Friday, May 18, 2012

उच्च शिक्षा में ये कैसा प्रयोग

भारत दुनिया की एक तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था मोबाईल ,और फेसबुक प्रयोगकर्ताओं के लिहाज से दुनिया के तीन बड़े देशों में इसका नाम लिया जाता है पर तस्वीर का एक और रुख भी है|उच्च शिक्षा के मामले में भारत को अभी लंबा रास्ता तय करना है जिसमे योग्य शिक्षकों का चुनाव और उनका विकास भी शामिल है पर उससे पहले जरा कुछ आंकड़ों पर भी नज़र डाल ली जाए  दुनिया के 21 विश्वविद्यालयों के समूह यूनिवर्सिटास 21’ ने अपने सर्वे में भारत को ब्रिक्स देशों से भी नीचे 48वें पायदानपर जगह दी है जबकि अमेरिका शीर्ष स्थान पर है।साल 2011 के विश्व के 200 श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों की सालाना सूची में भारत के किसी भीविश्वविद्यलय  को जगह नहीं मिल पायी है| टाइम्स हाइयर एजुकेशन मैगजीन के इस सर्वे में शिखर पर हार्वर्डस्टैनफ़ोर्ड और ऑक्सफ़ोर्ड जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों को रखा गया है|इसमें कोई शक नहीं है कि विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ी है पर गुणवत्ता आधारित शिक्षा और योग्य शिक्षकों की कमी से देश के विश्वविद्यलय और संस्थान जूझ रहे हैं विश्वविद्यलयों में योग्य शिक्षकों के चुनाव के लिए उच्च शिक्षा का नियामक संगठन विश्व विद्यालय अनुदान आयोग (यू जी सी )साल में दो बार देश भर में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट )आयोजित करता है जिसमे चुने गए अभ्यर्थियों को विश्वविद्यालयों में पढाने की पात्रता हासिल हो जाती है इस परीक्षा का उद्देश्य   अभ्यर्थी की विषय पर पकड़विश्लेषण करने की क्षमता तथा तार्किकता का आंकलन होता हैजिसके लिए तीन प्रश्नपत्र होते हैं  जिसमें पहला शैक्षिक अभिरुचि ,दूसरा विषय से सम्बंधित ज्ञान का बहुविकल्पीय प्रश्नपत्र और तीसरा विषय से सम्बन्धित निबंधात्मक प्रश्नपत्र होता है परीक्षा का स्वरुप ऐसा होता है कि यदि कोई छात्र पहले और दूसरे प्रश्न पत्र में निर्धारित अंक नहीं प्राप्त करता तो तीसरे प्रश्न पत्र को नहीं जांचा जाताइस साल विश्व विद्यालय अनुदान आयोग (यू जी सी ) ने एक विचित्र फैसला करते हुए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट ) के सभी प्रश्नपत्रों को बहुविकल्पीय कर दिया हालांकि अभी अंतिम आंकड़े आने बाकी है पर इसका नतीजा यह हुआ कि विश्वविद्यलयों में आवेदनकर्ताओं की बाढ़ आ गयी है आवेदन कर्ताओं की बढ़ती भीड़ के कारण यू जी सी को ऑफ लाइन फॉर्म भरने का भी विकल्प देना पड़ा इन आवेदनकर्ताओं  उम्मीदवार हैं जो बहुविकल्पीय प्रश्नों की आड़ में शिक्षक बनने की योग्यता हासिल करने का सपना देख रहे हैं|उच्च शिक्षा के संस्थान और विश्वविद्यलय शोध और विषय के विकास के लिए जाने जाते हैं ना कि बने बनाये ढर्रे पर लोगों को महज़ साक्षर करना इन्हीं बिंदुओं को ध्यान में रखकर विश्वविद्यलयों को स्वायत्तशासी बनाया गया जिससे वे बाहरी हस्तक्षेप से दूर रहकर दुनिया को नयी दिशा दें| जरा सोचिये व्याकरणकाव्यभाषाैलीअलंकारशास्त्रवक्तृत्वकलासंगीत, , अर्थशास्त्र राजनीति और पत्रकारिता जैसे ना जाने कितने विषयों के शिक्षकों का चयन सिर्फ उनके अर्जित किताबी के आधार पर किया जाए तो किस तरह की गुणवत्ता शिक्षा का लक्ष्य हासिल होगा| भारतीय छात्रों ने अपनी मेधा का लोहा पूरी दुनिया में मनवा चुके हैं अमेरिका के राष्टपति बराक ओबामा सार्वजनिक मंचों से कई बार अपने नागरिकों को इस बारे में खुले मंचों से चेतावनी तक दे चुके हैं।छात्रों की इस मेधा के पीछे इस देश के शिक्षकों का विस्तृत ज्ञान भी है। अब अगर शिक्षक ही बहुविकल्पीय ज्ञान से आऐंगे तो देश से यह यह रूतबा भी छिनते देर नही लगेगी। यूजीसी के इस फैसले केा लेकर शिक्षकों और बुद्धिजीवियों में आक्रोश और चिंता है । तथ्य यह भी है कि इस प्रक्रिया से विषय के कुछ चुनिंदा क्षेत्र को पढने वाले आसानी से  शिक्षक बनेंगे तो विषय को लेकर उनका दष्टिकोण भी ऑबजेक्टिव ही होगा। इसका बुरा असर तैयार हो रही नयी पीढी पर पडेगा। हमारे बच्चे भी सतही ज्ञान के साथ विदेशी बच्चों की भीड में शामिल हो जाएंगे। उनकी अलग पहचान को तोडने का यह षडयंत्र भी हो सकता है।
यहाँ ध्यान देने कि बात ये है कि अब तक होने वाले नेट जे आर एफ कि परीक्षा में प्रथम और द्वितीय प्रश्नपत्र बहुविकल्पीय होते थे और तृतीय प्रश्नपत्र व्यख्याक्यात्मक  होता था. इससे परीक्षा के बाद अभ्यर्थी के किताबी ज्ञान के साथ साथ उसके अनुभवातीत एवं व्यावहारिक पक्ष की भी  पड़ताल होती थी. यह प्रणाली कम से कम शोध छात्रों के लिए काफी कारगर थी. अगर आगे बढ़ने के लिए किसी नयी प्रणाली का विकास करना ही था तो इसी प्रक्रिया को और समयानुकूल और सटीक बनाने कि आवश्यकता थी. न कि अभ्यर्थियों का बोझ कम करने नाम पर प्रक्रिया में गुणवत्ता के साथ समझौता किया जाये. दबाव कम करने के लिए गुणवत्ता से समझौता और तकनीक का अत्यधिक इस्तेमाल काम में सुगमता तो लाता है, परन्तु इसके दूरगामी परिणाम घातक होते हैं. फिर भारत में तो शोध कि गुणवत्ता को लेकर काफी समय से हंगामा उठता रहा है. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि नयी प्रणाली मूल्यांकन में पारदर्शिता और तेजी तो लाएगी लेकिन छात्र कसौटी पर कितना कसे जा सकते हैं विचारणीय है. देखना होगा कि प्रयोग सफल होगा या प्रक्रिया का  चक्का उल्टा घूमेगा और नसीहत देगा पुरानी  प्रक्रिया की  ओर लौटने की......
अमर उजाला कॉम्पेक्ट में 17/05/12 को प्रकाशित 

Wednesday, April 25, 2012

घर के बारे में कुछ भावुक बातें

 डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में प्रकाशित मेरा लेख 25/04/12

Monday, April 23, 2012

खतरे में है पानी

पानी का कोई रंग नहीं होता पर बगैर पानी के जीवन के सारे रंग बेकार हैं .जीवन की उत्त्पति पानी में ही हुई पर अब पानी खतरे में है|पानी के खतरे में होने का मतलब जीवन खतरे में है| लेकिन हम अभी तक पानी का सम्मान नहीं करना सीख पाए पानी और धर्म का करीबी रिश्ता हमेशा से रहा है हर  मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, और चर्च में हमेशा एक जलस्रोत रहता  है। कोई भी धार्मिक स्थल ऐसा नहीं है जहां जल-स्रोत न हो। भारत के विभिन्न आर्थिक-कृषि-पर्यावरणीय-सामाजिक क्षेत्रों ने अपनी-अपनी व्यवस्था विकसित की थीं लेकिन उनके संरक्षण का कोई ठोस उपाय अभी तक नहीं किया गया और रही सही कसर हर समस्या को पश्चिम के नज़रिए से देखने ने पूरे कर दी .हम आधुनिक तो हो रहे हैं पर अपनी विरासत को नहीं सहेज पा रहे हैं .शिक्षा के बढते स्तर से ये उम्मीद की जा रही थी पर ऐसा हो न सका .भारत में पानी की बर्बादी अनियंत्रित है, क्योंकि पानी की निकासी की  यहां कोई नियामक संस्था नहीं है। उदाहरण के लिए भूमि का मालिक अपनी ज़मीन पर पंप के ज़रिए कुंए से बेतहाशा पानी डाल सकता है। ग्रामीण इलाकों में इससे बड़ा अंतर आ सकता है, क्योंकि भारत का 85 फीसदी पानी कृषि में इस्तेमाल होता है, नई दिल्ली के शोध समूह, एनर्जी ऐंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के आंकड़ों के मुताबिक स्थिति कुछ ऐसी है. भारत के जल संसाधन मंत्रालय ने इस साल की शुरूआत में राष्ट्रीय जल नीति पर एक मसौदा प्रस्तुत किया था, जिसमें जल संचालन के लिए राष्ट्रव्यापी वैधानिक ढांचे की जरूरत को समझा गया। कदाचित इसे पानी के इस्तेमाल को सीमित करने के विपरीत राजनैतिक प्रभावों के चलते राज्य सरकारों की चिंता के मद्देनज़र सहमति नहीं मिल पाए।  जल प्रबंधन एक पर्यावरणीय और तकनीकी मुद्दा होने के साथ ही सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दा भी है जो विकास से जुड़ा है ,विकास अपने आप में एक बहु आयामी धारणा है | विकास की आधुनिक अवधारणा में पानी को बिलकुल  नजरअंदाज किया  गया है और सारा जोर उर्जा पर दिया जाता रहा है ।  यूँ तो भले ही दावा यह किया जाता रहा है कि हम दुनिया में सबसे पुरानी सभ्यताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं पर सिविक सेन्स जैसी चीज अभी भी भारतीय समाज में दुर्लभ ही है और रही सही कसर अनियोजित विकास ने पूरे कर दी है |पानी कभी हमारी प्राथमिकता में नहीं रहा और इसका परिणाम भूजल का अनियंत्रित दोहन जिसका परिणाम विकास से बढ़ते अभाव के रूप में सामने आ रहा है.गिरते जल स्तर को उठाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं हुए और जो हुए वो नाकाफी ही रहे|अंधाधुंध औधोगिकीकरण वर्षा के जल को जमीन में जाने से रोक रहा है जिसके परिणाम में बारिश का वो कीमती पानी नालियों में बहकर गन्दा और खराब हो जाता है| बढ़ती जनसँख्या को खाना पहुँचाने के लिए कृषि में रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक इस्तेमाल भूजल की गुणवत्ता को खराब कर रहा है.वाटर एड संस्था के मुताबिक भारत में हर साल तीन करोड़ सत्तहर लाख जलजनित बीमारियों का शिकार होते हैं पन्द्रह लाख बच्चे सिर्फ डायरिया जैसी बीमारी से मौत का शिकार होते हैं जिससे साठ करोड़ डॉलर का अतिरिक्त बोझ हर साल भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ता है|ये आंकड़े उस तस्वीर का एक छोटा हिस्सा भर हैं जो आने वाले सालों में पानी की कमी से बन सकती है |पीने के साफ़ पानी की व्यवस्था को भारतीय संविधान में प्रमुखता दी गयी है| आर्टिकल सैंतालीस कहता है कि राज्य अपने नागरिको को साफ़ पानी की व्यवस्था मुहैया कराये |पानी का स्तर जिस तेजी से गिर रहा है अगर कोई ठोस उपाय न किये गए तो साल २०२० तक भारत पानी की कमी के शिकार देशों में शामिल हो जाएगा और इसका असर जीवन के हर क्षेत्र में दिखेगा| भारत के नीतिनिर्धारकों ने चेतावनी दी है कि अगर देश में पानी की खपत को व्यवस्थित नहीं किया गया, तो आर्थिक वृद्धि अवरुद्ध हो सकती है। तेज़ आर्थिक वृद्धि और शहरीकरण मांग और आपूर्ति के अंतर को ज्यादा व्यापक बना रहे हैं। भारत में दुनिया की सोलह प्रतिशत आबादी रहती है जबकि दुनिया के भूजल श्रोत का मात्र चार प्रतिशत हिस्सा ही भारत के पास है |पानी के मुद्दे पर बात करते समय हमें यह बिलकुल नहीं भूलना चाहिए कि एक नागरिक के रूप में हम सबकी जिम्मेदारी ज्यादा है | इस समय भारत में बोतलबंद पानी का कुल व्यापार 14 अरब 85 करोड़ रूपये का है। यह देश में बिकने वाले कुल बोतलबंद पेय का 15 प्रतिशत है।  दुनिया में बोतलबंद पानी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाले देशों की सूची में भारत 10 वें स्थान पर है। संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से 122 देशों में पानी के स्टैंडर्ड के ऊपर किए गये एक अध्ययन में भारत को 120 वें स्थान पर रखा गया है। यहां एक दिन में प्रति व्यक्ति बोतलबंद का औसत उपयोग 5 लीटर है| जल जागरूकता जैसे मुद्दों पर या तो हम अनजान हैं या वो हमारी प्राथमिकता में नहीं मात्र क़ानून बना देने से इस मुद्दे की समस्या का समाधान संभव नहीं|भारत सरकार का पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय जल जागरूकता के लिए प्रयास कर रहा है पर व्यवहार में कोई खास परिवर्तन लोगों की मानसिकता  में पानी को लेकर नहीं आया है|अपने जीवन में पानी की कमी को महसूस करने के लिए किसी आंकड़े की जरुरत नहीं बस थोड़ा सा पीछे नजर दौडाइए और देखिये दस साल  पहले पानी की उपलब्धता और आज की स्थिति में फर्क आपको साफ़ महसूस होगा,इसलिए भू जल  दोहन को लेकर कानून बनाना जरूरी हो गया है, लेकिन ये  प्रस्तावित कानून सिर्फ सिंचाई और घरेलू उपयोग के लिए पानी निकालने वालों पर लागू होगा, या इसकी परिधि  में औद्योगिक इकाइयां भी आएंगी ये सवाल अनुत्तरित है ?गंगा और यमुना नदियों के सफाई अभियान पर अरबों रुपैये खर्च करने के बाद भी जमीनी स्तर पर हालत जस की तस है जो बताता है कि पानी को लेकर राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव है|सरकारी भवनों में वर्षा जल संचयन की कोई पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।शहरों में पुराने तालाबों की जगह बहु मंजिली इमारतों ने ले ली है जिससे भू जल संचयन की प्राकृतिक व्यवस्था बिगड़ी है और यह अनियोजित विकास का सटीक उदहारण है पर एक समस्या दूसरी अन्य समस्याओं को जन्म दे रही है |गिरते जल स्तर ने हमें इस विषय पर भी दुबारा सोचने को मजबूर किया है कि हम परपरागत कृषि सिंचाई प्रणाली के बारे में सोचें जिससे जल का सही और अधिकतम उपयोग किया जा सके  इसलिए  बेहतर जल नीति के लिए खेती की पद्धति और उद्योगों की तकनीक और उनके प्रबंधन पर भी सोचना होगा।
डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में 23/04/12 को प्रकाशित 

Friday, April 20, 2012

कैसे उसको झेलूं में


यांगिस्तानियों का हिन्दुस्तान , सच यही है भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जहाँ आधी से ज्यादा आबादी युवा है तो जवानी जिंदाबाद पर जवानी जोश की ज्यादा होती है होश की कम बस इतना पढते आपने मान लिया होगा कि मैं कोई नया लेक्चर देने जा रहा हूँ पर वास्तव में ऐसा है नहीं हममें से ज्यादातर लोग जो होश से काम नहीं लेते तुरंत निष्कर्ष निकाल लेते हैं lol  खैर जब बात युवाओं की हो और इंटरनेट की न हो ऐसा असम्भव है वैसे भी इंटरनेट जहाँ होश वालों के लिए दुनिया से जुड़ने आगे बढ़ने की असीम संभावनाएं लाया है वहीं जोश वालों के लिए पोर्न वीडियो और लिटरेचर जैसा खतरा भी . गूगल की रिपोर्ट बताती है कि पोर्नशब्द की खोज का आंकड़ा 2010 से 2012 के बीच दोगुना हो गया है .गूगल ट्रेंड्स 2011 के मुताबिक पोर्न शब्द की खोज करने वाले दुनिया के शीर्ष 10 शहरों में सात भारतीय शहर थे.दिल्ली में किये गए मैक्स हॉस्पिटल के सर्वे से पता चलता है कि 47 प्रतिशत छात्र रोजाना पोर्न के बारे में बात करते हैं.टेक्नोलाजी रोज बदल रही है दुनिया सिमट रही है पर क्या यांगिस्तानी इसके लिए तैयार है बचपने में एक दोहा सुना था धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये फल होय पर आजकल तो हर काम एकदम फास्ट हो रहा है और हम भी काफी जल्दी में हैं और इसका नतीजा देखिये नॅशनल क्राईम ब्यूरो के आंकड़ों के लिहाज से भारत में साइबर अपराधों की सूची में पोर्न सबसे ऊपर है.बच्चे जल्दी बड़े हो रहे हैं मानसिक रूप से वो इतने मेच्योर नहीं होते कि इन सब चीज़ों की गंभीरता को समझ सकें तकनीक की सर्वसुलभता हर चीज को खेल बना रही है और इसका नतीजा एम् एम् एस कांड और वीडियो क्लिप के रूप में सामने आ रहा है.थोडा चिल करते हैं इंटरनेट के इस युग में सेंसरशिप की बात बेमानी है वैसे भी हम क्या देखना और पढ़ना चाहते हैं ये कोई और क्यों बताये ,बात सही भी है लेकिन जब चीजें माउस की एक क्लिक पर मौजूद हों तो थोड़ी सावधानी जरूरी है.आज का यांगिस्तानी ज्यादा एनर्जेटिक और बोल्ड है जरुरत सेल्फ कंट्रोल की है .भारत में सेक्स को एक टैबू माना जाता है उस पर सार्वजनिक रूप से बात करना ,बहस करना अभी भी मुश्किल है.सेक्स एडुकेशन अभी भी बहस का ही मुद्दा है  लेकिन तकनीक ने सब कुछ आसानी से उपलब्ध करा दिया है वो कहावत आपने जरुर  सुनी होगी बन्दर के हाथ में उस्तरा ,अब बन्दर को क्या पता कि उस्तरे का क्या इस्तेमाल करना है तो दिखावे मत जाओ अपनी अक्ल लगाओ जो उम्र सपने देखने और उन्हें पूरा करने की है उस समय का सही और सकारात्मक इस्तेमाल किया जाना चाहिए.पोर्न लिटरेचर हो या वीडियो थोड़ी देर के लिए आपको सुकून दे सकता है पर डूड ये मत भूलना कि वो आपकी सायकी को डिस्टरब भी कर सकता है और फिर कहीं ऐसा न हो कि आप हिंदी फिल्मों के उस डायलोग को याद करें कि यहाँ आने के तो बहुत रास्ते हैं और जाने कि नहीं.एक्सेस इस एवरी थिंग इस बैड पर पोर्न का चस्का कब एडिक्शन बन जाता है ये पता नहीं चलता तो जरुरत खुद की समझदारी को विकसित करने की है न कि सेक्स से सम्बंधित आधी अधूरी जानकारी लेकर अपने व्यक्तित्व को खराब करने की.चलते चलते ये उम्र कार उर गिटार के सपने पूरा करने की है न कि पोर्न को झेलने की .
आई नेक्स्ट में 20/04/12 को प्रकाशित 

Tuesday, March 6, 2012

सटला ता गइला बेटा

            चीज छोटी हो या बड़ी सबका अपना मतलब है अब आप किस्से क्या सीखते हैं ये आपके ऊपर है.ना ना लेक्चर नहीं है मेरा एक ओब्सेर्वेशन है जो आज आप सब से बाटूंगा.बुरी नजर वाला तेरा मुंह काला , कुछ याद आया कहाँ पढ़ा था अच्छा ये सुनकर तो मुझे पूरा यकीन है कि आपको काफी कुछ याद आ जाएगा हम दो हमारे दो जी हाँ सड़क पर गुजरते किसी ट्रक पर आपने जरुर पढ़ा होगा जगह मिलने पर पास दिया जाएगा.बात जरुर सड़क की है पर इसमें कुछ भी सडकछाप नहीं है.हम किस मैसेज को कितना सीरयसली लेते हैं ये हमारे ऊपर है. आज सड़क और ट्रक के बहाने ही सही हम ये महसूस कर पायेंगे कि लाईफ में कितना कुछ हमारे सामने होता रहता है पर हम हैं कि ध्यान ही नहीं देते.इंसान की बनाई  बड़ी जबरदस्त कला कृति हैं ये ट्रक अगर ध्यान से देखें  तो अपने ओके होर्न प्लीज के ट्रक  बहुत ही मानवीय आकार के साथ बनाये जाते रहे है और जो कसर रह जाती थी वह  अपने बॉडी मेकर पूरी  कर देते हैं  ध्यान से देखिये एक चौड़ा  माथा दो आंखें और नाक तो आप को आसानी से दिख जाएंगी हो सकता हो नीचे एक जूता भी लटका हो बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला के साथ.हम दो हमारे दो जैसे ना जाने कितने स्लोगन को लोकप्रिय बनाने में इन ट्रकों का बहुत बड़ा रोल रहा है,कितना कुछ लिखा होता है इन ट्रकों पर हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई भाई जैसे सोशल मैसेज तो कहीं हलके तरह से लिखे गए शेर जो लाईफ की फिलासफी को कितनी आसानी से कम्युनिकेट करते हैं खलिहान में नहीं धानहाड़ में नहीं जान,पत्थरों की जाजमधूप का पैराहन,क्या सूबाक्या निजामकैसा ईमान,कल्लू दे ढाबे पर सबको राम-राम क्या खालिस क्रिएटिविटी है और हर ट्रक अपने क्षेत्र विशेष का प्रतिनिधित्व करता है. जो लोग बहुत तेज गाडियां चलाते हैं उनके लिए आपने जरुर पढ़ा होगा सटला ता गईला बेटा यह उत्तरप्रदेश के पूर्वी हिस्से में बोली जाने वाली भाषा में है जिसका मतलब अगर आप चलती  गाड़ी के ज्यादा पास आयेंगे तो मौत निश्चित है.बात को आगे बढ़ाते हैं हम सब के अंदर हर चीज़ पर अपनी छाप छोड़ने  की बड़ी चाह होती है कि मैं यहाँ रहता हूँ मैं यहाँ आया था ,जैसे कि चाँद पर गए झंडा गाड़ आये हिमालय पर  गये वहां भी झंडा गाड़ आये और जो झंडा नहीं गाड़ पाते वो कुछ और करते है जैसे कि ट्रक (वैसे ट्रक ड्राईवर का घर ही होता है)  पर अपने अरमान निकाल लेते हैं चूँकि ट्रक ड्राईवर काफी समय तक अपने घरों से दूर रहते हैं इस लिये वह अपने  ट्रक को ही अपना साथी और घर  के रूप में देखने लगते हैंट्रक पर लिखे जुमले कुछ कुछ ड्राईवर के एट्टीट्यूड,आइडोलाजी और उसके पेन को भी दिखाते हैं. ये जुमले किसी के द्वारा लिखवाये जाएँ पर ये सोशल मेसैज पहियों पर घूमते पूरे देश में लोगों को जागरूक करते हैं. पेट्रोल की बचत की सन्देश देता ये नारा बड़ा महान है ये ईराक का पानी थोडा कम पी रानी इनको लिखने वाले कोई बड़े साहित्यकार ना हों पर जिन लोगों को जागरूक करने की जरुरत है उनकी सोच के हिसाब से उन्हीं के बीच के किसी शख्स द्वारा लिखा गया है जो ना तो क्रेडिट की डीमांड करते हैं ना रोयल्टी की बस गुमनाम बने रहते हुए चुपचाप अपने काम में लगे हैं भले ही एस एम् एस लैंगुएज को ईजाद करने का श्रेय इन्हीं ट्रक ड्राइवर को दिया जाना चाहिए आपको भरोसा ना हो रहा तो जरा इस पर नज़र डालें 13 मेरा 7 अब आप इसे क्या पढेंगे तेरा मेरा साथ हैं ना मजेदार तो ट्रक के इस फलसफे को उन्हीं के तरीके से समाप्त करता हूँ फिर मिलेंगे
 आई नेक्स्ट में 06/03/12 को प्रकाशित 

Thursday, March 1, 2012

एस एम् एस की विदाई से उपजती संभावनाएं

अभी कुछ समय पहले रक् वह युवा वर्ग में परस्पर संपर्क का सबसे लोकप्रिय साधन था .सड़क पर ,ट्रेन या बस में रेस्तरां में यहाँ तक कि घर में हर जगह ऐसे लोग दिख जाते थे जिनकी उँगलियाँ अपने मोबाईल फोन के की बोर्ड पर तेजी से घूम रही होतीं थीं .मोबाईल फोन के जरिये भेजे जाने वाले संक्षिप्त सन्देश यानि एस एम् एस के कारोबार को बढाने के लिए नेटवर्क कम्पनियाँ लगातार नित नए प्लान पेश कर रही थीं लेकिन काफी समय तक बढ़ता यह कारोबार अब ढलान पर है ..ओवम नाम की  संस्था के  अनुसार सोशल मैसेजिंग एप्लीकेशन की संख्या बढ़ने की वजह से मोबाइलों के जरिए होने वाले एसएमएस की संख्या में भारी कमी आई है.इसकी वजह से बीते साल  मोबाइल नेटवर्क कंपनियों को 13.9 अरब डॉलर ( लगभग छ सौ पच्चासी  अरब रुपए) का नुकसान हुआ है. ओवम ने दुनिया भर में स्मार्टफ़ोन के जरिए उपयोग में लाए जाने वाले विभिन्न सोशल मैसेजिंग एप्लीकेशन का अध्ययन किया. सोशल मैसेजिंग एप्लीकेशन सामान्यतः महंगे एसएमएस के स्थान पर फोन के जरिए मिलने वाली इंटरनेट सुविधा का उपयोग करते हैं.यह इंटरनेट की बढ़ती शक्ति को दिखा रहा है जो यह बताता है कि इंटरनेट किस तरह भविष्य के नए संचार साधनों में सबसे अग्रणी भूमिका निभाने वाला है.इसके व्यवसायिक पहलू भी हैं.फेसबुक अपने आई पी ओ के  शेयर विवरण पत्र (प्रोस्पेक्टस) में बताता  है,कि  ये सोशल नेटवर्किंग साइट अपने उपयोगकर्ता (यूज़र) आधार को भारत में बढ़ाने का इरादा रखती है. ऐसा मोबाइल एप्स समेत अपने उत्पादों में इज़ाफे” के माध्यम से किया जाएगा.विश्व में मोबाईल संचार का विस्तार बहुत तेजी से हुआ है.कंप्यूटर नेटवर्किंग उपकरण में अग्रणी  कंपनी सिस्को ने दुनिया में मोबाइल ट्रैफिक पर शोध के बाद पाया है कि इस वर्ष मोबाइल फ़ोन की संख्या दुनिया की आबादी से अधिक हो जाएगी.सिस्को के अनुसार वर्ष 2016 में दुनिया भर में दस अरब मोबाइल फ़ोन काम कर रहे होंगे.इसमें कोई शक नहीं मानव सभ्यता के इतिहास को बदलने में सबसे बड़ा योगदान आग और पहिये के आविष्कार ने दिया लेकिन इन्टरनेट की अवधारणा ने इस सभ्यता का नक्शा हमेशा के लिए बदल दिया. भारत में मोबाईल फोन ग्राहक मोबाईल इन्टरनेट प्रयोगकर्ताओं के मुकाबले बहुत ज्यादा हैं. पूरी दुनिया में इस्तेमाल किये  जा रहे मोबाइल नेटवर्क में सोशल मैसेजिंग की भूमिका अभी  सीमित है पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तकनीक का इस्तेमाल  संक्रामक रोग की तरह फैलता है और यहाँ एक मौन इन्टरनेट क्रांति आकार ले रही है.तेजी से बढ़ती मोबाईल धारकों की संख्या भविष्य के मोबाईल इन्टरनेट प्रयोगकर्ताओं को तैयार कर रही है. मोबाईल इन्टरनेट इस्तेमाल करने वाली कुल आबादी का पचहत्तर प्रतिशत हिस्सा बीस से उनतीस वर्ष के युवा वर्ग से आता है इसमें खास बात यह है कि यह युवा वर्ग सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर सबसे ज्यादा सक्रिय है .सोशल नेटवर्किंग साईट्स लगातार ऐसे एप्स बना रही हैं जो मोबाईल के लिए मुफीद हो और संदेशों के आदान प्रदान में लागत कम आये जिसका सीधा असर एस एम् एस से होने वाली कम आय पर पढ़ रहा है रही सही कसर इन्टरनेट पर सैकड़ों की संख्या में उन वेबसाईट ने पूरी कर दी है जो मुफ्त में एस एम् एस भेजने का विकल्प उपभोक्ताओं को देती हैं इस सबमें अच्छी बात यही है कि एस एम् एस की विदाई कोई बुरी खबर नहीं है ,बल्कि यह तकनीक की तरक्की के लोकप्रिय होते जाने की कहानी है .
दैनिक हिन्दुस्तान में 29/02/12 को प्रकाशित 

Thursday, February 23, 2012

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All i want is every thing
जी हाँ बस इतना सा ही ख्वाब है उसका  पर ये महज़ ख्वाब ना बन कर रह जाए इस के लिए एफर्ट करना जरूरी है .मुझे पताहै भाषण सुनने का आपको शौक नहीं है और इस सीख को सुनते सुनते आपके कान पक गए हैं मैं तो बस अपना अनुभव आपसे शेयर कर रहा हूँ कि आम के आम गुठलियों के दाम महज़ कहावत नहीं बल्कि रीयल्टी है.चिलैक्स ड्यूड समझाता हूँ.क्या है जो मिसिंग मिसिंग थोड़ी मस्ती दैट इस दाथिंग बोले तो बिलकुल सही इन्टरनेट अभी तक हम सबके लिए इन्टरनेट का मतलब था सोशल नेटवर्किंग साईट्स ,सर्फिंग टाईम पास ,चैटिंग और फोटो /वीडियो शेयरिंग ही था पर अब इसके थोडा आगे सोचा जाए और इस मस्ती को अपने जीवन से जोड़ दिया जाए  बोले  तो एक दम रापचिक देखिये वो जमाना तो अब रहा नहीं जब बुजुर्ग फरमाते थे कि अपने पैरों पर खड़े होकर दिखलाओ और उनके दिखाए रास्ते पर लोग चल पड़ते थे. अपना सी वी लेकर नौकरी की तलाश में पर अब तो बस अपना रेज्युमे पोस्ट करना होता है नौकरी.कॉम या मॉनस्टर.कॉम जैसी वेबसाइटों पर लेकिन दुनिया अब और आगे निकल चुकी है ज्यादातर भर्ती करने वाले और एचआर एक्सीक्यूटिव इंटरनेट पर कैन्डीडेट  की सक्रियता को जांचने के लिए ब्लॉग्स और सोशल मीडिया अकाउंट्स पर नज़र रख रहे हैंयह जानने के लिए क्या कैन्डीडेट  जॉब प्रोफाइल के लायक है यानि आपका फेसबुक प्रोफाईल या ट्विटर अकाउंट सिर्फ यारों से मिलने  और बहस करने की जगह भर  नहीं रहा इन सब के थ्रू आप अपने ख्वाब को रीयल्टी में कन्वर्ट कर सकते हैं.आइये समझते हैं कैसे?अक्सर लोग अपना ई मेल या फेसबुक अकाउंट बना कर भूल जाते हैं यह एक बड़ी गलती है नौकरियों की वेबसाईट पर अपना रेज्युमे अपलोड कर उन पर ध्यान ना देना. आपने एक कहावत तो सुनी होगी आउट ऑफ साईट आउट ऑफ माइंड तो वेब की इस वर्चुअल दुनिया में अगर आप एक्टिव नहीं रहेंगे तो बहुत जल्दी भूला दिए जायेंगे लोगों की नज़र में रहने के लिए प्रयास करना होगा ऐसा करने के लिए बस इस बात का ख्याल रखना है कि आपका ब्लॉग ट्विटर और फेसबुक वाल अप टू डेट रहे बात से ही बात निकलती है जिस क्षेत्र में आपकी रूचि हो ऐसे फोरम और ऑन लाइन ग्रुप्स का हिस्सा बनकर बात को आगे बढ़ाया जा सकता है.आप जितने ज्यादा एक्टिव  रहेंगे आपके नोटिस किए जाने की संभावनाएं उतनी ही ज्यादा होगीं,पर ध्यान रहे कुछ भी लिखने से पहले एकबार जरुर सोच लें कि आप क्या लिख रहे हैं. लोगों की दिलचस्पी बनाये रखने के लिए लिखा जाने वाला कंटेंट आपके काम ,सोच और क्षेत्र से जुड़ी नवीनतम घटनाओं का मिश्रण होना चाहिए.बी सेलेक्टिव आप किस्से जुड़ते हैं ये आपके प्रोफेशनल ब्रांड को बनाता है यूथ  के लिए नेटवर्किंग का ये रूल जानना  बहुत जरूरी है आपके संपर्कों की गुणवत्तासंपर्कों की संख्या से ज्यादा महत्व रखती है और सबसे महत्वपूर्ण Be Cautious  अगर आपने अपनी प्रोफाईल सेटिंग को गोपनीय नहीं बनाया तो सोशल मीडिया में आपकी हर एक सूचना पर बहुत से लोगों की नज़र होगी. .दूसरे के विचारों का सम्मान कीजिये आपके विचारों को खुद ब खुद सम्मान मिलने लग जाएगा इंटरनेट के इस ग्लोबल वर्ल्ड में अपनी स्किल्स से लोगों को परिचित कराइए और देखिये कितने अवसर आपका इन्तिज़ार कर रहे हैं तो इन्तजार किस बात का है अगर आप वर्चुअल स्पेस का हिस्सा नहीं है तो बन जाइए और यूँ ही कभी कोई अकाउंट बना लिया है तो उसपर समय बिताइए और फिर देखिये बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी.
आईनेक्स्ट में 23/02/12 को प्रकाशित 

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