्रांति देखी, सस्ते मोबाइल डेटा पैक्स, किफायती स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के व्यापक प्रसार ने हमारे हर अनुभव को दृश्य केंद्रित बना दिया है। नतीजन व्लॉगिंग और खासकर ट्रैवल व्लॉगिंग ने पारंपरिक यात्रा लेखन की लोकप्रियता, माँग और गुणवत्ता को खासा नुकसान पहुँचाया है। बड़े प्रकाशकों जैसे राजकमल, वाणी और अन्य प्रकाशनों की ओर से यात्रा साहित्य की नई श्रृंखलाएं काफी कम प्रकाशित हुई हैं। इसके विपरीत ट्रैवल व्लॉगर्स जैसे नोमैडिक इंडियन, माउंटेन ट्रैकर, देसी गर्ल ट्रैवलर जैसे यूट्यूबर्स ने ट्रैवल व्लॉगिंग के जरिए करोड़ों व्यूज और फॉलोवर्स अर्जित किये हैं। यात्रा साहित्य में आये इस आर्थिक संकट का एक कारण यह भी है कि पर्यटन विभाग, राज्य बोर्ड और होटल कंपनीज भी अब अपना प्रचार व्लॉगर्स के माध्यम से ही कर रहे हैं। उदाहरण के लिए उत्तराखंड सरकार ने साल 2023 में सैकड़ों व्लॉगर्स को फ्री टूर पर बुलाया, लेकिन किसी पारंपरिक यात्रा लेखक को जगह नहीं दी।
बीते दशकों में यात्रा-वृत्तांत केवल सैर-सपाटे की दास्तान नहीं रहे, बल्कि वे स्थानों की संस्कृति, मनुष्यता और समयबोध को समझने का एक अनोखा माध्यम रहे हैं। पारंपरिक यात्रा-लेखक किसी भी स्थल को केवल देखते नहीं थे, वे वहां रुकते, लोगों के समझते और उस जगह को महसूस करते थे। चाहे वह राहुल सांकृत्यायन की ‘दार्जिलिंग यात्रा’ हो, निर्मल वर्मा की यूरोपीय यात्राओं की झलक या फिर अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में लिखे गए यात्रा संस्मरण इन सभी में लेखक अपने भीतर और बाहर के संसारों को एक साथ टटोलते थे। वह जो देखता था, उसे सांस्कृतिक संदर्भ, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, और मूलवासी अनुभवों के साथ जोड़ता था। नतीजतन, पाठक केवल एक जगह की यात्रा नहीं करता था, वह एक समयबद्ध अनुभव से गुजरता था, जिसमें स्थान, काल और संस्कृति का जीवंत चित्रण होता था।
इस तेजी से बदलती संस्कृति का अहम प्रभाव स्थानीय भाषाओं और सांस्कृतिक प्रस्तुति पर भी पड़ा है। पारंपरिक यात्रा लेखन में अक्सर स्थानीय बोली, लोक कथाएं, कहावतें और गीत परंपरा भी शामिल होती थी। लेकिन आज अधिकांश भारतीय ट्रैवल-व्लॉगिंग या तो अंग्रेजी में और या हिंदी-अंग्रेजी की मिश्रित बोली में होते हैं। जिससे प्रादेशिक भाषाओं में रचना का प्रवाह कम हुआ है। टाइम्स पत्रिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक अधिकांश ट्रैवल व्लॉग्स कई बार अनजाने में औपनिवेशिक दृष्टिकोण को दोहराती हैं। कई व्लॉग्स में उत्तर-पूर्व भारत या आदिवासी, जनजाति क्षेत्रों में रहस्यमय इलाकों की तरह दिखाया जाता है, जिनमें न तो कई ऐतिहासिक संदर्भ होता और न ही स्थानीय दृष्टिकोण।
पर्यटन विभाग की ओर से जारी हुई इंडिया टूरिज्म स्टेटिस्टिक्स रिपोर्ट 2023 के मुताबिक कोविड महामारी के बाद भारतीय पर्यटकों की विदेश यात्रा फिर से कोविड के पुराने आंकड़ों के पास पहुँच गई है। साल 2019 में जहाँ करीब ढाई करोड़ लोग विदेशी यात्राओं पर गये थे वहीं साल 2024 में यह संख्या बढ़कर करीब 3 करोड़ हो गई है। वहीं वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम के ट्रैवल एंड टूरिज्म डेवलेपमेंट इंडेक्स में साल 2024 में भारत ने 39वाँ स्थान हासिल किया है। जो कि भारत के पर्यटन क्षेत्र में हो रहे ढाँचागत परिवर्तनों और उसकी वैश्विक मान्यता की ओर इशारा करता है। हालांकि इस बढ़ते वैश्विक और राष्ट्रीय पर्यटन के पीछे डिजिटल कंटेंट और ट्रैवल व्लॉग्स का गहरा प्रभाव है। स्टैस्टिका की 2023 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में करीब 74 प्रतिशत युवा पर्यटक किसी नई जगह पर जाने से पहले उससे जुड़े यूट्यूब वीडियोज और व्लॉग्स देखते हैं। वहीं 2022 में भारत में जॉस्टल द्वारा कराये गये एक सर्वे में पाया गया कि 65 प्रतिशत भारतीय युवा अपना अगला पर्यटन स्थल चुनने के लिए इंस्टाग्राम और यूट्यूब की मदद लेते हैं। यही नहीं गूगल ट्रैवल ट्रैंड्स के अनुसार भारत में हर महीने, “बेस्ट प्लेसेस की विजिट इन..., बेस्ट टूरिस्ट डेस्टिनेशन..” जैसे कीवर्ड्स पर करीब 1 करोड़ से अधिक सर्च किया जाता है। अब पर्यटन केवल मंत्रालयों, विज्ञापनों और ट्रैवल एजेंसियों की सिफारिशों से निर्देशित नहीं होता है बल्कि यह कंटेंट क्रियेटर्स, ट्रैवल व्लॉगर्स द्वारा संचालित होता है। इसका सीधा नतीजा यह हुआ है कि कई नए और कम जाने वाले पर्यटन स्थल, जिन्हें गिने-चुने यात्रा-वृतांतों में जगह मिली थी , अब अचानक से वायरल डेस्टिनेशन बन जाते हैं। उदाहरण स्वरूप हिमाचल का जिबी, केरल का वागामोन, लद्दाख का तुरतुक और मेघालय के दावकी जैसे स्थान जो पहले सीमित पर्यटक आकर्षण थे, अब व्लॉगिंग के कारण वायरल डेस्टिनेशन हो चले हैं। यह ट्रेंड न केवल पर्यटकों के निर्णयों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था, पर्यावरणीय दबाव, और सांस्कृतिक अंतःक्रिया की प्रकृति को भी नए सिरे से परिभाषित कर रहा है।
हालांकि इन सबके बीच यात्रा लेखन जैसे यात्रा-वृतांत, यात्रा संस्मरण, यात्रा निबंध और यात्रा डायरी ये सारी विधाएं कहीं पीछे छूटती नजर आ रही हैं। कैमरे और स्क्रीन पर हम बहुत कुछ देख सकते हैं, लेकिन महसूस करने के लिए शब्दों की ज़रूरत होती है। यात्रा लेखन केवल जगहों का ज़िक्र नहीं करता, वह उनके साथ जुड़ी संवेदनाओं, इतिहास, और लोगों की कहानियों को भी सामने लाता है। जरूरी नहीं इन दोनों विधाओं में टकराव हो , जरूरत है तो बस एक संतुलन की। यात्रा सिर्फ घूमने-फिरने का नाम नहीं है, बल्कि अपने भीतर झाँकने का एक मौका भी है और उन महसूस किये गये अनुभवों को जिंदा रखने के लिए सबसे सच्चा तरीका आज भी शब्द ही हैं।
प्रभात खबर में 01/10/2025 को प्रकाशित
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