Saturday, December 21, 2013

पर्यावरण की अनदेखी से न हो पर्यटन विकास

पिछले  कुछ वर्षों में देश में  होटलों की मांग में तेज़ी से वृद्धि हुई है। पर्यटन उद्योग का निरंतर विकास एवं विदेशी मुल्कों के साथ तेज़ी से बढ़ता व्यापार इस बढ़ती मांग के प्रमुख कारक हैं। एचवीएस हॉस्पिटेलिटी कंसल्टेंसी के मुताबिक अगले पांच साल में भारतीय होटलों में कमरों की संख्या 143 फीसदी बढ़ जाएगी और डेढ़ लाख कमरे बढ़ जायेंगेइसका अर्थ यह है कि पर्यटकों की बढ़ती संख्या का दबाव हमारे प्राकृतिक  संसाधनों पर और बढेगा तथ्य यह भी है कि पर्यटकों कि बढ़ती संख्या हमारे देश में रोजगार के नए अवसर पैदा करेगीसकल घरेलू उत्पाद में इजाफा होगा और बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जित होगी लेकिन  यदि बढ़ते पर्यटन से जुड़े पर्यावरणीय मुद्दों की अनदेखी की गयी तो इसके घातक  परिणाम हो सकते हैं। विकसित देशों ने पर्यटन से जुड़े पर्यावरणीय मुद्दों को गंभीरता से लिया  है। भारत जैसे देश में जहां पहले से ही पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता काफी कम हैवहां स्थिति ज्यादा खतरनाक हो सकती है । बढ़ते पर्यटन के साथ ही आवश्यकता होगी अधिक ऊर्जाअधिक पानीपर्याप्त  सफाई व्यवस्था और  बेहतर कूड़ा  प्रबंधन की और साथ ही यह समझने कि यदि इन मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो आगे चलकर यह पर्यटन व्यवसाय के लिए हानिकारक सिद्ध होगा। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने नए बनने वाले एवं पहले से ही चालू होटलों के लिए कुछ दिशा-निर्देश बनाए हैं जिसमें  सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट,वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टमवेस्ट मैनेजमेंट सिस्टमजैसे  ईको-फ्रेंडली उपायों को अपनाना अपेक्षित है।  होटेलों के विभिन्न सितारा श्रेणियों में वर्गीकरण के समय यह उनके द्वारा अपनाए गए ईको-फ्रेंडली उपायों जैसे प्रदूषण नियंत्रणवातानुकूलन एवं रेफ्रीज़रैशन के लिए नॉन-सीएफसी उपकरणों का प्रयोगऊर्जा एवं जल संरक्षण आदि के लिए किए जाने वाले उपायों को भी ध्यान में रखा जाता है। भारतीय पर्यावरण मंत्रालय की वर्ष 2012-13 में प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार सतत पर्यटन के मानदंड तैयार कर लिए गए हैं और इन्हें जल्दी से जल्दी लागू करने की कोशिश की जा रही है। एक बार इनके लागू हो जाने के बाद पर्यटन एवं आतिथ्य व्यवसाय से जुड़े सभी संगठनों के लिए इसे अपनाना अनिवार्य हो जाएगा।
सतत पर्यटन का विकास आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है लेकिन  यह विकास पर्यावरण की कीमत पर नहीं होना चाहिए । विकसित देशों में इस ओर काफी ध्यान दिया जा रहा है पर भारत में स्थिति चिंताजनक है। हम नए पर्यटन क्षेत्रों का विकास नहीं कर पा रहे हैं और पुराने पर्यटन क्षेत्र पर जरुरत से ज्यादा बोझ पड़ रहा है जिससे उनका पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ रहा है|उत्तराखंड में आयी तबाही एक ऐसी ही चेतावनी थी,जिसमें नदियों के जलमार्ग को ध्यान में रखे बगैर होटल बना लिए गए थे|होटल व्यवसाय पर्यटन उद्योग की रीढ़ हैं पर इनको अपनी सामजिक जिम्मेदारियों को भी समझना होगा|अंधाधुंध मुनाफाखोरी जहाँ पर्यटन उद्योग को क्षति पहुंचाएगी वहीं क्षेत्रीय पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित होगा जिसकी कीमत सबको चुकानी पड़ेगी  आवश्यकता इस बात की है कि अंधाधुंध मुनाफाखोरी केन्द्रित पर्यटन  विकास की जगह सतत पर्यटन विकास को ध्यान में रखते हुए नियम बनाए जाएँ और उन्हें सख्ती से लागू किया  जाए |
हिंदुस्तान में 21/12/13 को प्रकाशित 

2 comments:

shalu awasthi said...

ajeeb vidambana hai...kuch paane ke lie kuch khona to padta hi hai..log praakratik dharohar ko halke mein lete hain jiska parinaam uttarakhand jaisi trasdi

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन भारत का सबसे गरीब मुख्यमंत्री और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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