Saturday, January 7, 2017

इंटरनेट पर कमज़ोर क्यों है आवाज की ताकत

तस्वीरों की दौड़ में हमने आवाज को लगभग भुला ही दिया है। स्मार्टफोन ने देश में इंटरनेट प्रयोग के आयाम जरूर बदले हैं और इसके साथ सोशल नेटवर्किंग ने हमारे संवाद व मेल-मिलाप का तरीका भी बदल दिया है। इसमें यू-ट्यूब और फेसबुक लाइव जैसे फीचर बहुत लोकप्रिय हुए हैं। इन सबके साथ हमने इंटरनेट को वीडियो का ही माध्यम समझ लिया है और ऑडियो यानी ध्वनि को नजरंदाज कर दिया गया है। भारत में अगर आप अपने विचार अपनी आवाज के माध्यम से लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं, तो आपको इंटरनेट पर खासी मशक्कत करनी पड़ेगी। व्यवसाय के रूप में जहां यू-ट्यूब के वीडियो चैनल भारत में काफी लोकप्रिय हैं, वहीं ध्वनि का माध्यम अभी जड़ें जमा नहीं पाया है, जबकि बाकी दुनिया में ऑडियो का चलन काफी तेजी से बढ़ रहा है।
इंटरनेट पर ऑडियो फाइल को शेयर करना पॉडकास्ट के नाम से जाना जाता है। पॉडकास्ट दो शब्दों से मिलकर बना है, प्लेयेबल ऑन डिमांड (पॉड) और ब्रॉडकास्ट से। नीमन लैब के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2016 में अमेरिका में पॉडकास्ट (इंटरनेट पर ध्वनि के माध्यम से विचार या सूचना देना) के उपयोगकर्ताओं यानी श्रोताओं की संख्या में काफी तेजी से इजाफा हुआ है। वहां इस माध्यम पर विज्ञापनों द्वारा होने वाली कमाई में पिछले वर्ष लगभग 48 प्रतिशत का इजाफा हुआ है और वर्ष 2020 तक इसके लगातार 25 प्रतिशत की दर से वृद्धि करने की उम्मीद है। इस वृद्धि दर से वर्ष 2020 तक पॉडकास्टिंग से होने वाली आमदनी पांच सौ मिलियन डॉलर के करीब पहुंच जाएगी। पॉडकास्टिंग की शुरुआत हालांकि एक छोटे माध्यम के रूप में हुई थी, पर अब यह एक संपूर्ण डिजिटल उद्योग का रूप धारण करता जा रहा है। अमेरिका की सबसे बड़ी पॉडकास्टिंग कंपनी एनपीआर की सालाना आमदनी लगभग दस मिलियन डॉलर के करीब है। भारत में पॉडकास्टिंग के जड़ें न जमा पाने के कारण हैं ध्वनि के रूप में सिर्फ फिल्मी गाने सुनने की परंपरा और श्रव्य की अन्य विधाओं से परिचित ही नहीं हो पाना। इसके अलावा भारत में ज्यादातर एफएम स्टेशन एक जैसी ही सामग्री श्रोताओं को परोसते हैं। उन्हें समाचार प्रसारण का अधिकार भी नहीं प्राप्त है, जबकि पॉडकास्टिंग को मीडिया के श्रव्य विकल्प के रूप में देखने की आवश्यकता है। भारत जैसे देशों में, जहां इंटरनेट की स्पीड काफी कम होती है, वीडियो के मुकाबले पॉडकास्टिंग ज्यादा कामयाब हो सकती है।
इस वक्त भारत में दो प्रमुख पॉडकास्ट सेवाएं नियमित रूप से प्रसारित की जा रही हैं, जिनमें इंडसवॉक्स और ऑडियोमैटिक काफी लोकप्रिय हैं, पर ये भारतीय भाषाओं में नहीं हैं। ऑडियोमैटिक ने अपनी शुरुआत के एक साल में एक लाख नियमित श्रोता जुटा लिए हैं। इंडसवॉक्स म्यूजिक स्ट्रीमिंग साइट सावन पर उपलब्ध है। स्मार्टफोन की उपलब्धता के अनुपात में इनके श्रोता अभी काफी कम हैं। शहरी भारत में औसत रूप से एक व्यक्ति 46 मिनट सफर करता है और यह समय लगातार बढ़ रहा है। इस समय उसके पास आमतौर पर कुछ सुन सकने का ही विकल्प होता है। संगीत (ज्यादातर फिल्मी) के अलावा अन्य सामग्री उपलब्ध नहीं होती है, इसलिए वह केवल संगीत सुनने को ही मजबूर होता है।
भारत के मामले में एक बात तय मानी जाती है कि पॉडकास्टिंग यहां विज्ञापन आधारित ही होगी। कुछ भी मनपसंद सुनने के लिए पैसे खर्च करने की परंपरा यहां नहीं है। एफएम चैनल चलाने वाली कंपनियां लंबे समय से कोशिश कर रही हैं कि सरकार से उन्हें समाचार व करेंट अफेयर्स के कार्यक्रम प्रसारित करने की इजाजत मिले। लेकिन सरकार उन्हें यह इजाजत नहीं दे रही। इन कंपनियों के लिए पॉडकास्टिंग एक ज्यादा अच्छा विकल्प हो सकती है। भारत जैसे देश में ऑडियो व्यवसाय के लिए संभावनाएं कितनी हैं, इसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि एक समय तक पड़ोसी नेपाल में निजी क्षेत्र को एफएच चैनल चलाने की इजाजत नहीं थी। वहां उन्हें न सिर्फ इसकी इजाजत मिली, बल्कि एफएम पर समाचार के प्रसारण का अधिकार भी मिल गया। आज नेपाल में सैकड़ों एफएम चैनल हैं और ज्यादातर सफल हैं। भारत इस मंजिल को पॉडकास्टिंग के जरिये भी पा सकता है।
हिन्दुस्तान में 07/01/2016 में प्रकाशित 

2 comments:

हर्षवर्धन श्रीवास्तव said...

आपका लेख हमेशा हिन्दुस्तान अखबार में पढ़ता हूँ, काफी रोचक और काफी पठनीय होते हैं। सादर ... धन्यवाद। ऐसे ही हमारे जैसे पाठकों के लिए लिखते रहिए।

Unknown said...

according to me internet has given a new platform to those who were not getting opportunity to speak in front of large crowd but with the help of internet they are getting plenty of opportunities.

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