Monday, July 21, 2014

इंटरनेट पर झूठ-सच पकड़ने की शुरुआत

पिछले कुछ वर्षों में सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ऑनलाइन वीडियो का चलन और लोकप्रियता, दोनों ही बढ़े हैं। अक्सर ऐसे कई वीडियो सुर्खियां बटोरते रहते हैं, जैसे दिल्ली में चलती मेट्रो ट्रेन के खुले दरवाजे का वीडियो। ऑनलाइन वीडियो की इस लोकप्रियता का एक कारण सस्ते मोबाइल फोन में भी वीडियो बनाने की सुविधा का उपलब्ध हो जाना है, जिन्हें आसानी से फोन के जरिये ही यू-ट्यूब पर साझा भी किया जा सकता है। हर महीने 100 करोड़ से भी अधिक लोग इस साइट को देखते हैं। इस वेबसाइट पर हर मिनट लगभग 100 घंटे से भी अधिक समय के वीडियो डाले जाते हैं। बॉलीवुड फिल्मों की सफलता या विफलता में ये एक अहम भूमिका निभाने लगे हैं। किसी फिल्म के गाने या उसके ट्रेलर को मिले लाइक से उस फिल्म की सफलता का अंदाज लगाया जाने लगा है।
कई बार तो दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली कोई भी घटना समाचार चैनलों पर आने से पहले ही यू-ट्यूब पर दिख जाती है। तस्वीर का दूसरा पक्ष यह भी है कि इन वीडियो की सत्यता परखने का कोई जरिया आमतौर पर उपलब्ध नहीं है। वीडियो सच्चा है या झूठा, इसे आप नहीं समझ सकते। अक्सर झूठे वीडियो ही ज्यादा दिखाई देते हैं। फेसबुक ने इस समस्या को देखते हुए कंटेंट की प्रामाणिकता को पुख्ता करने के लिए स्टोरीफुल कंपनी के साथ फेसबुक वायर सेवा शुरू की है। इंटरनेट पर कंटेंट की प्रामाणिकता अब एक बड़ी समस्या बन चुकी है। मुजफ्फरनगर दंगों के विकराल होने के पीछे ऐसे ही कुछ फर्जी वीडियो का योगदान सामने आया, जो भारत के थे ही नहीं। ऐसे वीडियो बहुत तेजी से फैलते हैं और समाज पर उनका असर भी तुरंत दिखता है। आमतौर पर लोग जो देखते हैं, उसे सच मान लेते हैं, भले ही उसकी असलियत कुछ भी हो। इस बात की पुष्टि करने का कोई तरीका उपलब्ध नहीं है कि क्या वीडियो नया है या पुराना और संदर्भ से बिल्कुल अलग है।
मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस समस्या से निपटने के लिए सिटिजन एविडेंस लैब नाम की एक वेबसाइट शुरू की है। इस वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के पत्रकार, वकील और मानवाधिकार के लिए कार्य करने वाले कार्यकर्ता इंटरनेट पर उपलब्ध वीडियो की प्रामाणिकता परख सकेंगे। इस वेबसाइट में दिए गए टूल्स द्वारा यू-ट्यूब जैसी वेबसाइट पर पोस्ट किए गए वीडियो के बारे में कई बातें जान सकेंगे, जो उन्हें उन वीडियों की प्रामाणिकता और सत्यता जांचने में सहायता करेंगी। इससे वीडियो पोस्ट करने वाले के पूर्व व्यवहार, पोस्ट करने का समय, वीडियो बनाने का समय जैसी जानकारियां प्राप्त की जा सकेंगी। बेशक, इससे मदद मिलेगी, लेकिन इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों, खासकर तस्वीरों और वीडियो का सच जानने का प्रयास अभी बस शुरू ही हुआ है, यह संघर्ष काफी लंबा होगा।
हिन्दुस्तान में 21/07/14  को प्रकाशित 

3 comments:

Reflections: Stories by Jessica said...

i agree with your view point because we are unawre of the video being true or false.

Reflections: Stories by Jessica said...

i agree with your view point because we are unawre of the video being true or false.

Sudhanshuthakur said...

एक समय था जब हम किताबों की कही सुनी बातों को सच समझते थे। उन पर विश्वास करते थे और उनका अनुसरण करते थे। हालाँकि हमें ये पता नहीं होता था की वो बातें सही हैं या गलत। लेकिन आज का जमाना इंटरनेट या यूं कहे गूगल बाबा का है।

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