आई नेक्स्ट सात साल का हो गया,ये एक सपने के हकीकत बनने की कहानी थी एक ऐसा न्यूज़ पेपर जो नए ज़माने की सोच को सामने लाये,जिसकी कोई लिमिटेशन न हो जैसे आज का यूथ जो सपने देखता है और उनको पूरा करने का हौसला भी, तो उन्हीं की भाषा में उन्हीं के जैसा, जब अखबार की शुरुवात हुई तो तो देश वर्चुअल दुनिया के स्पेस में उड़ान भरने की तैयारी कर रहा था बस फिर क्या जैसे जैसे हम बदले हमारा आई नेक्स्ट भी बदलता गया.प्रिंट से वेब फिर न्यूज़ पोर्टल और सोशल नेटवर्किंग की दुनिया में इसने पैर पसारे. जरा सोचिये न हमारी दुनिया भी तो ऐसे ही बदल रही थी.हम लोगों से ग्लोबली कनेक्टेड हो रहे थे टैगिंग से होने वाली दोस्ती कैसे रीयल हैंग आउट में बदलने लग गयी| वर्चुअल रीयल होने लगा. आईनेक्स्ट की नजर हर चेंज पर थी चाहे वो चैट की बत्तियों से हरे लाल होते रीलेशन हों या सोशल नेटवर्किंग एक्टिविज्म का दौर, फीमेल्स की सक्सेस स्टोरीज हो या ग्लोबल का लोकल होना.ये सही मायने में बदलाव का अखबार बना जैसा की भारत में हर नयी चीज के साथ होता है शुरुवात में लोगों ने थोड़ी हिचक जरुर दिखाई लेकिन जब एक बार लोगों ने पढ़ना शुरू किया तो इसकी सर्कुलेशन लगातार बढ़ती गयी.वो कहते हैं न थिंक हट के बड़ा फर्क हमारा नजरिया डालता है क्यूंकि निगेटिव निगेटिव मिलकर पॉजिटिव हो जाता है तो “आई शेयर” आप जैसे रीडर्स के कारण “वी शेयर” बन गया लालच करना बुरी बात हो सकती है पर आज का यूथ ज्यादा का इरादा करता है और उसे पूरा करके भी दिखाता है तो ऐसे लालच को क्या आप बुरा कहेंगे.नशा करना बुरी बात होती है पर अगर नशा नेम और फेम का है तो प्रोब्लम क्या है. वैसे कोई भी चेंज मलटी डाइमेन्शनल होता है कितना तेज सबकुछ बदल रहा है त्योहारों में अगर मिठाई की जगह चौकलेट आ रही हैं तो परवाह किसे है मिठाई की अपनी जगह चौकलेट की अपनी.आज की फास्ट लाईफ में मुंह मीठा करने के लिए हम वेट क्यूँ करें बस रैपर खोलें और खा लें.जब फुर्सत से होंगें तो मिठाइयाँ भी चख लेंगे.मस्ती की पाठशाला सिर्फ स्कुल में ही क्यूँ, घर में क्यूँ नहीं बिलकुल होनी चाहिए क्यूंकि हम हैं नए तो फिर अंदाज़ क्यूँ हो पुराना.
आज की जेनरेशन सवालों के जवाब चाहती है वो भी लौजिकल,त्यौहार मनाने का हम साल भर क्यूँ इन्तजार करें.हमारा हर दिन दसहरा और रात दीपावली हो सकती है पर कैसे अरे जनाब बस एटीट्यूड पोसिटिव होना चाहिए और यही तो “आईनेक्स्ट” भी कहता है बिलीव इन योरसेल्फ ये है निगेटिव का पॉजिटिव इफेक्ट,हार्ड न्यूज़ बहुत से अखबार दे रहे हैं पर आईनेक्स्ट इससे एक कदम आगे निकला उसने लोगों को मोटीवेट किया.जिन्दगी में अगर प्रोब्लम न हो तो लाईफ का सस्पेंस खत्म हो जाएगा, फिर क्या लेट्स फेस इट यार. एक छोटा सा अखबार आज तेरह एडिशन और पांच स्टेट में अपनी प्रेसेंस को लगातार बड़ा बना रहा है.इसमें कोई शक नहीं रीडर्स के अफेक्शन और सपोर्ट के बिना ये पोसिबल नहीं हो सकता.आई नेक्स्ट के सपने की ये कहानी भले ही आपको सपने जैसी लगे लेकिन भरोसा रखिये इस दुनिया में जो कुछ बेहतर हो रहा है उसके पीछे किसी न किसी का सपना जरूर है अगर हमने हवा में उड़ने का सपना न देखा होता तो शायद आज हम एयरोप्लेन की जर्नी को एन्जॉय नहीं कर रहे होते . ह्यूमन सिविलाइजेशन का डेवेलपमेंट इसी सपने का ही परिणाम है जो हमारे पूर्वजों ने देखा इसलिए सपने देखिये लेकिन ध्यान रहे सिर्फ़ सपने देखने से कुछ भी न होगा उन सपनों को हकीकत में बदलने की कोशिश कीजिये, और अगर किसी कारण से आपका सपना हकीकत न भी बन पाए तो उस सुंदर सपने को आने वाली पीढीयों के लिए छोड़ जाइये सपने सिर्फ़ हमारे हैं जिन्हें हम से कोई नहीं छीन सकता है तो सपने देखना मत छोडिये अगर एक सपना पूरा हो तो दूसरा सपना देखिये. हम आज अगर बढे हैं तो कहीं न कहीं उसमे हमारे और आपके सपनों का योगदान जरूर है. जिन्दगी में हमें जो मिला है या तो उससे संतुष्ट हो जाएँ या जिन्दगी को बेहतर बनांने की कोशिश करते रहें क्योंकि जिन्दगी रुकती तो नहीं किसी के लिए. आईनेक्स्ट चल भी रहा है और लगातार बदल भी रहा है.बढ़ने और बदलने के इस सिलसिले में हम लगातार आपके करीब आ रहे हैं आपसे संवाद स्थापित कर रहे हैं आपकी राय हमारे लिए अनमोल हैं तो हमें एस एम् एस, ई मेल या सोशल नेटवर्किंग जैसे किसी भी मीडियम से बताते रहिये कि आप क्या चाहते हैं तभी बढ़ने और बदलने का मजा भी है सफलता तभी मजा देती है जब आपके पास कोई बांटने वाला हो,हम खुशनसीब हैं की हमारे पास आप जैसे रीडर्स हैं तो हम भी आपको भरोसा देते हैं की बढ़ने और बदलने का ये सिलसिला आगे भी चलता रहेगा|
आई नेक्स्ट में 27/12/13 को प्रकाशित
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