Tuesday, April 4, 2017

अपने हिस्से का पानी बचाएं

भारत विकास का जाप करते हुए एक ऐसी राष्ट्रीय आपदा के मुहाने पर आ चुका है जहाँ से पीछे लौटना मुश्किल दिख रहा है |हमारे आप के जीवन से जुड़ा अहम् मुद्दा जल का है पर दशकों के कुप्रबंधन और राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव और नेताओं में दूरगामी सोच का अभाव यह सब मिलाकर भारत में जल संकट को और भयावह बना रहा है |इन गर्मियों में भारत अब तक के सबसे बड़े जलसंकट का सामना करेगा |राज्यों के बीच नदियों के जल को लेकर झगडे लगातार बढ़ रहे हैं |हालत यह है कि हर झगडे में देश के सर्वोच्च न्यायालय को दखल देना पड़ रहा है |देश में चार केन्द्रीय संस्थाएं हैं जो भूजल विनियमन में काम कर रही हैं लेकिन सम्पूर्ण भारत के जल संसाधन का कोई केंद्रीयकृत आंकड़ा उपलब्ध नहीं है |साल 2016 में संसद की जल संसाधन स्टैंडिंग कमेटी ने एक राष्ट्रीय भूजल संसाधन डाटा बेस बनाने की संस्तुति की जिसे हर दो साल में अपडेट किया जाएगा ,पर व्यवहार में कुछ ठोस काम नहीं हुआ |देश के किसी भी शहर में पाईप द्वारा चौबीस घंटे स्वच्छ पानी देने की व्यवस्था नहीं है |इस समस्या की जड़ में हमारा लालच और सरकारों में दूरंदेसी की कमी साफ़ दिखती है जिसमें विकास समावेशी न होकर एकांगी हो गया है |भूजल निकासी के लिए कोई पर्याप्त कानून के न होने से जल के अवैध निकासी को बल मिला |बढ़ते शहरीकरण ने शहरों में वर्षा जल के पर्याप्त संरक्षण में कमी की जो शहरीकरण से पहले प्राकृतिक रूप से जमीन की मिट्टी में चला जाता था | नतीजा शहरों में गर्मी का लगातर  बढ़ना इण्डिया स्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहर लगातार गर्म होते जा रहे हैं कोलकाता में पिछले बीस सालों में वनाच्छादन 23.4प्रतिशत से गिरकर 7.3 प्रतिशत हो गया है वहीं निर्माण क्षेत्र में 190 प्रतिशत की वृद्धि हुई है साल 2030 तक कोलकाता के कुल क्षेत्रफल का मात्र 3.37प्रतिशत हिस्सा ही वनस्पतियों के क्षेत्र के रूप में ही बचेगा |अहमदाबाद में पिछले बीस सालों में वनाच्छादन 46 प्रतिशत से गिरकर 24 प्रतिशत पर आ गया है जबकि निर्माण क्षेत्र में 132 प्रतिशत की  वृद्धि हुई है साल 2030 तक वनस्पतियों के लिए शहर में मात्र तीन प्रतिशत जगह बचेगी |भोपाल में पिछले बाईस वर्षों में वनाच्छादन छाछट प्रतिशत से गिराकर बाईस प्रतिशत हो गया है और 2018 तक यह वनाच्छादन ग्यारह प्रतिशत रह जाएगा |वनों में कमी का मतलब वर्षा में कमी जो अंत में जल की कमी के रूप में समाने आता है | सतह के ऊपर के जल की स्थिति बहुत खराब है वहीं जमीन के अंदर के जल की स्थिति उससे भी ज्यादा खराब है |कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग ने जहाँ को प्रदूषित किया है वहीं उसके नीचे संचित  जल को भी नहीं छोड़ा है |शहरों में स्वच्छ जल की तलाश में वाटर प्यूरीफायर के व्यवसाय को पर लगा दिए हैं पर वाटर प्यूरीफायर पानी साफ़ करने के लिए कितना पानी बर्बाद कर रहे हैं इसकी बानगी मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी और क्म्प्रेहिंसिव इनीशिएटिव ऑन टेक्नोलॉजी इवाल्यूशन के संयुक्त शोध में मिलती है जो अहमदाबाद में हुए इस शोध के अनुसार छबीस लीटर पीने का पानी प्राप्त करने के लिए चौहत्तर लीटर नमकीन पानी को बहा दिया गया | कोई भी आर ओ उत्पादक इस बर्बाद हुए पानी को सहेजने का विकल्प उपभोक्ताओं को नहीं देता है जबकि इस पानी का इस्तेमाल नहाने पेड़ों को पानी देने और पीने के अलावा अन्य कार्यों में इनका इस्तेमाल किया जा सकता है |विकास का एक पक्ष ये भी है जिसमें जल जैसे कीमती संसाधन को यूँ ही बर्बाद किया जा रहा है |भारत में शहरीकरण बढ़ रहा है इसके लिए कोई शोध करने की आवश्यकता नहीं और शहरीकरण की पहली शर्त पक्के निर्माण जिसमें भारी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है पर भारत का कोई कानून इस निर्माण में होने वाले भू जल (पढ़ें पेयजल ) के इस्तेमाल के तौर तरीकों के विनियमन पर स्पष्ट नहीं है | जिसका परिणाम पानी के लगातार और नीचे जाने में आ रहा है |धनी लोग जल के ऊपर सरकार के ऊपर निर्भर नहीं रहना चाहते इसलिए वे शहरों में अंधाधुंध बोरिंग (सबमर्सिबल पम्प ) लगा कर जल की अवैध निकासी कर रहे हैं जिनका कोई आंकड़ा सरकार के पास नहीं हैं |नतीजा आय की द्रष्टि से दुर्बल लोग पानी के लिए सरकार द्वारा नल की सप्लाई वाले पानी पर निर्भर हैं जिसके समय में लगातार कमी आती जा रही है और वे कम और खराब गुणवत्ता वाले पानी के प्रयोग के लिए अभिशप्त हैं | जल संसाधन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 2001 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता के  आंकड़ों के सन्दर्भ में 2025 तक इसमें छतीस प्रतिशत की कमी आयेगी वहीं 2050 तक जब भारत की जनसँख्या 1.7 बिलियन होगी साठ प्रतिशत प्रति व्यक्ति कम जल की उपलब्धता  होगी |चेतावानी की घंटी बज चुकी है अब यह हमें तय करना है हम प्रकृति के साथ सबका विकास चाहते हैं या ऐसा विकास जो सिर्फ आर्थिक रूप से समर्द्ध लोगों के लिए हो |
अमर उजाला में 04/04/17 को प्रकाशित 

6 comments:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन माखन लाल चतुर्वेदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Foodjustfood said...

Bhut accha lekh sir...punjab me bhi pestisides wala paani peekar logo me cancor hora h...yaha se ek cancer train bhi chalti h bikaner tk..jal hi jeevan h.

Vikas Verma said...

हर बात पर सरकार को ज़िम्मेदार ठहराना सही नही होगा क्योंकि जल का संरक्षण करना हर एक व्यक्ति का कर्तव्य है । इस पाप की भागीदार अगर सरकार 60% है तो हम लोग भी 40% जिम्मेदार है। सरकार से कही ज्यादा हम लोगो की जिम्मेदारी बनती है कि हम जल का उपयोग सही तरीके से करें। (विकास वर्मा)

Ketan said...

jal ki samasya aaj ki nahi hai, lekin hum log us par dhyan nahii kendrit karte hain sarkare paise kharch kar jati hain lekin halaat jyon ke tyon hi hojatey hain. uttar bharat ki halat to din par din kharab hi hoti ja ja rahi hai. lekin humare dkshin bharat me kuch rajya aise hain jahan jal prabandhan par bhot dhyan diya gaya haiaur vo anivarya bhi kiya gaya hai.
jal sankat humare jeevan me bhut jald hi ek badlaav laega aur vah vinaash karega manav jaati ka.

Unknown said...

The way you described the water issues is highly appreciable and at individual level we can safe a little amount of water so that people get influenced by us and join us to form a chain and this can lead to mass change.. As we know that water water every where ,clean water very rare. So save water save life.

Akshaya Bhargava said...

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