Friday, February 15, 2019

डाटा उपनिवेशवाद और उसकी चुनौतियां

अक्सर ऐसा होता है कि हम किसी जानकारी को बस सोच भर रहे होते हैं और अपने सोशल मीडिया पर सामने वही पाते हैं। मतलब कोई है जो आपको इतना जानता है। कोई है जो आपकी हर आदत को भी जानता है, लेकिन ये कौन है? यह आप नहीं जानते।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से जुड़ना तो आजकल हर कोई पसंद करता है, लेकिन धीरे धीरे लोग ख़ुद को इन डिजिटल तारों के बुने हुए जाल में कहीं उलझा हुआ पाते हैं। डिजिटल क्रांति ने मानव जीवन को मोबाइल एप्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से भर दिया है। लोग अपने जीवन से जुड़ी हर चीज इन प्लेटफॉर्म्स पर साझा कर रहे हैं या कहा जाए कि अब एप्स के बिना जिंदगी की कल्पना मुश्किल सी नजर आती है तो अतिशयोक्ति नहीं। आप दुनिया में कहीं भी रहते हों, अपनी भौगौलिक सीमा से निकलकर आप दुनिया के किसी भी कोने में डिजिटल रूप से पहुंच सकते हैं। लेकिन पिछले दिनों सोशल नेटवर्किंग साइट्स इन कारणों से बेहद चर्चा में रहीं।
कुछ समय पहले जब गूगल और फेसबुक पर निजी लोगों का डाटा बेचने का आरोप लगा था। तब से तेजी से डिजिटल होते भारतीय समाज को एक डर जरूर सताने लगा है। इस डर के लिए कहा जा सकता है कि कोई हमारे बारे में सब जानता है, लेकिन हम नहीं जानते कि वह कौन है। हालांकि लोग अपनी जानकारियों को लेकर सतर्क जरूर हुए हैं, पर यह सतर्कता भारत में केवल एक तबके तक ही सीमित है। अधिकतर लोग आज भी पहले की तरह ही सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म्स पर अपनी जानकारियां, फोटो व वीडियो साझा कर रहे हैं। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि समस्या मालूम जरूर है, परंतु भौतिक रूप में सामने नहीं है इसलिए उसका होना महसूस नहीं किया जा सकता। हालांकि केवल इस वजह से डाटा कॉलोनाइजेशन (उपनिवेशवाद) को किसी भी तरीके से कम बड़ी समस्या नहीं आंका जाना चाहिए। आज डाटा कॉलोनाइजेशन हर तरह से अपने पैर पसार चुका है, लेकिन इसे रोकने का एक कारण यह भी है कि यह समस्या है जरूर, पर इसका निस्तारण किसी के पास नहीं है। इस दिशा में कदम उठाने की शुरुआत किस तरह करनी है, इसे समझ पाना ही अभी एक बड़ा मुश्किल मसला है।
क्या है डाटा कॉलोनाइजेशन?
कॉलोनी वह देश या क्षेत्र है जिसका नियंत्रण किसी दूसरे देश से आने वालों के पास है अथवा दूसरे देश से आकर बस जाने वालों के पास। इसी शब्द से कॉलोनाइजेशन शब्द बना है। दरअसल कॉलोनाइजेशन एक प्रक्रिया है जिसमें शक्तियों का एक केंद्र अपने आसपास के भू-भाग को नियंत्रित करता है। डाटा कॉलोनाइजेशन शब्द डिजिटल दुनिया से आया। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि आप भारत में हैं और इसकी भौगौलिक सीमा के भीतर ही आप डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय हैं। लेकिन आपका डाटा यानी आपसे जुड़े तमाम आंकड़े भौगौलिक सीमा से बाहर जा चुका है। और वह किसके पास है, कौन आपके डाटा को नियंत्रित कर रहा है, इन सब के बारे में आप कुछ नहीं जानते। आपकी आदतें, खाना पीना, दिनचर्या सब कुछ किसी दूसरी भौगौलिक सीमा में है। आपके डाटा का किस तरह कहां इस्तेमाल किया जा रहा है, यह पूरी तरह आपके नियंत्रण से बाहर है।
गूगल पर लग चुका डाटा चोरी का आरोप
पिछले साल कैंब्रिज एनालिटिका द्वारा एक शोधकर्ता को आधिकारिक तौर पर अमेरिका के फेसबुक यूजर्स का डाटा एकत्रित करने का काम दिया गया। इसमें ‘लाइक’ एक्टिविटी के द्वारा लोगों को चुना गया। करीब 8.7 करोड़ लोगों का डाटा एकत्रित किया गया। गूगल पर भी यूजर का डाटा चोरी करने का आरोप लगा। इन दो बड़े समूहों पर डाटा चोरी करने का आरोप लगने के बाद से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूजर के डाटा को लेकर गंभीर चर्चाएं शुरू हुईं। दावोस में हुए वल्र्ड इकोनोमिक फोरम में डाटा को लेकर सवाल पूछे जाने पर गूगल के सीईओ सुंदर पिचई ने अपनी बात रखते हुए कहा कि यूजर का डाटा उन्हीं के पास रहना चाहिए व डाटा का नियंत्रण भी उन्हीं के पास होना चाहिए। हम केवल एक परिचालक के तौर पर ही कार्य कर सकते हैं। इससे कुछ वक्त पहले मार्क जकरबर्ग ने अपनी गलती स्वीकार की थी तथा इसे सुधारने की बात भी कही थी।
नए किस्म के पूंजीवाद का जन्म
पूंजीवादी सिद्धांत में मुद्रा का अहम स्थान होता है। लेकिन अब एक नए तरीके के पूंजीवाद ने जन्म लिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आप बेहिचक अपनी जानकारियां, फोटो, वीडियो साझा करते हैं और शायद खुद को इनका नियंत्रक भी पाते हैं। लेकिन इनका नियंत्रण आपके हाथों से दूर हो चुका है। डाटा कॉलोनाइजेशन के साथ साथ डाटा पूंजीवाद भी अपनी जड़ें जमा चुका है। आपके डाटा का इस्तेमाल पैसा कमाने या मुद्रा से जुड़े अन्य विनिमयों के लिए किया जा रहा है। डाटा क्रांति के आने के बाद से ही डाटा को एक पूंजी के रूप में समझा जाने लगा और इससे पैसा बनाने की तरकीबें निकाली जाने लगीं। तो मुद्दा हो न हो, पर यदि आपके पास सबसे अधिक डाटा है तो आज के डिजिटल समय के आप सबसे बड़े पूंजीपति कहलाएंगे और इससे डाटा संबंधों का जन्म होगा।
समाधान के लिए कठोर कदम
समस्या सामने है और कारण भी सामने है। केवल इतना बचता है कि इससे निजात पाने के लिए सही दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। डाटा की महत्ता को ध्यान में रखते हुए अब दायित्व सरकार का बनता है कि वह इसे देश में ही रखने के लिए पर्याप्त कदम उठाए। आधार व डिजिटल होते बैंक खातों व इसी तरह की सुविधाओं से देश में लोगों का डाटा भी वह संचित कर रही है। ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि डाटा को लेकर लोगों में भरोसा बना रहे। इसलिए उनका डाटा भी भौगौलिक सीमा के भीतर ही रखने की कोशिश हो। आने वाले दिनों में डिजिटल दुनिया और आगे बढ़ेगी। ऐसे में डाटा का संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण है।
क्या है जीडीपीआर
जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (जीडीपीआर) एक नियंत्रण व्यवस्था है जिसके तहत समूचे यूरोपीय संघ में नागरिकों के डाटा प्रोटेक्शन अधिकारों को मजबूत बनाया गया है और इसे मानकीकृत किया गया है। इसके तहत माना जाता है कि उपभोक्ता ही आंकड़ों का असली स्वामी या मालिक है। इस कारण से संगठन को उपभोक्ता से स्वीकृति लेनी पड़ती है। वहीं भारत में इस संबंध में ड्राफ्ट डाटा प्रोटेक्शन बिल 2018 को जस्टिस कृष्णा कमेटी ने इलेक्ट्रॉनिक एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रलय को भेजा है जिसका मुख्य मकसद उस समस्या से निजात दिलाना है जो विदेशों में इंडियन डाटा सेव है। उसमें कहा गया कि हर वेब कंपनी का जो डाटा विदेश में सेव है उसकी एक कॉपी भारत में भी सेव करनी पड़ेगी। अगर भारत जीडीपीआर को अपनाता है तो इसके निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं :
’ साइबर सुरक्षा बढ़ेगी।
’ डाटा प्रबंधन बेहतर होगा।
’ निवेश बाजार से प्राप्त आय बढ़ेगी।
’ लोगों का भरोसा बढ़ेगा।
इसलिए नई कारोबारी संस्कृति को स्थापित करने में अग्रणी बनें।
हालांकि ज्यादातर भारतीय संगठन जीडीपीआर से अप्रभावित हैं, पर कुछ आइटी, आउटसोर्सिग इंडस्ट्रीज और फार्मास्युटिकल्स आदि जीडीपीआर से प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि इनका यूरोप के बाजारों में कामकाज है।
बाजारीकरण के लिए उपयोग
डिजिटल होता समाज नित नए शब्दों को गढ़ रहा है। चाहे वह डाटा कॉलोनाइजेशन हो, डाटा पूंजीवाद या फिर डाटा संबंध। डाटा संबंध उस प्रकार के मानव संबंधों को कहते हैं जिसमें डाटा को निकालकर उसका इस्तेमाल बाजारीकरण के लिए किया जाता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर समानांतर चलती जिंदगी ने इस डाटा को निकालना व इसका बाजारीकरण बेहद आसान कर दिया है।
क्या है विदेशी कानून
आजकल निजता और सुरक्षा को सुनिश्चित करना चर्चा में है। बीते 25 मई 2018 को यूरोपीय संघ के नेतृत्व में जीडीपीआर को पूरी तरह से लागू किया और इस तरह यूरोपीय संघ में डाटा प्रोटेक्शन कानूनों की दिशा में एक मील का पत्थर स्थापित किया गया।
इस मामले के खिलाफ अभियान चलाने की जरूरत
गूगल और फेसबुक पर डाटा चोरी करने के बाद से ही इस विषय पर भारत में भी चर्चा जारी है, क्योंकि ‘स्टैटिस्टा’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक केवल फेसबुक के पास ही भारत के करीब 29.4 करोड़ लोगों का डाटा है। ऐसे में डाटा कॉलोनाइजेशन एक अहम मुद्दा बन जाता है। हाल ही में रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने कहा है कि भारतीयों का डाटा उन्हीं के पास रहना चाहिए। इस पर विदेशी कंपनियों का नियंत्रण नहीं होना चाहिए। मुकेश अंबानी ने राजनीतिक कॉलोनाइजेशन के खिलाफ महात्मा गांधी के आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि भारत को अब डाटा कॉलोनाइजेशन के खिलाफ अभियान चलाने की जरूरत है। आज के दौर की नई दुनिया में डाटा नई संपत्ति है। भारत डाटा की क्रांति में कामयाब हो सके, इसके लिए देश के लोगों को डाटा का कंट्रोल खुद हासिल करना पड़ेगा। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि देश की संपत्ति देश के लोगों को ही मिलनी चाहिए। आज यह आवश्यकता है कि डाटा कॉलोनाइजेशन के खिलाफ अभियान को भारत अपने डिजिटल इंडिया मिशन के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल करे।
क्यों है यह आज इतना महत्वपूर्ण
आज के समय में डाटा एक बड़ी पूंजी है। यह डाटा जो भारतीय लोगों द्वारा विभिन्न एप्स, वेब सर्विसेज और ऑनलाइन ट्रैफिक द्वारा निर्मित किया गया जाता है, उस पर स्वयं उनका ही नियंत्रण नहीं है। कारण डाटा का इस्तेमाल करने वाली सभी कंपनियों ने अपने सर्वर भारत की भौगौलिक सीमा से बाहर स्थापित किए हैं। उदाहरण के तौर पर यदि फेसबुक को लिया जाए तो हम देखते हैं कि इतने विवादों में रहने का बावजूद इसके पास भारतीयों से संबंधित जानकारियों का एक बड़ा यूजर डाटा बेस है। फेसबुक के 29.4 करोड़ भारतीय यूजर्स का सारा डाटा अमेरिका के सर्वर में सेव है जिसमें भारत के लोगों की ब्राउजिंग आदतें, हमारी पसंद और नापसंद तथा चेहरा के पहचान सेव हैं। इसके साथ साथ हमारी दिनचर्या का सारा हिसाब किताब भी सेव है। न केवल फेसबुक, बल्कि अमेजन, गूगल, उबर, एपल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी तमाम वेब कंपनियां और एप्स आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से हमलोगों के बारे में सारी जानकारियों को प्राप्त कर सकती हैं। रिसर्च फर्म जिपोरिया के अनुसार आज उबर के पास इतना डाटा है कि वह पहले से ही इस बात का अंदाजा लगा सकता है कि आप कहां के लिए बुकिंग कर रहे हैं। इसी तरह अमेजन यह जानता है कि आपकी रुचियां और पसंद नापसंद क्या है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने डाटा को यूजर के नियंत्रण से बाहर करके नए किस्म के डाटा पूंजीवाद को भी जन्म दिया है।
दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 15/02/19 को प्रकाशित 

1 comment:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 75वीं पुण्यतिथि - दादा साहेब फाल्के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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