पीलिंग की अगली सुबह कंचनजंघा पर्वतमाला में
सूर्योदय के साथ शुरू हुई |सिर्फ चिड़ियों की चहचाहट और कोई मशीनी शोर नहीं ऐसी
सुबह का आनन्द दशकों बाद उठाया था |गर्म पानी से नहाने के बाद एक बार फिर स्थानीय
पर्यटन शुरू जो होना था |गाडी में कुछ दूर चलते ही पता लगा सडक पर जाम लगा पीछे
गाड़ियों का काफिला बढ़ता ही गया पता चला आगे सडक पर बनाने का काम चल रहा है पर मजाल
है किसी गाडी में हॉर्न की आवाज सुनाई पडी हो लगभग आधे घंटे के बाद सडक थोड़ी देर
के लिए खोली गयी और हमारी गाडी उस जाम में से निकल गयी |
अगला पड़ाव था रिम्बी फाल या रिम्बी जलप्रपात वैसे सच बताऊँ तो सिक्किम झरनों का प्रदेश है आप सडक से कहीं की भी थोड़ी दूरी की यात्रा कीजिये आपको किसी न किसी पहाड़ से कोई झरना गिरता जरुर दिखेगा हाँ ये जरुर हो सकता है कि आकार में जो झरने के मानक हैं वो उस पर खरा न उतरे पर पानी पहाड़ों से गिरता आपको यत्र –तत्र दिख ही जाएगा तो रिम्बी झरना बस आकार में थोडा बड़ा है इसलिए वह एक पर्यटक स्थल बन गया है पर यहाँ के पर्यटक स्थल पर आपको स्थानीय लोग नहीं दिखेंगे और न ही भीड़ भाड़ रहती है गंदगी का नामों निशाँ नहीं है हाँ और जो गंदगी दिखेगी वो बाहर से आये पर्यटकों का छोड़ा हुआ सामान होगा |मतलब आम सिक्किम का निवासी पर्यवरण के प्रति खासा जागरूक है |रिम्बी फाल्स में ऐसा कुछ नहीं था जो अनोखा हो एक झरना जो काफी उंचाई से गिर रहा था पूरा का पूरा वातावरण प्रक्रतिक था और कोई भी मानवीय ढाँचे का निर्माण वहां नहीं किया गया था |यहीं रास्ते में दरप गाँव पड़ता है जहाँ बड़ी ईलायची की खेती होती है और कई सारे होम स्टे हैं जहाँ आप घर के वातावरण में रहकर पीलिंग की खूबसूरती का आनंद ले सकते हैं और ये होटल के मुकाबले सस्ते पड़ते हैं पर होटल की लक्जरी आपको नहीं मिलेगी जो कुछ मिलेगा वो सब प्राकृतिक होगा | अब बारी थी सिक्किम का एक बाग़ देखने की थी यूँ तो बाग़ में देखने कुछ होता नहीं पर यह सिक्किम का एक संतरे का बाग़ था |घुमावदार सीढीयों में तरह -तरह के पेड़ पौधे और उनके पीछे एक पहाडी नदी कल कल बह रही थी |संतरे का मौसम न होने के कारण हमें संतरे के छोटे -छोटे कच्चे फलों को देखकर दिल को खुश करना पड़ा जो भी हो पार्क था बहुत लुभावना |
अगला पड़ाव था रिम्बी फाल या रिम्बी जलप्रपात वैसे सच बताऊँ तो सिक्किम झरनों का प्रदेश है आप सडक से कहीं की भी थोड़ी दूरी की यात्रा कीजिये आपको किसी न किसी पहाड़ से कोई झरना गिरता जरुर दिखेगा हाँ ये जरुर हो सकता है कि आकार में जो झरने के मानक हैं वो उस पर खरा न उतरे पर पानी पहाड़ों से गिरता आपको यत्र –तत्र दिख ही जाएगा तो रिम्बी झरना बस आकार में थोडा बड़ा है इसलिए वह एक पर्यटक स्थल बन गया है पर यहाँ के पर्यटक स्थल पर आपको स्थानीय लोग नहीं दिखेंगे और न ही भीड़ भाड़ रहती है गंदगी का नामों निशाँ नहीं है हाँ और जो गंदगी दिखेगी वो बाहर से आये पर्यटकों का छोड़ा हुआ सामान होगा |मतलब आम सिक्किम का निवासी पर्यवरण के प्रति खासा जागरूक है |रिम्बी फाल्स में ऐसा कुछ नहीं था जो अनोखा हो एक झरना जो काफी उंचाई से गिर रहा था पूरा का पूरा वातावरण प्रक्रतिक था और कोई भी मानवीय ढाँचे का निर्माण वहां नहीं किया गया था |यहीं रास्ते में दरप गाँव पड़ता है जहाँ बड़ी ईलायची की खेती होती है और कई सारे होम स्टे हैं जहाँ आप घर के वातावरण में रहकर पीलिंग की खूबसूरती का आनंद ले सकते हैं और ये होटल के मुकाबले सस्ते पड़ते हैं पर होटल की लक्जरी आपको नहीं मिलेगी जो कुछ मिलेगा वो सब प्राकृतिक होगा | अब बारी थी सिक्किम का एक बाग़ देखने की थी यूँ तो बाग़ में देखने कुछ होता नहीं पर यह सिक्किम का एक संतरे का बाग़ था |घुमावदार सीढीयों में तरह -तरह के पेड़ पौधे और उनके पीछे एक पहाडी नदी कल कल बह रही थी |संतरे का मौसम न होने के कारण हमें संतरे के छोटे -छोटे कच्चे फलों को देखकर दिल को खुश करना पड़ा जो भी हो पार्क था बहुत लुभावना |
सिक्किम का संतरे का बाग़ |
खेतोपलारी झील |
प्राकृतिक तौर पर यह इलाका पर्याप्त
जैव विविधता लिए हुए था रास्तों और पहाड़ों पर जमी हुई काई बता रही थी कि यहाँ
बारिश का पानी सूखने नहीं पाता कारण चारों तरफ ऊँचे ऊँचे पेड़ों का होना जो सूर्य
की किरणों को धरती पर आने से रोक लेते हैं इसीलिये झील से मुख्य मार्ग का रास्ता
जो करीब एक किलोमीटर का था ठंडा और फिसलन भरा था जबकि बाहर सूर्य अपनी तेजी के साथ
विराजमान था |दोपहर के बारह चुके थे अब हमें पीलिंग वापस लौटना था और वहां से
दार्जिलिंग के लिए प्रस्थान करना था |
करीब एक घंटे के बाद हम दार्जिलिंग के रास्ते
में थे पीलिंग से दार्जिलिंग तक की दूरी करीब चार घंटे में पूरी होनी थी इस यात्रा
के शुरू होने से पूर्व ही दार्जिलिंग में तनाव शुरू हो गया था
और हम निश्चिन्त नहीं थे कि हम दार्जिलिंग पहुँच पायेंगे भी या नहीं खैर उस दिन हमें बताया गया कि दार्जिलिंग में सब ठीक थे और आप दार्जिलिंग जा सकते हैं |वैसे एक बात बताऊँ जिन्दगी में घूमने का सिलसिला बड़ी देर से शुरू हुआ पर जब से मैंने होश सम्हाला अगर कहीं जाने का मन होता था तो वह दार्जीलिंग ही था शायद इसके लिए वे हिन्दी फ़िल्में जिम्मेदार थी जो उन दिनों दूरदर्शन पर दिखाई जाती थीं तो मन बल्लियों उछल रहा था कि आखिरकार मेरे जीवन की यह अधूरी इच्छा भी पूरी होने वाली है |सिक्किम पश्चिम बंगाल द्वारा प्रशासित स्वायत्तशासी क्षेत्र है जो सिक्किम से एक दम सटा हुआ है और इस क्षेत्र के अधिकतर निवासी नेपाली मूल के हैं जोअपने लिए अलग राज्य गोरखा लैंड की मांग लम्बे समय से कर रहे हैं |सिक्किम राज्य तक को सडक बहुत अच्छी है पर जहाँ से सिक्किम खत्म होता है और पश्चिम बंगाल की सीमा शुरू होती है रास्ता वहीं से खराब होना शुरू हुआ और जिसका चरम था दार्जिलिंग से पहले के पंद्रह किलोमीटर का रास्ता उस पहाडी रास्ते में आपको सडक खोजनी पड़ेगी |
थोड़ी देर समतल इलाके में चलने
के बाद एक बार फिर हमारी गाडी पहाडी पर चढ़ने लगी |आस-पास के चाय बागान बता रहे थे
हम दार्जिलिंग आ चुके थे पर शहर अभी थोड़ी दूरी पर था |
शहर में घुसने पर दार्जिलिंग
को लेकर जो मेरे सपने थे वो धीरे धीरे ध्वस्त होने शुरू हुए |काफी गन्दा शहर लोगों
और गाड़ियों से भरा हुआ जैसे गर्मियों में शिमला और मंसूरी का हाल होता है लेकिन
शहर में तनाव साफ़ महसूस किया जा सकता था जगह –जगह सेना और पुलिस की मौजूदगी यह बता
रही थी कि सब ठीक नहीं है |हमारा ड्राइवर जिसका नाम मैं भूल चुका हूँ दार्जिलिंग
की समस्या के बारे में बता रहा था और अभी जो आग भड़की है उसके पीछे ममता बनर्जी
सरकार का बंगाली भाषा को अनिवार्य बनाने का तुगलकी फैसला था पर इसी के साथ अलग
राज्य की मांग भी जोर पकड़ गयी जिससे हिंसा होने लग गयी |सच बताऊँ तो दार्जिलिंग को
देखकर यह अहसास हुआ कि मैं यहाँ दोबारा नहीं आना चाहूँगा |अतिक्रमण और अनाधिकृत
निर्माण ने पहाड़ों को बर्बाद कर दिया है हर जगह पर्यटकों की भीड़ और गंदगी |शाम हो
चुकी थी इसलिए अब आराम का वक्त था वैसे भी सुबह साढ़े तीन बजे उठकर टाइगर हिल पर
सूर्योदय देखने जाने का कार्यक्रम था हालंकि मेरी इसमें कोई रूचि नहीं थी पर एक
बार फिर जनमत के फैसले के आगे झुकना पड़ा |
सुबह साढ़े तीन बजे दार्जिलिंग में ठीक
ठाक ठण्ड थी हम टाइगर हिल जाने के लिए निकल पड़े |गाड़ियों और लोगों का हुजूम धीरे –धीरे
बढ़ता गया उस जगह जहाँ से सूर्योदय का नजारा किया जाना था सुबह के चार बजे एक छोटा
मोटा बाजार लगा था जहाँ ऊनी कपडे बिक रहे थे और हैरत की बात है लोग खरीद भी रहे थे
|कुछ युवतियां थर्मस में कॉफ़ी बेच रही थी मैंने एक कोट डाल रखा था पर ठण्ड से बचने
के लिए कॉफ़ी एक अच्छा विकल्प था बीस रुपये में एक छोटे से कागज के कप में कॉफ़ी
मिली जो मीठी ज्यादा थी |आसमान का माहौल देखकर मैंने अंदाजा लगा लिया आज सूरज नहीं
दिखेगा क्योंकि आसमान में बादल थे तो कंचनजंघा की चोटियों में से आज सूरज के दर्शन
न हो पायेंगे इसलिए मैं वहां से पहले ही खिसक लिया और मेरा यह निर्णय सही साबित
हुआ क्योंकि उस दिन सूरज नहीं निकला और हम
सूर्योदय के बाद गाड़ियों की होने वाली भागम भाग और जाम से बचकर पहले निकल गए |लौटते
वक्त बतासिया लूप मेमोरियल पार्क का भ्रमण किया गया |
बतासिया लूप दार्जिलिंग
हिमालयन रेलवे का एक स्टेशन है जहाँ एक वार मेमोरियल भी बनाया गया है जहाँ गोरखा
रेजीमेंट के उन सारे जवानों के नाम अंकित है जो 1987 के बाद वीरगति को प्राप्त हुए
|बतासिया लूप एक ऐसा स्टेशन है जहाँ रेलवे की पटरियां अंगरेजी का आठ बनाती हैं |अब
कुछ बातें दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे के बारे में दार्जिलिंग को विकसित करने का
श्रेय अंग्रेजों को जाता है यहाँ 1881 से नेरो
गेज की ट्रेन अभी भी चलती है जिसे यूनेस्को की तरफ से वर्ल्ड हेरीटेज का दर्जा
मिला है यह दो तरह के रास्ते पर चलती है पहला दार्जिलिंग से घूम स्टेशन जिसका आनंद
जयादातर पर्यटक उठाते हैं इसे टॉय ट्रेन के नाम से जाना जाता है पर इसका किराया
बहुत मंहगा है और दूसरा दार्जिलिंग से सिलीगुड़ी जिसमें यह ट्रेन सत्तर किलोमीटर का
रास्ता यह ट्रेन करीब आठ घंटे में पूरा करती है |
सडक से सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग का रास्ता बहुत अच्छा होने के कारण यह दूरी अब तीन घंटे में सिमट गयी है इसलिए लोग अब ट्रेन को प्राथमिकता नहीं देते ऐसे पर्यटक जिनके पास समय है और प्रकृति से प्यार वही अब इस ट्रेन से दार्जिलिंग तक का सफ़र तय करते हैं वैसे लम्बे समय तक यह टॉय ट्रेन मुम्बईया फिल्मों का हिस्सा रही है |आराधना फिल्म का वह मशहूर गाना “मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू” कौन भूल सकता है जो इसी ट्रेन पर शूट हुआ है |हम इस ट्रेन को चलता हुआ न देख पाए क्योंकि दार्जिलिंग में तनाव के कारण यह ट्रेन बंद थी हां यार्ड में जाकर जरुर इस ट्रेन को निहारा जो पिछले सौ सालों से भी ज्यादा दार्जिलिंग के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बनी हुई है |
ट्रेन के मुख्य ट्रैक पर
यहाँ मेक शिफ्ट अरेंजमेंट वाली कई दुकानें भी हैं जो ट्रेन के आने पर बंद हो जाती
हैं और जाने के बाद फिर खुल जाती हैं |बतासिया लूप पर सस्ते उनी कपडे आप खरीद सकते
हैं |
और हम निश्चिन्त नहीं थे कि हम दार्जिलिंग पहुँच पायेंगे भी या नहीं खैर उस दिन हमें बताया गया कि दार्जिलिंग में सब ठीक थे और आप दार्जिलिंग जा सकते हैं |वैसे एक बात बताऊँ जिन्दगी में घूमने का सिलसिला बड़ी देर से शुरू हुआ पर जब से मैंने होश सम्हाला अगर कहीं जाने का मन होता था तो वह दार्जीलिंग ही था शायद इसके लिए वे हिन्दी फ़िल्में जिम्मेदार थी जो उन दिनों दूरदर्शन पर दिखाई जाती थीं तो मन बल्लियों उछल रहा था कि आखिरकार मेरे जीवन की यह अधूरी इच्छा भी पूरी होने वाली है |सिक्किम पश्चिम बंगाल द्वारा प्रशासित स्वायत्तशासी क्षेत्र है जो सिक्किम से एक दम सटा हुआ है और इस क्षेत्र के अधिकतर निवासी नेपाली मूल के हैं जोअपने लिए अलग राज्य गोरखा लैंड की मांग लम्बे समय से कर रहे हैं |सिक्किम राज्य तक को सडक बहुत अच्छी है पर जहाँ से सिक्किम खत्म होता है और पश्चिम बंगाल की सीमा शुरू होती है रास्ता वहीं से खराब होना शुरू हुआ और जिसका चरम था दार्जिलिंग से पहले के पंद्रह किलोमीटर का रास्ता उस पहाडी रास्ते में आपको सडक खोजनी पड़ेगी |
दार्जिलिंग पीस पगोड़ा |
यार्ड में खड़ी टॉय ट्रेन |
टाइगर हिल से सूर्योदय |
बतासिया वार मेमोरियल :फोटो साभार गूगल |
सडक से सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग का रास्ता बहुत अच्छा होने के कारण यह दूरी अब तीन घंटे में सिमट गयी है इसलिए लोग अब ट्रेन को प्राथमिकता नहीं देते ऐसे पर्यटक जिनके पास समय है और प्रकृति से प्यार वही अब इस ट्रेन से दार्जिलिंग तक का सफ़र तय करते हैं वैसे लम्बे समय तक यह टॉय ट्रेन मुम्बईया फिल्मों का हिस्सा रही है |आराधना फिल्म का वह मशहूर गाना “मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू” कौन भूल सकता है जो इसी ट्रेन पर शूट हुआ है |हम इस ट्रेन को चलता हुआ न देख पाए क्योंकि दार्जिलिंग में तनाव के कारण यह ट्रेन बंद थी हां यार्ड में जाकर जरुर इस ट्रेन को निहारा जो पिछले सौ सालों से भी ज्यादा दार्जिलिंग के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बनी हुई है |
पटरियों पर सजा बाजार |
होटल लौट कर थोडा सुस्ताने के बाद हम जापान
सरकार द्वारा निर्मित पीस पेगोडा देखने गये तब तक बादल पूरे दार्जिलिंग को अपने जद
में ले चुके थे और ऐसे मौसम में किसी पेगोडा को देखना उसकी सार्थकता सिद्ध कर रहा
था शान्ति निस्तब्धता और प्रकृति का साथ |हम उसकी खूबसूरती में खोये ही थे तभी
मेरी तन्द्रा को एक बुरी खबर ने तोडा शहर में हड़ताल हो गयी हम लोगों को तुरंत होटल
लौटना होगा |लौटते वक्त वो दार्जिलिंग जो भीड़ और गाड़ियों से भरा था एकदम खाली हो
गया हम जल्दी से होटल पहुंचे |बंद इतना जबरदस्त था कि हमारे होटल भी ताला पड़ा हुआ
था हम लोगों के पहुँचने पर गेट खुला और फिर ताला बंद हो गया |अब दार्जिलिंग घूमने
का सारा कार्यक्रम मुल्तवी होकर इस पर केन्द्रित था कि सुरक्षित वापस बागडोगरा
कैसे पहुंचा जाए जहाँ से हमारी उड़ान अगले दिन थी पूरी दोपहर टैक्सी के जुगाड़ में
बीत गयी करते –करते शाम को पांच बजे हम लोग दार्जिलिंग से सिलीगुड़ी के लिए निकले और
रात आठ बजे सिलीगुड़ी पहुँच गये |एक यात्रा अपने अंत की तरफ थी पर जिन्दगी की
यात्रा और भटकन अभी भी जारी है किसी नए पड़ाव के इन्तजार में |
सिक्किम पर प्रख्यात निर्देशक सत्यजीत रे द्वारा बनाया गया वृत्तचित्र देखना चाहें तो यहाँ क्लिक करें |
सिक्किम पर प्रख्यात निर्देशक सत्यजीत रे द्वारा बनाया गया वृत्तचित्र देखना चाहें तो यहाँ क्लिक करें |
भारतीय रेल के अप्रैल 2021 के अंक में प्रकाशित
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