सुप्रीम कोर्ट ने आधार की अनिवार्यता पर फैसला सुनाते हुए आधार की संवैधानिकता को कुछ बदलावों के साथ बरकरार रखा है .आधार कार्ड आम आदमी की पहचान बन चुका है .सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि आधार की वजह से निजता हनन के कोई मामले नहीं मिले हैं. यूजीसी, सीबीएसई और निफ्ट जैसी संस्थाओं के अलावा स्कूल भी अब आधार नहीं मांग सकते हैं. अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अब मोबाइल और निजी कंपनी आधार नंबर नहीं मांग सकती और आधार को मोबाइल से लिंक करने का फैसला भी रद्द कर दिया . आधार को बैंक खाते से लिंक करने की अनिवार्यता को भी रद्द कर दिया पर पैन कार्ड से आधार लिंक रहेगा . सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सरकार के लिए एक बड़ा झटका है | आधार अब अनिवार्य जरूरत नहीं है। हालांकि, इसका इस्तेमाल सरकारी योजनाओं का लाभ पाने में किया जा सकता है पर आधार का न होना सरकारी योजनाओं के लाभ पाने में कोई बाधा नहीं बनेगा.
पर तस्वीर का दूसरा रुख यह भी है कि आज का दौर आंकड़ों का दौर है . यूं तो आंकड़े महज कुछ गिनतियां हैं पर आंकड़े विकास में निवेश के प्राथमिक आधार हैं. बदलते समय के साथ ही आंकड़ों के भी विशेषीकरण पर जोर दिया गया और २०१० में आधार कार्ड योजना की शुरुआत हुई. वो आंकड़े ही हैं जो सूचनाओं से ज्यादा पुष्ट हैं और इसीलिये जीवन के हर क्षेत्र में इनका महत्त्व बढ़ता जा रहा है .सरकारी योजनाओं में आधार कार्ड की अनिवार्यता ने इस तथ्य को पुष्ट किया था कि सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि योजनाओं का लाभ सही व्यक्ति को मिले . समय बदला और तकनीक भी .भारत इस वक्त चीन के बाद दूसरे नम्बर का स्मार्ट फोन धारक देश है और इंटरनेट का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है जिसने सरकारी प्रशासन में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया और आंकड़ों की उपलब्धता की दिशा में सरकारों ने भी काफी काम किया जिसमें आधार कार्ड भी एक ऐसी ही योजना थी जिसमें देश के सभी नागरिकों एक विशेष नम्बर प्रदान उनके बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करने के बाद जिसमें नागरिक का बायोमीट्रिक डाटा भी शामिल है ,दे दिया जाता है और एक नम्बर के दो नागरिक नहीं हो सकते हैं . इस तरह देश के सभी नागरिकों का आंकड़ा संग्रहण कर लिया गया . डिजीटल आंकड़ों की संप्रभुता को लेकर तमाम तरह की आशंकाएं भारत में अभी भी हैं.उल्लेखनीय कि पूरी दुनिया में प्रोसेस हो रहे आउटसोर्स डाटा का सबसे बड़ा होस्ट भारत है . प्रारम्भ से ही इस योजना पर आलोचकों ने प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा था कि ये सिर्फ समय और धन की बर्बादी है. इसके बाद भी योजना आगे बढ़ी, आलोचकों के प्रश्नों को दरकिनार नहीं किया जा सकता आम लोगों तक इस योजना की वास्तविक उपयोगिता नहीं पहुँची है इसे लोगों के निजता पर हमले के रूप में भी देखा जा रहा है .एकत्र किये गए आंकड़े की सुरक्षा भी बड़ा मुद्दा है.एक अन्य समस्या बायोमेट्रिक पहचान को लेकर भी है .जिसमें आँखों की पुतलियों और हाथ की उँगलियों के निशान को किसी व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित करने में इस्तेमाल होता है .समस्या तब खडी होती है जब किसी व्यक्ति के ये दोनों अंग इस
स्थिति में न हो जिससे उनका डाटा मशीन में ले लिया जाए तब ऐसे व्यक्तियों की पहचान कैसे निर्धारित की जाए . 2011 में 514,000 परिवारों पर भारतीय नेशनल काउंसिल फोर अप्लाइड इकॉनॉमिक रिसर्च (व्यावहारिक आर्थिक अनुसंधा राष्ट्रीय परिषद) द्वारा किया यह सर्वेक्षण, यूआईडी के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव, एक व्यापक बहु-वर्षीय अध्ययन का हिस्सा था . इस कार्यक्रम के तहत नामांकित छप्पन प्रतिशत से ज्यादा लोगों के पास आधार कार्ड बनने से पहले किसी तरह का कोई वैध पहचान पत्र जैसे पासपोर्ट, ड्राईविंग लाइसेंस या स्थायी लेखा संख्या कार्ड(पैन) नहीं था.इनमें से सत्तासी प्रतिशत परिवारों की आय दो हजार डॉलर प्रति वर्ष से कम थी .यह आंकड़े इस बात की पुष्टि करते है कि भारत में निम्न आय वर्ग के लोगों के पास बेहतर पहचान दस्तावेज नहीं होते.जगह बदलने पर ऐसे लोगों को विभिन्न सरकारी योजनाओं का फायदा सिर्फ वैध पहचान पत्र न होने से नहीं मिल पाता.आधार कार्ड योजना से इस बात पर भी बल मिलता है कि भारत में बढते डिजीटल डिवाईड को आंकड़ों को डिजीटल करके और उसी अनुसार नीतियां बना कर पाटा जा सकता है तकनीक सिर्फ साधन संपन्न लोगों का जीवन स्तर नहीं बेहतर कर रही है. सही मायने में अगर हम देखे तो आजाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी सरकार के पास अपने नागरिकों के व्यवस्थित बायोमेट्रिक आंकड़े उपलब्ध हैं |आंकड़े का मतलब सटीकता और इसी बात को ध्यान में रखते हुए धीरे धीरे ही सही सरकार ने मोबाईल,बैंक खाते,बीमा पॉलिसी ,जमीन की रजिस्ट्री से लेकर आयकर सभी को आधार से जोड़ने का काम शुरू किया | सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद हालाँकि सरकार को एक झटका जरुर लगा है पर एक अरब पच्चीस करोड़ की जनसँख्या वाले देश में केवल 6.5 करोड़ लोगों के पास पासपोर्ट और लगभग बीस करोड़ लोगों के पास ड्राइविंग लाइसेंस है ऐसे में आधार उन करोड़ों लोग के लिए उम्मीद लेकर आया है जो सालों से एक पहचान कार्ड चाहते थेभ्रष्टाचार एक सच है और इसे सिर्फ कानून बना के नहीं रोका जा सकता बल्कि तकनीक के इस्तेमाल और पारदर्शिता को बढ़ावा देकर समाप्त किया जा सकता है |देश में सौ करोड़ से ज्यादा लोगों के पास आधार है।भारत में 73.96 करोड़ (93 प्रतिशत) वयस्कों के पास और 5-18 वर्ष के 22.25करोड़ (67 प्रतिशत) बच्चों के पास और 5 वर्ष से कम आयु के 2.30 करोड़ (20 प्रतिशत) बच्चों के पास आधार है तो देश में पिछले एक साल पहचान का सबसे बड़ा स्रोत आधार कार्ड बन कर उभरा है |भारत जैसे विविधता वाले देश में यदि लोगों का जीवन स्तर बेहतर करके देश की मुख्यधारा में लाने के लिए यह जरुरी है कि सरकार के पास सटीक सूचनाएं हों जिससे वह सरकारी नीतियों का वास्तविक आंकलन कर उन योजनाओं को और जनोन्मुखी बना सके |
दैनिक जागरण /आईनेक्स्ट में 27/09/2018 को प्रकाशित लेख
2 comments:
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