Thursday, June 15, 2017

कैसे कारगर हो कूड़ा प्रबंधन

आधुनिक विकास की अवधारणा के साथ ही कूड़े की समस्या मानव सभ्यता के साथ आयी |जब तक यह प्रव्रत्ति प्रकृति सापेक्ष थी परेशानी की कोई बात नहीं रही पर इंसान जैसे जैसे प्रकृति को चुनौती देता गया कूड़ा प्रबंधन एक गंभीर समस्या में तब्दील होता गया क्योंकि मानव ऐसा कूड़ा छोड़ रहा था जो प्रकृतिक तरीके से समाप्त  नहीं होता या जिसके क्षय में पर्याप्त समय लगता है और उसी बीच कई गुना और कूड़ा इकट्ठा हो जाता है जो इस प्रक्रिया को और लम्बा कर देता है जिससे कई तरह के प्रदुषण का जन्म होता है और साफ़ सफाई की समस्या उत्पन्न होती है |भारत ऐसे में दो मोर्चे पर लड़ाई लड़ रहा है एक प्रदूषण और दूसरी स्वच्छता की | वेस्ट टू एनर्जी  रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी कोलम्बिया विश्वविद्यालय के एक  शोध के मुताबिक  भारत में अपर्याप्त कूड़ा  प्रबन्धन  बाईस तरह की बीमारियों का वाहक बनता है |कूड़े में  पौलीथीन एक ऐसा ही उत्पाद है जिसका भारत जैसे विकासशील देश में बहुतायत से उपयोग होता है पर जब यह पौलीथीन कूड़े में तब्दील हो जाती है तब इसके निस्तारण की कोई ठोस योजना हमारे पास नहीं है |लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में भारत सरकार  ने बताया देश में पंद्रह हजार टन प्लास्टिक कूड़ा पैदा होता है जिसमें से छ हजार टन उठाया नहीं जाता है और वह ऐसे ही बिखरा रहता है |पिछले एक दशक  में भारतीय रहन सहन में पर्याप्त बदलाव आये हैं और लोग प्लास्टिक की बोतल और प्लास्टिक में लिपटे हुए उत्पाद सुविधाजनक होने के कारण ज्यादा प्रयोग करने लग गए हैं |केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2014-15 में 51.4 मिलीयन टन ठोस कूड़ा निकला जिसमें से इक्यानबे प्रतिशत इकट्ठा कर लिया गया जिसमें से मात्र सत्ताईस प्रतिशत का निस्तारण किया गया शेष तिहत्तर प्रतिशत कूड़े को डंपिंग साईट्स में दबा दिया गया इस ठोस कूड़े में बड़ी मात्रा पौलीथीन की है जो जमीन के अंदर जमीन की उर्वरा शक्ति को प्रभावित कर उसे प्रदूषित कर रही है | भारत सरकार की स्वच्छता स्थिति रिपोर्ट” के अनुसार  देश में कूड़ा प्रबंधन (वेस्ट मैनेजमेंट) एक बड़ी समस्या है | इस रिपोर्ट में भारतीय आंकड़ा सर्वेक्षण कार्यालय (एन एस एस ओ ) से प्राप्त आंकड़ों को आधार बनाया गया है |ग्रामीण भारत में तरल कूड़े के लिए कोई कारगर व्यवस्था नहीं है जिसमें मानव मल भी शामिल है देश के 56.4 प्रतिशत शहरी वार्ड में सीवर की व्यवस्था का प्रावधान है आंकड़ों के मुताबिक़ देश का अस्सी प्रतिशत कूड़ा नदियों तालाबों और झीलों में बहा दिया जाता है|यह तरल कूड़ा पानी के स्रोतों को प्रदूषित कर देता है|यह एक गम्भीर समस्या है क्योंकि भूजल ही पेयजल का प्राथमिक स्रोत है |प्रदूषित पेयजल स्वास्थ्य संबंधी कई तरह की समस्याएं पैदा करता है जिसका असर देश के मानव संसधान पर भी पड़ता है |गाँवों में कूड़ा प्रबंधन का कोई तंत्र नहीं है लोग कूड़ा या तो घर के बाहर या खेतों ऐसे ही में डाल देते हैं |शहरों की हालत गाँवों से थोड़ी बेहतर है जहाँ 64 प्रतिशत वार्डों में कूड़ा फेंकने की जगह निर्धारित है लेकिन उसमें से मात्र 48 प्रतिशत ही रोज साफ़ किये जाते हैं |देश के तैंतालीस प्रतिशत शहरी वार्ड में घर घर जाकर कूड़ा एकत्र करने की सुविधा उपलब्ध है | कूड़ा और मल का अगर उचित प्रबंधन नहीं हो रहा है तो भारत कभी स्वच्छ नहीं हो पायेगा |दिल्ली और मुंबई  जैसे भारत के बड़े महानगर वैसे ही जगह की कमी का सामना कर रहे हैं वहां कूड़ा एकत्र करने की कोई उपयुक्त जगह नहीं है ऐसे में कूड़ा किसी एक खाली जगह डाला जाने लगता है वो धीरे –धीरे कूड़े के पहाड़ में तब्दील होने लग जाता है और फिर यही कूड़ा हवा के साथ उड़कर या अन्य कारणों से साफ़ –सफाई को प्रभावित करता है जिससे पहले हुई सफाई का कोई मतलब नहीं रहा जाता |उसी कड़ी में ई कूड़ा भी शामिल है | ई-कचरा या ई वेस्ट एक ऐसा शब्द है जो तरक्की के इस प्रतीक के दूसरे पहलू की ओर इशारा करता है वह पहलू है पर्यावरण की बर्बादी । भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में प्रतिवर्ष लगभग ४ लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है. राज्यसभा सचिवालय द्वारा  'ई-वेस्ट इन इंडियाके नाम से प्रकाशित एक दस्तावेज के अनुसार भारत में उत्पन्न होने वाले कुल ई-कचरे का लगभग सत्तर प्रतिशत केवल दस  राज्यों और लगभग साठ प्रतिशत कुल पैंसठ शहरों से आता है| दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में ई-कचरे के उत्पादन में मामले में महाराष्ट्र और तमिल नाडु जैसे समृृद्ध राज्य और मुंबई और दिल्ली जैसे महानगर अव्वल हैं | एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार देश का लगभग ९० प्रतिशत ई-कचरा असंगठित क्षेत्र केअप्रशिक्षित लोगों द्वारा निस्तारित किया जाता है| 
अमर उजाला में 15/06/17 को प्रकाशित 

8 comments:

Foodjustfood said...

Sir bhut accha artical h....apke blog se hindi me nibandh likhne practice kr ri hu

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व एथनिक दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

प्रतिभा सक्सेना said...

गंभीर समस्या -लोगों को सचेत रह कर अपनी आदतों में थोड़ा फेर-बदल करना ज़रूरी है और थ्रो-अवे कल्चर से सावधान रह कर प्रकृति के अनुकूल होने का प्रयास भी हो तो काफ़ी अंतर पड़ सकता है.

Jyoti khare said...

बेहद गंभीर समस्या है पर आज भी पढ़ा लिखा वर्ग सड़कों पर कचरा फेंक रहा है ---
सार्थक और सटीक चित्रण किया है
सचेत करता आलेख
बधाई

RAJEEV YADAV said...

ऐसे तो कूङा प्रबंधन के ढेर सारे तरीके हैं परन्तु इनमें से एक तरीका यह भी है कि कागज को रीसायकल कर कम से कम उतने और पेड़ों को तो कटने से रोका जा सकता है। वहीं कचरा निस्तारण में घरों से निकले आर्गेनिक कचरे को बायो कंपोस्ट और मीथेन गैस में बदल कर लोगों द्वारा उपयोग किए गए खाद्य पदार्थों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित किया जा रहा है। मीथेन गैस जहां ऊर्जा का बेहतरीन स्रोत है वहीं जैविक खाद मिट्टी की ऊर्वरता को स्वाभाविक रूप से बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है। यह किसानों की कृत्रिम खाद पर निर्भरता को भी कम करती है। जैविक खाद से बने उत्पादों की बाज़ार में अच्छी खासी कीमत मिलती है। माने कि आम के आम गुठलियों के भी दाम।

Raksha Singh said...

कूड़े की समस्या वर्तमान समय में देश की प्रमुख समस्या में से एक है जो कि आने वाले वक़्त में और भी जटिल होने वाली है| तेज़ी से बढ़ रहे कचरे के प्रबंधन के लिए अब तक सरकार के द्वारा बनाए गये नियमों का क्रियान्वयन और लोगों को उनकी ज़िम्मेदारियों के प्रति सचेत करना अत्यंत आवश्यक है |
साथ ही ज़िम्मेदार संस्थाओं को इस मसले पर विशेष ध्यान देना चाहिए और भविष्य के लिए उचित इंतज़ाम करने चाहिए |

Unknown said...

Pollution is one of the major cause now a days although government has implemented many rules and act related to pollution but as a responsible citizen it's our duty to co ordinate with the government in order to reduce pollution.

anil kumar gautam said...

हाल ही में भारत के स्वच्छ भारत अभियान की राष्ट्रीय विशेषज्ञ रागिनी जैन ने कचरा निष्पादन से जुड़ा एक ऐसा उपाय प्रस्तुत किया है, जो सुरक्षित और लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

इस प्रक्रिया में कूड़े के पहाड़ों को अलग-अलग भागों में एक प्रकार से काटकर उन्हें सीढ़ीनुमा बना दिया जाता है। इससे उनके अंदर पर्याप्त वायु प्रवेश कर पाती है और लीचेट नामक द्रव अंदर भूमि में जाने के बजाय बहकर बाहर आ जाता है। कूड़े के हर ढेर को सप्ताह में चार बार पलटा जाता है। उस पर कॅम्पोस्ट माइक्रोब्स का छिड़काव किया जाता है, जिससे उसे जैविक मिश्रण के रूप में बदला जा सके। इस चार बार के चक्र में कूड़े का ढेर 40 प्रतिशत कम हो जाता है। इस प्रकार उसका जीवोपचारण कर दिया जाता है। लीचेट के उपचार के लिए भी कुछ सूक्ष्म जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद जैव खनन के द्वारा इसका उपयोग खाद, सड़कों की मरम्मत, रिफ्यूज डिराइव्ड फ्यूल पैलेट, प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग और भूमि भराव के लिए किया जा सकता है।जीवोपचार से कचरा निष्पादन करने के प्रयास में अनेक उद्यमी एवं अन्वेषक लगे हुए हैं। इस प्रकार के उपचार से कचरे से पटी भूमि अन्य कार्यों के भी उपयुक्त हो जाती है। यह सुरक्षित, सरल और मितव्ययी प्रणाली है।
आपका सुनील कुमार गौतम

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