Tuesday, November 15, 2011

एक मुलाक़ात अखिलेन्द्र मिश्र के साथ


बात से बात निकलती है अखिलेन्द्र जी का निराला अंदाज़
अखिलेन्द्र  मिश्र नहीं पहचान पायेंगे पर जब मैं आपको यक्कू की याद दिलाऊंगा तब आपको एहसास होगा ओह तो ये हैं .........जी हाँ साल बीतते रहे दुनिया बदलती रही और अखिलेन्द्र जी हर नए पात्र को जीवन देते रहे ,उन्हें जीते रहे और हमें देते रहे एक से बढ़कर एक यादगार प्रस्तुतियाँ टीवी पर मेरा इनसे परिचय यक्कू से हुआ किशोरावस्था के दिन थे चन्द्रकांता पहले ही पढ़  रक्खी थी पर क्रूर सिंह ऐयार का ऐसा रूप जब टीवी पर देखा तो बस वाह वाह ही निकला ,बिना किसी सम्बन्ध के बस उनसे एक रिश्ता बन गया .दिन पर दिन बीतते रहे अखिलेन्द्र जी फिल्मों में आगे बढते रहे और मेरा जीवन भी सरकता रहा .सरफ़रोश ,लगान ,दा लीजेंड ऑफ भगत सिंह ,गंगा जल , अपहरण ,दीवार ,रेडी , जैसी फिल्मों में वो अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज करते रहे ,ये तो कुछ ऐसी फ़िल्में जिन्हें दर्शकों ने सराहा पर ऐसी भी बहुत सी फ़िल्में आयीं जिन्हें व्यवासायिक रूप से भले ही प्रसिद्धि न मिली हों पर आपके निभाए किरदारों को दर्शकों का प्यार जरुर मिला .
खैर आइये लौटते हैं वर्तमान में मिश्रा जी से  मेरा परिचय हमारे एक कॉमन मित्र के जरिये हुआ बात उन्हें पत्रकारिता विभाग में लाने की थी पर ऐसा हो न सका अखिलेन्द्र जी को कोटिशः धन्यवाद वो तैयार भी थे (वो क्यों नहीं आ पाए इस विषय पर एक किताब लिखी जा सकती है अत; इस विषय को यहीं विराम दिया जाए ) .संयोग इसी को कहते हैं वो दो नवंबर को लखनऊ में अपनी एक फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में  आ रहे थे पर नियति का खेल देखिये मैं कुछ आवश्यक कारणों से सात नवंबर तक लखनऊ से बाहर था .लखनऊ लौट कर मैंने उनको हिचकते हुए फोन लगाया ,फोन नहीं उठा थोड़ी देर बाद मेरा फोन बज उठा अखिलेन्द्र जी फोन कर रहे थे मैंने कुशल क्षेम पूछी तो ऐसा कहीं से नहीं लगा कि मैं किसी अभिनेता से बात कर रहा हूँ ऐसा लगा जैसा कोई पुराना दोस्त बेलौस अंदाज में बतियाता है. उनकी बातों में वही रवानी थी .शाम को शूटिंग के बाद यूँ ही लखनऊ भ्रमण पर निकल  जाया करते थे मंदिरों के दर्शन करते , न किसी स्टारडम का दिखावा न आसमान से उतरे हुए अभिनेता बनने का ढोंग , तो मुलाक़ात का वक्त तय हो गया दिन के तीन बजे मुझे उनके होटल पहुंचना था वो होटल में मेरी राह तक रहे थे .मैं वक्त पर पहुँच गया दरवाजा उन्होंने खोला पर कमरे में घुसते ही जो दृश्य मैंने देखा उसकी कल्पना मैंने नहीं की थी कमरे में रामायण उसके चारों ओर मंदिरों के प्रसाद टीका फूल मालाएं (हालाँकि मैंने इसका जिक्र उनसे नहीं किया ).बातचीत का सिलसिला फिल्मों से शुरू होकर उनके निजी जीवन तक जा पहुंचा .
दस भाई बहनों के परिवार में सबसे छोटी संतान जिनको दुर्घटना वश गाँव के एक नाटक में अभिनय करने का मौका मिल गया (नाटक का एक पात्र किन्हीं कारणों से रिहर्सल में हिस्सा नहीं ले पा रहा था ) और उस नाटक ने उनके जीवन का भविष्य तय कर दिया और सिनेमा को एक दैदीप्यमान नक्षत्र मिल गया उन्होंने औपचारिक रूप से अभिनय नहीं सीखा बस गलतियाँ करते रहे और सीखते रहे सीखना जैसे उनके जीवन का मूलमंत्र बन गया. बातचीत के दौरान चाय नाश्ते का दौर चलता रहा और वे होटल के स्टाफ के साथ उसी विन्रमता से पेश आ रहे थे जैसे कि हम लोगों के साथ .एक चीज़ जो मैंने गौर की कि वो एक अच्छे वक्ता के साथ एक अच्छे श्रोता भी निकले किसी तरह की कोई उकताहट नहीं, न ही व्यर्थ में व्यस्तता का ढोंग विषय बदलते रहे और बात आगे बढ़ती रही जुगाड तकनीक से किस तरह उन्होंने गाँव के नाटक में पेट्रोमैक्स का प्रयोग एक प्रोजेक्टर के रूप में कर दिया जिससे नाटक की शुरुवात में पात्र परिचय में लोगों को फिल्म देखने का आभास लगे और ये प्रयोगधर्मिता बाद में उनके अनेक किरदारों में देखने को मिली .उन्होंने बड़े स्पष्ट लहजे में कहाँ अभिनय उनका पेशा नहीं है .अभिनय उनका जुनून है .हमारे साथ आये कुछ पत्रकार मित्रों ने उनको घेरने की कोशिश की लेकिन वे किसी भी मुद्दे पर पक्ष या विपक्ष बने बगैर बेबाकी से अपनी बात कहते रहे .समय बीतता जा रहा था और बातें खत्म नहीं हो रही थीं मेरे लाख मना करने के बावजूद वे हम लोगों को छोड़ने नीचे उतरे वहाँ सुरक्षा गार्डों ने उन्हें घेर लिया और अपने साथ फोटो खिंचवाने की जिद करने लगे गार्ड का कैमरा फोटो खींचने में बहुत वक्त ले रहा था पर अखिलेन्द्र जी का देशी अंदाज़ वहां भी दिख रहा था उन्होंने न सबके साथ फोटो खिंचवाई बल्कि उनको ये भी बताया कि किस तरह फोटो अच्छी आ सकती है .मैं उनसे एक वायदा लेकर निकाल पड़ा था कि अब जब भी वो लखनऊ आयेंगे एक शाम हमारे साथ बिताएंगे वो तो लखनऊ से जा चुके हैं पर उनके साथ बिताए हुए पल हमेशा के लिए दिल के किसी कोने में कैद होकर रह गए हैं.

3 comments:

Rohit Misra said...

मुकुल तुम्हारी इस blogpost को पढ़ कर लगा की मै भी तुम्हारे माध्यम से क्रूर सिंह अय्यार से मिल लिया. तुम्हे कोटि कोटि साधुवाद.

dil ki kalam se said...

aap ke blog ko padkar aisa lagta hai ki kabhi humari bhi mulakat aise hi staro se hogi.jinse hume kuch na kuch sikhne ko mile ga. dhanyawad sir aap ke jariye humne kuch akhilend mishra ke bare me jana. khus nasib hote hai woh jinhe ache guru milte hai aap jaise guru hume milte rahe toh hume jindgi ki aslil milti rahegi.

आग़ाज़.....नयी कलम से... said...

kya baat hai sir.. rohit sir ne meri baat to keh hi di... such kuch der ke liye usi hotel ke room mein Yakku ji ke sath ho liye... thanks sir....

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