अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट भी इस बात पर प्रकाश डालती है कि डिजिटल उपकरणों का उपयोग करने वाले कर्मचारी न केवल अधिक घंटे काम करते हैं, बल्कि अपने काम और जीवन के बीच संघर्ष का अनुभव करते हैं। व्हाट्सएप 'डिजिटल प्रेजेंटिज्म' नाम की इस नई घटना को जन्म देता है जहाँ कर्मचारी दफ्तर में न होने पर भी ऑनलाइन उपलब्ध रहने के लिए मजबूर महसूस करते हैं। यह ईमेल प्रवृत्ति के ठीक विपरीत है जहाँ कर्मचारी को सोचने और जवाब देने के लिए पर्याप्त समय मिलता था। व्हाट्सएप का 'ब्लू टिक' और 'लास्ट सीन' फीचर इस दबाव को और बढ़ा देता है, जिससे एक अलिखित अपेक्षा पैदा होती है कि संदेश देख लिया गया है तो उसका तुरंत जवाब भी दिया जाना चाहिए।
इसके साथ ही वाह्ट्सएप जैसे इंस्टेंट मैसेजिंग प्लेटफॉर्म पर बातचीत में इमोजी, स्टिकर और शब्दों को छोटा करके बोलना आम है। चूंक लिखित चैट में चेहरे के भाव, आवाज का भार और शारीरिक संकेत नहीं मिलते हैं तो पाठक को बहुत कुछ अनुमान लगाना पढ़ता है। एक बॉस द्वारा भेजा गये साधारण अंगूठे का इमोजी के कर्मचारी कई अर्थ निकाल सकता है, जिससे उसे संदेश के मूल को समझने के लिए अतिरिक्त मानसिक ऊर्जा लगती है। एक औपचारिक ईमेल के माध्यम से किये गए अतिरिक्त काम के अनुरोध करना आसान होता है, लेकिन वहीं अनुरोध अगर व्हाट्एप पर एक अनौपचारिक, मैत्रीपूर्ण संदेश के रूप में आता है तो उसे मना करना असभ्य लग सकता है। एटलैसिएन की रिपोर्ट बताती है कि अस्पष्ट ईमेल या चैट की वजह से हर साल कर्मचारी औसतन 40 घंटे बर्बाद कर देते हैं।
हमारा मस्तिष्क एक समय में एक ही कार्य पर गहराई से ध्यान केंद्रित करने के लिए बना है, लेकि व्हाट्सएप हमें लगातार कोड स्विचिंग के लिए मजबूर करता है, एक पल में ऑफिस का कोई महत्वपूर्ण काम वहीं दूसरे पल फैमिली ग्रुप पर व्यक्तिगत चैट। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध से पता चलता है कि निरंतर मल्टीटास्किंग हमारी कार्यशील मेमोरी को कमजोर करती है और अंतत: बर्नआउट की ओऱ ले जाती है। यूँ तो ये घटना वैश्विक है लेकिन भारत जैसे विकासशील देश में सामाजिक आर्थिक कारक इसे कही अधिक गंभीर चुनौती बना देते हैं।
हालांकि अब समय आ गया है जब लोगों और कंपनियों को इसके समाधान की दिशा में सक्रियता से काम करना होगा। कंपनियों को एक विस्तृत कम्यूनिकेश चार्टर या नीति बनाने कि आवश्यकता है जिसमें यह स्पष्ट रूप से परिभाषित हो कि किस संचार के लिए कौन सा प्लेटफॉर्म उपयोग किया जाए। साथ ही अपेक्षित प्रतिक्रिया का समय, टाइम को डिस्कनेक्ट इसकी भी नीतियाँ बनाई जानी आवश्यक है।
प्रभात खबर में 04/12/2025 को प्रकाशित

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