विदा गंगटोंक |
धीरे –धीरे गंगटोंक पीछे छूट गया और अब हम थे और हरे भरे पहाड़ आधा रास्ता वही था जिन रास्तों में हम पिछले दो दिन से आ जा रहे थे पर उसके बाद सब कुछ बदल जाने वाला था |रास्ता लम्बा था इसलिए मेरी नजर पर सडक पर चल रही गतिविधियों पर थी |हम लगभग जंगल में चल रहे थे पर बीच-बीच में अपनी एक मोटरसाइकिल के साथ पुलिस कभी कभार दिख जाती थी इसमें ख़ास बात यह थी कि इनमें ज्यादातर महिलाएं थी जो उस वीराने में बगैर किसी भय के अपनी ड्यूटी बजा रही थी न बैठने के लिए कुर्सी न आस –पास कोई आबादी पर वो मुस्तैद थीं |मैंने कहीं पढ़ा था हमें वैसी पुलिस मिलती है जैसा हमारा समाज होता है सच है सिक्किम का समाज डरा हुआ नहीं था और नियम को मानने वाला भी |उत्तर भारत में दिन के समय भी कोई जगह लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है पर यहाँ कोई समस्या नहीं है |
बुद्ध की एक सौ तीस फीट ऊँची मूर्ति |
स्कूल जल्दी ही बंद होने वाले थे यहाँ गर्मियों की छुट्टियाँ बारिश में शुरू होती हैं इस वक्त परीक्षा का मौसम चल रहा था रास्ते में दो तीन के झुण्ड में लड़के लड़कियां अपना प्रश्न पत्र और क्लिप बोर्ड लिए आते जाते दिख रहे थे |इस वीराने में जहाँ गाड़ियाँ भी ज्यादा नहीं चल रही थी वो आराम से हँसते खेलते हुए अपनी मंजिल की तरफ बढे जा रहे थे |रास्ते में पड़ने वाले गाँवों में आबादी ज्यादा नहीं थी पर एक चीज जो मुझे बार –बार मोहित कर रही थी यहाँ की लड़कियों के चेहरे पर छाई मुस्कान, इतनी अलहड़ और उन्मुक्त मुस्कान जिस पर मोहित हुए बगैर नहीं रहा जा सकता |उनके पहनावे से यह अंदाजा लगाया जा सकता था कि यहाँ लड़कियों के पहनावे से उनके चरित्र की पहचान नहीं होती है हम नेशनल हाइवे से गुजर रहे थे और रास्ते में पड़ने वाली दुकानों में ज्यादातर लड़कियां ही थीं जो शॉर्ट्स और टी शर्ट में बड़े आराम से अपनी दुकान के सामने बैठी थी या ग्राहकों को सामान बेच रही थी बगैर किसी हिचक के पूरे आत्मविश्वास के |
सूना पेट्रोल पम्प और पीछे कंचनजंघा की चोटियाँ |
पहाड़ पूरी तरह से यहाँ संजोये गए हैं और विकास का वह रोग अभी यहाँ नहीं पहुंचा है |सिक्किम में सीढ़ीदार खेतों में खेती होती है जिनमें बड़ी इलायची और संतरा प्रमुख हैं |खेतों में यूरिया का इस्तेमाल नहीं होता और सरकार भी ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देती है इसलिए यहाँ आपको खाने के लिए जो कुछ मिलेगा वह शुद्ध ही मिलेगा |प्रदुषण न होने से शुद्धता का स्तर कई गुना बढ़ जाता है |रास्ते में हमारे ड्राइवर ने बताया कि रवानगला कस्बे में एक बुद्ध पार्क पड़ता है|बस उसको देखने की इच्छा बलवती हो उठी गाडी घुमवाई गयी |एक सौ तीस फुट ऊँची बुद्ध की प्रतिमा दूर से ही दिखती है |
पीलिंग की वो सुहानी शाम |
मेरे कमरे से बाहर का नजारा |
एक स्थानीय निवासी से बात करने पर पता चला यहाँ कुछ भी नहीं है बस मौसम के कारण सैलानी आते हैं तो आपको सिर्फ होटल ही मिलेंगे पर पीलिंग की वो शाम आज भी मेरे जेहन में जीवंत है पहाड़ जब धीरे धीरे हरे से काले होते जा रहे थे सड़कों पर गाड़ियों की हेडलाईट चमक रही थीं और मैं जून के महीने में कोट डाले हुए देश के एक ऐसे हिस्से में जहाँ मैं अजनबी था यूँ ही भटक रहा था |भटक ही तो रहा हूँ और शायद तभी भटकते हुए पीलिंग आ पहुंचा |मै सडक की रौशनी से दूर जाकर उन काले पहाड़ों को देख रहा था जो न जाने क्या क्या अपने अंदर समेटे हुए हैं |उस रात मैंने आईपोड को स्पीकर मोड में डाला और अपने कान के पास रखकर सोया शायद सत्तर के दशक के उन मधुर गानों की स्वर लहरी में हिमालय और कंचनजंघा के वो पहाड़ भी सोये होंगे जो सदियों से जग रहे हैं
जारी................
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भारतीय रेल के अप्रैल 2021 के अंक में प्रकशित
3 comments:
Budh ki 130 foot ki pratima ki pic bhut sundar h....aur kanchanjangaa ki phadiya bhi....
बहुत सुंदर दृश्टान्त बयां किया सर आपने
Ati sundar varnan ...mujhe bhi apne desh ki is prakritik khoobsurati ko dekhne ke liye prerit kar rahi hai...
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