पिछले कुछ वर्षों में देश में होटलों की मांग में तेज़ी से वृद्धि हुई है। पर्यटन उद्योग का निरंतर विकास एवं विदेशी मुल्कों के साथ तेज़ी से बढ़ता व्यापार इस बढ़ती मांग के प्रमुख कारक हैं। एचवीएस हॉस्पिटेलिटी कंसल्टेंसी के मुताबिक अगले पांच साल में भारतीय होटलों में कमरों की संख्या 143 फीसदी बढ़ जाएगी और डेढ़ लाख कमरे बढ़ जायेंगे| इसका अर्थ यह है कि पर्यटकों की बढ़ती संख्या का दबाव हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर और बढेगा | तथ्य यह भी है कि पर्यटकों कि बढ़ती संख्या हमारे देश में रोजगार के नए अवसर पैदा करेगी, सकल घरेलू उत्पाद में इजाफा होगा और बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जित होगी लेकिन यदि बढ़ते पर्यटन से जुड़े पर्यावरणीय मुद्दों की अनदेखी की गयी तो इसके घातक परिणाम हो सकते हैं। विकसित देशों ने पर्यटन से जुड़े पर्यावरणीय मुद्दों को गंभीरता से लिया है। भारत जैसे देश में जहां पहले से ही पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता काफी कम है, वहां स्थिति ज्यादा खतरनाक हो सकती है । बढ़ते पर्यटन के साथ ही आवश्यकता होगी अधिक ऊर्जा, अधिक पानी, पर्याप्त सफाई व्यवस्था और बेहतर कूड़ा प्रबंधन की और साथ ही यह समझने कि यदि इन मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो आगे चलकर यह पर्यटन व्यवसाय के लिए हानिकारक सिद्ध होगा। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने नए बनने वाले एवं पहले से ही चालू होटलों के लिए कुछ दिशा-निर्देश बनाए हैं जिसमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट,वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम, जैसे ईको-फ्रेंडली उपायों को अपनाना अपेक्षित है। होटेलों के विभिन्न सितारा श्रेणियों में वर्गीकरण के समय यह उनके द्वारा अपनाए गए ईको-फ्रेंडली उपायों जैसे प्रदूषण नियंत्रण, वातानुकूलन एवं रेफ्रीज़रैशन के लिए नॉन-सीएफसी उपकरणों का प्रयोग, ऊर्जा एवं जल संरक्षण आदि के लिए किए जाने वाले उपायों को भी ध्यान में रखा जाता है। भारतीय पर्यावरण मंत्रालय की वर्ष 2012-13 में प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार सतत पर्यटन के मानदंड तैयार कर लिए गए हैं और इन्हें जल्दी से जल्दी लागू करने की कोशिश की जा रही है। एक बार इनके लागू हो जाने के बाद पर्यटन एवं आतिथ्य व्यवसाय से जुड़े सभी संगठनों के लिए इसे अपनाना अनिवार्य हो जाएगा।
सतत पर्यटन का विकास आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है लेकिन यह विकास पर्यावरण की कीमत पर नहीं होना चाहिए । विकसित देशों में इस ओर काफी ध्यान दिया जा रहा है पर भारत में स्थिति चिंताजनक है। हम नए पर्यटन क्षेत्रों का विकास नहीं कर पा रहे हैं और पुराने पर्यटन क्षेत्र पर जरुरत से ज्यादा बोझ पड़ रहा है जिससे उनका पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ रहा है|उत्तराखंड में आयी तबाही एक ऐसी ही चेतावनी थी,जिसमें नदियों के जलमार्ग को ध्यान में रखे बगैर होटल बना लिए गए थे|होटल व्यवसाय पर्यटन उद्योग की रीढ़ हैं पर इनको अपनी सामजिक जिम्मेदारियों को भी समझना होगा|अंधाधुंध मुनाफाखोरी जहाँ पर्यटन उद्योग को क्षति पहुंचाएगी वहीं क्षेत्रीय पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित होगा जिसकी कीमत सबको चुकानी पड़ेगी आवश्यकता इस बात की है कि अंधाधुंध मुनाफाखोरी केन्द्रित पर्यटन विकास की जगह सतत पर्यटन विकास को ध्यान में रखते हुए नियम बनाए जाएँ और उन्हें सख्ती से लागू किया जाए |
हिंदुस्तान में 21/12/13 को प्रकाशित
2 comments:
ajeeb vidambana hai...kuch paane ke lie kuch khona to padta hi hai..log praakratik dharohar ko halke mein lete hain jiska parinaam uttarakhand jaisi trasdi
आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन भारत का सबसे गरीब मुख्यमंत्री और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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