Friday, January 9, 2009
युवा युवा और युवा
युवा शब्द सुनते ही हमारे मानस पटल पर एक ऐसी तस्वीर उभर कर सामने आती है जो उत्साह, दृढ़ संकल्प व कुछ कर गुजरने की चाह से परिपूर्ण होती है। स्वामी विवेकानन्द ने भी कहा है युवा वह है जिसमें उत्साह हो, कर्मठता हो, जो मिट जाए पर झुके नहीं, जो जिन्दगी को नई दिशाओं, नए आयामों तक ले जाए, जिसमें परिवर्तन करने की तीव्र आकांक्षा हो।
राष्ट्र, जितना व्यापक शब्द है, उससे भी अधिक व्यापक है यह सवाल कि राष्ट्र कौन बनाता है ? नेता, सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, मजदूर, वरिष्ठ नागरिक, साधारण नागरिक.... आखिर कौन ? शायद ये सब मिलकर देश बनाते होंगे... लेकिन फ़िर भी एक और प्रश्न है कि इनमें से सर्वाधिक भागीदारी किसकी ? तब तत्काल दिमाग में विचार आता है कि इनमें से कोई नहीं, बल्कि वह समूह जिसकी देश में सबसे ज्यादा भागीदारी... जी हाँ... आप सही समझे.. बात हो रही है युवाओं की... देश बनाने की जिम्मेदारी सर्वाधिक युवाओं पर है और वे बनाते भी हैं, अच्छा या बुरा, यह तो वक्त की बात होती है । इसलिये जहाँ भारत के लिये खुशी की बात यह है कि हमारी जनसंख्या का पचास प्रतिशत से अधिक हिस्सा पच्चीस से चालीस वर्ष आयु वर्ग का है.. जिसे हम "युवा" कह सकते हैं, जो वर्ग सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक सभी रूपों में सर्वाधिक सक्रिय रहता है, रहना चाहिये भी... क्योंकि यह तो उम्र का तकाजा है. हमारे देश में युवाओं की आबादी सबसे ज्यादा है। युवा ऊर्जा के प्रतीक होते हैं। इस ऊर्जा के सार्थक उपयोग से देश का बहुमुखी विकास हो सकता है। वहीं उनका गलत इस्तेमाल किये जाने की संभावना भी बनी रहती है। नये उमर के लोगों के लिये सही-गलत की पहचान के खतरे हमेशा रहते हैं।
प्रख्यात शायर वसीम बरेलवी इस समस्या के बारे में कहते हैं:-
नयी उम्रों की खुदमुख्तारियों को कौन समझाये,कहां से बच के चलना है कहां जाना जरूरी है।
लेकिन फ़िर भी आज का युवा समझदार है आज जिंदगी का स्वरूप बदल गया है। इस हाईटेक जमाने में, जहां पल भर में हर खबर विश्व के हर कोने में पहुंच जाती है, कुछ वैसी ही गति युवाओं की भी है। आज की युवा पीढी आत्मविश्वास भरपूर है। वह अनुशासित और वक्त की पाबंद है, तभी तो वह किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पूरे जोशोखरोश से प्रयासरत रहती है। आज बहुत कम युवाओं में भाग्य के भरोसे रहने का स्वभाव पाया जाता है। आज का युवा वर्ग अपनी तर्कशक्ति से किसी भी विषय वस्तु को परखने के बाद ही उसे स्वीकारता है।
बीते कुछ सालों के राष्ट्रीय परिदृश्य पर नज़र डालें तो आसानी से यह बात समझ आ जाती है की भारतीय युवा शक्ति सार्थकता के पथ पर अग्रसर है की नहीं। चाहे ओलम्पिक में स्वर्ण जीतने की 'अभिनव' शुरुआत हो या शह और मात से मिला विश्वविजय का 'आनंद'। चाहे मुष्टि प्रहारों से हासिल 'बिजय' हो या फौलादी बाजुओं की 'सुशील' जीत। हरी गेंदों पर करा प्रहार कर 'सनसनी' बनी सानिया हो या अपनी एकादश के साथ जग जीतने वाले 'महेंद्र' , हर कहीं बही एक ही हवा..युवा युवा युवा...। न सिर्फ़ खेलों में बल्कि राजनीति में भी युवाओं ने दर्शा दिया है की वे 'नवीन' विचारधारा के पोषक हैं अपनी महात्वाकांक्षी युवा आबादी के जरिए भारत उत्पादकता के बेहतर स्तर प्राप्त कर सकता है।
आज देश जिन विषम व नाजुक परिस्थितियों से गुजर रहा है, ऐसे में सभी युवाओं का यह कर्तव्य बनता है कि देश के गौरवमयी इतिहास की रक्षा की जाए तथा युवा शक्ति का केन्द्रीयकरण करते हुए समाज की भलाई के लिए उनका सदुपयोग किया जाए। वहीं युवाओं को अपने भीतर छिपी रचनात्मक शक्ति को यथार्थता के धरातल पर इस तरह परोसना चाहिए जो पथ से भटके लोगों के लिए भी संजीवनी बूटी का कार्य कर सके।
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6 comments:
अच्छा लिखा है आपने । देश के मौजूदा हालात को बयान करते हैं आपके शब्द ।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-आत्मविश्वास के सहारे जीतें जिंदगी की जंग-समय हो पढें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
hey sir....
very correctly written sir about the youth..and being a part of this we will try our level best to do as much as we can for the betterment of the society..n will never forget our responsibilities..
hello sir,
today i come to kno k raat kya hoti hai u r right 'raat ko subah ke intezar me nahi raat ko raat jeene me katna chahiye'
its very beautiful article!
what next in i-text?
Jai Hind....guruji aap ne bilkul sahi likha hai..
Yuva ka ulta hota hai vayau yani hava jintni teji umag, sitatla, isme hoti or kahi nai hoti hai or ager jid pe a jaye to tehas nehas kar dalti hait tbhi to kaha bhi jata hai ki america baccho ke liye ,japan bujurgo ke liye or bharat nojavano ke jaana jata hai
Nice article.
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