Tuesday, July 30, 2019

सुनना भी एक कला है

कभी कभी यूँ ही चीज़ों को उलट पलट कर देखने का मन करता है .इसी तरह एक दिन जिंदगी के रंगों को उलट पुलटकर देख रहा था तो ख्याल आया अगर हमारी जिंदगी में आवाज़ न होती तो क्या होता ?सच कहूँ सिहरन सी हुई .आवाजें हमें कितना कुछ सिखाती हैं लेकिन इसका मोल हम सचमुच कर पाते हैं क्या ?जितना फोकस हम बोलने पर करते हैं उतना ही सुनने पर करते हैं क्या ?असल में आवाज़ का असर उसे ठीक से सुने जाने में है .है न मजेदार बात . अब अगर अच्छा बोलना है तो थोडा सुनने की आदत भी होनी चाहिए वो संगीत हो या किसी की मीठी बात हमें तभी अच्छी लगेगी जब हम उन्हें सुनेगे .सुनना एक कला है .
जो इस कला को जितना ज्यादा जानता है उसे जीवन उतना ही सीखता है  जीवन की भाग दौड में कितना कुछ हम सुनते हैं कितने तरह की आवाजें दोस्त की पुकार ,मम्मी का प्यार और और भी बहुत कुछ पर उसमे से हमें वही याद रहता है जिसे हम याद रखना चाहते हैं. गाने भी हमें वही अच्छे लगते है जिन्हें हम सुनते हैं तो आज कुछ ऐसे गाने सुनिए जो अच्छे तो हैं पर आपने उन्हें आपने सुना ही नहीं और ये गाने जिंदगी के बारे में आपका नजरिया बदल कर रख देंगे . शुरुवात जगजीत सिंह की गज़ल से “आवाजों के बाज़ारों में खामोशी पहचाने कौन” इसे सुनते हुए हमेशा महसूस हुआ कि वाकई हम आवाजें ही ठीक से सुनना नहीं सीख पाए अब तक,खामोशी सुनने को कौन कहे .कितना मुश्किल है ये और कितना जरूरी भी .एक गाना जो हमेशा से बहुत पसंद है .
अब अगर आवाज़ की आवाज़  को सुनना हो तो इससे बेहतर क्या गाना हो सकता है दिल की आवाज़ भी सुन  (फिल्म :हमसाया ) जरा सोचिये अगर हम बोलना कम और सुनना ज्यादा शुरू कर दें तो कितनी समस्याओं का समाधान  हो जाएगा  .अब अगर कोई बड़ा हमें डांट रहा है तो अगर हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं तो सिर्फ उसे सुन ही लें तो बात वहीं खत्म हो जाए  पर कभी दिल बोलता है और हम सुन ही नहीं पाते “कुछ दिल ने कहा ,कुछ भी नहीं कुछ ऐसी बातें होती हैं” (फिल्म :अनुपमा ) तो दिल की आवाज़ सुनने के लिए अपने आप को तैयार करें अगर आप तनाव  में हैं तो सब कुछ छोड़कर शांति से कोई अच्छा गाना सुनिए पर कभी ऐसा भी होता है कि किसी की आवाज़ हमें इतनी अच्छी लगती है कि हम सुध बुध ही खो बैठते हैं और हम गा उठते हैं “आवाज़ दो हमको हम खो गए” (फिल्म :दुश्मन ) पर ये आवाज़ आपको अच्छी क्यों लगती है क्योंकि जब सामने वाला अपनी बात सलीके से कहता है तो हमें अच्छा लगता है और इसी लिए हमें हमेशा सिखाया जाता है कि मीठा बोलना चाहिए पर समस्या ये है कि हम मीठा सुनना चाहते हैं पर बोलना नहीं .
जरा याद कीजिये हम रिक्शेवाले या अपने यहाँ काम करने वाले किसी मातहत  से किस तरह बात करते हैं और ये वह लोग हैं जो हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर रहे हैं पर हमारा रवैया इनके प्रति कैसा रहता है समझदार को इशारा काफी है अगर आप नहीं समझेंगे तो हो सकता है आपके साथ ये स्थिति आये कि आप ये गाना गाते फिरें “आज पुरानी राहों से कोई मुझे आवाज़ न दे” (फिल्म :आदमी)
प्रभात खबर में 30/07/2019 को प्रकाशित 

सोशल मीडिया पर कुछ भी नहीं है सीक्रेट

सोशल मीडिया पर होना एक तरह से समाज में आपकी स्वीकार्यता को बढ़ावा देता है .समाज में किसी की हैसियत सोशल मीडिया में उसके फोलोवर से तय की जाने लगी है .सोशल मीडिया पर आने से जिस तथ्य को हम नजरंदाज करते हैं वह है हमारी निजता का मुद्दा और हमारे दी जाने वाली जानकारी.जब भी हम किसी सोशल मीडिया से जुड़ते हैं हम अपना नाम पता फोन नम्बर ई मेल उस कम्पनी को दे देते है.असल समस्या यहीं से शुरू होती है .  इस तरह सोशल मीडिया पर आने वाले लोगों का डाटा कलेक्ट  कर लिया जाता है .उधर इंटरनेट के फैलाव  के साथ आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हो उठें .लोगों के बारे में सम्पूर्ण जानकारियां को एकत्र करके बेचा जाना एक व्यवसाय बन चुका है और  इनकी कोई भी कीमत चुकाने के लिए लोग तैयार बैठे हैं .कई बार एक गलती  किसी कंपनी की उस लोकप्रियता  पर भारी पड़ जाती है जो उसने एक लंबे समय में अर्जित की होती है. टेकक्रंच  की एक रिपोर्ट के मुताबिक मई माह में लाखों मशहूर और प्रभावशाली व्यक्तियों का पर्सनल डेटा इन्स्ताग्राम  के जरिए लीक हो गया है. इस डेटाबेस में 4.9 करोड़ हाई-प्रोफाइल लोगों के व्यक्तिगत रिकॉर्ड  हैंजिनमें जाने-माने फूड ब्लॉगरऔर सोशल मीडिया के प्रभावशाली लोग शामिल थे.रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जिन लोगों का डेटा लीक हुआ है उसमें उनके फॉलोवर्स की संख्याबायोपब्लिक डेटाप्रोफाइल पिक्चरलोकशन और पर्सनल कॉन्टैक्ट भी शामिल थे.तथ्य यह भी है कि जैसे ही ऐसा करने वाली फर्म के बारे में रिपोर्ट छपी , उसने तुरंत अपने डेटाबेस को ऑफलाइन कर लिया. ध्यान रहे कि इंटरनेट की दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण बात है इसकी गतिशीलता नया बहुत जल्दी पुराना हो जाता है और नई संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं .सोशल मीडिया प्लेटफोर्म नित नए रूप बदल रहे हैं उसमें नए नए फीचर्स जोड़े जा रहे हैं .इस सारी कवायद का मतलब ऑडिएंस को ज्यादा से ज्यादा वक्त तक अपने प्लेटफोर्म से जोड़े रखना .इसका बड़ा कारण इंटरनेट द्वारा पैदा हो रही आय भी है .अब सोशल मीडिया इतना तेज़ और जन-सामान्य का संचार माध्यम बन गया कि इसने हर उस व्यक्ति को जिसके पास स्मार्ट फोन है और सोशल मीडिया पर उसकी एक बड़ी फैन फोलोविंग  वह एक चलता फिरता मीडिया हाउस बन गया  है . अब वह वक्त जा चुका है जब सेलेब्रेटी स्टेट्स माने के लिए किसी को सालों इन्तजार करना पड़ता था .सोशल मीडिया रातों रात लोगों को सेलिब्रटी बना दे रहा है जिसमें बड़ी भूमिका ,फेसबुक,इन्स्टाग्राम और यू ट्यूब जैसी साईट्स निभा रही हैं .ग्लोबल सोशल मीडिया रैंकिंग 2018 के अनुसार इस वक्त फेसबुक दुनिया की सबसे बड़ी सोशल मीडिया साईट है उसके बाद यू ट्यूब और व्हाट्स एप का नम्बर आता है .दुनिया भर की इन सोशल मीडिया साईट्स की भीड़ में एक साईट्स बहुत तेजी से अपनी जगह बना रही है और वह है इन्स्टाग्राम. पिछले साल  पहले कैंब्रिज एनालिटिका मामला सोशल नेटवर्किंग साईट  फेसबुक के लिए ऐसा ही रहा. इस कंपनी पर आरोप है कि इसने अवैध तरीके से फेसबुक के करोड़ों यूजरों का डेटा हासिल किया और इस जानकारी का इस्तेमाल अलग-अलग देशों के चुनावों को प्रभावित करने में किया. इनमें 2016 में हुआ अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव भी शामिल  है. इंटरनेट के फैलाव  के साथ आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हो उठें .लोगों के बारे में सम्पूर्ण जानकारियां को एकत्र करके बेचा जाना एक व्यवसाय बन चुका है और  इनकी कोई भी कीमत चुकाने के लिए लोग तैयार बैठे हैं .देश में आंकड़ों की सुरक्षा के लिए अभी तक कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है जैसे ही आप इंटरनेट पर आते हैं आपकी कोई भी जानकारी निजी नहीं रह जाती और इसलिए इंटरनेट पर सेवाएँ देने वाली कम्पनिया अपने ग्राहकों को यह भरोसा जरुर दिलाती हैं कि आपका डाटा गोपनीय रहेगा पर फिर भी आंकड़े लीक होने की सूचनाएं लगातार सुर्खियाँ बनी रहती हैं .देश अभी लोगों के डाटा को सुरक्षित बनाने वाले कानून के बनने के इन्तजार में है.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी एन श्री कृष्णा की अध्यक्षता में गठित समिति ने पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल का ड्राफ्ट बिल सरकार को सौंप दिया है .इस बिल में निजी” शब्द को परिभाषित किया गया है.इसके अतिरिक्त इसमें सम्वेदनशील निजी डाटा को बारह  भागों में विभाजित किया गया है.जिसमें पासवर्ड,वित्तीय डाटा,स्वास्थ्य डाटा,अधिकारिक नियोक्ता,सेक्स जीवन,जाति/जनजाति,धार्मिक ,राजनैतिक संबद्धता जैसे क्षेत्र जोड़े गए हैं.इस बिल को अगर संसद बगैर किसी संशोधन के पास कर देती है तो देश के प्रत्येक नागरिक को अपने डाटा पर चार तरह के अधिकार मिल जायेंगे .जिनमें पुष्टिकरण और पहुँच का अधिकारडाटा को सही करने का अधिकारडाटा पोर्टेबिलिटी और डाटा को बिसरा देने जैसे अधिकार शामिल हैं .इस समिति की  रिपोर्ट के अनुसार यदि इस बिल का कहीं उल्लंघन होता है तो सभी कम्पनियों और सरकार को स्पष्ट रूप से उन व्यक्तियों को सूचित करना होगा जिनके डाटा की चोरी या लीक हुई है कि चोरी या लीक हुए डाटा की प्रकृति क्या है ,उससे कितने लोग प्रभावित होंगे ,उस चोरी या लीक के क्या परिणाम हो सकते हैं और प्रभावित लोग जिनके डाटा चोरी या लीक हुए हैं वे क्या करें .ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति का डाटा चोरी या लीक हुआ है वह उस कम्पनी से क्षतिपूर्ति की मांग भी कर सकता है .फिलहाल यह बिल संसद की मंजूरी के इन्तजार में है,लेकिन सिर्फ़ कानून के बन जाने से सबकुछ ठीक हो जाएऐसा संभव नहीं है. इसके लिए लोगों को भी जागरूक होना होगा.इन सबसे महत्वपूर्ण है खुद लोगों का जागरूक होना और सोशल मीडिया का सम्हल कर इस्तेमाल करना सीखना होगा जब तक ऐसा नहीं होगा हम अपनी निजता बचा नहीं पायेंगे.इंटरनेट पर कुछ भी गोपनीय नहीं है.
दैनिक जागरण /आई नेक्स्ट में 30/07/2019 को प्रकाशित 

Tuesday, July 23, 2019

वर्च्युल युग की बड़ी समस्या डिजीटल ईगो

इस भौतिक समाज में बहुत सी ऐसी मनोवैज्ञानिक अवधारणायें हैं जो कल तक इस वर्च्युल दुनिया का हिस्सा नहीं थी पर सोशल मीडिया साईट्स के बढ़ते इस्तेमाल और तकनीकी डेवेलपमेंट  ने इन सीमाओं को धीरे –धीरे समाप्त करना शुरू किया और संचार के साथ –साथ भावों को भी व्यक्त करने के तरीके उपलब्ध करायेपहले  हम सोशल मीडिया में अपने गुस्से का इजहार करना चाहें तो हमें इसे लिख कर बताना पड़ता था पर इमोजी के आने से यह आसान हो गया पर ऐसे बहुत से भाव अभी भी छूटे हैं |जिनको व्यक्त करने या महसूस कराने के लिए पर्याप्त संकेतों का अभाव हैईगो का मसला उसमें से एक है |आज हम एक डिजिटल युग में जी रहे हैं जहां हमारी एक वर्चुअल पहचान हैसोशल मीडिया प्रारंभ  में सिर्फ लोगों से मिलने जुलने का साधन भर था पर धीरे धीरे इसकी लोकप्रियता में बढौत्तरी  ने इसे एक आवश्यक आवश्यकता वाले  माध्यम में बदल दिया और यही से शुरुआत होती है इसका इस्तेमाल करने वाले सिटीजन ,नेटिजन में तब्दील हो गए | ये पहचान अस्थाई है और जैसे ही हम अपना उपकरण फोन या लैपटॉप बंद  करते हैंहमारी ये पहचान खत्म  नहीं होती बल्कि उसका अस्तित्व बना रहता है |इसलिए आज  लोग अपनी सोशल पहचान के लिए ज्यादा सतर्क रहते हैं |‘डिजिटल ईगो इसी आम धारणा को खारिज करता है यानि कंप्यूटर बंद करने के बाद भी हमारी वर्च्युल पहचान अपना काम करती रहती है |
कोरिया एडवांस्ड इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के सहायक प्रोफेसर जैकब वैन कोक्सविज़ ने अपनी किताब ‘डिजिटल ईगो: वर्चुअल आइडेंटिटी के सामाजिक और कानूनी पहलू’ में इसको परिभाषित करते हुए  लिखते हैं | वर्चुअल पहचान किसी इंसान की महज एक ऑनलाइन पहचान नहीं है बल्कि ये एक नई तकनीकी और सामाजिक घटना है|मान लीजिये  कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा संचालित सॉफ्टवेयर एजेंट डिजिटल मार्केटप्लेस में आपकी ओर से काम करना शुरू कर दें तो क्या होगाइन वर्चुअल एजेंट द्वारा किए गए निर्णयों के कानूनी परिणाम क्या हो सकते हैं?बाजारराजनीति और संस्कृति से प्रभावित होकर साइबरस्पेसहमारी मूर्त दुनिया की तुलना मेंएक हाईली रेगुलेटेड दुनिया बनता जा रहा हैजहां हमारे आचरण को ज्यादा सख्ती से कंट्रोल किया जाएगा|कोक्सविज़ वर्चुअल आइडेंटिटी के सामाजिक और कानूनी पहलुओं की एक विस्तृत श्रृंखला को संबोधित करते हैंजैसे कि असल दुनिया की कानूनी प्रणालियों में वर्चुअल परिवेश की स्थितितथा वर्चुअल व असल पहचान में अंतर |
हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ओर बढ़ रहे हैं जहां गैर-मानवीय वर्चुअल आइडेंटिटी की संभावनाएं बढ़ती हुई नजर आ रही हैंइसमें मीडिया आउटलेट्स,विज्ञापन प्रंबंधक तथा सामान्य कंप्यूटर उपयोगकर्ता अहम भूमिका निभा रहे हैं|
हमारी दुनिया में डिजिटल ईगो पनपता कैसे हैलोगों की वर्चुअल स्पेस पर निर्भरता बढ़ती जा रही हैसोशल मीडिया के हम आदी होते जा रहे हैंऐसे में जब हम किसी को या कोई हमें इस मंच पर नकारता हैवहीं से इस डिजिटल ईगो का जन्म होता है|विशेषज्ञों का मानना  है कि सोशल नेटवर्क पर अस्वीकृति आमने-सामने के टकराव से भी बदतर हो सकती है क्योंकि लोग आमतौर पर ऑनलाइन होने की तुलना में आमने-सामने ज्यादा विनम्र होते हैं।हम कोई स्टेट्स किसी सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर डालते हैं और देखते हैं कि अचानक उसमें कुछ ऐसे लोग स्टेट्स के सही मंतव्य को समझे बगैर टिप्पणियाँ करने लगते हैं जिनसे हमारी किसी तरह की कोई जान पहचान नहीं होती |यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया होती है जिसमें ईगो का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है  |ये स्थिति घातक भी  हो सकती हैडिजिटल ईगो को पहचान पाना आसान नहीं हैहम ये आसानी से नहीं समझ सकते कि इंटरनेट व सोशल मीडिया पर अवहेलना क्या वास्तविक है या इसके पीछे और कोई और वजह छिपी है|
परत दर परत इसको समझने की कोशिश करते हैंमान लीजिए मैंने अपने एक मित्र को फेसबुक पर मैसेज कियामुझे ये दिख रहा है कि वो मैसेज देखा जा चुका हैलेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आ रहा हैतो मैं ये मान लेता हूं कि मेरे वह  मित्र मुझे नजरंदाज़ कर रहा है|जबकि वास्तविकता में ऐसा न हो सकता है कि उसके पास जवाब देने का वक्त न होया फिर उसका अकाउंट कोई और ऑपरेट कर रहा होबिना इन बिंदुओं पर विचार किए मेरा किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना अनुचित है।
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर हमारे चेहरे के भाव नहीं दिखतेकोई आवाज का लहजा नहीं होताऐसे में किसी भी ई-मेल की गलत व्याख्या करना आसान हो जाता हैइसलिए यहां किसी से भी जुड़ते समय शब्दों के चुनावों में और भाव-भंगिमाओं के संकेत देने में बहुत स्पष्ट रहना चाहिए |यहीं से ई डाउट की शुरुआत होती है ऐसा शक जो हमारी  वर्च्युल गतिविधियों से पैदा होता है जिनका हमारे वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं होता है |
यही चीज हमें मशीन से अलग करती हैआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीक पूरी तरह से मशीन पर निर्भर हैएक बार जो कमांड दे दिया गया उसी के अनुरूप हर स्थिति की व्याख्या की जाएगीअब जब ये दुनिया इसी तकनीक पर चलने वाली है तो समय आ गया है कि हम मानव व्यवहार की हर स्थिति की पुनर्व्याख्या करेंआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमें मानव स्वभाव पर और गहराई से अध्ययन करने को प्रेरित करता है|
हमारा ईगो डिजिटल युग को पसंद क्यों करता है क्योंकि यह व्यक्तिवाद को बढ़ावा देता है जिसमें शामिल है ‘आई’’ ‘मी’ और “माई” “आई-फोन” जिसमें सामूहिकता की कहीं कोई जगह नहीं है और शायद इसीलिये लोगों ज्यादा से ज्यादा लाईक्स,शेयर और दोस्त वर्च्युल दुनिया में पाना चाहते हैं |यह एक और संकट को जन्म दे रहा है जिससे लोग अपने वर्तमान का लुत्फ़ न उठाकर  अपने अतीत और भविष्य के बीच झूलते रहते हैं | अपनी  पसंदीदा धुन के साथ हम मानसिक रूप से अपने वर्तमान स्थिति को छोड़ सकते हैं और अपने अस्तित्व को अलग डिजिटल वास्तविकता में परिवर्तित कर सकते हैं|वैसे भी ईगो के लिए वर्तमान के कोई मायने नहीं होते हैंईगो मन अतीत के लिए तरसता है क्योंकि ये आपको परिभाषित करता हैऐसे ही ईगो अपनी किसी आपूर्ति के लिए भविष्य की तलाश में रहता हैहमारे डिजिटल उपकरण वर्तमान से बचने का बहाना देते हैं|फेसबुक जैसी तमाम सोशल नेटवर्किंग साईट्स की सफलता के पीछे हमारे दिमाग की यही प्रव्रत्ति जिम्मेदार है |जब हम कहीं घूमने जाते हैं तो प्राकृतिक द्रश्यों की सुन्दरता निहारने की बजाय हम तस्वीरें खिंचाने में ज्यादा मशगूल हो जाते हैं और अपने वर्तमान को पीछे छोड़कर भविष्य में उस फोटो के ऊपर आने वाले कमेन्ट लाईक्स के बारे में सोचने लग जाते हैं | डिजिटल ईगो जब हमारे रोजमर्रा का हिस्सा हो जाएगा तब हम पूरी तरह वर्चुअल हो चुके होंगेस्मार्टफोन कल्चर आने से आज परिवार में संवाद बहुत कम हो रहा हैतकनीकी  विकास से हम पूरी दुनिया से तो जुड़े हैं लेकिन पड़ोस की खबर नहीं रख रहे हैं|
हमारा सामाजिक दायरा तेजी से सिमट रहा है और आपसी सम्बन्ध जिस तेजी से बन रहे हैं उसी तेजी से टूट भी रहे हैं | हमारी पूरी दुनिया वर्चुअल होती जा रही हैऐसे में हमें मानव स्वभाव पर पूरा अध्ययन कर डिजिटल ईगो का निवारण करना पड़ेगा ताकि जब डिजिटल संचार ही सर्वोपरि हो जाए तब हम संदेशों की गलत व्याख्या करने से बच सकें|
दैनिक जागरण /आईनेक्स्ट में 23/07/19 को प्रकाशित 

Wednesday, July 17, 2019

एंटी सोशल एलिमेंट से साइबर स्पेस की सुरक्षा

बचपने से पढते चले आ रहे हैं मनुष्य एक सामजिक प्राणी है और इसी सामजिकता के तहत वो लोगों से रिश्ते बनाता है रिश्तों का आधार संचार ही होता है जिसमे छिपा होते हैं भाव एक दूसरे के प्रति प्यार और यही से शुरुवात होती है बतकही की एक दौर हुआ करता था जब कस्बों और गांवों  के नुक्कड़ चौपालों से गुलज़ार रहा करते थे पर अब दुनिया बदल चुकी है और वक्त भी  अब इन बैठकों की जगह वर्चुअल हो गयी है घर के आँगन कंप्यूटर की स्क्रीन में सिमट गए देह भाषा को कुछ संकेत चिन्हों में समेट दिया गयासमाज में जब भी कोई बदलाव आता है तो सबसे ज्यादा प्रभावित मध्यवर्ग होता है और ऐसा ही कुछ हुआ है हमारे सम्प्रेषण पर देश का मध्यवर्ग और खासकर युवा  चकल्लस के नए अड्डे से संक्रमित है जिसे सोशल नेटवर्किंग साईट्स का नाम दिया गया है अब चक्कलस  करने के  के लिए न तो किसी बुज़ुर्गियत की ज़रुरत है और न ही किसी पुराने निबाह की. ये वो अड्डे हैं जिनके नाम तक उल्टे पुल्टे हैं. कोई कई चेहरों वाली किताब है तो कोई ट्विटीयाने वाली चिड़िया बनने को बेताब है. फेसबुकगूगल प्लस,ट्विटर और फ्लिकर जैसे तमाम चकल्लस के लोकप्रिय अड्डे बनकर उभरे हैं. इसका हिस्सा बनने के लिए किसी तरह के बौद्धिक दक्षता के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है. बस आपको अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने का हुनर आना चाहिए.ट्यूनीशिया का एक युवा जब वहां की पुलिस के कारण बेरोजगार हो जाता है तो वह अपनी लडाई में सोशल नेटवर्किंग साईट्स को अपना हथियार बनाता है.पिछले दिनों एक शादी सोशल मीडिया पर बहुत विवादों में रही.
एक प्रेम विवाह से जुड़ा मामला ,घर परिवार ,लोक संस्कार और न जाने कितने मुद्दों पर मोर्चेबंदी का शिकार हुआ . भारत में सूचना क्रांति अपना असर दिखा रही है .शहरों में इन  वर्चुअल अड्डों ने पुराने  हो चुके संस्कारों और रुढियों की सड़ांध में दम तोड़ते समाज के सपनों को पंख लगा दिए हैं.जिन मुद्दों पर घर और समाज में दबी ज़बान से भी बोलने तक की मनाही है वहांये  वर्चुअल अड्डे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पर्याय बन चुके हैं.सोशल मीडिया की तमाम साईट्स वर्चुअल अड्डेबाजों  का तीर्थ  सिद्ध हुआ है.हर कोई यहाँ डूबकी लगाकर इंटरनेट तकनीक का आशीर्वाद पा लेने को बेताब है. बोलना हम सब चाहते हैं पर क्या इसमें मामला मुश्किल तब पड़ जाता है कि क्या बोला जाए और कैसे . अब जरा ध्यान दिया जाए कि इस दुनिया में हर कोई बोले जा रहा है. फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साईट्स से लेकर टिवटर तक हर जगह उन्हीं का बोलबाला है जो बोल रहे हैं कह रहें हैं अच्छा है बात से बात निकलनी चाहिए पर सोसायटी में ऐसे भी लोग होते हैं जो क्या कहना और कैसे कहना है  इसका सलीका नहीं जानते हैं . टेक्नोलोजी हमारे जीवन का अहम हिस्सा बनती जा रही है पर क्या उसके सही इस्तेमाल के लिए हम तैयार हैं ना जाने कितने मैनर्स हमें सिखाये जाते हैं पर अब वक्त है इंटरनेट मैनर्स सीखने का है .मेरे जीवन का अब तो नियम बन गया है सुबह कंप्यूटर खोलते ही फेसबुक पर अनचाहे टैग हटाना अनर्गल कमेन्ट को डिलीट करना और ना जाने क्या क्या महज इसलिए कि अभी बहुत से लोगों को इंटरनेट मैनर्स सीखना है .आइये आपको आस पास के माहौल से समझाते हैं . आपने शादी में शौकिया नाचने वालों को देखा होगा इनकी भी अलग दुनिया होती है इनमे से कुछ बहुत कमेन्ट करने वालो की तरह होते हैं बोले तो बैंड बजा नहीं और ये चालूकुछ ऐसे लोग भी होते है जो पहचान के संकट के शिकार होते हैं यानि आइडेंटिटी क्रायसिस इन्हें ये पता नहीं कि नाचना कैसे हैबस नाचना है ऐसे लोग सोशल नेटवर्किंग साईट्स की दुनिया में भी होते हैं जो बस कुछ भी बोलते हैं कुछ भी लिखते हैं कुछ भी करते हैं.
अरे भाई कहो खूब कहो पर पर्सनल और पब्लिक इस्शुज  को अलग अलग कर जब इन दोनों को मिला दिया जाएगा तो समस्या आयेगी ही . अगर आप चाहते हैं कि लोग आपके विचार को पसंद करें आपको सराहें पर उसके लिए पहल आपको करनी पड़ेगी कुछ कहना पड़ेगा यानि सुनना और कहना टू वे है.आप कुछ कह रहे हैं तो दूसरों को सुने भी और उसके बाद जब आप कुछ कहेंगे तो उसका असर होगा.अपने दर्द को दुनिया के साथ बांटिये शायद इनमे कोई शख्स मिल जाए जो आपकी परेशानी को कम कर सके.बहुत खुश हैं तो उसको बांटिये लोगों को बताइए कि आप खुश हैं फिर खुशियाँ बांटने से बढ़ती हैं.हम खुशनसीब हैं जो इस तरह की दुनिया में रहते हैं जहाँ हम ग्लोबल कनेक्टेड हैं समय और स्थान की दूरियां मिट गयी हैं .
लोग तभी सुनेंगे जब आप कुछ कहेंगे और जब आप सुनेंगे तो लोग कहेंगे तो अपनी ऑनलाइन प्रोफाईल पर कुछ वक्त बिताइये लोगों को पढ़ने में बिना समझे कुछ भी मत कहिये.अनर्गल बातें टैग मत कीजिये किसी के व्यक्तिगत जीवन में क्या चल रहा है अगर इसको मुद्दा बनायेंगे तो कल को आपके बारे में कोई कुछ भी बोलेगा और तब आप कहेंगे कि दुनिया बड़ी खराब है.सायबर स्पेस को साफ़ सुथरा रखने की जिम्मेदारी हम सबकी है अगर यहाँ भी कोई एंटी सोशल एलीमेंट आ गया है तो उसे निकाल फेंकिये अपनी मित्रता सूची से रीयल वर्ल्ड को बेहतर बनाने का जरिया साइबर वर्ल्ड भी है अगर यहाँ गंदगी बढ़ेगी तो उसका असर हमारी रीयल लाईफ पर भी पड़ेगा तो घर की साफ़ सफाई के साथ सायबर वर्ल्ड की सफाई भी जरूरी है. तो फेक प्रोफाईल रिक्वेस्ट को रिजेक्ट कीजिये और गंदगी फ़ैलाने वालों को ब्लौक तो अपने आस पास के लोगों को इंटरनेट मैनर्स सीखाइये फिर देखिये दुनिया कैसे बदलती है .
 दैनिक जागरण /आई नेक्स्ट में 17/07/2019 को प्रकाशित 

Saturday, July 13, 2019

जैविक नमूनों से आसान होगी पहचान


डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक पिछली सरकार के कार्यकाल में नौ जनवरी को लोकसभा से पारित हो गया था किन्तु राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण यह बिल कानून न बन सका |मोदी सरकार को मिले नए जनादेश से यह उम्मीद की जा रही है कि यह बिल अब जल्दी ही कानून का रूप ले सकता है | देश में हर वर्ष लाखों लावारिश लाशें मिलती हैं जिनकी कोई पहचान नहींहोती और हजारों लोग लापता होते हैं पर सरकार के पास ऐसा कोई तंत्र नहीं है जिससे यह पता चल सके कि कितने लापता अकाल काल कवलित हो गए  और न ही कोई आँकड़ा उपलब्ध है| प्रश्न  यह है कि इन लाशों की पहचान कैसे हो? बात चाहे केदार नाथ में आई आपदा की हो या जम्मू कश्मीर में आई बाढ़ ऐसी कई आपदाओं में सैंकड़ों लोगों की मौत हो जाती है और हजारोंलोग लापता हो जाते हैं| इनमें से कई मामलों में न तो व्यक्ति की पहचान हो पाती है और न ही उनके परिचित की जानकारी मिल पाती है| ऐसा ही कुछ बहुत सी अपराधिक घटनाओं के साथ होता है जिनकी गुत्थी  अनसुलझी ही रह जाती  है |ऐसे कई सवालों के जवाब डीएनए जांच में मिल सकते हैं लेकिन सरकार के पास अपने नागरिकों का कोई आधिकारिक डीएनए आंकड़ानहीं है | डीएनए की खोज पहली बार जेम्स वाटसन और फ्रांसिस क्रिक ने 1953 में की थी और साल 1985 में ब्रिटिश वैज्ञानिक एलेक जेफ्रीज ने डीएनए  प्रोफाईल की आधुनिक तकनीक की खोज की|उसी  साल 1985 में देश  में पहली बार कानूनी कार्रवाई में डीएनए  जाँच को  विधिक मान्यता मिली और 1988 में पहली बार डीएन ए जांच के बाद किसी दोषी को सजा मिलीलेकिन तब से लेकर आज तक इसके लिए कोई ठोस विधिक तंत्र  का विकास नहीं हो पाया. आलोचकों का मानना है कि ऐसा कानून व्यक्ति की निजता का उल्लंघन है और उसके मानवाधिकारों का हनन भी |ऐसी ही सवालों के कारण डीएनए प्रोफाईल विधेयक को कानूनी रूप देने की सरकार की कोशिशे परवान न चढ़ सकीं | ये प्रावधान इतना विवादास्पद हो चुका  है कि सरकार2007,2012,2015,2016 और फिर 2017 में प्रस्तुत ड्राफ्ट में कई संशोधन कर चुकी है| भारत में यह प्रावधान पहले से ही है कि ज़रूरत पड़ने पर न्यायिक मजिस्ट्रेट को जानकारी देकर कई अपराधों के मामलों में संदिग्धों की डीएनए प्रोफ़ाइल बनाने के लिए जैविक नमूने लिए जा सकते हैं| कई लैबोरेट्री में डीएनए प्रोफ़ाइल से जुड़ी जांच करने की व्यवस्था है|
 डीएनए प्रोफाइलिंग क्या है : यह किसी व्यक्ति की पहचान की ऐसी फोरेंसिक तकनीक है जिसके जरिये जैविक नमूनों जैसे त्वचा, बाल, रक्त या लार की बूँदें लेकर किसी भी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है. फिर उसके डीएनए सैम्पल के आधार पर उसकी एक विशिष्ट डीएनए प्रोफाईल  बनाई जाती है.यह प्रोफाईल एकदम विशिष्ट होगी और ऐसी कोई दूसरी प्रोफाईल सारीदुनिया में कोई और नहीं हो सकती |इस प्रोफाईल के जरिये किसी व्यक्ति की किसी स्थान और जगह विशेष पर उपस्थिति या अनुपस्थिति सुनिश्चित की जा सकती है | 99.9% डीएनए सभी व्यक्तियों में एक जैसा होता है| केवल 0.1प्रतिशत  अंतर के कारण प्रत्येक व्यक्ति का डीएनए एक-दूसरे से अलग होता है और इसी के आधार पर किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है|उन्नाव में परियर गांव से सटे परियर घाट पर गंगा नदी में मिले दो सौ  से ज्यादा शव और उनके अवशेष मिले| उन्नाव की तत्कालीन डीएम सौम्या अग्रवाल के आदेश पर शवों को नदी के किनारे बालू खोदकर दफना दिया गया । अनुमान के मुताबिक बरामद शव छह महीने से लेकर एक साल पुराने हो सकते हैं। यही वजह है कि लाशों का पोस्टमार्टम नहीं कराया जा सका क्योंकिशव बहुत ज्यादा गल चुके थे और उन्हें उठाने पर शरीर के हिस्से अलग हो रहे हैं।यह सवाल आज भी अनुत्तरित है कि ये शव किसके थे |क्योंकि सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है | इस कानून के बनने के बाद डीएनए के नमूने लेना और डीएनए बैंक को स्थापित करना आसान हो जाएगा|डीएनए नमूनों का गलत इस्तेमाल रोका जा सकेगा|गलत इस्तेमाल करने वालों को सजादिलाई जा सकेगी|इसके साथ ही यह कानून लावारिश लाशों की पहचान करने में मददगार साबित होगा.बलात्कार  जैसे गंभीर आपराधिक मामलों में अपराधियों की पहचान की जा सकेगी चाहे यह मामला कितना भी पुराना क्यों न हो| किसी भी आपदा में शिकार हुए लोगों की पहचान हो  सकेगी|लापता लोगों की तलाश, अपराध नियंत्रण और अपराधियों की पहचान की जासकेगी|  डीएनए तकनीक का प्रयोग सिविल वाद को  सुलझाने के लिए भी किया जा सकता है जिनमें बच्चे के जैविक माता-पिता की पहचान,आव्रजन  केस और मानव अंगों के ट्रांसप्लांट जैसे कुछ महत्वपूर्ण आयाम भी  शामिल हैं।  इस कानून के समर्थकों का मानना है कि किसी की अनुवांशिक जानकारी इकठ्ठा करना किसी की  निजता को भंग करने जैसा मामला नहीं है |इसीआधार पर शुरुआत में लोगों ने आधार का भी विरोध किया था हालांकि लोगों की गोपनीय जानकारी सामने आने के तथ्य कई बार प्रकाश में आये पर यह भी सत्य है कि आधार के सरकारी योजनाओं में जुड़ने से भ्रष्टाचार में कमी आई है और सही लाभार्थी को लाभ मिलना सुनिश्चित हुआ |सरकार के पास पर्याप्त संख्या में आंकड़े आये जिससे नीतियां बनाने और उनके पालन करानेमें आसानी हुई है | इस बिल के कानून बन जाने के बाद यह उम्मीद की जा सकती है कि नए भारत में कोई अपराधी अपराध करके बच जाएगा| एक बोर्ड की मदद से डीएनए प्रोफ़ाइलिंग के काम में लगी प्रयोगशालाओं और उनसे जुड़े लोगों का स्तर तय करना; एक राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक की स्थापना, इकट्ठा किए गए नमूनों की सुरक्षा |इसमें नमूनों के अनधिकृत या ग़लत तरीके सेइस्तेमाल करने पर सज़ा की व्यवस्था होगी और दोषी क़रार दिए जाने के बाद लोगों को ये मौका भी दिया जाएगा कि वो डीएनए जांच के ज़रिए ख़ुद को बेकसूर साबित कर सकें| वहीं हमारी पुलिसिंग भी ज्यादा वैज्ञानिक तरीके से अपराधों की जांच कर पायेगी और विज्ञान जनित साक्ष्य यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई निर्दोष जेल की काल कोठरी में न सड़े|लेकिन सरकार को भी इसबात का ख्याल रखना होगा कि डीएनए बैंक में संरक्षित डीएनए पूरी तरह से सुरक्षित हाथों में रहे और लोगों के निजता के अधिकार जैसी चिंताओं का तार्किक तरीके से समाधान करना होगा | हमारी पुलिस व्यवस्था जो अभी भी अंग्रेजों के ज़माने के तौर तरीके से चल रही है उसे भी प्रशिक्षित किये जाने की जरुरत है |
 दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 13/07/2019 को प्रकाशित 


Friday, July 5, 2019

साइबर अपराधियों पर हो सख्त शिकंजा

आज का दौर आंकड़ों का दौर है .वो आंकड़े ही हैं  जो सूचनाओं से ज्यादा पुष्ट हैं और इसीलिये जीवन के हर क्षेत्र में इनका महत्त्व बढ़ता जा रहा है .समय   बदला और तकनीक भी .भारत इस वक्त चीन के बाद दूसरे नम्बर का स्मार्ट फोन धारक देश है और इंटरनेट का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है जिसने सोशल मीडिया के प्रयोग को काफी बढ़ावा दिया है .सोशल मीडिया पर होना एक तरह से समाज में आपकी स्वीकार्यता को बढ़ावा देता है .समाज में किसी की हैसियत सोशल मीडिया में उसके फोलोवर से तय की जाने लगी है .सोशल मीडिया पर आने से जिस तथ्य को हम नजरंदाज करते हैं वह है हमारी निजता का मुद्दा और हमारे दी जाने वाली जानकारी.जब भी हम किसी सोशल मीडिया से जुड़ते हैं हम अपना नाम पता फोन नम्बर ई मेल उस कम्पनी को दे देते है.असल समस्या यहीं से शुरू होती है .  इस तरह देश के सभी नागरिकों का आंकड़ा संग्रहण कर लिया गया .उधर इंटरनेट के फैलाव  के साथ आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हो उठें .लोगों के बारे में सम्पूर्ण जानकारियां को एकत्र करके बेचा जाना एक व्यवसाय बन चुका है और  इनकी कोई भी कीमत चुकाने के लिए लोग तैयार बैठे हैं .कई बार एक गलती  किसी कंपनी की उस लोकप्रियता  पर भारी पड़ जाती है जो उसने एक लंबे समय में अर्जित की होती है. पिछले साल  पहले कैंब्रिज एनालिटिका मामला सोशल नेटवर्किंग साईट  फेसबुक के लिए ऐसा ही रहा. इस कंपनी पर आरोप है कि इसने अवैध तरीके से फेसबुक के करोड़ों यूजरों का डेटा हासिल किया और इस जानकारी का इस्तेमाल अलग-अलग देशों के चुनावों को प्रभावित करने में किया. इनमें 2016 में हुआ अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव भी शामिल  है. इस काण्ड के सामने आने के बाद फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने कहा है कि उनकी कंपनी ग्राहकों की निजता को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध है ऐसा प्लेटफॉर्म का निर्माण किया जा रहा हैताकि फेसबुक समेत उसके सहयोगी प्लेटफॉर्म मेसेंजरवॉट्स एप और इंस्टाग्राम पर लोगों द्वारा की जा रही बात गोपनीय रहे और यूजर्स का डाटा सिक्योर  रहे.इस मामले ने फेसबुक की विश्वसनीयता को भी काफी गंभीर नुकसान पहुंचाया. कंपनी के प्रमुख  मार्क जुकरबर्ग को बार बार सफाई देनी  पड़ीं.विभिन्न रिपोर्ट्स के मुताबिक़ विवाद सामने आने के दस  दिन के अंदर कंपनी को 9,000 करोड़ डॉलर (5,82,615 करोड़ रुपये) का नुक़सान हो गयाअमेरिका के फ़ेडरल ट्रेड कमीशन ने जांच बिठा दी और अमेरिकी सीनेट ने डेटा सुरक्षा के मुद्दे पर मार्क जुकरबर्ग को गवाही देने के लिए बुला लिया था.
किसी भी ऑनलाइन कम्पनी का विज्ञापन कारोबार तभी तेजी से बढेगा जब उसके पास ग्राहकों की गोपनीय जानकारी हो जिससे वह उनके शौक रूचि आदतों के हिसाब से विज्ञापन दिखा सकेगी वहीं साईबर अपराधियों की निगाह भी ऐसे आंकड़ों पर रहती है,पर ऐसी घटनाएँ न हों और अगर हों तो दोषियों पर कड़ी दंडात्मक कार्यवाही हो ऐसा कोई भी प्रावधान अभी तक भारतीय संविधान मे नहीं किया गया है .अभी तक ऐसे किसी मामले को निजता के अधिकार के  हनन के तहत देखा जाता है .नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करना सरकार का संवैधानिक दायित्व है. किसी नागरिक की आधार सूचना हो या कोई अन्य किस्म की डिजीटल सूचना- उन पर सेंध लगाने की कोशिश  अंततः नागरिक गरिमा ही नहींराष्ट्रीय संप्रभुता को भी ठेस पहुंचाएगी. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी एन श्री कृष्णा की अध्यक्षता में गठित समिति ने पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल का ड्राफ्ट बिल सरकार को सौंप दिया है .इस बिल में निजी” शब्द को परिभाषित किया गया है.इसके अतिरिक्त इसमें सम्वेदनशील निजी डाटा को बारह  भागों में विभाजित किया गया है.जिसमें पासवर्ड,वित्तीय डाटा,स्वास्थ्य डाटा,अधिकारिक नियोक्ता,सेक्स जीवन,जाति/जनजाति,धार्मिक ,राजनैतिक संबद्धता जैसे क्षेत्र जोड़े गए हैं.इस बिल को अगर संसद बगैर किसी संशोधन के पास कर देती है तो देश के प्रत्येक नागरिक को अपने डाटा पर चार तरह के अधिकार मिल जायेंगे .जिनमें पुष्टिकरण और पहुँच का अधिकारडाटा को सही करने का अधिकारडाटा पोर्टेबिलिटी और डाटा को बिसरा देने जैसे अधिकार शामिल हैं .इस समिति की  रिपोर्ट के अनुसार यदि इस बिल का कहीं उल्लंघन होता है तो सभी कम्पनियों और सरकार को स्पष्ट रूप से उन व्यक्तियों को सूचित करना होगा जिनके डाटा की चोरी या लीक हुई है कि चोरी या लीक हुए डाटा की प्रकृति क्या है ,उससे कितने लोग प्रभावित होंगे ,उस चोरी या लीक के क्या परिणाम हो सकते हैं और प्रभावित लोग जिनके डाटा चोरी या लीक हुए हैं वे क्या करें .ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति का डाटा चोरी या लीक हुआ है वह उस कम्पनी से क्षतिपूर्ति की मांग भी कर सकता है .फिलहाल यह बिल संसद की मंजूरी के इन्तजार में है,लेकिन सिर्फ़ कानून के बन जाने से सबकुछ ठीक हो जाएऐसा संभव नहीं है. इसके लिए लोगों को भी जागरूक होना होगा. इस कानून का उद्देश्य  आम लोगों को यह जानकारी देना है कि आपका डाटा कौन ले रहा है और उसका इस्तेमाल कौन कर रहा है.क़ानून के तहत लोगों का निजी डेटा केवल पहले से बताए गए उद्देश्यों के लिए किया जा सकेगा. कंपनियों को यह बताना होगा कि वो डेटा की जानकारी कैसे और क्यों ले रहे हैं. कंपनियों को यूज़र्स का डेटा सुरक्षित करने की ज़रूरत है और अगर उनका डेटा लीक होता है तो उन्हें बताना होगा कि यह उनके लिए कितना ख़तरनाक हो सकता है.भारत ने इस दिशा में काफी देर से ही एक सार्थक कदम उठाया है .इसके साथ ही लोगों को भी सोशल मीडिया के प्रयोग करते वक्त सावधानी बरतनी होगी कि उन्हें कितनी जानकारी लोगों को देनी है .वक्त बे वक्त चेक इन्स की जानकारी हो या घर से दूर छुट्टियाँ मनाने का मामला ,हमें यह बात हमेशा जहन में रखनी होगी इंटरनेट पर कुछ भी गोपनीय नहीं है .
आई नेक्स्ट /दैनिक जागरण में 05/07/2019 को प्रकाशित 

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