Wednesday, August 23, 2017

प्रदूषण के मोर्चे पर दोहरी लड़ाई

प्रदूषण एक बड़ी समस्या है और कोई भी समस्या अपने साथ कई अन्य तरह की चुनौतियाँ भी लाती है ग्रीन पीस संस्था की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल वायु प्रदुषण से बाढ़ लाख लोग अकाल मृत्यु का शिकार हो जाते हैं पिछले दो दशकों से जबसे देश वैश्वीकरण की राह चला है देश की हवा लगातार रोगी होती जा रही है |पेट्रोल डीजल और अन्य कार्बन जनित उत्पाद जिसमें कोयला भी शामिल है |तीसरी दुनिया के देश जिसमें भारत भी शामिल है प्रदूषण के मोर्चे पर दोहरी लड़ाई लड़ रहे हैं | पेट्रोल डीजल और कोयला ऊर्जा के मुख्य  श्रोत हैं अगर देश के विकास को गति देनी है तो आधारभूत अवस्थापना में निवेश करना ही पड़ेगा और इसमें बड़े पैमाने पर निर्माण भी शामिल है निर्माण के लिए ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए पेट्रोल डीजल और कोयला  आसान विकल्प  पड़ता है दूसरी और निर्माण कार्य के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटान और पक्के निर्माण भी किये जाते हैं जिससे पेट्रोल डीजल और कोयला  के जलने से निकला धुंवा वातावरण को प्रदूषित करता है | ऊर्जा के अन्य गैर परम्परा गत विकल्पों में सौर उर्जा और परमाणु ऊर्जा महंगी है और इनके इस्तेमाल में भारत  काफी पीछे है |
सरकार के आंकड़ों के मुताबिक साल 2015 में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत में काफी अंतर है। उदाहरण के लिए पचहतर  प्रतिशत ग्रामीण परिवार रसोई के ईंधन के लिए लकड़ी परदस  प्रतिशत गोबर की उपालियों पर और लगभग पांच  प्रतिशत रसोई गैस पर निर्भर हैं। जबकि इसके विपरीतशहरी क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए बाईस प्रतिशत परिवार लकड़ी परअन्य बाईस प्रतिशत केरोसिन पर तथा लगभग चौवालीस  प्रतिशत परिवार रसोई गैस पर निर्भर हैं। घर में प्रकाश के लिए पचास प्रतिशत ग्रामीण परिवार केरोसिन पर तथा अन्य अडतालीस प्रतिशत बिजली पर निर्भर हैं। जबकि शहरी क्षेत्रों में इसी कार्य के लिए नवासी प्रतिशत परिवार बिजली पर तथा अन्य दस  प्रतिशत परिवार केरोसिन पर निर्भर हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग होने वाले लगभग अस्सी  प्रतिशत ऊर्जा बायोमास से उत्पन्न होता है। इससे गाँव में पहले से बिगड़ रही वनस्पति की स्थिति पर और दबाव बढ़ता जा रहा है। भारत की हवा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए सर्कार सौर ऊर्जा को बढ़ावा दे रही है पर उनपर भी प्रदूषण का असर पड़ रहा है एनवायरमेंटल साईंस एंड टेक्नोलॉजी लेटर्स जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के प्रदूषित वायुमंडल के कारण सौर  ऊर्जा का सत्रह प्रतिशत नुक्सान हो रहा है जिससे करीब 776 मेगावाट बिजली बनाई जा सकती थी |भारत के सन्दर्भ में प्रदुषण से सौर ऊर्जा को होने वाले नुक्सान की यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है जो हमें चेता रही है कि अगर हमारा विकास का मॉडल समावेशी नहीं होगा तो ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोत भी सफल न हो पायेंगे |
अमर उजाला में 23/08/17  को प्रकाशित 

17 comments:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बलराम जाखड़ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

शिवा की कलम said...

जागरूकतापूर्ण पोस्ट 🙏

शिवा की कलम said...

जागरूकतापूर्ण पोस्ट 🙏

Ketan said...

humari sarkaare kewal paise kamane par hi sara dhayn deti aayi hain. Sehat se ska koi Malab Nahi hai aur Na hi koi maap. vaikalpik oorja par dhyan nhi ha.
Balk hum solar light aur solar boiler k istemal kar sakt hain .
lkin yeh sab kaam nahi ayega jab tak hm log milkar apne din charya me shamil nahi karte.
yadi hum kewal apne jaman divas par hi utne vraksh lagaye jitney vash ke hum swayam hain to shayad aaj ke samay ke hissab se kuch stithi behtar hojaegi.

Raksha Singh said...

प्रदूषण की समस्या आज मानव समाज के सामने सबसे गम्भीर समस्या में से एक है| पिछले कुछ दशकों में प्रदूषण इतनी तेज़ी से बढ़ रहा है कि अब भविष्य में जीवन के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगाना शुरू कर दिया है| हम सभी को पर्यावरण की रक्षा के लिए सही कदम उठाकर आने वाली पीढ़ी को प्रदूषण से बचाना चाहिए |

Unknown said...

प्रदूषण के मोर्चे पे लड़ाई आज हमारी समाज के समाज के लोगो से नै है
बल्कि खुद से है अपनी उन आदतों से है जो की हमारे समाज को गन्दा कर रहे है |

PawanBeetuWrites said...

Sir, you have mentioned clearly in your post about the pollution , but what i feel some where government and more over general public is responsible first for the pollution.

RAJEEV YADAV said...

सर आपका article पढने के बाद उस पर टिप्पणी करना अत्यंत कठिन लगता है, फिर भी कोशिश करता हूँ। गामीण क्षेत्र के 22 फीसदी लोग भोजन के निर्माण में लकड़ियों का प्रयोग करते है, जो जाहिर सी बात है वनों से हमें मिलता है तो कहीं न कहीं हम पेड़ो की कटाई में भी सहभागी हैं। जो प्रदूषण का बड़ा कारण है। इसके लिए सरकार को गैर परम्परागत ऊर्जा के बारे में लोगों को जागरुक करना चाहिए।

Unknown said...

This article addresses a very important issue which is the double standards of the third world countries in controlling pollution. The points that have been mentioned are everyway agreeable and undoubtedly make a point. We as a citizen of a third world country realize how fast paced development is the need of the hour so to become a part of the race, but then this same reason makes us guilty of facilitating more and more environmental pollution instead of curbing it. But India is a large country with huge diversity, I as a responsible citizen tend to believe that if we plan our development model in a smarter way, we might at least curb the excess pollution being generated on the planet by us. In the race for becoming a part of one of the fastest developing countries we should not forget that we have responsibilities towards the planet and the nature. We are basically trying to make the country a concrete jungle. In the name of development, we are putting u7p more and more industries that require natural resources and we are very less worried about rather generating it. This is a matter of sheer concern, and the problem can be best addressed by the government and other stakeholders. Media can be one way to disseminate the message to the masses. Imagine we have reached to a point where we have to organize rally for our rivers, being one of the oldest civilization on earth we understand how important our rivers are, and the end of rivers basically means an end of a complete human civilization.
Student rating – 4.5/5

akshay verma said...

It is very true that we are facing duel battle with pollution,pollutants and pollution control and how to clean our environment from the harmful and poisonous things which are affecting our lives.Pollution is mostly caused by human actions like smoke from automobiles,sound pollution by horns and speakers,burning of gasses,thermal pollution,thermal pollution,water pollution caused by industries,air pollution from factories,etc and is also caused by natural disasters like flood,famine,earthquake,landsliding,cosmic rays,etc.All these types of pollutions are the main cause of human deaths.By pollution control we can limit damages caused by pollution.We should create awareness among our people.Only keeping our roads clean will not reduce pollution.Full treatment of major areas of pollution control.On and individual basis we can help combat pollution efficient control to use proper waste disposal system especially for toxic waste,planting more trees and going green,by not wasting water,use cotton bags instead of polythene bags,by not burning plastic,etc.We should save our environment from pollution for a healthy future and for our mother earth.

Unknown said...

Sir upar se 14 line ka doosra word glt likha hai waha और likha lekin humare mutabik waha (ओर) likha hona chahiye or neeche 10vi line ka akhiri 4th word glt likha hai waha pe (सर्कार ) likha h jb ki waha (सरकार) likha hona chahiye ....sir hum itne bade ni ki aap ki galtiya nikale bs aapne comment krne ko bola ta to bs wagi kar rahe hai

Unknown said...

आने वाले समय में हमारे जीवन कि बड़ी समस्याओं में से ये एक है दूषित वातावरण
जिसके लिए हमे अभी से सजग रहना पड़ेगा

anil kumar gautam said...

दिल्ली में ,इस बार दीवाली पर पटाखो का इस्तेमाल नही हुआ वायु प्रदूषण की समस्या को देखते हुए कोर्ट ने रोक लगा रखी थी।भारतीय संविधान में पर्यावरण का स्पष्ट उल्लेख वर्ष 1977 में किया गया। उसी वर्ष 42वें संविधान संशोधन द्वारा केन्द्र तथा राज्य सरकारों के लिए पर्यावरण को संरक्षण तथा बढ़ावा देना आवश्यक कर दिया गया। राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों में अनुच्छेद 48ए जोड़ा गया। इस अनुच्छेद के अनुसार ‘सरकार पर्यावरण के संरक्षण एवं सुधार और देश के वनों तथा वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए प्रयास करेगी।’ इसी संशोधन के द्वारा संविधान में अनुच्छेद 51ए (जी) भी जोड़ा गया, जिसके तहत प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह ‘प्राकृतिक वातावरण जिसमें वन, नदियों तथा वन्यजीव शामिल हैं, के संरक्षण तथा सुधार के लिए कार्य करे तथा जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव रखे।’ संविधान में इस संशोधन के बाद लोगों में पर्यावरण के प्रति थोड़ी जागरुकता आई।

उच्चतम न्यायालय ने एम.सी. मेहता बनाम भारत सरकार और अन्य के मामले में जुलाई 1996 में औद्योगिक इकाइयों के प्रदूषण सम्बन्धी मामले पर फैसला सुनाया। इस फैसले में कहा गया कि 30 नवम्बर 1996 से सूचीबद्ध 168 औद्योगिक इकाइयों को बंद कर दिया जाए और उनके कार्य को रोका जाए।
आपका सुनील कुमार गौतम

anil kumar gautam said...

भारतीय संविधान में पर्यावरण का स्पष्ट उल्लेख वर्ष 1977 में किया गया। उसी वर्ष 42वें संविधान संशोधन द्वारा केन्द्र तथा राज्य सरकारों के लिए पर्यावरण को संरक्षण तथा बढ़ावा देना आवश्यक कर दिया गया। राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों में अनुच्छेद 48ए जोड़ा गया। इस अनुच्छेद के अनुसार ‘सरकार पर्यावरण के संरक्षण एवं सुधार और देश के वनों तथा वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए प्रयास करेगी।’ इसी संशोधन के द्वारा संविधान में अनुच्छेद 51ए (जी) भी जोड़ा गया, जिसके तहत प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह ‘प्राकृतिक वातावरण जिसमें वन, नदियों तथा वन्यजीव शामिल हैं, के संरक्षण तथा सुधार के लिए कार्य करे तथा जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव रखे।’ संविधान में इस संशोधन के बाद लोगों में पर्यावरण के प्रति थोड़ी जागरुकता आई।
अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय दिया जो कि पटाखो के इस्तेमाल पर रोक लगता था जिसका प्रभाव दिल्ली पर लागू होता था
आपका सुनील कुमार गौतम

Ayushi said...

We cannot only blame government for pollution because we the people of India are equally responsible for the problem of pollution and by blaming each other this problem will not get a solution. We have to solve this problem by changing some of our habits and also by helping in government programs such as 'Swacch Bharat Abhiyan'

anil kumar gautam said...

लैनसेट कमिशन की प्रदूषण और स्वास्थ्य रिपोर्ट के अनसुार प्रदूषण की वजह से भारत में सबसे अधिक मौतें हुई है. यह रिपोर्ट 19 अक्टूबर 2017 को जारी की गई. प्रदूषण को कम करने के लिये भले ही कदम उठाए जा रहे हों लेकिन दुनिया में हर साल उससे होने वाली मौतों की संख्या में इजाफा हो रहा है. भारत में वर्ष 2015 में अकेले प्रदूषण से करीब 25 लाख मौतें हुई हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में प्रदूषण से 90 लाख लोगों की मौत हुई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ये मौंतें टीबी, मलेरिया और एड्स से होने वाली कुल मौतों से अधिक है. भारत के बाद प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या में चीन दूसरे स्थान पर आता है. वहां पर वर्ष 2015 में 18 लाख लोगों की मौत हुई है. इसके अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, नॉर्थ कोरिया, साउथ सूडान जैसे देशों में कुल अकाल मौतों का पांचवां हिस्सा प्रदूषण की वजह से होता है.
लैंसेट मेडिकल जर्नल की तरफ से जारी एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2015 में हर 6 में से 1 मौत प्रदूषण की वजह से हुई. इनमें से ज्यादातर मौतें भारत जैसे देश में हुई हैं. रिपोर्ट के अनुसार वैश्वीकरण के साथ खनन और उत्पादन का काम पिछड़े देशों में किया जा रहा है, जहां पर पर्यावरण को लेकर बने नियम कड़े नहीं हैं और नियमों को ठीक से लागू नहीं किया जाता.
आपका सुनील कुमार गौतम

Unknown said...

Now this is the biggest problem we are facing and we are responsible. This is not government's job. We survive on the same planet we should be equally responsible.

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