Monday, August 25, 2014

आधी आबादी के स्वास्थ्य व स्वच्छता का मसला

स्वच्छता सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों में से एक बड़ा मुद्दा है विकासशील देशों के विशेष सन्दर्भ में  इस परिस्थिति में  विशेषकर महिलाओं के स्वास्थ्य और  स्वच्छता के सम्बन्ध में मासिक धर्म पर बात करना भारत में अभी भी ऐसे विषयों की श्रेणी में आता है जिस पर बात करना वर्जित है|स्वतंत्रता दिवस पर दिए गए अपने पहले भाषण  में प्रधान मंत्री मोदी ने महिलाओं की स्वच्छता के मुद्दे की तरफ देश का ध्यान खींचा
भारत में जहाँ पहले से ही इतनी स्वास्थ्य समस्याएं हैं वहां देश की आधी आबादी किस गंभीर समस्या से जूझ रही है इसका सिर्फ अंदाज़ा लगाया जा सकता है |महिलाओं का मासिक धर्म एक सहज वैज्ञानिक और शारीरिक क्रिया है|इस मुद्दे पर हाल ही में सेनेटरी नैपकिन कंपनी व्हिस्पर और मार्किट रिसर्च आई पी एस ओ एस के सर्वे के मुताबिक मासिक धर्म को लेकर गाँवों में ही नहीं बल्कि दिल्ली मुंबई चेन्नई और कोलकाताजैसे शहरों के निवासियों में में भी कई तरह की भ्रांतियां हैं|सर्वे में भाग लेने वाली महिलाओं ने माना कि मासिक धर्म के दिनों में वे अचार का जार नहीं छूती,मंदिरों में नहीं जाती और अपने पतियों के साथ एक बिस्तर पर नहीं सोती|
 सेक्स शिक्षा के अभाव और मासिक धर्म जैसे संवेदनशील विषयों पर बात न करने जैसी परम्परा किशोरियों को एक ऐसे दुष्चक्र में फंसा देती है जिससे निकलने के लिए वो जीवन भर छटपटाती रहती हैं|यह एक ऐसा विषय है जिस पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों मेंप्रजनन स्वास्थ्य का यह सवाल प्रत्यक्ष रूप से सुरक्षित मातृत्व के अधिकार से भी जुड़ता है।जब प्रजनन स्वास्थ्य की बात होगी  तो मासिक धर्म की बात अवश्यम्भावी हो जायेगी| ए सी नील्सन की रिपोर्ट “सेनेटरी प्रोटेक्शन:एवरी विमेंस हेल्थ राईट के अनुसार मासिक धर्म के समय स्वच्छ सेनेटरी  पैड के अभाव में देश की सत्तर प्रतिशत महिलायें प्रजनन प्रणाली संक्रमण का शिकार होती हैं जो कैंसर होने के खतरे को बढाता हैपर्याप्त साफ़ सफाई और स्कूल में उचित शौचालयों के अभाव में देश की तेईस प्रतिशत किशोरियां स्कूल जाना छोड़ देती हैं|भारत में सांस्कृतिक - धार्मिक वर्जनाओं के कारण मासिक धर्म को प्रदूषित कर्म की श्रेणी में माना जाता है|यह वर्जनाएं भारत में क्षेत्र की विविधता के बावजूद सभी संस्कृतियों में समान रूप से मौजूद हैं|
मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं और किशोरियों को  घर के सामान्य काम से दूर कर दिया जाता है जिनमें खाना बनाने से लेकर से पूजापाठ जैसे काम शामिल हैं|वैज्ञानिक द्रष्टिकोण और सोच के अभाव में यह परम्परा अभी भी शहरी और ग्रामीण इलाकों में जारी है|किशोरियां भारत की आबादी का पांचवा हिस्सा है पर उनकी स्वास्थ्य जरूरतों के मुताबिक़ स्वास्थ्य कार्यक्रमों का कोई ढांचा हमारे सामने नहीं है|
छोटे शहरों और कस्बों के स्कूलों में महिला शिक्षकों की कमी और ग्रामीण भारत में सह शिक्षा के लिए परिपक्व वातावरण का न होना समस्या को और भी जटिल बना देता है |क्षेत्रीय भाषाओँ में प्रजनन अंगों के बारे में जानकारी देना शिक्षकों के लिए अभी भी एक चुनौती है|पाठ्यक्रम में शामिल ऐसे विषयों पर बात करने से स्वयम शिक्षक भी हिचकते हैं और छात्र छात्राओं को ऐसे विषय खुद ही पढ़ कर समझने होते हैं|
सेक्स शिक्षा की जरुरत पर अभी भी देश में कोई सर्व स्वीकार्यता नहीं बन पायी है,जब भी इस मुद्दे पर एक सर्व स्वीकार्यता की बात शुरू होती है हम अभी इसके लिए तैयार नहीं हमारी संस्कृति को इसकी जरुरत नहीं है जैसे कुतर्क ऐसे किसी भी प्रयास को नाकाम कर देते हैं |हिन्दुस्तान लेटेक्स फैमली प्लानिंग प्रमोशन ट्रस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में सेनेटरी पैड का प्रयोग कुल महिला जनसँख्या का मात्र दस से ग्यारह प्रतिशत होता है जो यूरोप और अमेरिका के 73 से 92 प्रतिशत के मुकाबले नगण्य है|आंकड़े खुद ही अपनी कहानी कह रहे हैं कि मासिक धर्म जैसे संवेदनशील मुद्दे पर देश अभी भी अठारहवीं शताब्दी की मानसिकता में जी रहा है|
शहरों में विज्ञापन और जागरूकता के कारण यह आंकड़ा पचीस प्रतिशत के करीब है पर ग्रामीण भारत में सेनेटरी पैड और मासिक धर्म,स्वच्छता स्वास्थ्य जैसे मुद्दे एकदम गायब हैं|सेनेटरी पैड के कम इस्तेमाल के कारणों में जागरूकता का अभाव,उपलब्धता और आर्थिक सामर्थ्य का न होना जैसे घटक शामिल हैं|सरकार ने 2010 में मासिक धर्म स्वच्छता योजना,राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत शुरू की थी जिसमें सस्ती दरों पर सेनेटरी पैड देने का कार्यक्रम शुरू किया पर सामजिक रूढिगत वर्जनाओं के कारण इस प्रयास को अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है|सेनेटरी पैड तक पहुँच होना ही एक चुनौती नहीं  है प्रयोग किये गए सेनेटरी पैड का क्या किया जाए यह भी एक गंभीर प्रश्न है|मेरीलैंड विश्वविद्यालय के डॉ विवियन होफमन ने अपने एक शोध में पाया कि बिहार की साठ प्रतिशत महिलायें  प्रयोग किये गए सेनेटरी पैड या कपड़ों को खुले में फैंक देती हैं|प्रजनन अंग संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं में सेनेटरी पैड के अलावा साफ़ पानी और निजता(प्राइवेसी ) की कमी भी समस्या एक अन्य आयाम है|मेडिकल प्रोफेशनल भी इस मुद्दे को उतनी गंभीरता से नहीं लेते जितना की अपेक्षित हैमेडिकल स्नातक स्तर इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक भी अध्याय पाठ्यपुस्तकों में शामिल नहीं है|सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रमों जैसे पल्स पोलियो,परिवार नियोजन,चेचक खसरा  पर जितना जोर दिया गया है उतना जोर मासिक धर्म,प्रजनन अंगों के स्वास्थ्य आदि मुद्दों पर नहीं दिया जा रहा है | पल्स पोलियो,परिवार नियोजन,चेचक खसरा आदि बीमारियों से बचाव के लिए अनेक जागरूकता कार्यक्रम चलाये गए और दवाओं पर भी पर्याप्त मात्रा में धन खर्च किया गया पर मासिक धर्म स्वास्थ्य जैसा मुद्दा देश में महिलाओं की स्थिति की तरह हाशिये पर ही पडा रहा|
इस दिशा में मेडिकल और पैरा मेडिकल हेल्थ प्रोफेशनल को संयुक्त रूप से  ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है|
महज़ सेनेटरी पैड बाँट भर देने से जागरूकता आने की उम्मीद करना बेमानी है | राष्‍ट्रीय ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य मिशन के अंतर्गत सरकार ने प्रत्‍येक गांव में एक महिला प्रत्‍यायित सामाजिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता (आशा) की नियुक्ति का प्रावधान किया है प्रत्‍यायित सामाजिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता (आशा) समुदायों के बीच स्‍वास्‍थ्‍य सक्रियता पहल करने में सक्रिय है,उन्हें मासिक धर्म स्वास्थ्य जैसे मुद्दे पर जोड़ा जाए और आशा कार्यकर्ता गाँव -गाँव जा कर लोगों को जागरूक करें और महिलाओं की इस मुद्दे के प्रति हिचक तोड़ने का प्रयास करें. जिससे इस समस्या से लोग रूबरू हो सकें और एक बड़े स्तर पर एक संवाद शुरू हो सके और रूढिगत वर्जनाओं  पर प्रहार हो|
आमतौर पर जब तक समाज में यह धारणा रहेगी कि मासिक धर्म महिलाओं से जुड़ा एक स्वास्थ्य मुद्दा मात्र है तब तक समस्या का वास्तविक समाधान होना मुश्किल है यह मुद्दा मानव समाज से जुड़ा मुद्दा है जिसका सीधा सम्बन्ध देश के मानव संसाधन से जुड़ा है.स्वस्थ और विकसित समाज का रास्ता स्वस्थ और शिक्षित महिलाओं से होकर ही गुजरता है|
राष्ट्रीय सहारा में 25/08/14 को प्रकाशित 

2 comments:

Unknown said...

sir ji abadi itni jyada hai k sarkar na studies me dhyaan de paa rhi he na health pe, ham logo ko khud se population ko control karna padega,

saurabh

Vaishali Sharma said...

Is article ne ek ghre aur samvedansheel mude ko sahi tor se smaaj ke samne lane ki koshis ki hai .. ek line apne akhir me likhi ke “vikasit samaj ka rasta swasth aur shikshit mahilao se hokr gujarta hai” jodna chaungi ke rashtriye ister pr to vikas jari hai pr chote chote gaon aur kasbe jinhe jodtey hue Hindustan janma hai, kahi na kahi ye desh wahi andekha karta ja raha hai .. baat agr yaha mahilao ki is masik dharm prakriya ki ki jai to aj bhi chai baat chote gaon ya sher ya bade shero ki hi kyu na ho ise ek choot ki tarh liya jata hai …
is prakriya ke doran na hi sirf mhilao ko dincharya ke saman karya se door kar dete hai balki kuch gaon sher me to unke kapde wa bartan taka lag kr diye jate hai sath hi unse baat nhi ki jati aur unhe alag baithaya jata hai…
aj baat sirf smaj ki is soch ko badalne kin hi hai blki is soch ko sahi disha me le jane ki hai aur mera manna hai ki jab ye sahi disha me jaigi, tab hm apne smaj ko ek vikasit aur swasth roop de painge

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