भारत कभी भी गेमिंग कंसोल या कंप्यूटर गेम के लिए बहुत बड़ा बाज़ार नहीं रहा है लेकिन स्मार्टफ़ोन के तेज़ी से बढ़ते प्रयोग और सस्ते डाटा प्लान ने मोबाइल गेमिंग उद्योग में एक बड़ी क्रांति कर दी है |पबजी गेम की लोकप्रियता इन दिनों देश के युवाओं में सर चढ़ कर बोल रही है |भारत , दक्षिण पूर्व एशिया तथा मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका (MENA) क्षेत्र के अग्रणी मोबाइल वीडियो विज्ञापन प्लेटफार्म पीओकेकेटी के अनुसार प्रयोगकर्ताओं की संख्या के मामले में भारत अब मोबाइल गेमिंग के पांच बड़े बाज़ारों में से एक है| 2017 में प्रकाशित एक इसकी रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग दो सौ बाईस मिलियन लोग मोबाइल गेम्स खलने के लिए हर दिन कम से कम पांच सत्रों में औसतन बयालीस मिनट का वक़्त बिताते हैं| गेमिंग उद्योग में खेल से मिलने वाले राजस्व का नवासी प्रतिशत केवल मोबाइल गेमिंग से ही आता है| रिलायंस जिओ इन्फोकॉम का टेलीकॉम उद्योग में प्रवेश और मौजूदा दूर संचार कंपनियोंद्वारा कीमत में कटौती ने 2017 में गेम आधारित मोबाइल एप को बढ़ावा दिया है | इस वजह से मोबाइल गेम ने तेज़ी से बढ़त हासिल की और इसके प्रयोग में अत्यधिक वृद्धि हुई|ऐसे ही एक गेम लूडो किंग जो कि भारत में सर्वाधिल खेले जाने वाले मोबाइल गेम में सबसे ऊपर है , दस मिलियन प्रतिदिन खेलने वाले उपयोगकर्ताओं के आंकड़े को इस खेल ने छू लिया है जबकि इसके महीने के क्रियाशील उपयोगकर्ता लगभग सत्तर मिलियन ही हैं| सबवे सर्फर और टेम्पल रन खेलों में क्रमश: दूसरे व तीसरे नंबर पर हैं और भारत में सबसे ज्यादा खेले जाने वाले तीन मोबाइल गेम्स में से हैं जिन्हें प्रतिदिन खेलने वालों की संख्या क्रमशः पांच मिलियन व ढाई मिलियन है|इसका नतीजा दुनिया के कई बड़े मोबाईल खेल निर्माताओं को भारत एक बड़े बाजार के रूप में दिख रहा है और वे इसमें निवेश के अवसर तलाश रहे हैं |ऐसा इसलिए भी है क्योंकि चीन और अमेरिका के मोबाईल गेम बाजार अब संतृप्ति की ओर अग्रसर हैं जबकि भारत का मोबाईल गेम बाजार में अभी पर्याप्त संभावनाएं हैं |वेबसाईट न्युजू के मुताबिक़ भारत का मोबाईल गेमिंग बाजार 2018 में 1.1 बिलियन डॉलर का है जिसके साल 2020 में 2.4 बिलियन डॉलर हो जाने की उम्मीद है |यह आंकड़ा भारत को मोबाईल गेम के सबसे तेजी से बढ़ते बाजार में तब्दील कर देता है|वैसे भी परिस्थितियां भी कुछ ऐसी ही हैं दुनिया का सबसे युवा देश ,दुनिया के दूसरे नम्बर के सबसे ज्यादा स्मार्टफोन प्रयोगकर्ताओं का देश और तेजी से आगे बढ़ती 4G क्रांति |ये सारी परिस्थितियां है जो देश को मोबाईल गेम बाजार के लिए एक आदर्श स्थिति प्रदान करती हैं | फ़ोर्ब्स के आंकड़ों के मुताबिक़ इस वक्त देश में दो सौ पचास कम्पनियां मोबाईल गेमिंग के कारोबार में हैं जिसमें हर महीने दो कम्पनियों को बढ़ोत्तरी हो रही है जबकि साल 2010 में मात्र पच्चीस कम्पनियां ही काम कर रही थीं |
तथ्य यह भी है कि जहाँ वैश्विक स्तर पर उपयोगकर्ता मोबाइल पर खेले जाने वाले खेलों को खेलने के लिए उन पर पैसा खर्च करते हैं और उन्हें खरीद कर खेलते हैं | वहीँ भारत में अभी उपयोगकर्ता इन खेलों पर पैसा खर्च करने से कतराते हैं| यहाँ तक कि सबसे अधिक लोकप्रिय खेल जैसे कैंडी क्रश और क्लैश ऑफ़ क्लेन्स के भी प्रतिदिन क्रियाशील उपयोगकर्ताओं में से एक प्रतिशत से भी कम ही इन पर पैसा खर्च करते हैं| इसके परिणाम स्वरुप इन खेलों को बनाने वाले एक ऐसे मॉडल की ओर मुड़े जिसमें उच्च वर्ग का उपभोक्ता बिना पैसे दिए इन खेलों का उपयोग कर सके| जिसे उन्होंने फ्रीमियम मॉडल का नाम दिया है |भारत फ्रीमियम मॉडल के लिए बेहतरीन अवसर हैं क्यूंकि ये विज्ञापन को मुद्रीकरण का माध्यम बना देता है |मतलब मोबाईल गेम खेलने वाले लोगों को विज्ञापन दिखाए जाते हैं |मतलब अगर खेल पर पैसा नहीं खर्च करना चाहते हैं तो उन्हें विज्ञापन देखने का विकल्प मिल जाता है जिससे वो पैसा खर्च किये बिना पूरे खेल को खेलने का विकल्प मिल जाता है |वहीं मोबाईल गेम बनाने वाली कम्पनियों को उन विज्ञापनों से पैसा कमाने का विकल्प मिल जाता है |भारत जैसा गरीब देश बगैर पैसा खर्च किये हुए गेम खेलने के लिए विज्ञापन दिखाने वाले विकल्प के लिए सबसे आकर्षक बाजार है |हालांकि भारत में मोबाइल गेमिंग में विज्ञापन अभी काफी कम हैं , पर यह तेज़ी से से बढ़ रहे हैं|मोबाईल गेम बनाने वाली कम्पनियां अभी भारत के भूगोल और भाषा को लेकर संशय की स्थिति में हैं जबकि उनके पास विज्ञापन बहुत हैं,पर भारत की भाषाई विविधता एक समस्या है | पीओकेकेटी की कमाई में पिछले तीन सालों में तीन सौ पंद्रह प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और वह अगले वित्त्तीय वर्ष में इसके भी दुगने की उम्मीद कर रहे हैं| गेमिंग को ध्यान में रखते हुए मोबाइल विडियो विज्ञापन में पर्याप्त संभावनाएं हैं जिनका पर्याप्त दोहन अभी देश में नहीं हुआ है |लोगों में डिजिटल तकनीक के प्रयोग करने की वजह बदल रही है। भारत जैसे देश में समस्या यह है कि यहां तकनीक पहले आ रही है, और उनके प्रयोग के मानक बाद में गढ़े जा रहे हैं। कैस्परस्की लैब द्वारा इस वर्ष किए गए एक शोध में पाया गया है कि करीब 73 फीसदी युवा डिजिटल लत के शिकार हैं, जो किसी न किसी इंटरनेट प्लेटफॉर्म से अपने आप को जोड़े रहते हैं। वास्तविक जिंदगी की असली समस्याओं से वे भागना चाहते हैं और इस चक्कर में वे इंटरनेट पर ज्यादा समय बिताने लगते हैं, जिसमें चैटिंग और ऑनलाइन गेम खेलना शामिल हैं। और जब उन्हें इंटरनेट नहीं मिलता, तो उन्हें बेचैनी होती और स्वभाव में आक्रामकता आ जाती है।
अमर उजाला में 08/11/2018 को प्रकाशित
1 comment:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व दूरदर्शन दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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