जिन्दगी के किसी न किसी मोड़ पर हम कन्फ्यूजन का शिकार जरुर होते हैं.कभी रिश्तों में कभी करियर में तो कभी अपनी लाईफ में अक्सर ऐसा होता है और हमें कुछ समझ में नहीं आता कि किया क्या जाए.करियर में आपका इंटरेस्ट तो टीचिंग में है पर पेरेंट्स चाहते हैं कि आप रेडियो में अपना करियर बनायें.शादी अपनी मर्जी से करना चाहते हैं पर पेरेंट्स को परेशानी होगी .चैटिंग से पढ़ाई में डिस्टर्बेंस होता है पर चैटिंग किये बिना हम रह भी नहीं पाते,वगैरह वगैरह वैसे आजकल स्टेटस अपडेट करने में भी कन्फ्यूजन हो जाता है,क्यूँ होता है न आपके साथ भी, जैसे जैसे जिंदगी आगे बढ़ती है वैसे हमारे कन्फ्यूजन का दायरा भी बढ़ता जाता है.
बचपने में टॉफी खाई जाए या चॉकलेट तो टीनएज में कौन सा कपडा पहना जाए और फिर जवानी में रिश्ते से लेकर करियर तक न जाने कितने सवाल रोज परेशान करते हैं.क्या करूँ क्या न करूँ है कैसी मुश्किल है भाई.फेसबुक पर भी जब आपको कुछ नहीं समझ आता तो आप भी हम्मम्मम्म कर के रह जाते हैं.ये हम्मम्मम्म का मामला वाकई बड़ा कन्फयूजिंग है,इसका कोई न कोई सल्यूशन तो होना चाहिए अब कन्फ्यूजन के सल्यूशन की तलाश में अगर किसी से सलाह मांगेंगे और उस पर अमल नहीं करेंगे तो सल्यूशन कैसे निकलेगा.अब ऐसा होता ही क्यूँ है.चलिए इस कन्फ्यूजन को दूर ही कर दिया जाए.कन्फ्यूजन अगर है तो उससे निपटने के दो रास्ते हैं पहला किसी की राय ले ली जाए पर अक्सर होता है कि लोग इतने लोगों से राय ले लेते हैं कि कन्फ्यूजन घटने की बजाय और बढ़ जाता है.ज्यादा लोगों से राय लेने का मतलब ये भी है कि आप जिससे सलाह ले रहे हैं उस पर आपको पूरा भरोसा नहीं है.जब भरोसा नहीं है तो सलाह लेने का क्या फायदा और अगर सलाह ले रहे हैं तो उसे मानना चाहिए.बार बार सलाह लेकर अगर आप मानेंगे नहीं तो कोई भी आपको सही सलाह नहीं देगा क्यूंकि उसे पता है कि आप किसी और के पास इस मुद्दे पर राय लेने जायेंगे.दूसरा तरीका है शांत दिमाग से उस समस्या के बारे में सोचा जाए जिसमें आपको कन्फ्यूजन है फिर अपनी लिमिटेशन को ध्यान में रखते हुए अपना आंकलन किया जाए और तब कोई निर्णय लिया जाए पर इसके लिए पहले आपको अपने आप पर पूरा भरोसा होना चाहिए क्यूंकि अपने निर्णय के लिए आप खुद जिम्मेदार होंगे वैसे जिन्दगी में फेसबुक स्टेटस अपडेट की तरह एडिट का कोई ऑप्शन नहीं होता जो बीत जाता है वो बीत ही जाता है.जब भी कभी कोई कन्फ्यूजन हो तो उससे आप ही अपने आप को बाहर निकाल सकते हैं चाहे किसी की सलाह लेकर या अपने आप पर भरोसा रखकर.
समझे क्या तो मैंने तो आपका कन्फ्यूजन दूर कर दिया है पर मैं अभी तक कन्फ्यूज्ड हूँ कि अपने उस दोस्त से फिर से दोस्ती करूँ या न करूँ तो आप क्या कहते हैं वैसे जो आप कहेंगे उसे मैं मानूंगा क्यूंकि मैं आप पर भरोसा करता हूँ .
आईनेक्स्ट में 26/11/13 को प्रकाशित
1 comment:
डाक्टर साहब आपने पूछा है कि," उस दोस्त से फिर से दोस्ती करूँ या नहीं" . मेरा मानना है कि दोस्त तो दोस्त ही है, फिर से दोस्ती करने कि क्या आवश्यकता। हाँ अगर बोलचाल बंद है तो फिर से शुरू कर दीजिये। आप जैसे समझदार दोस्त किस्मत से मिलते हैं।
Post a Comment