यादें भी कैसी कैसी याद आ जाती है। आजकल विकास की चर्चा खूब हो रही है बात ज्यादा पुरानी भी नहीं है ।हमारे घर में हैण्डपम्प लगा था और उसी से पूरे घर का काम चल जाता था फिर एक दिन पानी का कनेक्शन ले लिया गया लगा जिंदगी खूबसूरत हो गयी अब रोज हैण्डपम्प से पानी निकालने की ड्यूटी का झँझट खत्म हो गया।एक छोटे से टब में थोड़ा पानी जरूर इकट्ठा रखा जाता था वैसे भी नल में चौबीस घंटे पानी आता था फिर पानी आने का समय निर्धारित हो गया तो टंकी खरीदी गयी कुछ दिनों तक ड्रम से काम चला पर विकास के इस मॉडल में ड्रम बिलो स्टैंडर्ड था तो टीवी पर विज्ञापन देखकर सिंटैक्स की टंकी खरीदी गई और हमने अपना स्टैण्डर्ड मोहल्ले में ऊँचा किया |उधर नल में पानी लगातार कम होता जा रहा था तो फिर विकास की राह पर चलते हुए एक मोटरपम्प खरीदा गया जिससे जितनी देर भी पानी आता है उतनी देर में ज्यादा से ज्यादा पानी इकट्ठा कर लिया जाए ,(बढ़ते बिजली के बिल की कीमत पर )भले ही वह लोग परेशान हों जो मोटरपम्प न खरीद सकते हों और आर्थिक द्रष्टि से ऊँचे पायदान पर न हों ।अब घर का खाना उतना मजेदार नहीं होता था जो मां प्यार से किचन में पीढ़े पर बैठाकर खिलाती थी | कहीं किसी भी नल में चुल्लू लगाकर पानी पी लेना असभ्यता की निशानी माना जाने लग गया ।हम भी बड़े होकर कमाने लग गए और होटल में जब वेटर डब्बा बंद पानी की बोतल रख जाता तो मारे शर्म के ये न कह पाते कि सामान्य पानी लाओ पता तो लगे हम जिस शहर में बैठे हैं उसके पानी का स्वाद कैसा है ?आखिर हम वेटर के सामने अपने आपको बिलो स्टैण्डर्ड नहीं दिखाना चाहते थे तो डब्बा बंद पानी अपनी आदत में शुमार करते चले गये और विकास की अंधी दौड़ में पानी भी ग्लोबलाइज्ड हो रहा था ।डब्बा बंद पानी भी ब्रांड देखकर पीने लगे थे क्योंकि फलाना ब्रांड का पानी ज्यादा मंहगा और उसका विज्ञापन भी ज्यादा आता है तो वही पानी अच्छा होगा |अब नल का पानी ज्यादा देर नहीं आता और बोतलबंद पानी का बाजार दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा था ।हम भी विकसित होने की चाह में और पानी की गुणवत्ता खराब होने के कारण इस विकास की दौड़ में शामिल हो गए और नल के पानी में डिब्बा बंद पानी का स्वाद तलाशने लगे ।नतीजा एक एक वाटर प्यूरीफायर हमारे रसोई घर की शोभा बढ़ाने लग गया ।जमाना काफी तेज़ी से बदल रहा था ।पीलिया हैजा जैसी जल जनित बीमारी के बढ़ने की ख़बरें लगातार बढ़ने लग गईं | टीवी लगातार डरा रहा था कि सिर्फ वाटर प्यूरीफायर से काम न चलेगा तो अब आर ओ लगाइये जो मिनरल पानी में होने चाहिए वो तो हमने विकास की दौड़ में गंवा कर पानी को प्रदूषित कर दिया है तो मजबूरी में एक मंहगा एक आर ओ लगवाना पड़ा ।आर ओ हमारे घर पर लगी टंकी का पानी साफ़ करके हमको देता है और जितनी देर आर ओ पानी साफ़ करता है उसकी पाईप से साफ़ पानी जैसा कुछ लगातार नाली में बहता रहता है |यह वह पानी है जो पीने के लिए लाभदायक नहीं है पर घर के अन्य काम जैसे गाडी धोना, पोंछा लगाना ,पौधों को पानी देने में इस्तेमाल हो सकता है |नाली में बह जाता है |आर ओ बनाने वाली कम्पनी इस गंदे पानी को सहेजने का कोई विकल्प नहीं देती |पर आर ओ की टंकी से निकला पानी बिलकुल किसी डिब्बेबन्द पानी जैसा लगता है और अमीर होने का फील आता है जैसे हम घर में बिसलरी पी रहे हों ।वाकई हम बहुत तेजी से विकसित हो रहे हैं ।क्या करें ये चालीस पार का जीवन भी अजीब है सचमुच यादें बहुत याद आती हैं ।
प्रभात खबर में 11/04/17 को प्रकाशित
3 comments:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
It's true, in a race of being influenced my advertisement and a world of show-off, we are the least concern about this major issue of potable water, every passing year water level is decreasing, we hardly care about rainwater harvesting, and indeed there's a significant wastage of water while we enjoy the luxury of RO purifiers which we can easily store and use in household work. At the same, most of us tend to buy packaged water at restaurants or during any outing/marketplace where we don't usually carry a water bottle along with, which has flourished a new industry of packaged water and which at the end is resulting in decreasing water lever at much greater pace. I do agree with the water which is being supplied at our homes is not in the purest form, I remember, at my home RO was installed at the first place because we can't drink the water supplied from the state-run water board as at times they supply grey water and in spite of making many calls and complaints, nothing changed, that's another sad aspect that our government bodies don't tend to do their job as people working there are more keen towards enjoying the luxury of their secured job in spite of putting their duty at priority.
kaha jata hai jal hi ..jeevan hai
___ to sir jab hamara jeevan aur jeene ka trika badale ga....to panni pine ka tarika bhi to badle ga ..apki batto se mai sahmat hu ..ARJAN CHAUDHARY
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