Tuesday, August 14, 2018

भारत से दूर लेकिन जड़ों के पास

हिन्दी में पढने लिखने के कारण मेरा नोबेल पुरस्कार विजेता सर  वी एस नायपॉल से परिचय जरा देर में हुआ |नायपाल की लेखनी से मेरा पहला वास्ता तब पड़ा जब मैं उनकी भारत यात्रा का आधार बना कर लिखी गयी पुस्तक “एन एरिया ऑफ़ डार्कनेस” का हिन्दी अनुवाद कर रहा था ,तब मैंने उनको पहली बार पढ़ा |जैसे –जैसे किताब का काम आगे बढ़ता गया | मैं उनकी लेखन प्रतिभा का कायल होता गया | फिर मैंने खोज –खोज कर उनकी किताबें पढनी शुरू की |वो चाहे वुंडेड सिवाइलेजेसन जो उनकी भारत को आधार बना कर लिखी गयी एक और किताब थी या हाउस ऑफ़ मिस्टर बिस्वास हो जिसने उन्हें ख्याति दिलाई | यह किताब उनके पिता सीपरसाद नायपाल के जीवन पर आधारित है जो ‘‘त्रिनिदाद गार्जियन’’ में रिपोर्टर के तौर पर भी  काम करते थे। हालांकि यह सभी किताबें हिन्दी अनुवाद थीं पर एक पाठक के तौर पर मुझे जो कुछ अपने लेखक से चाहिए था वो सब उनकी किताबों में मिल रहा था |इंटरनेट के आने से मेरे जैसे हिन्दी के पाठकों को दुनिया के श्रेष्ठ साहित्य को जानने समझने का मौका मिला |क्योंकि अब हिन्दी में अनुवाद का बाजार विस्तार ले रहा है |मूलत:त्रिनिदाद एंड टोबैगो में जन्मे विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल के पूर्वज गोरखपुर से गिरमिटिया मज़दूर के रुप में त्रिनिदाद पहुंचे थे|भारतीय परिस्थितियों से अलग जहाँ लेखकों को जीविकोपार्जन के लिए कोई अलग व्यवसाय या काम करना पड़ता है |सर  वी एस नायपॉल ने जीवन भर लेखन ही किया है और इसे ही अपनी जीविका का साधन बनाया | एन एरिया ऑफ़ डार्कनेस” का हिन्दी अनुवाद इसके प्रकाशन से ठीक पचास हुआ पर जब वो भारत 1964 में आये थे तब से लेकर अब  तक उनकी लिखी बातें  आज भी हमें सोचने पर मजबूर कर देती थी कि किसी लेखक को महान उसकी द्र्ष्टि ही बनाती है |उनका भारत को देखने का नजरिया एक आम भारतीय जैसा नहीं था वो भले ही भारतीय मूल के थे पर भारत को देखने के लिए जिस तटस्थता की उम्मीद की जानी चाहिए उन्होंने वो तटस्थता काफी निर्मम तरीके से दिखाई |जैसे वो लिखते हैं “भारतीय हर जगह मल त्याग करते हैं। ज़्यादातर वे रेलवे  की पटरियों को इस कार्य के लिए इस्तेमाल करते हैं। हालांकि वे समुद्र-तटों, पहाड़ों, नदी के किनारों और सड़क को भी इस कार्य के लिए इस्तेमाल करते हैं और कभी  भी आड़ न होने की परवाह नहीं करते हैं|जो नायपाल साहब कई बरस पहले लिख चुके हैं उस वाकये से हम सब आज भी रोज दो चार होते हैं लेकिन यह हमारे लिए कोई समस्या की बात नहीं है क्योंकि हमारा समाजीकरण  इस तरह के द्रश्यों को देखते हुए ही होता है और इसमें हमें कुछ गलत नहीं दिखता |तभी तो सोचिये आजादी के सत्तर साल बाद भी सरकार को  स्वच्छ भारत अभियान चलाना पड़ रहा है | शायद इसी कारण जहाँ नायपॉल के उपन्यासों में भारत को काफी महत्व मिला  लेकिन भारत को लेकर उनका नज़रिया काफी विवादित भी माना जाता रहा | वी एस नायपॉल  अपनी इस किताब के सिलसिले में करीब एक साल तक भारत में रहे और लगभग पूरा भारत जिसमें कश्मीर से लेकर दक्षिण भारत के कई राज्य शामिल थे वहां का हाल उन्होंने अपनी इस किताब में लिखा |मुंबई में उतरते ही जब उनकी विदेशी शराब कस्टम द्वारा जब्त कर ली गयी और उसको दुबारा वापस पाने के लिए उन्हें किस तरह बाबुओं के चक्कर लगाने पड़े |उनकी काम को टालने की आदत जैसी कई घटनाओं को उन्होंने अपनी किताब में समेटा |उन दिनों के कश्मीर के हालात का भी चित्रण बखूबी किया है |

            "बिटवीन फादर एंड सन" वी एस नायपॉल और उनके पिता जी के बीच हुए पत्राचार का संकलन है |जिसमें हमें एक चिंतित पिता की झलक मिलती है जो खुद भी एक अच्छा लेखक था पर परिस्थितियों के कारण अपने लेखन कार्य को जारी न रख पाया |सर  वी एस नायपॉल के पिता जी का इंतकाल उनकी सफलता को देखने से पहले ही  हो गया था | अपने पिता के साथ उनके सम्बन्ध अपने परिवार में सबसे मधुर थे | उनके पिता सीपरसाद नायपाल उन्हें लगातार घर की चिंताओं से मुक्त होकर अपनी पढ़ाई और लेखन कार्य में लगे रहने की सलाह दिया करते थे |इस किताब में सहेजे गए सारे पत्र अपने वक्त के महत्वपूर्ण दस्तावेज भी हैं पर एक पारिवारिक इंसान होने के नाते मै नायपॉल के अपने पिता के अंतिम संस्कार में न पहुँचने के निर्णय से सहमत नहीं हो पाता हूँ |वे अपनी पढ़ाई के सिलसिले में एक बार जो लन्दन गए फिर वे घर न लौटे |बियोंड बिलीफ भी उनकी एक और प्रसिद्ध किताब रही है जिसमें उन्होंने धर्मान्तरित मुसलमानों के हालात का जायजा लिया और इसके लिए उन्होंने  दुनिया  के कई इस्लामिक देशों का दौरा किया |एक भारतीय के रूप में सर वी एस नायपॉल ने हमें अपने ऊपर गर्व करने का मौका दिया पर उनकी भारत पर लिखी गयी किताबों में एक गुस्सा भी दिखता है कि ये देश ऐसा क्यों है ? अपनी जड़ों की तलाश में वे अपनी पहली भारत यात्रा में पूर्वी उत्तरप्रदेश में स्थित अपने पूर्वजों के गाँव जिसे  वे दुबे का गाँव कहकर संबोधित करते हैं भी गए |जिसका बड़ा रोमांचक वर्णन उन्होंने अपनी किताब “एन एरिया ऑफ़ डार्कनेस” में किया है |1964 से भारत प्रेम  का यह सिलसिला उनकी मृत्यु तक जारी रहा |आलोचक भले ही उन्हें दक्षिणपंथी साहित्यकार मानते हों पर यह उनकी स्पष्टवादिता ही थी |जो उन्हें अपने समकालीन लेखकों से अलग करती है |वी एस नायपॉल भले ही आज हमारे बीच में न रहे हों पर उनके द्वारा छोडी गयी साहित्य की थाती पाठकों  के ह्रदय  में उन्हें  हमेशा ज़िंदा रखेगी |
दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 14/08/18 को प्रकाशित 

3 comments:

Unknown said...

Thanks for writing...
Very knowledgeable write up

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 101वीं जयंती - त्रिलोचन शास्त्री और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Anita said...

महान लेखक वी एस नायपाल के लेखन के बारे में सार्थक जानकारी देती पोस्ट..

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