आधार एक बार फिर सुर्ख़ियों में है ,इस बार फिर निशाने पर आधार कार्ड का
डाटा निशाने पर है .विवाद तब शुरू हुआ जब ऐसी ख़बरें सामने आयीं कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यू आई डी ए
आई ) में अपनी पहचान के ब्योरे को जमा करने वाले लोगों की जानकारियां बहुत सस्ते में बेची जा रही हैं
.सिर्फ पांच सौ रूपये चुकाने पर आधार
कार्ड धारकों के नाम ,पते फोटो फोन नंबर ई मेल जैसी निजी
जानकारियां चैटिंग साईट व्हाट्स एप पर उपलब्ध करवा दी जा रही हैं . तीन सौ
रूपये में वह सोफ्टवेयर भी उपलब्ध है जिसकी मदद से किसी
भी व्यक्ति का आधार नम्बर डालकर उसके आधार कार्ड का प्रिंट निकाला जा सकता है .यह
समस्या सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती लेकर आयी है क्योंकि सरकार पहले ही सब्सिडी के
वितरण से लेकर आयकर भुगतान ,मोबाईल
सिम कार्ड और मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए आधार अनिवार्य करने के फैसले
के लिए चौतरफा आलोचनाओं का शिकार हो रही है .आधार के डेटा में इस तरह से सेंध के
खतरे के अलावा दूसरी बड़ी समस्या बायोमेट्रिक पहचान को लेकर भी है .जिसमें आँखों की
पुतलियों और हाथ की उँगलियों के निशान को
किसी व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित करने में
इस्तेमाल होता है .समस्या तब खडी होती है जब किसी व्यक्ति के ये दोनों अंग इस
स्थिति में न हो जिससे उनका डाटा मशीन में ले लिया जाए तब ऐसे व्यक्तियों की पहचान कैसे निर्धारित की
जाए .सरकार ने जहाँ एक तरफ आधार आंकड़ों की गोपनीयता को सुनिश्चित करने के लिए
मज़बूत कदम उठाये .
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यू आई डी ए आई ) अब फेशियल रिकगनाइजेशन का टेस्ट कर रहा है. यह
नया फीचर 1 जुलाई, 2018 को शुरू किया जाएगा. इससे नागरिकों की पहचान के लिए एक और अतिरिक्त कड़ी जोड़ी
जाएगी. इससे वृद्ध और ऐसे लोगों को
बड़ी राहत मिलेगी, जिन्हें अक्सर फिंगर प्रिंट और आँखों
की पुतलियों को लेकर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है ,जिसमें हाथों की लकीरें धुंधली पड़ जाती
हैं या नेत्रहीन लोग . यह नया फीचर एक शर्त के साथ आएगा. इसका मतलब यह है कि आपके
चेहरे के पहचान की अनुमति एक या इससे अधिक
ऑथेंटिकेशन जैसे फिंगर प्रिंट, पुतली
या ओटीपी के साथ दी जाएगी. सिर्फ चेहरे की पहचान से किसी व्यक्ति की पहचान प्रक्रिया पूरी होना
नहीं माना जाएगा . इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि आपको चेहरा पहचानने के इस फीचर
के लिए आपको एक बार और आधार सेंटर जाना होगा. यूआईडीएआई इस फीचर के लिए अपने
पुराने डाटाबेस का इस्तेमाल करेगा .वहीं आधार
कार्ड के डाटा की सुरक्षा के लिए
पुख्ता इंतजाम कर लिया गया है . इसके तहत यूआईडीएआई हर आधार कार्ड की एक वर्चुअल
आईडी तैयार करने का मौका देगी. इससे आपको जब भी अपनी आधार डिटेल कहीं देने की
जरूरत पड़ेगी, तो आपको बारह अंकों के आधार नंबर की
बजाय सोलह नंबर की वर्चुअल आईडी देनी होगी और
वर्चुअल आईडी जनरेट करने की यह सुविधा 1
जून से अनिवार्य हो जाएगी. यह सीमित ग्राहक पहचान
होगी.
जिसमें कम्पनी या सेवा प्रदाता सिर्फ आपकी पहचान की वैधानिकता को
सत्यापित कर पायेगा |किसी भी व्यक्ति की आधार जानकरियां
उसकी पहुँच में नहीं होंगी . और न ही उन्हें इन डाटा को एक्सेस करने की अनुमति
होगी . ये सारी एजेंसियां भी सिर्फ वर्चुअल आईडी के आधार पर सब अपने काम निपटा
सकेंगी. इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रयोगकर्ता जितनी बार चाहे उतनी बार वर्चुअल आईडी बना सकेगा और यह आईडी सिर्फ कुछ निश्चित समय के लिए
ही वैध होगी .इसमें यूआईडीएआई ये सुविधा
भी देगा कि प्रयोगकर्ता खुद अपना वर्चुअल
आईडी बना सकें. इस तरह कोई भी अपनी मर्जी का एक नंबर चुनकर सामने वाली एजेंसी को
सौंप सकता है . इससे न सिर्फ किसी भी व्यरियां सुरक्षित रहेगी, बल्कि वह अपने मोबाइल नंबर की तरह इस आईडी को भी आसानी
से याद रख सकेंगे.वर्चुअल आईडी की व्यवस्था आने के बाद हर एजेंसी आधार वेरीफिकेशन
के काम को आसानी से और बगैर कागज़ के इस्तेमाल किये हुए कर पाएंगी. जिससे हर साल लाखों टन कागज बर्बाद
होने से बचेगा वहीं कोई भी एजेंसी या कम्पनी किसी के आधार नम्बर तक नहीं
पहुँच पायेगी लेकिन आधार से जुड़ा हर काम हो जाएगा. सबसे अच्छी बात यह होगी कि
वह आपके आधार नंबर तक तो नहीं पहुंच पाएंगे, पर
आधार से जुड़ा हर काम बड़ी आसानी से हो जाएगा . भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यू
आई डी ए आई ) सभी एजेंसियों को दो भागों
में बांट देगी. जिसमें एक स्थानीय और दूसरी वैश्विक श्रेणी की होगी. इनमें से सिर्फ वैश्विक एजेंसियों को ही
आधार नंबर के साथ ई-केवाईसी की सुविधा उपलब्ध होगी. वहीं, दूसरी ओर स्थानीय एजेसियों को सीमित
केवाईसी की सुविधा मिलेगी.भारत जैसे देश में तकनीक के स्तर पर यह एक क्रांतिकारी
कदम होगा पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि
सिद्धांत और व्यवहार में काफी अंतर
होता है तकनीकी ज्ञान के मामले में भारत अभी भी बहुत पिछड़ा है,सूचना तकनीकी का इस्तेमाल शहरी युवा ज्यादा कर रहे हैं पर भारत इनसे नहीं बनता
है भारत बनता है गाँवों से तो वहां की
जनता वर्चुअल आई डी बनाने में आने वाली समस्याओं से कैसे निपटेगी.इंटरनेट सेवाओं
का विस्तार
शहरों और उनके इर्द गिर्द के कस्बों में ज्यादा हो रहा है|सामन्यत:एक ग्रामीण इलाके के निवासी की
खरीद क्षमता शहरी निवासी से कम होती है इसीलिये बैंडविड्थ और कनेक्टीविटी की
समस्या ग्रामीण इलाकों में ज्यादा है| तो
डर इसी बात का है कि कहीं आधार कार्ड के आंकड़े की सुरक्षा के लिए उठाया गया ये कदम भी नोट्बंदी और जीएसटी
की तरह कहीं गलत क्रियान्वयन का शिकार न हो जाए और कीमत आम लोगों को भुगतनी पड़े .
आई नेक्स्ट (दैनिक जागरण ) में 22/01/17 को प्रकाशित