Wednesday, March 6, 2019

सोशल मीडिया का खतरनाक इस्तेमाल

पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमले के ठीक बाद आत्मघाती हमलावर आदिल अहमद डार का एक विडियो सोशल मीडिया साईट्स के माध्यम से एक वीडियो वाइरल किया गया। इस विडियो में उसने कहा है कि जब तक यह विडियो मिलेगा तब तक वह जन्नत पहुंच चुका होगा। आदिल डार पुलवामा के ही काकपुरा के गुंडीबाग का रहने वाला एक जवान लड़का था,अगर वो आतंकवाद की राह पर न चल पड़ता तो न जाने जिन्दगी की कितनी सौगातें अभी उसे देखनी थी .इस उम्र के लड़के में भारत के खिलाफ इतनी नफरत कैसे भर दी गयी,जिस उम्र में युवा अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं वह आतंक के क्रूर और घ्रणित राह पर चल पड़ा .इसमें कोई राय नहीं है कि देश के बारे में उसकी सोच को बदलने में अन्य कारकों के अलावा भारत विरोधी उन वीडियो की भी थी जो व्हाट्स एप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर चलते रहते हैं .
तकनीक कोई भी बुरी नहीं होती पर उसका इस्तेमाल कैसे और कौन कर रहा है इससे उसके अच्छे और बुरे होने का मानक तय होता है .बंदूक का आविष्कार शिकार के लिए हुआ था पर कब इंसान उससे आपस में एक दूसरे को मारने लग गया .हमें पता ही नहीं चला. इंटरनेट आज की दुनिया का सच है और उसी से जुडी हैं तमाम तरह की सोशल नेटवर्किंग साईट्स ,जिनका आविष्कार लोगों में सामाजिकता बढ़ाने के लिए किया गया था.लोगों में मेल जोल हो और दुनिया में सद्भाव बना रहे .लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है .पिछले साल जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों ने एक ऐसी महिला को गिरफ्तार किया हैजो फेसबुक के जरिए युवाओं को आतंकवादमें खासकर जैश-ए-मोहम्मद में शामिल होने के लिए उकसाती थी। खुफिया एजेंसियों ने उसके फेसबुक अकाउंट पर काफी समय से नजर बनाए रखी थी,जिसके जरिए वह युवाओं को जिहाद में शामिल होने और हथियार उठाने के लिए उकसाती थी। ये एक बानगी भर है असल में व्हाट्स एप और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साईट्स और उनमें बने ग्रुप्स से कई तरह की देश विरोधी हरकतों का अंजाम दिया जा रहा है और सरकार के पास ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे इनपर लगाम लगाई जा सके .माइक्रोसॉफ्ट के द्वारा कराये गए एक शोध में यह परिणाम निकल के सामने आया है कि सारी दुनिया के मुकाबले भारत में सबसे ज्यादा फेक न्यूज और इंटरनेट पर झांसा देने के मामले सामने आ रहे हैं .भारत में यह आंकड़ा चौसठ प्रतिशत है जबकि विश्व स्तर पर यह औसत सतावन है .इंटरनेट पर झांसा देने के मामले में विश्व स्तर पर यह औसत जहाँ पचास प्रतिशत है वहीं भारत में यह आंकड़ा चौवन प्रतिशत है .पिछले एक दशक में हुई सूचना क्रांति ने अफवाहों को तस्वीरें और वीडियों के माध्यम से ऐसी गति दे दी है जिसकी कल्पना करना मुश्किल है .

वैसे भी  सरकारों ने हमेशा से ही काल्पनिक तथ्यों के जरिए प्रोपेगंडा को बढ़ावा दिया है। पर  सोशल मीडिया के तेज प्रसार और इसके आर्थिक पक्ष  ने झूठ को तथ्य बना कर परोसने की कला को नए स्तर पर पहुंचाया है और इस असत्य ज्ञान के स्रोत के रूप में फेसबुक और व्हाट्स एप नए ज्ञान के केंद्र के रूप में उभरे हैं कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक शोध में सामने आया है कि लोगों को यदि गलत सूचनायें दी जाएं तो वैकल्पिक तथ्यों से ज्यादा उन पर थोपे गए तथ्यों पर विश्वास करते हैं। भारत फेक न्यूज की इस विकराल  समस्या का सामना इन दिनों कर रहा है ..
भारत जैसे देश में जहाँ लोग प्राप्त सूचनाओं का आंकलन अर्जित ज्ञान की बजाय जन श्रुतियों ,मान्यताओं और परम्पराओं के आधार पर करते हैं वहां भूतों से मुलाक़ात पर बना कोई भी यूट्यूब चैनल रातों रात हजारों सब्सक्राईबर जुटा लेगा .वीडियो भले ही झूठे हों पर उसे हिट्स मिलेंगे तो उसे बनाने वाले को आर्थिक रूप से फायदा भी मिलेगा .किसी विकसित देश के मुकाबले भारत में झूठ का कारोबार तेजी से गति भी पकड़ेगा और आर्थिक फायदा भी पहुंचाएगा .भारत में लगभग बीस करोड़ लोग वॉट्सऐप का प्रयोग करते हैं जिसमें कई संदेशफोटो और विडियो फेक होते हैं। पर जागरूकता के अभाव में देखते ही देखते ये वायरल हो जाते हैं। एंड टु एंड एनक्रिप्शन के कारण वॉट्सऐप पर कोई तस्वीर सबसे पहले किसने डालीयह पता करना लगभग असंभव है। उम्र के लिहाज से देखा जाए तो इन्टरनेट अब प्रौढ़ हो चला है पर भारतीय परिवेश के लिहाज से इन्टरनेट एक युवा माध्यम है जिसे यहाँ आये अभी बाईस  साल ही हुए हैं इसी परिप्रेक्ष्य में अगर सोशल नेटवर्किंग को जोड़ दिया जाए तो ये तो अभी बाल्यवस्था में ही है .खबर को जल्दी से जल्दी पाठकों और दर्शकों को पहुंचाने  की यह मनोवृत्ति फेक न्यूज के फैलने का भी एक बड़ा कारण बन रहे हैं और इसी प्रवृत्ति का  विस्तार  आम आदमी के व्हाट्स एप चैट बॉक्स कर रहे हैं जहाँ बगैर असली सच जाने विभिन्न व्हाट्स एप ग्रुपों में लगातार ऐसी असत्य या सन्दर्भ से कटी सूचनाएं फोटो या वीडियो के माध्यम से प्रेषित की जा रही हैं .इन गलत सूचनाओं के माध्यम से देश के युवाओं को भड़काने का काम किया जा रहा है .कश्मीर जैसे भारत के अन्य राज्य जहाँ अलगाववादी तत्व  और आतंकवादी सक्रीय हैं वे फेसबुक और व्हाट्स एप जैसी सोशल मीडिया साईट्स के  माध्यम  से भारत के खिलाफ वहीं के लोगों को भड़का कर अपने देश विरोधी एजेंडे को लागू कर रहे हैं .जिसका आसान शिकार देश का युवा बन रहा है .इंटेलीजेंस एजेंसियों के पास ऐसी सूचनाओं की कमी नहीं है जहाँ कश्मीर में आई एस आई एस और जैश जैसे आतंकवादी संगठन अपना विस्तार इन्हीं सोशल नेटवर्किंग साईट्स के माध्यम से भारत के खिलाफ झूठी और नफरत भरी सूचनाओं से कर रहे हैं .इन समस्याओं से बचने का एक ही तरीका है जागरूकता और उचित और कठोर कानून .
दैनिक जागरण /आईनेक्स्ट में 06/03/2019 को प्रकाशित 

1 comment:

HARSHVARDHAN said...

मोटूरि सत्यनारायणआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 24वीं पुण्यतिथि - मोटूरि सत्यनारायण और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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