Wednesday, August 1, 2018

डाटा सुरक्षा की दिशा में बढ़ते सार्थक कदम

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के अध्यक्ष आर. एस. शर्मा ने आधार की सुरक्षा का पुख्ता दावा करते हुए अपना आधार नंबर ट्विटर पर  जारी करते हुए कहा था कि अगर इससे सुरक्षा से जुड़ा कोई खतरा हैतो कोई मेरे आंकड़े लीक करके दिखाएं और उनकी इस चुनौती के कुछ घंटे बाद ही उनके आंकड़े ट्विटर पर जारी होने लग गए .बात यहीं नहीं रुकी ट्विटर पर कुछ लोगों ने  उनके  आधार नंबर लिंक्ड पेमेंट सर्विस ऐप्स जैसे भीम और पेटीम के जरिए शर्मा को एक रुपये भेजे जाने के स्क्रीनशॉट भी पोस्ट कर दिए । इस घटना ने भारत में निजी आंकड़ों या डाटा की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर फिर से बहस छिड़ गयी  है क्योंकि जब पूरी दुनिया डिजीटल हो रही  हैऐसे में डिजीटल आंकड़ों की संप्रभुता को लेकर तमाम तरह की  आशंकाएं भारत में अभी भी  हैं.उल्लेखनीय  कि पूरी दुनिया में प्रोसेस हो रहे आउटसोर्स डाटा का सबसे बड़ा होस्ट भारत है .
 असल में आज का दौर आंकड़ों का दौर है .वो आंकड़े ही हैं  जो सूचनाओं से ज्यादा पुष्ट हैं और इसीलिये जीवन के हर क्षेत्र में इनका महत्त्व बढ़ता जा रहा है .सरकारी योजनाओं में आधार कार्ड की अनिवार्यता ने इस तथ्य को पुष्ट किया है कि सर्कार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि योजनाओं का लाभ सही व्यक्ति को मिले . मय बदला और तकनीक भी .भारत इस वक्त चीन के बाद दूसरे नम्बर का स्मार्ट फोन धारक देश है और इंटरनेट का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है जिसने सरकारी प्रशासन में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया और  आंकड़ों की उपलब्धता की दिशा में सरकारों ने भी काफी काम किया जिसमें आधार कार्ड भी एक ऐसी ही योजना थी जिसमें देश के सभी नागरिकों एक विशेष नम्बर प्रदान उनके बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करने के बाद जिसमें नागरिक का बायोमीट्रिक डाटा भी शामिल है ,दे दिया जाता है और एक नम्बर के दो नागरिक नहीं हो सकते हैं इस तरह देश के सभी नागरिकों का आंकड़ा संग्रहण कर लिया गया .उधर इंटरनेट के फैलाव  के साथ आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हो उठें .लोगों के बारे में सम्पूर्ण जानकारियां को एकत्र करके बेचा जाना एक व्यवसाय बन चुका है और  इनकी कोई भी कीमत चुकाने के लिए लोग तैयार बैठे हैं .देश में आंकड़ों की सुरक्षा के लिए अभी तक कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है जैसे ही आप इंटरनेट पर आते हैं आपकी कोई भी जानकारी निजी नहीं रह जाती और इसलिए इंटरनेट पर सेवाएँ देने वाली कम्पनिया अपने ग्राहकों को यह भरोसा जरुर दिलाती हैं कि आपका डाटा गोपनीय रहेगा पर फिर भी आंकड़े लीक होने की सूचनाएं लगातार सुर्खियाँ बनी रहती हैं .
किसी भी ऑनलाइन कम्पनी का विज्ञापन कारोबार तभी तेजी से बढेगा जब उसके पास ग्राहकों की गोपनीय जानकारी हो जिससे वह उनके शौक रूचि आदतों के हिसाब से विज्ञापन दिखा सकेगी वहीं साईबर अपराधियों की निगाह भी ऐसे आंकड़ों पर रहती है,पर ऐसी घटनाएँ न हों और अगर हों तो दोषियों पर कड़ी दंडात्मक कार्यवाही हो ऐसा कोई भी प्रावधान अभी तक भारतीय संविधान मे नहीं किया गया है .अभी तक ऐसे किसी मामले को निजता के अधिकार के  हनन के तहत देखा जाता है .नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करना सरकार का संवैधानिक दायित्व है. किसी नागरिक की आधार सूचना हो या कोई अन्य किस्म की डिजीटल सूचना- उन पर सेंध लगाने की कोशिश  अंततः नागरिक गरिमा ही नहींराष्ट्रीय संप्रभुता को भी ठेस पहुंचाएगी. समूचे यूरोप में पच्चीस मई से 'द जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगूलेशन' (जीडीपीआर) नाम का नया क़ानून लागू हो गया है.
 इस कानून का उद्देश्य  आम लोगों को यह जानकारी देना है कि आपका डाटा कौन ले रहा है और उसका इस्तेमाल कौन कर रहा है.क़ानून के तहत लोगों का निजी डेटा केवल पहले से बताए गए उद्देश्यों के लिए किया जा सकेगा. कंपनियों को यह बताना होगा कि वो डेटा की जानकारी कैसे और क्यों ले रहे हैं. कंपनियों को यूज़र्स का डेटा सुरक्षित करने की ज़रूरत है और अगर उनका डेटा लीक होता है तो उन्हें बताना होगा कि यह उनके लिए कितना ख़तरनाक हो सकता है.भारत ने इस दिशा में काफी देर से ही एक सार्थक कदम उठाया है .
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी एन श्री कृष्णा की अध्यक्षता में गठित समिति ने पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल का ड्राफ्ट बिल सरकार को सौंप दिया है .इस बिल में “निजी” शब्द को परिभाषित किया गया है.इसके अतिरिक्त इसमें सम्वेदनशील निजी डाटा को बारह  भागों में विभाजित किया गया है.जिसमें पासवर्ड,वित्तीय डाटा,स्वास्थ्य डाटा,अधिकारिक नियोक्ता,सेक्स जीवन,जाति/जनजाति,धार्मिक ,राजनैतिक संबद्धता जैसे क्षेत्र जोड़े गए हैं.इस बिल को अगर संसद बगैर किसी संशोधन के पास कर देती है तो देश के प्रत्येक नागरिक को अपने डाटा पर चार तरह के अधिकार मिल जायेंगे .जिनमें पुष्टिकरण और पहुँच का अधिकार, डाटा को सही करने का अधिकार, डाटा पोर्टेबिलिटी और डाटा को बिसरा देने जैसे अधिकार शामिल हैं .इस समिति की  रिपोर्ट के अनुसार यदि इस बिल का कहीं उल्लंघन होता है तो सभी कम्पनियों और सरकार को स्पष्ट रूप से उन व्यक्तियों को सूचित करना होगा जिनके डाटा की चोरी या लीक हुई है कि चोरी या लीक हुए डाटा की प्रकृति क्या है ,उससे कितने लोग प्रभावित होंगे ,उस चोरी या लीक के क्या परिणाम हो सकते हैं और प्रभावित लोग जिनके डाटा चोरी या लीक हुए हैं वे क्या करें .ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति का डाटा चोरी या लीक हुआ है वह उस कम्पनी से क्षतिपूर्ति की मांग भी कर सकता है .फिलहाल यह बिल संसद की मंजूरी के इन्तजार में है,लेकिन सिर्फ़ कानून के बन जाने से सबकुछ ठीक हो जाएऐसा संभव नहीं है. इसके लिए लोगों को भी जागरूक होना होगा.
आई नेक्स्ट /दैनिक जागरण में 01/08/2017  को प्रकाशित 

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