Thursday, November 22, 2018

वर्चुअल में रीयल कितना !

उधर तुम चैट पर जल रही होती हो कभी हरी तो कभी पीली और इधर वो तो बस लाल ही होता हैएप्स के बीच में फंसी जिन्दगी वो जाना भी नहीं चाहता था और जताना भी नहीं. वो जितने चैटिंग एप्स डाउनलोड करता वो उससे उतना ही दूर जा रही थी. अब मामला “जी चैट”  बत्तियों के हरे और लाल होने का नहीं था. अब मसला जवाब मिलने और उसके लगातार ऑन लाइन रहने के बीच के फासले का था.वो उसे अक्सर उसे पोक करता वो चुपचाप उस पोक मेसेज को डिलीट कर देती.स्मार्ट फोन की कहानी और उसकी कहानी के बीच एक नई कहानी पैदा हो रही थी,वो कहानी जो जी चैट की हरी लाल होती बत्तियों के बीच शुरू हुई और फेसबुक के लाईक,कमेन्ट में फलते फूलते व्हाट्स एप  के बीच कहीं दम तोड़ रही थी. 

एक प्यारी सी लडकी जो अपने सस्ते से फोन में खुश रहा करती थी.उसकी उम्मीदों को पंख तब लगे ,जब उसने ,उसे एक स्मार्ट फोन गिफ्ट किया. लैपटौप की चैट से वो उब चुका था.वो तो चौबीस घंटे उससे कनेक्टेड रहना चाहता था.वो उसे महंगे गिफ्ट देने से डर रहा था.पता नहीं वो लेगी भी कि नहीं अगर उसे बुरा लग गया तो ! ये वर्च्युल इश्क रीयल भी हो पायेगा ? वो अक्सर सोचा करता.दोनों में कितना अंतर था .वो एकदम सीधा सादा नीरस सा लड़का और वो जिन्दगी की उमंगों से भरी हुई एक ऐसी लडकी जो चीजों से जल्दी बोर हो जाती थी .आखिर उसने हिम्मत करके उसको ऑनलाइन एक फोन गिफ्ट कर ही दिया . उसे फोन जैसे ही मिला उसका एफबी स्टेटस अपडेट हुआ. “गॉट न्यू फोन फ्रॉम सम वन स्पेशल” ,और वो कहीं दूर बैठा उसके स्टेटस पर आने वाले कमेंट्स और लाईक को देख देख कर खुश हो रहा था.
             अब उसके पास भी स्मार्ट फोन था.उसे यकीन था अब दोनों चौबीस घंटे कनेक्टेड रहेंगे.हमेशा के लिए. लेकिन अब वो  व्हाट्स एप पर लम्बे लम्बे मेसेज नहीं लिखती थी, जैसा पहले एस एम् एस में किया करती थी .
        उसने स्माईली में जवाब देना   करना शुरू कर दियापर दिल की भावनाओं को चंद चिह्नों में समेटा जा सकता है क्या ? रीयल अब वर्चुअल हो चला था .दो चार स्माईली के बीच सिमटता रिश्ता वो कहता नहीं था और उसके पास सुनने का वक्त नहीं थाएप्स की दीवानी जो ठहरी , सब कुछ मशीनी हो रहा था.सुबह गुडमार्निंग का रूटीन सा एफ बी मैसेज और शाम को गुडनाईट दिन भर हरी और पीली होती हुई चैट की बत्तियों के बीच कोई जल रहा था तो कोई बुझता सा जा रहा था. वो  तो हार ही रहा था पर वो भी क्या जीत रही थी ? कुछ सवाल जो चमक रहे थे चैट पर जलने वाली बत्ती की तरह रिश्ते मैगी नहीं होते कि दो मिनट में तैयार ,ये सॉरी और थैंक यू से नहीं बहलते इनको एहसास चाहिए जो व्हाट्स एप और हाईक जैसे चैटिंग एप्स नहीं देते. 
             क्या इस रिश्ते को साइन आउट करने का वक्त आ गया था, या ये सब रीयल नहीं महज वर्चुअल था. वो हमेशा इनविजिबल रहा करता था वर्चुअल रियल्टी की तरह वो जी टॉक पर इनविजिबल ही आया था और इनविजिबल ही विदा किया जा रहा था .अब वो जवाब नहीं देती थी और जो जवाब आते उनमे जवाब से ज्यादा सवाल खड़े होते. चैट की बत्तियाँ उसके लिए बंद की जा चुकी थी इशारा साफ़ था अब उसे जाना होगा.वर्चुअल रीयल नहीं हो सकता सबक दिया जा चुका था .
प्रभात खबर में 22/11/2018को प्रकाशित 

6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (23-11-2018) को "कार्तिकपूर्णिमा-गुरू नानकदेव जयन्ती" (चर्चा अंक-3164) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
"कार्तिकपूर्णिमा-गुरू नानकदेव जयन्ती" की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Pammi singh'tripti' said...

आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 28 नवंबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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अनीता सैनी said...

बेहतरीन लेख !!

मन की वीणा said...

यथार्थ की कठोर धरातल दिखाती पोस्ट।
फिर भी देर आये दुरुस्त आये।

Sudha Devrani said...

बहुत सुन्दर... सटीक...

पसंद आया हो तो