पिछले दिनों देश के डिजीटल मेसेजिंग इकोसिस्टम में एक ऐसा बवंडर मचा जिसने सारी दुनिया में मशहूर हो चुके व्हाट्स एप के नीति नियंताओं के माथे पर पसीने की बूंदें ला दी. वो है भारत का देशी मेसेजिंग एप 'अरट्टै' .प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 'स्वदेशी तकनीक' अपनाने की अपील (15 अगस्त 2025, 30 अगस्त 2020), तथा मंत्रियों और उद्योगपतियों के अभियान की वजह से अक्टूबर 2025 के पहले तीन दिनों में अरट्टै 7.5 मिलियन डाउनलोड के आंकड़े तक पहुंच गया—जहां रोजाना साइन-अप्स 3,000 से बढ़कर 3,50,000 तक जा पहुंचे। वर्तमान में अरट्टै के 1 मिलियन से अधिक मासिक सक्रिय प्रयोगकर्ताओं हैं, जबकि व्हाट्सएप के भारत में मासिक सक्रिय प्रयोगकर्ताओं की संख्या 535.8 मिलियन से अधिक है.यहाँ तक ऐसी भी घटनाएँ भी लोगों ने फेसबुक पर साझा की जब उन लोगों ने अरट्टै की खूबियाँ गिनाते हुए पोस्ट लिखी तो उनका अकाउंट कुछ घंटों के लिए सस्पेंड कर दिया गया .हालंकि इस तथ्य की पुष्टि नहीं हो पाई है फिर भी अरट्टै ने एक चुनौती तो जरुर पेश की है.
'अरट्टै' को समझने से पहले ज़ोहो को समझना ज़रूरी है। यह कोई नई स्टार्टअप नहीं, बल्कि एक स्थापित भारतीय टेक्नोलॉजी दिग्गज कम्पनी है जो दुनिया भर में कारोबार करती है. ज़ोहो का इकोसिस्टम सिर्फ एक ऐप तक सीमित नहीं है। यह ज़ोहो मेल (ईमेल सेवा), ज़ोहो राइटर (डॉक्यूमेंट), ज़ोहो शीट (स्प्रेडशीट) और ज़ोहो शो (प्रेजेंटेशन) जैसे दर्जनों सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन का एक मजबूत सूट प्रदान करता है।इसको हम गूगल सूट जैसा भी समझ सकते हैं पर कंपनी की प्रसिद्धि उसकी गोपनीयता-केंद्रित और विज्ञापन-मुक्त नीतियों पर बनी है.जहाँ गूगल और मेटा (फेसबुक) जैसी टेक कम्पनियां प्रयोगकर्ताओं के आंकड़ों और उनको दिखाए जाने वाले विज्ञापनों पर केन्द्रित हैं वहीं ज़ोहो फिलहाल प्रयोगकर्ताओं के डाटा का ऐसा इस्तेमाल नहीं कर रही हैं और भारत का डाटा भारत में ही रहेगा .इसी दुनिया का नया सदस्य है 'अरट्टै', जिसका तमिल में अर्थ है 'गपशप'। यह ऐप उन सभी बुनियादी फीचर्स के साथ आता है जिनकी आप एक मैसेजिंग ऐप से उम्मीद करते हैं - टेक्स्ट मैसेज, वॉयस और वीडियो कॉल, 1000 सदस्यों तक के ग्रुप चैट और मल्टीमीडिया शेयरिंग।
भारत की एप इकोनोमी बहुत तेजी से बढ़ रही है जबकि चीन राजस्व और उपभोग के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बना हुआ है। वहीं अमेरिकन कम्पनियां एप निर्माण के मामले में शायद सबसे ज्यादा इनोवेटिव (नवोन्मेषी) हैं। भारत सबसे ज्यादा प्रति माह एप इंस्टाल करने और उसका प्रयोग करने के मामले में अव्वल है। भारतीय एप परिदृश्य का नेतृत्व टेलीकॉम दिग्गज एयरटेल और जिओ करते हैं, यद्यपि स्ट्रीमिंग कम्पनियाँ जैसे नोवी डिजिटल, जिओ सावन और पेटीएम, फोन पे और फ्लिप्कार्ट जैसी ई-कॉमर्स साइट्स ने अपने आप को वैश्विक परिदृश्य पर भी स्थापित किया है।फोर्टी टू मैटर्स डॉट कॉम के अनुसार गूगल प्ले स्टोर पर कुल अक्टूबर 2025 तक गूगल प्ले स्टोर पर कुल 2,083,249 ऐप्स उपलब्ध हैं, जिनमें भारतीय ऐप्स की संख्या 89,083 बनी हुई है, जो कुल ऐप्स का करीब 4.3% है। कुल ऐप पब्लिशर्स की संख्या 611,857 है, जिनमें 15,541 भारतीय ऐप पब्लिशर्स हैं—यह सभी पब्लिशर्स का करीब 2.5% है।
आंकड़ों के नजरिये से देश में उपभोक्ताओं की उपलब्धता के हिसाब से भारतीय ऐप की संख्या अब भी बहुत कम है।वैश्विक परिदृश्य में आंकड़ों के विश्लेषण से कई रोचक तथ्य सामने आते हैं.फोर्टी टू मैटर्स वेबसाईट के मुताबिक़ प्ले स्टोर पर भारतीय ऐप्स की औसत डाउनलोड संख्या 574,860 है, जबकि प्ले स्टोर पर सभी ऐप्स की औसत डाउनलोड संख्या 492,020 है.यह भी भारतीय ऐप विकासकों के लिए एक सकारात्मक आंकड़ा है. प्ले स्टोर पर उपलब्ध कुल भारतीय ऐप्स की औसत रेटिंग 2.75 है, जबकि प्ले स्टोर पर सभी ऐप्स की औसत रेटिंग लगभग 1.99 है, यानी भारतीय ऐप्स की गुणवत्ता वैश्विक औसत से थोड़ी बेहतर मानी जा सकती है.
किसी भी भारतीय कम्पनी का मोबाइल इतनी ग्लोबल रीच नहीं रखता। भारत चीन के बाद दुनिया में सबसे बड़ा मोबाइल बाजार है, पर कोई भी भारतीय कम्पनी मोबाइल बाजार में अपना स्थान नहीं बना पाई।ऐप बाजार में भारत के पिछड़े होने का एक बड़ा कारण कोडिंग की पढ़ाई देर से शुरू होना भी है .हालाँकि नयी शिक्षा नीति 2020 ने इस अंतर को पाटने की कोशिश की है पर इसका परिणाम साल 2030 के बाद दिखेगा.
ऐसे में 'अरट्टै' वाकई व्हाट्सएप को कितनी कड़ी टक्कर दे पायेगा यह कहना अभी मुश्किल है .जैसे व्हाट्सएप का एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन हर मैसेज, कॉल, फोटो और वीडियो को इतना सुरक्षित बनाता है कि कोई तीसरा खुद व्हाट्सएप इन्हें पढ़ या सुन नहीं सकता। वहीं अरट्टै में यह सुरक्षा सिर्फ वॉयस और वीडियो कॉल तक सीमित है, टेक्स्ट मैसेज के लिए नहीं। जिनके लिए डिजिटल गोपनीयता सबसे ज़रूरी है,उन लोगों का भरोसा 'अरट्टै' को अभी जीतना होगा.दूसरा मैसेजिंग ऐप्स की सबसे बड़ी ताकत होता है उनका यूज़र नेटवर्क। “सभी कोई व्हाट्सएप पर है!” ऐसे में क्यों कोई नया यूज़र उस ऐप पर जाने का जोखिम उठाए, जहाँ उसके दोस्त-परिवार, , रिश्तेदार कोई है ही नहीं? इस नेटवर्क इफेक्ट को तोड़ना किसी भी नए ऐप के लिए पानी पर चलने जैसा है.
करोड़ों भारतीय व्हाट्सएप के डिजाइन और फीचर्स के इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि उन्हें किसी नए प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए राजी करना बहुत मुश्किल काम है। एक बार जो डिजिटल आदतें बन जाती हैं, उनको बदलना बेहद धीमा और जटिल काम है. जैसे कू व हाईक जैसे स्वदेशी ऐप्स को शुरुआती उत्साह, सरकारी समर्थन, और ट्विटर विवादों के चलते खूब डाउनलोड तो मिले, लेकिन टिकाऊ सफलता हासिल नहीं हो सकी. अरट्टै के पास ज़ोहो की तकनीकी क्षमता, भारत केंद्रित सर्विस, और प्रमोटर्स का समर्थन तो है. लेकिन प्रयोगकर्ताओं को प्लेटफॉर्म बदलने के लिए ठोस कारण देना, लोगों की निजता की गारंटी देना , और लगातार नवाचार ही अरट्टै जैसे एप के भविष्य का निर्धारण करेगा.
प्रभात खबर में 13/10/2024 को प्रकाशित
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