आधुनिक जनमाध्यमों में इंटरनेट ने बड़े कम समय में अपनी धाक जमाई है और दूसरे जनमाध्यमों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की है |इसमें टेलीविजन भी शामिल है |ऐसा माना जाने लग गया था कि अब टेलीविजन को हमेशा के लिए इंटरनेट पछाड़ देगा पर आंकड़ों की नजर में फिलहाल ऐसा होता दिख नहीं रहा है |ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च कौंसिल (BARC) ने जुलाई 2018 में जो आंकड़े जारी किये वह यह बताते है कि 2016 से अबतक भारत में टेलीविज़न के दर्शकों की तादाद में बारह प्रतिशत की बढ़त हुई है |सस्ते होते स्मार्ट फोन इंटरनेट की कम दरें ,अमेजन प्राईम ,नेटफ्लिक्स,हॉटस्टार जैसे वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफोर्म इंटरनेट टीवी की बढ़त को आसान बना रहे थे लेकिन भारत को महान इसके विरोधाभास बनाते हैं | वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफोर्म शहरों में बड़ी तेजी से लोकप्रिय भी होने लगे हैं क्योंकि वहां एक बड़ा दर्शक तबका था जो पारम्परिक टेलीविजन कार्यक्रमों से उब चुका था |कुछ नए की तलाश में इंटरनेट वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफोर्म की शरण में आने लगा |जहाँ उदारीकरण और उपभोक्तावाद के बढ़ते चलन ने शहरों में एकल परिवारों की संख्या में इजाफा किया वहीं बढ़ती आय ने टेलीविजन देखने की क्रिया को सामूहिक से एकल बना दिया |शहरों में फ़्लैट संस्कृति ने घरों को डब्बा बना दिया जहाँ ज्यादा टेलीविजन सेट नहीं रखे जा सकते हैं |वहां स्मार्ट फोन पर अपने मनपसन्द कार्यक्रम देखने एक आसान विकल्प के रूप में उभरा |वह वक्त जल्दी ही अतीत की बात हो गया जहाँ पूरा परिवार एक साथ टेलीविजन देखता पर बढ़ते टीवी चैनल और एकल परिवार के बढ़ते चलन ने इस टीवी देखने के सामूहिक कृत्य को एक निजी अनुभव में तब्दील कर दिया और यहीं से इंटरनेट टीवी शहरों में तेजी से आगे बढ़ा पर भारतीयों का टेलीविजन प्रेम अभी भी बरक़रार है |
ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च कौंसिल (BARC) के इस शोध अध्ययन के नतीजे बताते है कि साल 2018 में पिछले दो साल के मुकाबले टेलीविजन सेट की संख्या में साढ़े सात प्रतिशत की वृद्धि हुई है |इस वक्त भारत में कुल 298 मिलीयन घर हैं जिनमें 197 मिलीयन घरों में टेलीविजन सेट हैं यानि सौ मिलियन घरों में अभी भी टेलीविजन सेट खरीदे जाने की गुंजाईश है |2016 में 183 मिलीयन घरो में टेलीविजन सेट थे |सर्वे यह भी बताता है कि इस दौरान देश में टेलीविजन देखने वाले दर्शकों की संख्या में 7.2 प्रतिशत की भी बढोत्तरी हुई है| साल 2016 में टेलीविजन दर्शकों की संख्या 780 मिलीयन थी जो साल 2108 में बढ़कर 836 मिलीयन हो गयी |
जबकि इसकी तुलना में भारत का अग्रणी वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म हॉटस्टार के पास केवल साठ मिलियन उपभोक्ता हैं| भारत का टीवी दर्शक वर्ग पारिवारिक है यही कारण है इस की वृद्धि का|ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च कौंसिल (BARC) का सर्वे यह बताता है कि भारत के लगभग 66 प्रतिशत भारतीय घरों में टीवी सेट हैं | शहरी भारत में टीवी सेट खरीदे जाने की वृद्धि दर चार प्रतिशत वहीं उल्लेखनीय रूप से गाँवों में यह दर दस प्रतिशत है |टीवी देखने में बिताये जाने वाले समय में शहरों में दस प्रतिशत की वृद्धि हुई है वहीं गाँव में यह दर तेरह प्रतिशत है |ट्राई (TRAI) की रिपोर्ट के अनुसार चीन के बाद भारत में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टीवी बाजार है |जिन्हें केबल टीवी सेवा, डीटीएच, आईपीटीवी सहित दूरदर्शन टीवी नेटवर्क सेवायें प्रदान करते हैं।2014-15 में भारत का टेलीविजन उद्योग 4,75,003 करोड़ रूपये का था, जो 2015-16 में बढ़कर 5,42,003 करोड़ रूपये हो गया और इसमें 14.10 प्रतिशत की वृद्धि हुई |विकसित देशों के मुकाबले जहाँ ग्राहकों की संख्या में औसत रूप से वार्षिक गिरावट देखी जा रही है, लेकिन भारत में टेलीविजन का बाजार में दबदबा बना हुआ है ।इसका एक बड़ा कारण गाँवों में टेलीविजन का बढ़ता विस्तार है ,आजादी के बाद पहली बार गाँव में टीवी सेट के प्रति बढ़ता लगाव इस धारणा को तोड़ रहा है कि टीवी एक शहरी माध्यम है और इसीलिये वहां गाँव और उससे जुडी बातें नहीं दिखती |गाँव में टीवी का बढ़ता चलन निश्चित रूप से टीवी कार्यक्रम निर्माताओं को इस ओर मजबूर करेगा कि वे अपने कंटेंट में गाँवों को प्राथमिकता दें |टीवी पर पशु आहार से सम्बन्धित विज्ञापनॉन का बढना इस ओर जरुर इशारा कर रहा है कि अब टीवी के दर्शक वर्ग में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की जरूरतों को मान्यता मिल रही है |
यह एक बड़ा बदलाव है वैसी भी शहरी टीवी बाजार में धीरे –धीरे स्थिरता आ रही है पर गाँव के बाजार में पर्याप्त गुंजाईश है |वैसे भी भारत का प्राथमिक टीवी दर्शक वर्ग पारिवारिक है जो इसकी वृद्धि के लिए उत्तरदायी है |गाँवों में अभी भी शहरों के मुकाबले आपा –धापी कम है और लोग निजता की बजाय सामूहिकता पर जोर देते हैं |शहरी क्षेत्र में टीवी का इंटरनेट से पिछड़ने का कारण इस तर्क से दिया जाता है कि टीवी के पास कार्यक्रमों की विविधता नहीं है पर यह इलीट शहरी वर्ग की समस्या है ,एक माध्यम के रूप में अभी भी पारिवारिक कहानियां देश के मध्यम वर्ग और ग्रामीण भारत की पहली पसंद बने हुए हैं इसलिए वार्षिक रूप से समस्त जनमाध्यमों से होने वाली विज्ञापनों की आय में पैंतालीस प्रतिशत हिस्सा टीवी विज्ञापनों का ही है |एक सस्ता स्मार्ट फोन अभी भी तीन से चार हजार रुपये से कम नहीं आता और जिसका जीवन काल दो से तीन साल का ही होता है |आर्थिक रूप से एक आम भारतीय का अपने लिए इतना पैसा मनोरंजन पर खर्च करना संभव नहीं है |वहीं सस्ते एल ई डी टीवी दसहजार से कम रुपये में उपलब्ध हैं जो पूरे परिवार का मनोरंजन कर सकते हैं | इसमें कोई शक नहीं है कि टेलीविजन के लिए इंटरनेट एक बड़ा खतरा बन कर उभर रहा है पर आज भी एक अरब से ज्यादा आबादी वाले देश में एक माध्यम के रूप में टेलीविजन दर्शकों ,विज्ञापन दाताओं की पहली पसंद बना हुआ है |
नवभारत टाईम्स में 10/08/2018 को प्रकाशित लेख
3 comments:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंग दान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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