Thursday, February 21, 2019

रिश्ते भी स्मार्ट होने चाहिए


एक बात मुझे आजकल बहुत कचोट रही हैंमेरे एक मित्र मुझसे किसी बात पर नाराज हो गए और बोले कि ज्यादा स्मार्ट” न बना करो,खैर उन्हें तो मैंने मना लिया, पर ये स्मार्ट शब्द मेरे जेहन में घुस गया,क्योंकि बात दोस्ती के रिश्ते की थी और रिश्ते में स्मार्टनेस कैसे और कहाँ से आ गयी?आजकल स्मार्ट होने का जमाना है वो चाहे फोन हो या टीवी या फ्रिज सब स्नार्ट होने चाहिए .वैसे स्मार्ट होने में कोई बुराई भी नहीं है पर जो आपका पुराना फोन था जिसको बदल कर अभी आपने नया नया स्मार्ट फोन लिया है .क्या उसकी कमी खलती है?आप कहेंगे कभी कभी जब नया  फोन हैंग होता है या कोई वाइरस आ जाता है. वो बहुत सिंपल था उसमें फीचर्स कम थे.अब ये नया फोन वैसे तो बहुत  बढ़िया है पर फीचर्स इतने ज्यादा है कि आधे की तो कभी जरुरत ही नहीं पड़ती.खैर  जब इतनी चीजें स्मार्ट हो रही है तो रिश्ते क्यूँ न स्मार्ट हों,रिश्ते और स्मार्ट ये भला कैसी बात ?
जब दुनिया बदल रही है तो रिश्ते क्यूँ नहीं बस यहीं मामला थोडा उल्टा हो जाता कुछ चीजें अपने  मूल  रूप में ही अच्छी लगती हैं और हमारे रिश्ते उनमें से एक है.जरा सोचिये हमारा वो पुराना फोन बात करने और मेसेज भेजने के काम तो कर ही रहा था और हममें से ज्यादातर लोग अपने स्मार्टफोन से भी वही काम करते हैं जो अपने पुराने फोन से करते थे.फोन पर चैटिंग और मिनट मिनट पर फेसबुक का इस्तेमाल बस थोड़े दिन ही करते हैं फिर जिंदगी की आपधापी में ये चीजें बस फोन का फीचर भर बन कर रह जाती हैं पर इस थोड़े से मजे के लिए हम अपने फोन को कितना कॉमप्लिकेटेड बना लेते हैं.फोन की स्क्रीन को सम्हालना कहीं गिर न जाए महंगा फोन हैं कहीं खो न जाए हमेशा अपने से चिपकाए फिरते हैं.आप परेशान न हों हम ये थोड़ी न कह रहे हैं कि आपने फोन बदल कर गलत किया. रिश्ते भी वक्त के साथ बदलते हैं पर जो चीजें नहीं बदलती हैं वो है अपनापनरिश्तों की गर्मी और किसी के साथ से मिलने वाली खुशी. हमारा फोन स्मार्ट हुआ तो जटिल  हो गया उसी तरह रिश्तों में अगर स्मार्टनेस आ जाती है तो उसमें जटिलता  बढ़ जाती  है फिर वो रिश्ते भले ही रहें पर उनमें वो अपनापन,प्यार नहीं रह जाता .
 हम जिंदगी में कई तरह के रिश्ते  बनाते हैं कुछ पर्सनल तो कुछ फॉर्मल,कभी आपने महसूस किया है हम फॉर्मल रिश्तों में ज्यादा स्मार्टनेस दिखाते हैं हम जैसे हैं उससे अलग हटकर बर्ताव  करते हैं.किसी बात पर गुस्सा भी आया तो हंसकर टाल गए ,कुछ बुरा लगा तो भी चेहरे पर मुस्कुराहट ओढ़े रहे जाहिर है जबकि हम ऐसे नहीं होते नहीं अगर अपने लोगों के साथ कुछ ऐसा हुआ होता तो हम जमकर गुस्सा करते पर बाहर हम ऐसा नहीं करते क्यूंकि जिन लोगों के साथ हम थे उनसे हमारे औपचारिक  रिश्ते थे .हर इंसान के जीवन में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके सामने वो असल में जैसा होता है वैसा दिखा सकता है. जाहिर है अपने लोगो से स्मार्टनेस दिखाने का कोई फायदा नहीं है.ये लोग हमारे अपने हैं जो हमारी सब अच्छे बुराई जानते हैं.ये हमारे नामओहदे,रसूख के कारण हमारे साथ नहीं हैऐसे रिश्तों के साथ कोई नियम व शर्तें नहीं लागू होती हैं.अब आपको समझ में आ गया होगा कि स्मार्टफोन खरीदते वक्त नियम व शर्तें जरुर पढ़ें पर जब बात अपनों की हो तो कोई बिलकुल स्मार्टनेस न दिखाएँ क्यूंकि अपने  रिश्तों के साथ कोई नियम और शर्तें नहीं होती हैं,तो मैं फोन भले ही स्मार्ट रखता हूँ पर असल में स्मार्ट हूँ नहीं.
प्रभात खबर में 21/02/19 को प्रकाशित 



3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-02-2019) को "नमन नामवर" (चर्चा अंक-3255) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Jyoti Dehliwal said...

विचारनीय आलेख

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 122वीं जयंती - अमरनाथ झा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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