बारिश के मौसम में सिर्फ पानी नहीं बरसता भावनाएं भी बरसती हैं. एहसास से भीगे एक ऐसे ही मौसम में मैं थोडा फलसफाना हुआ जा रहा हूँ.ज़िन्दगी का असल मतलब तो रिश्ते बनाने और निभाने में ही है.ज़िन्दगी कैसी भी हो पर खुबसूरत तो है ही पर इसकी असल खूबसूरती तो रिश्तों से ही है.सोचिये तो जरा कि बारिश हो रही हो और आपके आस पास न लोग हों और न कोई यादें तब क्या आप ज़िन्दगी की बारिश का मजा ले पायेंगे.मैं भी सोच रहा हूँ कितने लोग मिले बिछड़े सब मुझे याद नहीं हैं पर कुछ दोस्त ऐसे भी हैं जो अब मेरे साथ नहीं हैं पर उनकी यादें मेरे साथ हैं जिनके साथ का लुत्फ़ मैं बारिश के इस मौसम में उठा रहा हूँ. बारिश का मौसम हमेशा नहीं रहता वैसे रिश्ते कोई भी हों हमेशा एक जैसे नहीं रहते .अब दोस्ती को ही ले लीजिये न ये रिश्ता इसलिए ख़ास है क्योंकि सामाजिक रूप से इसको निभाने का कोई मानक नहीं है फिर भी बाकी रिश्तों में ये रिश्ता सबसे ख़ास होता है क्योंकि दोस्ती हम किसी से पूछ के नहीं करते .ये तो बस हो जाती है बिंदास जिसमें कोई भी पर्देदारी नहीं होती है. जो तेरा है वो मेरा है जैसा हक़ और किसी रिश्ते में नहीं होता है .
दोस्तों में कोई तो हमारा ख़ास दोस्त जरुर होता है.हमारा सबसे बड़ा राजदार, जिसको हम प्राथमिकता देते हैं पर दोस्ती का इम्तिहान तो तब शुरू होता है .जब ज़िन्दगी में नए दोस्त बनते हैं.यहाँ कहानी में थोडा ट्विस्ट है. कई बार हम जिसे अपना सबसे अच्छा दोस्त समझ रहे होते हैं .वो बहुतों का सबसे अच्छा हो तो ? तब शुरू होती हैं समस्या अब भाई उस दोस्त को सबसे दोस्ती निभानी है और हम हैं कि चाहते हैं वो हमें उतनी प्राथमिकता दे जितनी हम उसे देते हैं. तब शुरू होता है इस रिश्ते का असली इम्तिहान,तुम मुझे फोन नहीं करते तो मैं क्यूँ करूँ,तुम्हारे पास तो समय ही नहीं जैसी बातों से शुरू हुआ ये सिलसिला शक और लड़ाई झगडे में तब्दील हो जाता है.जानते हैं ऐसा क्यूँ हो रहा होता क्योंकि दोस्ती में वो विश्वास का तत्व गायब होने लग जाता है.मेसेज लिख के बगैर भेजे डिलीट कर देना ,फोन करते करते रुक जाना .
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वो हक़ गायब हो जाता है जो उस “दोस्ती” की जान हुआ करता था और इसके लिए किसी एक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.इसलिए दोस्ती जब दरकती है तो कष्ट बहुत ज्यादा होता है क्योंकि इस रिश्ते के चलने या न चलने के पीछे सिर्फ और सिर्फ हम ही जिम्मेदार होते हैं, और किसी भी रिश्ते में मांग नहीं की जाती है. रिश्ते तो वही चलते हैं जिनमें प्यार ,अपनापन और विश्वास अपने आप मिल जाता है माँगा नहीं जाता और अगर दोस्ती में हमें इन सब चीजों की मांग करनी पड़ रही है तो समझ लीजिये कि आपने सही शख्स से दोस्ती नहीं की है.दोस्ती देने का नाम है आपने अपना काम किया पर बगैर किसी अपेक्षा के अपनी कद्र खुद कीजिये जो दोस्त आपकी कद्र न करे उसके जीवन से चुपचाप निकल जाइए जिससे कल किसी बारिश में आप जब पीछे मुड़ कर देखें तो ये पछतावा न हो कि आपके पास दोस्ती की यादों का एल्बम सूना है.
प्रभात खबर में 30/08/2018 को प्रकाशित