शिक्षा एक ऐसा पैमाना है जिससे कहीं हुए विकास को समझा जा सकता है ,शिक्षा जहाँ जागरूकता लाती है वहीं मानव संसाधन को भी विकसित करती है |निःशुल्क एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है। इसी को ध्यान में रखते हुए विश्व के सभी शीर्ष नेताओं ने इसे सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों का एक हिस्सा बनाया गया है |दुनिया भर में शिक्षा से जुड़े एक ताजा सर्वे में भारत के बच्चों् को लेकर एक महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई है। इस सर्वे में बताया गया है कि भारत के बच्चे दुनिया में सबसे ज्यादा ट्यूशन पढ़ते हैं। विशेषकर गणित के लिए। सर्वे के आंकड़ों के अनुसार देश में चौहत्तर प्रतिशत बच्चे ट्यूशन पढ़ते हैं। किसी भी देश का भविष्य उसके बच्चों के हाथ में होता है और बच्चों का भविष्य उनके शिक्षकों के हाथ में। इसका सीधा-सीधा मतलब यह है की देश का भविष्य शिक्षकों के हाथ में होता है। पर देश के भविष्य के ये कर्णधार आजकल कक्षाओं से अदृश्य होते जा रहे हैं। हाल ही में बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश के एक विद्यालय की एक अध्यापिका पिछले तेईस वर्षों से अनुपस्थित चल रही हैं। हालांकि यह एकाकी घटना हो सकती है जिसे हर शिक्षक के संदर्भ में सही नहीं ठहराया जा सकता है। पर यह भी एक कटु सत्य है कि कक्षाओं से शिक्षकों की अनुपस्थिति भारत में एक चिरकालिक समस्या है। शिक्षकों की कक्षाओं से अनुपस्थिति शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के सबसे निंदनीय स्वरूपों में से एक है। वैसे तो कक्षाओं से शिक्षकों की अनुपस्थिति के कई कारण हैं जिनमें से कुछ वास्तविक भी हैं परंतु इसका सबसे बड़ा कारण है शिक्षकों का सरकारी वेतन लेते हुए भी दूसरे कार्यों जैसे निजी कोचिंग चलाने में व्यस्त रहना। शिक्षकों की अनुपस्थिति का एक और प्रमुख कारण है उनको अन्य सरकारी कार्यों जैसे चुनावों में लगा देना। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों में अनुपस्थित रहने वाले शिक्षकों का प्रतिशत 11 से 30 के बीच में है।कार्तिक मुरलीधरन कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय सेन डीयोगे, के शोध के मुताबिक शिक्षकों की अनुपस्थिति से भारत को प्रतिवर्ष लगभग 1.5 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है। इसी शोध में एक तथ्य और भी सामने आया है कि देश में स्कूॉल जाने वाले बहत्तर प्रतिशत बच्चेक एक्ट्रारत करिकुलर एक्टिविटीज में भाग लेना पसंद करते हैं।
निजी ट्यूशन के मामले में अमीरों व गरीबों के बीच कोई खास अंतर नहीं है. हर तबके के लोग अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक अपने बच्चों को निजी ट्यूशन के लिए भेजते हैं. स्कूलों में पढ़ाई का स्तर ठीक नहीं है. वहां छात्रों के मुकाबले शिक्षकों की तादद कम होने की वजह से उनके लिए हर छात्र पर समुचित ध्यान देना संभव नहीं होता. ऐसे में बेहतर नतीजों और आगे बेहतर संस्थानों में दाखिले के लिए निजी ट्यूशन छात्र जीवन का एक अहम हिस्सा बन गए हैं.एक तथ्य यह भी है कि वास्तव में यह एक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्या है. आजकल हर माता पिता अपने बच्चे को डॉक्टर या इंजीनियर बनाना चाहता है. बहुत से सरकारी सरकारी स्कूलों में एक कक्षा में सौ से ज्यादा छात्र होते हैं. ऐसे में किसी शिक्षक के पास सभी छात्रों पर पर्याप्त ध्यान देने का मौका ही नहीं मिल पाता. निजी स्कूलों में स्थिति जरुर कुछ बेहतर जरूर है. लेकिन वहां भी किसी शिक्षक के लिए हर छात्र पर पूरी तरह ध्यान देना संभव नहीं है क्योंकि भारत में शिक्षा एक व्यवसाय का रूप ले चुकी है जहाँ कभी मंदी नहीं आती है |इधर छात्रों की तादाद लगातार बढ़ रही है और उस अनुपात में बेहतर स्कूल कॉलेजों में सीटों की संख्या नहीं बढ़ रही. इस प्रतिद्वंद्विता ने भी निजी ट्यूशन को बढ़ावा दिया है. भारत में शिक्षा की स्थिति पर एनएसएसओ ने एक सर्वे वर्ष 2014 में छाहठ हजार घरों में किया गया था इस सर्वे के अनुसार निजी ट्यूशन या कोचिंग का सहारा लेने वालों में 4.1 करोड़ छात्र हैं और तीन करोड़ छात्राएं। रिपोर्ट के मुताबिक, परिवार की कुल आय का 11 से 12 प्रतिशत निजी ट्यूशन पर खर्च होता है। कुछ मामलों में यह आंकड़ा परिवार की पच्चीस प्रतिशत आमदनी तक होता है |दुनिया भर में प्राइवेट ट्यूशन उद्योग बहुत तेज़ी से अपने पैर पसार रहा है. एक अनुमान के मुताबिक 2022 तक यह 227 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा.भारत में लोगों की बढ़ती आमदनी ने ऑनलाइन ट्यूशन को आगे बढ़ाया है. कंपनियां इंटरनेट के जरिये छात्रों को अध्यापकों से जोड़ रही हैं.उदारीकरण ने बहुत तेजी से देश में एक नए मध्य वर्ग का निर्माण किया है |जहाँ पति पत्नी दोनों कमाते हैं और दोनों के पास बच्चों को पढ़ाने का समय नहीं है |संयुक्त परिवार वैसे भी शहरों में इतिहास हो रहे हैं जहाँ घर के बुजुर्ग बच्चों की पढ़ाने लिखाने में मदद कर दिया करते थे |नई पीढी के बच्चों को इंटरनेट ने समाज से काट दिया है और वे हर मर्ज का इलाज इंटरनेट में ढूंढते हैं |ऐसे में ऑनलाईन ट्यूशन देने वाली कम्पनियों की बाढ़ भी आ गयी है |इस गला कार्ट प्रतिस्पर्धा वाले युग में हर माता –पिता अपने बच्चों की शिक्षा से किसी भी हालत में समझौता कर पाने की स्थिति में नहीं है |अच्छे स्कूल कॉलेज कम हैं ,जो हैं भी वहां बहुत भीड़ है |रोजगार का भारी संकट है |सभी माता –पिता अपने बच्चे को डॉक्टर इंजीनियर ही बनाना चाहते हैं|सब मिलाकर ये सारी स्थिति ट्यूशन के बाजार के लिए एक आदर्श माहौल देती है | इसलिए पहले अभिभावकों की सोच में बदलाव जरूरी है. उनको तय करना होगा कि आखिर बच्चों को शिक्षा देने का मकसद क्या है और वे जीवन में आगे चल कर क्या हासिल करना चाहते हैं.
दैनिक जागरण /आई नेक्स्ट में 27/11/2018को प्रकाशित