Saturday, April 29, 2017

रिश्ते चाहिए ? एप पर जाइए


वर्तमान समाज  एक एप का समाज है दुनिया  स्मार्ट फोन के रूप में हथेली में सिमट चुकी है |इंटरनेट और डेस्कटाप कम्प्यूटरों से शुरू हुआ  यह सिलसिला मोबाईल  के माध्यम से एक एप में  सिमट  चुका है पिछले एक दशक में इंटरनेट ने भारत को  जितना बदला उतना  मानव सभ्यता के ज्ञात इतिहास में किसी और चीज ने नहीं बदला है ,यह बदलाव बहु आयामी है बोल चाल  के तौर तरीके से  शुरू हुआ यह सिलसिला  खरीददारी  ,भाषा  साहित्य  और  हमारी अन्य प्रचलित मान्यताएं और परम्पराएँ  सब  अपना रास्ता बदल रहे हैं। यह बदलाव इतना  तेज है कि इसकी नब्ज को पकड़  पाना समाज शास्त्रियों  के लिए भी आसान नहीं है  और  आज इस तेजी  के मूल में एप” ( मोबाईल एप्लीकेशन ) जैसी यांत्रिक  चीज  जिसके माध्यम से मोबाईल  फोन में  आपको किसी वेबसाईट को खोलने की जरुरत नहीं पड़ती |आने वाली पीढियां  इस  समाज को एक एप” समाज के रूप में याद  करेंगी जब  लोक और लोकाचार  को सबसे  ज्यादा  एप” प्रभावित कर रहा  था |हम हर चीज के लिए बस एक अदद एप” की तलाश  करते हैं |जीवन की जरुरी आवश्यकताओं के लिए  यह  एप” तो ठीक  था  पर  जीवन साथी  के चुनाव  और दोस्ती  जैसी भावनात्मक   और  निहायत व्यक्तिगत  जरूरतों   के लिए  दुनिया भर  के डेटिंग एप  निर्माताओं  की निगाह  में भारत सबसे  पसंदीदा जगह बन कर उभर  रहा है | उदारीकरण के पश्चात बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ और रोजगार की संभावनाएं  बड़े शहरों ज्यादा बढीं ,जड़ों और रिश्तों से कटे ऐसे युवा  भावनात्मक  सम्बल पाने के लिए और ऐसे रिश्ते बनाने में जिसे वो शादी के अंजाम तक पहुंचा सकें  डेटिंग एप का सहारा ले रहे हैं |
भारत में है युवाओं की सबसे ज्यादा आबादी
संयुक्त राष्ट्र की एक  रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। यहां 35.6 करोड़ आबादी युवा है भारत की अठाईस प्रतिशत  आबादी की आयु दस साल से चौबीस  साल के बीच है। सिर्फ भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में मौजूदा समय में युवाओं कीसबसे  सबसे अधिक है इसी आबादी का बड़ा हिस्सा वह है  जो स्मार्ट फोन का इस्तेमाल बगैर किसी समस्या करता है  ये तकनीक को अच्छी तरह जानते और समझते हैं |मोबाईल ख़ासा व्यक्तिगत माध्यम है और हर व्यक्ति अपनी जरूरतों के हिसाब से एप” चुनकर इंस्टाल कर सकता है |पिछले एक दशक में  शहरी भारतीय रहन सहन में ख़ासा परिवर्तन आया है और युवा जल्दी आत्म निर्भर हुए हैं जहाँ वो अपने जीवन से जुड़े फैसले खुद ले रहा है |यूँ तो देश में  ऑनलाइन मैट्रीमोनी का कारोबार अगले तीन साल में 1,500 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसारवैवाहिक वेबसाइटों पर साल 2013 में 8.5 लाख प्रोफाइल अपलोड की गईजिनकी संख्या साल 2014 में बढ़कर 19.6 लाख हो गई। यानी एक साल में 130 फीसदी का इजाफा।पर डेटिंग एप का बढ़ता चलन इस ओर इशारा कर रहा है कि सम्बन्ध बनाने में भी अब लोग वेबसाईट के बजाय एप पर अधिक निर्भरता बढ़ा रहे हैं वर्तमान में डेटिंग एप  का आकार 13 करोड़ डॉलर से भी ऊपर चला गया है और जो लगातार बढ़ रहा  है। ओनलाईन डेटिंग साईट्स में अव्वल  टिंडर इंडिया का  दावा है कि उसे    एक दिन में 14 मिलियन स्वाइप्स होते हैं जो कि सितंबर 2015 में 75 लाख तक ही थे।ये डेटिंग एप अपनी प्रकृति में अलग अलग सेवाएँ देने का वायदा करते हैं वैसे भी भारतीय डेटिंग एप यहाँ की परिस्थितयों को बेहतर समझते हैं क्योंकि भारत रिश्तों और सेक्स के मामले में एक बंद समाज रहा है पर अब वो धीरे धीरे खुल रहा है |ट्रूली मैडली जैसे एप यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते  हैं कि कोई शादी शुदा  इस एप से न जुड़े वे महिलाओं की सुरक्षा का वायदा करते हैं वहीं टिनडर जैसा अन्तराष्ट्रीय ब्रांड गैर गंभीर सम्बन्धों को बढ़ावा देता है पर भारतीय डेटिंग प्लेटफोर्म शहरी भारतीयों का इस बात का भरोसा देते हैं कि आप गैर गंभीर सम्बन्धों को भविष्य में एक नाम दे सकें और अपने भविष्य के जीवन साथी को सिर्फ तस्वीर देख कर न चुने बल्कि उनके साथ एक गैर प्रगाढ़ सम्बन्ध बनाएं और वक्त के साथ यह फैसला करें कि अमुक व्यक्ति एक जीवन साथी के रूप में आपके लिए बेहतर रहेगा या नहीं ,यहाँ ऐसे डेटिंग एप  ऑनलाइन मैट्रीमोनी साईट्स से एक कदम आगे निकल जाते हैं और एक उदार द्रष्टिकोण का निर्माण करते हैं जो भारतीय पारम्परिक वैवाहिक व्यवस्था से अलग एक विकल्प युवाओं को देते हैं जो जाति,धर्म और समाज से परे विवाह का आधार व्यक्ति की अपनी पसंद बनता है |इन डेटिंग एप की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ऑनलाइन प्लेटफार्म के अलावा ये विज्ञापनों के लिए पारम्परिक रूप से महंगे माध्यम टीवी का भी इस्तेमाल  कर रहे हैं |
तरह तरह के डेटिंग एप और उनसे जुड़े खतरे
ट्रूली मैडली, वू ,टिनडर,आई क्रश फ्लश और एश्ले मेडिसन जैसे डेटिंग एप भारत में काफी लोकप्रिय हो रहे हैं जिसमें एश्ले मेडिसन जैसे एप किसी भी तरह की मान्यताओं को नहीं मानते हैं आप विवाहित हों या अविवाहित अगर आप ऑनलाईन किसी तरह की सम्बन्ध की तलाश में हैं तो ये एप आपको भुगतान लेकर सम्बन्ध बनाने के लिए प्रेरित करता है हालंकि डेटिंग एप का यह कल्चर अभी मेट्रो और बड़े शहरों  तक सीमित है पर जिस तरह से भारत में स्मार्ट फोन का विस्तार हो रहा है और इंटरनेट हर जगह पहुँच रहा है इनके छोटे शहरों में पहुँचते देर नहीं लगेगी |पर यह डेटिंग संस्कृति भारत में अपने तरह की  कुछ समस्याएं भी लाई है जिसमें सेक्स्युल कल्चर को बढ़ावा देना भी शामिल है |वैश्विक सॉफ्टवेयर एंटी वायरस  कंपनी नॉर्टन बाई सिमेंटेक के अनुसार ऑनलाइन डेटिंग सर्विस एप साइबर अपराधियों का मनपसंद प्लेटफार्म बन चुका है। भारत के लगभग 38 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने कहा कि वह ऑनलाइन डेटिंग एप्स का प्रयोग करते हैं। ऐसे व्यक्ति  जो मोबाइल में डेटिंग एप रखते हैउनमें से करीब 64 प्रतिशत  महिलाओं और 57 प्रतिशत  पुरुषों ने सुरक्षा संबंधी परेशानियों का सामना किया है। आपको कोई फॉलो कर रहा हैआप की पहचान चोरी होने के डरके साथ-साथ उत्पीड़ित और कैटफिशिंग के शिकार होने का खतरा बरकरार रहता है।
नवभारत टाईम्स ,में 29/04/17 को प्रकाशित 

Saturday, April 22, 2017

बदलाव की प्रक्रिया की धुरी बन रहे हैं स्मार्ट फोन

इंटरनेट  के जमाने में देश में  बदलाव की प्रक्रिया की धुरी बन रहे हैं स्मार्ट फोन|भारत में ऑनलाइन शॉपिंग को बढ़ावा देने में इंटरनेट आधारित स्मार्टफोन की बड़ी भूमिका है,खरीद प्रक्रिया का यह बदलाव सबसे ज्यादा स्मार्टफोन की खरीद को प्रभावित कर रहा है|मार्केट इंटेलिजेंस फर्म काउंटर प्वाईंट रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले साल हर तीन में से एक स्मार्ट फोन की खरीद ऑनलाइन की गयी,जिसमें नब्बे प्रतिशत फोन ऑनलाईन शौपिंग प्लेटफार्म फ्लिप्कार्ट ,स्नेपडील और अमेजन द्वारा बेचे गये|कुल बेचे गए स्मार्टफोन में से साढ़े सैतालीस प्रतिशत अकेले फ्लिप्कार्ट कम्पनी द्वारा बेचे गये |पिछले साल की चौथी तिमाही (अक्तूबर –दिसम्बर ) में भारत अमेरिका को पिछाड कर दुनिया में  चीन के बाद दूसरे नम्बर पर  सबसे ज्यादा स्मार्टफोन धारकों का देश बन चुका है पर भारत के स्मार्ट फोन बाजार में अभी भी असीमित संभावनाएं हैं क्योंकि भारत में अभी दस मोबाईल फोन में से मात्र चार ही स्मार्ट फोन हैं और यह आंकड़ा विकसित देशों के स्मार्टफोन धारकों के मुकाबले काफी कम है |स्मार्ट फोन की बढ़ोत्तरी ऑनलाईन शौपिंग को बढ़ावा दे रही है इस ओनलाईन खरीद के कारोबार  में मोबाईल फोन का एक बड़ा हिस्सा है |ऑनलाईन विक्रेता नए मोबाईल मॉडल पर जहाँ ज्यादा डिस्काउंट देते हैं वहीं अनेक ऑफर के साथ खरीददारों को भी लुभाते हैं |यदि आप फोन से नहीं संतुष्ट हैं तो उसे आसानी से एक मेल या फोन काल पर एक माह के भीतर आसानी से लौटा भी सकते हैं जिसमें पैसे के नुक्सान होने की संभावना भी नहीं रहती है|शोध संस्था नाइंटीवन मोबाईल्स डॉट कॉम के एक शोध में यह बात सामने आयी है कि ऑनलाईन मोबाईल की खरीद पर कीमत  परम्परागत मोबाईल दुकानों के मुकाबले औसत रूप से पांच प्रतिशत कम रहती है| वहीं मोबाईल दुकानों पर वापस करना खासा सिरदर्द का काम रहता है पैसा वापस नहीं मिलेगा आपको तुरंत कोई दूसरा मोबाईल खरीदना पड़ेगा |परम्परागत दुकानों में ज्यादा विकल्प नहीं रहते हैं जबकि ओनलाईन खरीद में क्रेता के पास असीमित विकल्प रहते हैं,यदि आप वहां से खरीदी हुई चीज वापस भी कर रहे हैं तो भी आपका पैसा सुरक्षित है आप या तो पैसा वापस ले सकते हैं या उस ऑनलाईन स्टोर पर कोई भी चीज उसी पैसे में कभी भी खरीद सकते हैं |ऑनलाईन स्टोर में परम्परागत दुकानों के मुकाबले वितरण लागत में काफी कमी हो जाती है ये एक बड़ा कारण है कि लोग मोबाईल फोन ऑनलाइन खरीदना पसंद कर रहे हैं |यह एक द्वीपक्षीय प्रक्रिया ई कॉमर्स जहाँ स्मार्ट फोन की ऑनलाइन बिक्री बढ़ा रहा है वहीं स्मार्ट फोन की बढ़ती संख्या ई कॉमर्स के कारोबार को बढ़ा रही है | तस्वीर का दूसरा रुख भी है कम्पनियों के लाख दावों के बावजूद ऐसे लोगों की भी काफी संख्या है जिन लोगों ने ऑनलाईन खराब इलेक्ट्रॉनिक गैजेट खरीदा और उसे वापस करने में उन्हें खासी परेशानी और मानसिक संत्रास झेलना पडा |दुकान से खरीदी चीजों को तुरंत वापस कर उसके बदले दूसरी चीजें प्राप्त की जा सकती है|हमें इस तथ्य को भी नहीं भूलना चाहिए कि यहाँ इंटरनेट की आधारभूत संरचना विकसित देशों के मुकाबले काफी पिछड़ी है ग्रामीण इलाकों में स्मार्ट फोन का अधिकतर  इस्तेमाल सिर्फ फ़िल्में देखने और गाने सुनने में ही किया जा रहा है|इन इलाकों में स्मार्ट फोन का स्मार्ट इस्तेमाल तब ही हो पायेगा जब समुचित इंटरनेट की उपलब्धता मिलेगी |
नवोदय टाईम्स में 22/04/17 को प्रकाशित लेख 

Tuesday, April 11, 2017

यादें बहुत याद आती हैं

यादें भी कैसी कैसी याद आ जाती है। आजकल विकास की चर्चा खूब हो रही है बात ज्यादा पुरानी भी नहीं है ।हमारे घर में हैण्डपम्प लगा था और उसी से पूरे घर का काम चल जाता था फिर एक दिन पानी का कनेक्शन ले लिया गया लगा जिंदगी खूबसूरत हो गयी अब रोज हैण्डपम्प से पानी निकालने की ड्यूटी का झँझट खत्म हो गया।एक छोटे से टब में थोड़ा पानी जरूर इकट्ठा रखा जाता था वैसे भी नल में चौबीस घंटे पानी आता था फिर पानी आने का समय निर्धारित हो गया तो टंकी खरीदी गयी कुछ दिनों तक ड्रम से काम चला पर विकास के इस मॉडल में ड्रम बिलो स्टैंडर्ड था तो टीवी पर विज्ञापन देखकर सिंटैक्स की टंकी खरीदी गई और हमने अपना स्टैण्डर्ड मोहल्ले में ऊँचा किया |उधर नल में पानी लगातार कम होता जा रहा था तो फिर विकास की राह पर चलते हुए एक मोटरपम्प खरीदा गया जिससे जितनी देर भी पानी आता है उतनी देर में ज्यादा से ज्यादा पानी इकट्ठा कर लिया जाए ,(बढ़ते बिजली के बिल की कीमत पर )भले ही वह  लोग परेशान हों जो मोटरपम्प न खरीद सकते हों और आर्थिक द्रष्टि से ऊँचे पायदान पर न हों ।अब घर का खाना उतना मजेदार नहीं होता था जो मां प्यार से किचन में पीढ़े पर  बैठाकर खिलाती थी | कहीं किसी भी नल में चुल्लू लगाकर पानी पी लेना असभ्यता की निशानी माना जाने लग गया ।हम भी बड़े होकर कमाने लग गए और होटल में जब वेटर डब्बा बंद पानी  की बोतल रख जाता तो मारे शर्म के ये न कह पाते कि सामान्य पानी लाओ पता तो लगे हम जिस शहर में बैठे हैं उसके पानी का स्वाद कैसा है ?आखिर हम वेटर के सामने अपने आपको बिलो स्टैण्डर्ड नहीं दिखाना चाहते थे तो डब्बा बंद पानी अपनी आदत में शुमार करते चले गये और विकास की अंधी दौड़ में पानी भी ग्लोबलाइज्ड हो रहा था ।डब्बा बंद पानी भी ब्रांड देखकर पीने लगे थे क्योंकि फलाना ब्रांड का पानी ज्यादा मंहगा और उसका विज्ञापन भी ज्यादा आता है तो वही पानी अच्छा होगा |अब नल का  पानी ज्यादा देर नहीं आता और बोतलबंद पानी का बाजार दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा था ।हम भी विकसित होने की चाह में और पानी की गुणवत्ता खराब होने के कारण इस विकास की दौड़ में शामिल हो गए और नल के पानी में डिब्बा बंद पानी का स्वाद तलाशने लगे   ।नतीजा एक एक वाटर प्यूरीफायर हमारे रसोई घर  की शोभा बढ़ाने लग गया ।जमाना काफी तेज़ी से बदल रहा था ।पीलिया हैजा जैसी जल जनित बीमारी के बढ़ने की ख़बरें लगातार बढ़ने लग गईं | टीवी लगातार डरा रहा था कि सिर्फ वाटर प्यूरीफायर से काम न चलेगा तो अब आर ओ लगाइये जो मिनरल पानी में होने चाहिए वो तो हमने विकास की दौड़ में गंवा कर पानी को प्रदूषित कर दिया है तो मजबूरी में एक मंहगा  एक आर ओ लगवाना पड़ा ।आर ओ हमारे घर पर लगी टंकी का पानी साफ़ करके हमको देता है और जितनी देर आर ओ पानी साफ़ करता है उसकी पाईप से साफ़ पानी जैसा कुछ लगातार नाली में बहता रहता है |यह वह पानी है जो पीने के लिए लाभदायक नहीं है पर घर के अन्य काम जैसे गाडी धोना, पोंछा लगाना ,पौधों को पानी देने में इस्तेमाल हो सकता है |नाली में बह जाता है |आर ओ बनाने वाली कम्पनी इस गंदे पानी को सहेजने का कोई विकल्प नहीं देती |पर आर ओ की टंकी से निकला पानी बिलकुल किसी डिब्बेबन्द पानी जैसा लगता है और अमीर होने का फील आता है जैसे हम घर में बिसलरी पी रहे हों ।वाकई हम बहुत तेजी से विकसित हो रहे हैं ।क्या करें ये चालीस पार का जीवन भी अजीब है सचमुच यादें बहुत याद आती हैं ।
प्रभात खबर में 11/04/17  को प्रकाशित 

Saturday, April 8, 2017

स्मार्टफोन और हमारा सामाजिक अर्थशास्त्र

भारत सचमुच विचित्रताओं का देश है। जहां पूरी दुनिया में स्मार्टफोन की मांग लगातार बढ़ रही है, वहीं भारत में फीचर फोन अब भी लोगों की पहली पसंद हैं, जो 2-जी नेटवर्क पर काम करते हैं। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए नोकिया अपने सस्ते फीचर फोन 3310 के साथ भारत में पुन: वापसी कर रही है, ताकि वह उन भारतीय ग्राहकों को लुभा सके, जो महंगे स्मार्टफोन नहीं खरीद सकते। सिंगापुर, ताईवान व ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने जहां 2-जी नेटवर्क को अलविदा कह दिया है, वहीं भारत में 2-जी नेटवर्क के सहारे साधारण फीचर फोन कम कीमत, ज्यादा बैटरी लाइफ, संगीत सुनने की सुविधा व बेसिक इंटरनेट सेवा के साथ भारत में लोगों को ऑनलाइन जोड़ रहा है।फीचर फोन से तात्पर्य उन मोबाइल फोन से है, जिनका प्रयोग वॉयस कॉलिंग और टेक्स्ट मैसेज के लिए किया जाता है। इसके अलावा इनमें बेसिक मल्टीमीडिया सुविधा होती है, जिससे ऑडियो-वीडियो सुविधाओं का आनंद उठाया जा सकता है। ये बहुत कम कीमत में उपलब्ध हैं। वहीं पर स्मार्टफोन इंटरनेट आधारित हैं, जो बात करने के अलावा इंटरनेट की दुनिया में एप सुविधाओं के साथ असीमित विकल्प देते हैं। ये फीचर फोन के मुकाबले महंगे होते हैं और इनकी परिचालन कीमत भी महंगी होती है। ये टच स्क्रीन सुविधा पर चलते हैं।
वैसे भी, शहरों में देखा गया है कि आजकल लोग दो फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं- साधारण फीचर फोन बात करने के लिए और इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए स्मार्टफोन। आंकड़ों की रोशनी में यह तथ्य ज्यादा स्पष्ट तस्वीर पेश करता है। मोबाइल मार्केटिंग एसोशिएशन व मार्केट रिसर्च फर्म कन्टर आईएमआरबी के देश के आठ शहरों में किए गए शोध से यह निष्कर्ष निकला है कि फीचर फोन धारकों में से मात्र 15 प्रतिशत उपयोगकर्ता अपनी अगली फोन खरीद में अपने फोन को स्मार्टफोन में बदलना चाहते हैं। इसी रिपोर्ट के मुताबिक, इस वक्त 85 प्रतिशत शहरी भारतीय मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहा है, पर इनमें से 56 प्रतिशत फीचर फोन ही इस्तेमाल कर रहे हैं। फीचर फोन की बढ़ती लोकप्रियता का बड़ा कारण भारतीय परिस्थितियों में इनका एक औसत भारतीय के लिए सस्ता होना, दूसरा बिजली की कम उपलब्धता और स्मार्टफोन की बैटरी का जल्दी से खर्च होना है, जिससे उनको बार-बार चार्ज करना पड़ता है। वहीं फीचर फोन की बैटरी एक बार चार्ज करने के बाद लंबे समय तक चलती है।
फीचर फोन पुश बटन पर चलते हैं, जिसको चलाने के लिए किसी तरह की विशेषज्ञता की जरूरत नहीं होती है। यहां फोन का मतलब बातें करना और मैसेज भेजना भर है। अशिक्षा की वजह से इंटरनेट की बेसिक सुविधाओं का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता। लोगों के फीचर फोन पर इंटरनेट का ज्यादा प्रयोग न करने की एक बड़ी वजह इंटरनेट पर अब भी क्षेत्रीय भाषाओं में उतना कंटेंट नहीं है, जितना अंग्रेजी में है, और भारत का बड़ा तबका अब भी अशिक्षित है। इंटरनेट पर 55.8 प्रतिशत सामग्री अंग्रेजी में है, जबकि दुनिया की पांच प्रतिशत से भी कम आबादी अंग्रेजी का इस्तेमाल अपनी प्रथम भाषा के रूप में करती है। इसके बरक्स अरबी या हिंदी जैसी भाषाओं में, जो दुनिया में बड़े पैमाने पर बोली जाती हैं, इंटरनेट सामग्री क्रमश: 0.8 और 0.1 प्रतिशत उपलब्ध है। बीते कुछ वर्षों में इंटरनेट और कई सोशल नेटवर्किंग साइट्स जिस तरह लोगों की अभिव्यक्ति व अपेक्षाओं का माध्यम बनकर उभरी हैं, वह उल्लेखनीय जरूर है, मगर भारत की भाषाओं में जैसी विविधता है, वह इंटरनेट में नहीं दिखती। आज 40 करोड़ भारतीय अंग्रेजी भाषा की बजाय हिंदी भाषा की ज्यादा समझ रखते हैं, लिहाजा भारत में इंटरनेट को तभी गति मिल सकती है, जब इसकी अधिकतर सामग्री हिंदी समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में हो।स्मार्टफोन टच सक्रीन सुविधा से युक्त होते हैं। इनको चलाने के लिए थोडे़ अभ्यास की जरूरत पड़ती है। जाहिर है, तकनीक की सुलभता ही लोगों को उसके इस्तेमाल के लिए प्रेरित नहीं करती, बल्कि इसके पीछे प्रयोगकर्ता की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि भी काफी जिम्मेदार होती है। इसलिए फीचर फोन से स्मार्र्टफोन की तरफ एक आम भारतीय तब ज्यादा तेजी से बढ़ेगा, जब उसके आस-पास की परिस्थितियां बदलेंगी।
हिन्दुस्तान में 08/04/17 को प्रकाशित 

Tuesday, April 4, 2017

अपने हिस्से का पानी बचाएं

भारत विकास का जाप करते हुए एक ऐसी राष्ट्रीय आपदा के मुहाने पर आ चुका है जहाँ से पीछे लौटना मुश्किल दिख रहा है |हमारे आप के जीवन से जुड़ा अहम् मुद्दा जल का है पर दशकों के कुप्रबंधन और राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव और नेताओं में दूरगामी सोच का अभाव यह सब मिलाकर भारत में जल संकट को और भयावह बना रहा है |इन गर्मियों में भारत अब तक के सबसे बड़े जलसंकट का सामना करेगा |राज्यों के बीच नदियों के जल को लेकर झगडे लगातार बढ़ रहे हैं |हालत यह है कि हर झगडे में देश के सर्वोच्च न्यायालय को दखल देना पड़ रहा है |देश में चार केन्द्रीय संस्थाएं हैं जो भूजल विनियमन में काम कर रही हैं लेकिन सम्पूर्ण भारत के जल संसाधन का कोई केंद्रीयकृत आंकड़ा उपलब्ध नहीं है |साल 2016 में संसद की जल संसाधन स्टैंडिंग कमेटी ने एक राष्ट्रीय भूजल संसाधन डाटा बेस बनाने की संस्तुति की जिसे हर दो साल में अपडेट किया जाएगा ,पर व्यवहार में कुछ ठोस काम नहीं हुआ |देश के किसी भी शहर में पाईप द्वारा चौबीस घंटे स्वच्छ पानी देने की व्यवस्था नहीं है |इस समस्या की जड़ में हमारा लालच और सरकारों में दूरंदेसी की कमी साफ़ दिखती है जिसमें विकास समावेशी न होकर एकांगी हो गया है |भूजल निकासी के लिए कोई पर्याप्त कानून के न होने से जल के अवैध निकासी को बल मिला |बढ़ते शहरीकरण ने शहरों में वर्षा जल के पर्याप्त संरक्षण में कमी की जो शहरीकरण से पहले प्राकृतिक रूप से जमीन की मिट्टी में चला जाता था | नतीजा शहरों में गर्मी का लगातर  बढ़ना इण्डिया स्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहर लगातार गर्म होते जा रहे हैं कोलकाता में पिछले बीस सालों में वनाच्छादन 23.4प्रतिशत से गिरकर 7.3 प्रतिशत हो गया है वहीं निर्माण क्षेत्र में 190 प्रतिशत की वृद्धि हुई है साल 2030 तक कोलकाता के कुल क्षेत्रफल का मात्र 3.37प्रतिशत हिस्सा ही वनस्पतियों के क्षेत्र के रूप में ही बचेगा |अहमदाबाद में पिछले बीस सालों में वनाच्छादन 46 प्रतिशत से गिरकर 24 प्रतिशत पर आ गया है जबकि निर्माण क्षेत्र में 132 प्रतिशत की  वृद्धि हुई है साल 2030 तक वनस्पतियों के लिए शहर में मात्र तीन प्रतिशत जगह बचेगी |भोपाल में पिछले बाईस वर्षों में वनाच्छादन छाछट प्रतिशत से गिराकर बाईस प्रतिशत हो गया है और 2018 तक यह वनाच्छादन ग्यारह प्रतिशत रह जाएगा |वनों में कमी का मतलब वर्षा में कमी जो अंत में जल की कमी के रूप में समाने आता है | सतह के ऊपर के जल की स्थिति बहुत खराब है वहीं जमीन के अंदर के जल की स्थिति उससे भी ज्यादा खराब है |कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग ने जहाँ को प्रदूषित किया है वहीं उसके नीचे संचित  जल को भी नहीं छोड़ा है |शहरों में स्वच्छ जल की तलाश में वाटर प्यूरीफायर के व्यवसाय को पर लगा दिए हैं पर वाटर प्यूरीफायर पानी साफ़ करने के लिए कितना पानी बर्बाद कर रहे हैं इसकी बानगी मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी और क्म्प्रेहिंसिव इनीशिएटिव ऑन टेक्नोलॉजी इवाल्यूशन के संयुक्त शोध में मिलती है जो अहमदाबाद में हुए इस शोध के अनुसार छबीस लीटर पीने का पानी प्राप्त करने के लिए चौहत्तर लीटर नमकीन पानी को बहा दिया गया | कोई भी आर ओ उत्पादक इस बर्बाद हुए पानी को सहेजने का विकल्प उपभोक्ताओं को नहीं देता है जबकि इस पानी का इस्तेमाल नहाने पेड़ों को पानी देने और पीने के अलावा अन्य कार्यों में इनका इस्तेमाल किया जा सकता है |विकास का एक पक्ष ये भी है जिसमें जल जैसे कीमती संसाधन को यूँ ही बर्बाद किया जा रहा है |भारत में शहरीकरण बढ़ रहा है इसके लिए कोई शोध करने की आवश्यकता नहीं और शहरीकरण की पहली शर्त पक्के निर्माण जिसमें भारी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है पर भारत का कोई कानून इस निर्माण में होने वाले भू जल (पढ़ें पेयजल ) के इस्तेमाल के तौर तरीकों के विनियमन पर स्पष्ट नहीं है | जिसका परिणाम पानी के लगातार और नीचे जाने में आ रहा है |धनी लोग जल के ऊपर सरकार के ऊपर निर्भर नहीं रहना चाहते इसलिए वे शहरों में अंधाधुंध बोरिंग (सबमर्सिबल पम्प ) लगा कर जल की अवैध निकासी कर रहे हैं जिनका कोई आंकड़ा सरकार के पास नहीं हैं |नतीजा आय की द्रष्टि से दुर्बल लोग पानी के लिए सरकार द्वारा नल की सप्लाई वाले पानी पर निर्भर हैं जिसके समय में लगातार कमी आती जा रही है और वे कम और खराब गुणवत्ता वाले पानी के प्रयोग के लिए अभिशप्त हैं | जल संसाधन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 2001 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता के  आंकड़ों के सन्दर्भ में 2025 तक इसमें छतीस प्रतिशत की कमी आयेगी वहीं 2050 तक जब भारत की जनसँख्या 1.7 बिलियन होगी साठ प्रतिशत प्रति व्यक्ति कम जल की उपलब्धता  होगी |चेतावानी की घंटी बज चुकी है अब यह हमें तय करना है हम प्रकृति के साथ सबका विकास चाहते हैं या ऐसा विकास जो सिर्फ आर्थिक रूप से समर्द्ध लोगों के लिए हो |
अमर उजाला में 04/04/17 को प्रकाशित 

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