Monday, September 24, 2018

फेक न्यूज की पहचान आसान

ये दुनिया का एक स्मार्ट दौर है जहाँ फोन से लेकर टीवी, फ्रिज तक सभी स्मार्ट होते जा रहे हैं |विरोधाभास यह है कि इस स्मार्ट युग में जहाँ हमने अपना दिमाग इस्तेमाल  करने का काम भी इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों को सौंप दिया है| उसी स्मार्ट समय में हम सबसे ज्यादा फेक न्यूज का शिकार हो रहे हैं |ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने ‘पोस्ट ट्रुथ’ शब्द को वर्ष 2016 का ‘वर्ड ऑफ द इयर’घोषित किया था । उपरोक्त शब्द को एक विशेषण के तौर पर परिभाषित किया गया है, जहां निजी मान्यताओं और भावनाओं के बजाय जनमत निर्माण में निष्पक्ष तथ्यों को कम महत्व दिया जाता है।यहीं से शुरू होता है फेक न्यूज का सिलसिला| बात ज्यादा पुरानी नहीं है लैंडलाइन फोन के युग में जब पूरा देश गणेश जी को दूध पिलाने निकल पड़ा था पर पिछले एक दशक में हुई सूचना क्रांति ने अफवाहों को तस्वीरें और वीडियों के माध्यम से ऐसी गति दे दी है जिसकी कल्पना करना मुश्किल है |

वैसे भी  सरकारों ने हमेशा से ही काल्पनिक तथ्यों के जरिए प्रोपेगंडा को बढ़ावा दिया है। पर  सोशल मीडिया के तेज प्रसार और इसके आर्थिक पक्ष  ने झूठ को तथ्य बना कर परोसने की कला को नए स्तर पर पहुंचाया है और इस असत्य ज्ञान के स्रोत के रूप में फेसबुक और व्हाट्स एप नए ज्ञान के केंद्र के रूप में उभरे हैं | कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक शोध में सामने आया है कि लोगों को यदि गलत सूचनायें दी जाएं तो वैकल्पिक तथ्यों से ज्यादा उन पर थोपे गए तथ्यों पर विश्वास करते हैं। भारत फेक न्यूज की इस विकराल  समस्या का सामना इन दिनों कर रहा है | फेक न्यूज आज के समय का सच है |भारत जैसे देश में जहाँ लोग प्राप्त सूचनाओं का आंकलन अर्जित ज्ञान की बजाय जन श्रुतियों ,मान्यताओं और परम्पराओं के आधार पर करते हैं वहां भूतों से मुलाक़ात पर बना कोई भी यूट्यूब चैनल रातों रात हजारों सब्सक्राईबर जुटा लेगा |वीडियो भले ही झूठे हों पर उसे हिट्स मिलेंगे तो उसे बनाने वाले को आर्थिक रूप से फायदा भी मिलेगा |किसी विकसित देश के मुकाबले भारत में झूठ का कारोबार तेजी से गति भी पकड़ेगा और आर्थिक फायदा भी पहुंचाएगा | फेक न्यूज के चक्र को समझने से पहले मिस इन्फोर्मेशन और डिसइन्फोर्मेशन में अंतर समझना जरुरी है |मिस इन्फोर्मेशन का मतलब ऐसी सूचना जो असत्य है पर जो इसे फैला रहा है वह यह मानता है कि यह सूचना सही है |वहीं डिस इन्फोर्मेशन का मतलब ऐसी सूचना से है जो असत्य है और इसे फैलाने वाला भी यह जानता है कि अमुक सूचना गलत है फिर भी वह फैला रहा है |देश में  दोनों तरह की सूचनाओं के फैलने की उर्वर जमीन मौजूद है |एक तरफ वो भोले भाले लोग जो इंटरनेट के प्रथम उपभोक्ता बने हैं और वहां जो भी सामाग्री मिल रही है वे उसकी सत्यता जाने समझे उसे आगे बढ़ा देते हैं |दूसरी तरफ विभिन्न राजनैतिक दलों के  साइबर  सेल के समझदार लोग उन झूठी सूचनाओं को यह जानते  बूझते हुए भी कि वे गलत या संदर्भ से कटी हुई हैं |इस मकसद से फैलाते हैं जिससे अपने पक्ष में लोगों को संगठित कर अपने संख्या बल को बढ़ाया जा सके | इन सबके पीछे कुछ खास मकसद होता है। जैसे हिट्स पाना, किसी का मजाक उड़ाना, किसी व्यक्ति या संस्था पर कीचड़ उछालना, साझेदारी, लाभ कमाना, राजनीतिक फायदा उठाना, या दुष्प्रचार। फेक न्यूज ज्यादातर भ्रमित करने वाली सूचनाएं होती हैं या बनाई  हुई सामग्री |अक्सर झूठे संदर्भ या गलत सम्बन्धों को आधार बना कर ऐसी सूचनाएं फैलाई जाती हैं | इंटरनेट ऐंड मोबाइल असोसिएशन ऑफ इंडिया और कंटार-आईएमआरबी की रिपोर्ट के अनुसार बीते जून तक देश में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की संख्या पांच करोड़ हो चुकी थी, जबकि दिसंबर 2017 में इनकी संख्या 4.8 करोड़ थी। इस तरह छह महीने में 11.34 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इंटरनेट उपभोक्ताओं में इतनी वृद्धि साफ इशारा करती है कि इंटरनेट के ये प्रथम उपभोक्ता सूचनाओं के लिए सोशल मीडिया, वॉट्सऐप और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर निर्भर हैं। समस्या यहीं से शुरू होती है। भारत में लगभग बीस करोड़ लोग वॉट्सऐप का प्रयोग करते हैं जिसमें कई संदेश, फोटो और विडियो फेक होते हैं। पर जागरूकता के अभाव में देखते ही देखते ये वायरल हो जाते हैं। एंड टु एंड एनक्रिप्शन के कारण वॉट्सऐप पर कोई तस्वीर सबसे पहले किसने डाली, यह पता करना लगभग असंभव है। उम्र के लिहाज से देखा जाए तो इन्टरनेट अब प्रौढ़ हो चला है पर भारतीय परिवेश के लिहाज से इन्टरनेट एक युवा माध्यम है जिसे यहाँ आये अभी बाईस  साल ही हुए हैं | इसी परिप्रेक्ष्य में अगर सोशल नेटवर्किंग को जोड़ दिया जाए तो ये तो अभी बाल्यवस्था में ही है |इस समस्या से निपटने की पहली जिम्मेदारी पत्रकारों और पत्रकारिता के विद्यार्थियों की है|इंटरनेट ने खबर पाने के पुराने तरीके को बदल दिया जहाँ पत्रकार खुद किसी खबर की तह में जाकर सच्चाई पता करता था और तस्दीक कर लेने के बाद ही उसे पाठकों तक प्रेषित किया जाता था|आज इंटरनेट ने गति के कारण खबर पाने के  इस तरीके को बदल दिया है |इंटरनेट पर जो कुछ है वो सच ही हो ऐसा जरुरी नहीं इसलिए अपनी सामान्य समझ  का इस्तेमाल जरुरी है|पिछले दिनों देश के कई सम्मानित चैनलों ने मुम्बई में आये ओखी साइक्लोन पर मुम्बई पुणे एक्सप्रेस वे पर ओले गिरने का फर्जी वीडियो चला दिया |जबकि उस वीडियो में दिखने वाली गाड़ियाँ लेफ्ट हैण्ड ड्राइविंग थी जबकि भारत में राईट हैण्ड ड्राइविंग का इस्तेमाल होता है |इन गाडियों की नम्बर प्लेट के नम्बर भी भारतीय नहीं थे |यूट्यूब पर इन विभिन्न चैनलों के वीडियो अभी भी मौजूद हैं |खबर को जल्दी से जल्दी पाठकों और दर्शकों को पहुंचाने  की यह मनोवृत्ति फेक न्यूज के फैलने का भी एक बड़ा कारण बन रहे हैं और इसी प्रवृत्ति का  विस्तार  आम आदमी के व्हाट्स एप चैट बॉक्स कर रहे हैं जहाँ बगैर असली सच जाने विभिन्न व्हाट्स एप ग्रुपों में लगातार ऐसी असत्य या सन्दर्भ से कटी सूचनाएं फोटो या वीडियो के माध्यम से प्रेषित की जा रही हैं | फर्जी चित्रों को पहचानने में गूगलऔर यांडेक्स  ने रिवर्स इमेज सुविधा  शुरू की है जहाँ आप कोई भी फोटो अपलोड करके यह पता कर सकते हैं कि कोई फोटो इंटरनेट पर यदि है तो वह सबसे पहले कब अपलोड  की गयी है |एमनेस्टी इंटरनेशल ने वीडियो में छेड़ छाड़ और उसका अपलोड इतिहास पता करने  के लिए यूट्यूब के साथ मिलकर यू ट्यूब डाटा व्यूअर सेवा शुरू की है |अनुभव यह बताता है कि नब्बे प्रतिशत वीडियो सही होते हैं पर उन्हें गलत सन्दर्भ में पेश किया जाता है |किसी भी वीडियो की जांच करने  के लिए उसे ध्यान से बार –बार देखा जाना चाहिए | किसी भी वीडियो को समझने के लिए उसमें  कुछ ख़ास  चीजों की तलाश करनी चाहिए जिससे उसके सत्य या सत्य होने की पुष्टि की जा सके |जैसे वीडियो में  पोस्टर,बैनर ,गाड़ियों की नम्बर प्लेट फोन नंबर  की तलाश की जानी चाहिए जिससे गूगल द्वारा उन्हें खोज कर उनके क्षेत्र की पहचान की जा सके |किसी लैंडमार्क की तलाश की जाए ,वीडियो में दिख रहे लोगों ने किस तरह के कपडे पहने हैं वो किस भाषा या बोली में बात कर रहे हैं उसको देखा जाना चाहिए |सबसे जरुरी बात किसी भी  वीडियो और फोटो को देखने के बाद यह जरुर सोचें कि यह आपको किस मकसद से भेजा जा रहा है ,सिर्फ जागरूकता या जानकारी के लिए या फिर भड़काने के लिए |
दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 24/09/2018

2 comments:

Book River Press said...

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HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्रद्धांजलि - जसदेव सिंह जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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